जी-7 देशों के वित्त मंत्रियों ने बड़े बहुराष्ट्रीय समूहों के कर परिहार से निबटने के लिए एक समझौते पर सहमति व्यक्त की है। इस समझौते पर जी-20 देशों की क्या प्रतिक्रिया होगी और इन योजनाओं को कैसे लागू किया जाएगा, यह देखना अभी बाकी है।
प्रो-पब्लीका की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले कुछ वर्षों में अमेज़ॅन के जेफ बेजोस, टेस्ला के एलन मस्क, माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स और फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग सहित, अमेरिका के अन्य अरबपति, फ़ेडरल टैक्स भरने से बचने में कामयाब रहे हैं। रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति यानि जेफ़ बेजोस ने 2007 और 2011 के दरमियान किसी भी किस्म का फ़ेडरल टैक्स नहीं भरा है; एलोन मस्क ने इस उपलब्धि को 2018 में हासिल किया था। इसी कड़ी में माइकल ब्लूमबर्ग, अरबपति निवेशक कार्ल इकन और जॉर्ज सोरोस जैसे कई अन्य अरबपतियों ने भी पिछले कुछ वर्षों से टैक्स नहीं भरा है।
दिलचस्प बात यह है कि यह रिपोर्ट, दुनिया के सबसे धनी देशों द्वारा बहुराष्ट्रीय समूहों के कर परिहार से निबटने के लिए और न्यूनतम वैश्विक कॉर्पोरेट कर की दर तय करने के लिए एक समझौते पर समझ बनने के कुछ दिनों बाद आई है।
5 जून को ग्रुप ऑफ सेवन (G7) के समृद्ध देशों के वित्त मंत्रियों ने एक समझौते पर सहमति व्यक्त की, जिसे टैक्स के मामले में वैश्विक टैक्स परिदृश्य को बेहतर आकार देने की दिशा में एक ‘ऐतिहासिक कदम’ बताया जा रहा है। इस सौदे के ज़रिए विश्व स्तर पर दो काम करने का प्रस्ताव है: एक, समान कॉर्पोरेट टैक्स संरचना को तैयार करना और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा मुनाफे के स्थानांतरण को कम करना या रोकना है। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने दावा किया कि इस सौदे का उद्देश्य ’30-साल से गिरते कॉर्पोरेट टैक्स दरों के सिलसिले’ को खत्म करने का है, क्योंकि क्योंकि देश आपस में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लुभाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इस सौदे पर अगली बातचीत अगले महीने वेनिस में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में होगी।
जी-7 देश इस समझौते पर पहुंचे हैं कि कॉर्पोरेट टैक्स मुनाफे को उसकी न्यूनतम दर यानि 15 प्रतिशत पर लाया जाएगा। इस समझौते का उद्देश्य बड़ी बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा अपने मुनाफे को टैक्स हेवन में स्थानांतरित करने से बचने की समस्या से भी निपटना है। टैक्स हेवन एक कम-कर वाला या कर-मुक्त क्षेत्राधिकार है जिसके कानूनों या नियमों का उपयोग कर कानूनों या अन्य न्यायालयों के नियमों से बचने के लिए किया जा सकता है।
करों के भुगतान से बचने के लिए, बहुराष्ट्रीय कंपनियां बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (बीईपीएस) नामक एक उपकरण का इस्तेमाल करती हैं, जिसके तहत विभिन्न अधिकार क्षेत्र में टैक्स नियमों में अंतर होने के करण वे दोहरा टैक्स से या एकल टैक्स देने से बच जाते हैं। इसमें ऐसी व्यवस्थाएं भी शामिल हैं जो लाभ को उन अधिकार क्षेत्र से दूर स्थानांतरित कर देती है जहां कंपनी की गतिविधि होती हैं, जिससे उन्हें कम या न के बराबर टैक्स देना पड़ता है। इसे अमूर्त स्रोतों से प्राप्त मुनाफा जैसे कि ड्रग पेटेंट, सॉफ्टवेयर और बौद्धिक संपदा पर अर्जित रॉयल्टी को कम या शून्य कर दर वाले देशों को स्थानांतरित कर के किया जाता है। इससे कंपनियों को अपने पारंपरिक घरेलू देशों में उच्च टैक्स व्यवस्था से छुटकारा मिल जाता है।
वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने मोनिका भाटिया, प्रमुख, ग्लोबल फोरम ऑन ट्रांसपेरेंसी एंड एक्सचेंज ऑफ इंफॉर्मेशन इन टैक्स मैटर्स (ओईसीडी) को दिए एक साक्षात्कार में समझाया: कि “हाल के दिनों में, कई विकसित और विकासशील देशों की सरकारें टैक्स हैवन के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने की कोशिश कर रही हैं। इस तरह के सबसे चर्चित कदमों में से एक आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (बीईपीएस) पहल है। ओईसीडी दुनिया के कुछ सबसे अमीर देशों का समूह है। जिन देशों ने एक समय सक्रिय रूप से इसे प्रोत्साहान दिया था, या यहां तक कि करों के भुगतान से बचने और कर चोरी करने के लिए टैक्स हेवन के इस्तेमाल के प्रति आंखें मूंद ली थीं, आज वे इस दृष्टिकोण को नापसंद करते हैं क्योंकि इस तरह के अधिकार क्षेत्र से न केवल सरकारों को राजस्व से वंचित होना पड़ता हैं, बल्कि अवैध गतिविधियों में सांठगांठ भी होती है।”
9 जून को प्रकाशित प्रो-पब्लिका की रिपोर्ट से पता चला कि 25 सबसे अमीर अमेरिकियों ने 2014 और 2018 के बीच सामूहिक रूप से 401 बिलियन डॉलर कमाए, लेकिन उन्होंने उन पांच वर्षों में फ़ेडरल टैक्स के रूप में कुल कर भुगतान 13.6 बिलियन डॉलर का किया था। इस चौंका देने वाले अंतर की तुलना में, औसत मध्यम वर्ग अमेरिकियों ने 2014 और 2018 के बीच टैक्स अदा करने के बाद अपनी संपत्ति में लगभग 65,000 डॉलर का इजाफा देखा (ज्यादातर उनके घरों के मूल्य में वृद्धि के कारण), जबकि उनका टैक्स बिल उस अवधि में 62,000 डॉलर के करीब पहुंच गया था।
हाल के समझौते में, जी-7 देशों ने सुधारों के दो बिन्दुओं पर सहमति जताई है:
1. न्यूनतम वैश्विक कॉर्पोरेट टैक्स को 15 प्रतिशत तय करना। यह दर इस साल की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा रखे गए 21 प्रतिशत के प्रस्ताव से काफी कम है।
2. इससे बड़ी कंपनियों द्वारा कमाए गए कुछ मुनाफे पर टैक्स लगाने के लिए उन देशों को सक्षम करना है जहां राजस्व उत्पन्न हुआ, न कि उस देश के अधिकार क्षेत्र में जहां फर्म टैक्स उद्देश्यों के लिए स्थापित है। इस उपाय के तहत, जिन देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियां राजस्व उत्पन्न करती हैं, उन्हें सबसे बड़ी और सबसे अधिक लाभदायक फर्मों के कम से कम 20 प्रतिशत लाभ पर कर लगाने का अधिकार होगा।
3. ओईसीडी के अनुमानों के अनुसार अक्टूबर 2020 से, प्रस्तावित सुधारों से अतिरिक्त कर राजस्व में 81 बिलियन डॉलर तक की वृद्धि होगी। जबकि वैश्विक न्यूनतम टैक्स 12.5 प्रतिशत की दर से 42 बिलियन डॉलर और 70 बिलियन डॉलर के बीच बढ़ने की उम्मीद है, दूसरा सुधार से पाँच बिलियन डॉलर से 12 बिलियन डॉलर के बीच अतिरिक्त कर आएगा। टैक्स जस्टिस नेटवर्क का अनुमान है कि 21 प्रतिशत की न्यूनतम दर से 640 बिलियन डॉलर का कम भुगतान किया जाएगा।
जबकि अलग-अलग देशों में कितना कर राजस्व उत्पन्न होगा, इसका अनुमान भी अलग-अलग है, यूके को 21 प्रतिशत की वैश्विक न्यूनतम दर से सालाना अतिरिक्त 14.7 बिलियन पाउंड मिलने की उम्मीद है। आयरलैंड, जो सबसे कम टैक्स दर यानि 12.5 प्रतिशत कॉर्पोरेट टैक्स लगाता है, उसे प्रति वर्ष 2 बिलियन यूरो तक का नुकसान हो सकता है।
