अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षणों एवं विभिन्न अध्ययनों में कोविड-19 की पहली लहर से निपटने के मामले में नरेंद्र मोदी के प्रदर्शन को कमजोर पाया गया था। दूसरी लहर के प्रबंधन का मूल्यांकन और भी बदतर रहने वाला है। राजनीतिक वैज्ञानिकों और लोकतंत्र के पहरुओं ने लोकलुभावन एवं निर्वाचित निरंकुशों के प्रदर्शन पर व्यापक अध्ययन का काम किया है — पहले कोरोना उभार के दौरान वी-डेम द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इसी शब्द का इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने निष्कर्ष निकाला था कि मोदी सहित सभी दक्षिणपंथी ‘सांस्कृतिक’ लोकलुभावनवादियों के नेतृत्व वाले देशों में महामारी से निपटने में उनका प्रदर्शन बद से से बदतर रहा था।
पश्चिमी विश्लेषकों द्वारा आम तौर पर निर्वाचित सत्तावादियों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। एक दक्षिणपंथी लोकलुभावनवादी जो सांस्कृतिक तौर पर विभाजनकारी मुद्दों के बल पर पनपते हैं और दूसरे वामपंथी या सत्ता-प्रतिष्ठान विरोधी समूह, जो सामाजिक आर्थिक कार्यसूची को उठाते हैं। पश्चिमी नैरेटिव के मुताबिक, दक्षिणी अमेरिका की वेनेजुएला और क्यूबा जैसी अमेरिका विरोधी सरकारों का नेतृत्व इन ‘करिश्माई मजबूत नेताओं’ के हाथों में है।
पश्चिमी विश्लेषकों द्वारा हालिया अध्ययनों में पाया गया कि वामपंथी लोकलुभावन के पास कुल मिलाकर महामारी से निपटने का एक बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। उनमें से अधिकांश ने बेहद शीघ्रता से कार्यवाही की और तत्काल उपायों को अपनाया। इसके विपरीत, मोदी सहित सभी दक्षिणपंथी लोकलुभावनवादी कोविड-19 को रोक पाने में बुरी तरह से असफल साबित रहे।
2020 के एक अध्ययन में 17 लोकलुभावन नेताओं द्वारा कोविड-19 की प्रतिक्रिया में, संयुक्त राज्य अमेरिका में टोनी ब्लेयर इंस्टीट्यूट के ब्रेट मायेर ने नरेंद्र मोदी को फिलीपींस के रोड्रिगो दुतेर्ते और हंगरी के विक्टर ओर्बन की श्रेणी में रखा था। अध्ययन किये गये 17 लोकलुभावन नेताओं में से पांच दक्षिणपंथी सांस्कृतिक लोकलुभावनवादी नेता हैं, जिनमें मोदी के मामले में विभाजनकारी हिंदुत्व भी शामिल है। अध्ययन में पाया गया है कि सभी पाँचों ने संकट को कम करके आंका था, जबकि सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी लोकलुभावनवादियों ने महामारी को गंभीरता से लिया है और त्वरित उपायों को प्रयोग में लाने का काम किया है।
ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पैट्रिक हेलर ने पाया कि जिन देशों का नेतृत्व निरंकुश व्यक्तियों द्वारा किया गया जैसे कि अमेरिका में (पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के तहत), ब्राज़ील और भारत जैसे देश कोरोनावायरस महामारी के खिलाफ लड़ाई में सबसे निराशाजनक प्रदर्शन करने वालों में से रहे हैं। ट्रम्प, बोल्सोनारो और मोदी जैसे लोग ‘जी-हुजूरी’ करने वाले लोगों से घिरे रहते हैं। वे कहते हैं है कि मसीहाई लोकलुभावनवाद, सामाजिक (सांप्रदायिक) ध्रुवीकरण, असुरक्षा की भावना एवं केन्द्रीयकरण के विषाक्त संयोजन ने उनके नेतृत्व में महामारी को बदतर बना डाला है।
चार्ल्स डार्विन विश्वविद्यालय की जोनाथन ए. लासो और मिरांडा बूथ लोकलुभावन नेताओं के बीच में कुछ साझी विशिष्टताओं को पाते हैं। ये उनके विज्ञान के प्रति आशावादी पूर्वाग्रह, लापरवाही, अस्पष्टता और अज्ञानता में में दिखती हैं। यह लोकलुभावन ताकतवर पुरुषों को उभरते संकटों का प्रबंधन करने के लिए अयोग्य बनाता है। लोकलुभावन सरकारें विज्ञान को चुप करा देने के लिए बदनाम हैं। अध्ययन कहता है कि, ऐसा इसलिए है क्योंकि साक्ष्य-आधारित नीति उनके सार्वजनिक नीति के दृष्टिकोण से मेल नहीं खाती हैं।
इसके अलावा, एसोसिएटेड प्रेस (एपी) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण कहा गया है कि जो देश कोविड-19 मौतों के मामले में शीर्ष स्थान पर हैं, वे सभी ‘लोकलुभावन, सांचों को तोड़ने वाले’ नेताओं के नेतृत्व के तहत हैं। सर्वेक्षण में वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक इंटर-अमेरिकन डायलाग के अध्यक्ष माइकल शिफ्टर के हवाले से कहा गया है कि “लोकलुभावन नेता अपनी प्रकृति में विशेषज्ञों और विज्ञान के प्रति तिरस्कार का भाव रखते हैं, क्योंकि इन्हें सत्ता-प्रतिष्ठान के हिस्से के तौर पर देखने की उनकी प्रवित्ति रहती है।”
पैट्रिक हेलर के सिवाय बाकी सभी अध्ययनों में, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, 2020 के पहले कोविड उभार से संबंधित हैं, जब भारत के प्रदर्शन को बेहतर माना गया था। यह वह समय था जब नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी अपनी-अपनी टीका मैत्री और विश्वगुरु की डींग हांकने की खुमारी में मस्त थे। लेकिन अब कोरोना के दूसरे उभार के मूल्यांकन में जब भारत ने सभी देशों में हुई दैनिक मौतों में सबसे अधिक की सूचना दी है, तो इसका और भी अधिक बदतर होना अवश्यंभावी है।
पी. रमण एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ट्रिस्ट विद स्ट्रांग लीडर पॉपुलिज़्म: हाउ मोदीज हाइब्रिड रिजीम मॉडल इज चेंजिंग पोलिटिकल नैरेटिव, इकोसिस्टम एंड सिम्बल्स के लेखक हैं। व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।
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Modi Not Alone: All ‘Right-wing Authoritarians’ Fared Badly in Tackling Covid-19