मुकेश बिजौले
भारतीय दर्शन में रज़ा साहब का गहरा विश्वास रहा है यही कारण है कि वे आंतरिक स्तर पर आध्यात्मिक यात्रा करते हुए विंदु पर एकाग्र हो जाते हैं जो उनकी कला यात्रा का महत्वपूर्ण केंद्रीय रूपाकार है, बल्कि रंग और रूपों के माध्यम से भारतीयता को महसूस कराते हैं। रज़ा साहब भारतीय कला परम्परा में विशिष्ट स्थान के साथ हमेशा याद किये जाएँगे ।
वर्ष 2021 को रज़ा साहब के 100वें जन्मदिन को शताब्दी वर्ष के रूप में रज़ा न्यास नई दिल्ली की ओर से देश के 100 अलग अलग शहरों में रज़ा साहब के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। इसी शृँखला में उज्जैन के अभिनव रंगमंडल के निदेशक श्री शरद शर्मा एवं रज़ा फाउंडेशन के सहयोग से रज़ा सम्भव चित्र प्रदर्शनी में 15 चित्रों की प्रदर्शनी कालिदास अकादमी में 17 फ़रवरी से 19 फ़रवरी तक लगाई गई।
रज़ा साहब की कला यात्रा मूर्त से अमूर्त की ओर जाते हुए रंगों के चयन और उनके प्रयोग एक विशिष्ट शैली में चटख रंगों के प्रयोगों को कई आयामों में देखे जा सकते हैं। रज़ा साहब के इन 15 चित्रों के प्रिंट्स में सन 1951 से लेकर 2008 के बीच बनाए गए चित्रों के साथ रज़ा साहब का स्वेत श्याम चित्र भी लगाया गया है। सन 1951 में बनाया गया लैंडस्केप येलो ब्राउन टोन में मकानों की कतारों में रूपायत है।
रज़ा साहब प्रकृति को देखते हुए उसके प्रभाव को चित्रित करते हैं यही उनका अपना नितांत मौलिक तरीका उनके चित्रों में हम देख सकते हैं। रज़ा साहब के चित्रों में नीले, पीले, लालऔर हरे रंगों की आभा, ऊर्जा कई रूपों में एक दूसरे के पार रखने का ढंग वैभवशाली संसार रचता है।
भारतीय दर्शन में रज़ा साहब का गहरा विश्वास रहा है यही कारण है कि वे आंतरिक स्तर पर आध्यात्मिक यात्रा करते हुए विंदु पर एकाग्र हो जाते हैं जो उनकी कला यात्रा का महत्वपूर्ण केंद्रीय रूपाकार है, बल्कि रंग और रूपों के माध्यम से भारतीयता को महसूस कराते हैं। रज़ा साहब भारतीय कला परम्परा में विशिष्ट स्थान के साथ हमेशा याद किये जाएँगे ।
लेखक ओरहान पामुक के सम्पादित अंश से प्रभावित होकर मेरे विचार ” मैं रचता हूँ क्योंकि मुझे कला की अमरता में एक नादान-सा विश्वास है।”