ऑक्सफैम की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने आलोचना करते हुए कहा कि 15 प्रतिशत की कॉर्पोरेट टैक्स दर बहुत कम है: “जी-7 के लिए यह दावा करना बेतुका है कि यह एक वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट टैक्स दर स्थापित करके एक टूटी हुई वैश्विक कर प्रणाली को ‘ओवरहाल’ कर रहा है या मजबूत कर रहा है। यह कुछ और नहीं बल्कि आयरलैंड, स्विटजरलैंड और सिंगापुर जैसे टैक्स हेवन द्वारा वसूल की जाने वाली सॉफ्ट दरों के समान है। वे दरों को को इतना नीचे तय कर रहे हैं कि कंपनियां उसका आसानी से उलंघन कर सकती हैं।”
उन्होने आगे बताया कि जब “दुनिया एक महामारी से घिरी हुई है, इस तरह की सख्त जरूरत के समय, जब जी-7 देशों ने कॉरपोरेट बैलेंस शीट के अत्यधिक मुनाफे पर नज़र डाली – तो तुरंत उसे अनदेखा कर दिया… राष्ट्रपति बाइडेन का 21 प्रतिशत का प्रस्ताव, जो अपने आप में आपर्याप्त था, उस पर भी कुछ यूरोपीय देशों ने, जो स्वयं घरेलू टैक्स हेवन चलाते हैं, ने इसे 15 प्रतिशत से भी नीचे करने की वकालत की है।
विकासशील देशों पर इसके प्रभाव के बारे में विस्तार से बताते हुए, बुचर ने तर्क दिया कि इस सौदे से अमीर देशों को भारी लाभ होगा और असमानता में वृद्धि होगी क्योंकि हर साल टैक्स हेवन में खो जाने वाले अरबों डॉलर का राजस्व धनी देशों में प्रवाहित हो जाएगा जहां अमेज़ॅन और फाइजर जैसी अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुख्यालय है। भले ही उनकी बिक्री और मुनाफा वास्तव में विकासशील देशों में क्यों न हो।
जी-7 समझौते के जवाब में, टैक्स विशेषज्ञों का तर्क है कि 15 प्रतिशत की न्यूनतम वैश्विक टैक्स दर से भारत को लाभ होगा क्योंकि प्रभावी घरेलू टैक्स दर सीमा से ऊपर है और देश निवेश को आकर्षित करना जारी रखेगा। अप्रैल में, हालांकि, यह बताया गया था कि भारत सरकार नई न्यूनतम टैक्स दर के पक्ष में नहीं थी और यह तर्क दिया गया था कि नया प्रस्ताव भारतीय अर्थव्यवस्था या भारतीय व्यवसायों के अनुकूल नहीं होगा। यह ऐसे समय में हो रहा था जब संयुक्त राज्य अमेरिका 21 प्रतिशत की वैश्विक न्यूनतम टैक्स दर का सुझाव दे रहा था और अंतर्राष्ट्रीय कॉर्पोरेट कराधान (आईसीआरआईसीटी) सुधार पर बने स्वतंत्र आयोग ने 25 प्रतिशत की न्यूनतम वैश्विक टैक्स दर का समर्थन किया था।
सितंबर 2019 में, भारत ने घरेलू कंपनियों के लिए अपने कॉर्पोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत और नई विनिर्माण इकाइयों के लिए 15 प्रतिशत कर दिया था। इससे पहले जून में, यह बताया गया था कि व्यवसायों पर कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभाव और कम टैक्स दरों के कारण पिछले वित्त वर्ष में कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह व्यक्तिगत आयकर संग्रह से नीचे गिर गया था, जो टैक्स दर दो साल पहले लागू हुए थे। 2020-21 में कॉरपोरेट मुनाफे पर कॉरपोरेट टैक्स में 18 प्रतिशत की कमी देखी गई थी, जबकि व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 2.3 फीसदी की गिरावट आई थी। लेखा महानियंत्रक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कॉर्पोरेट आयकर संग्रह 2020-21 में 4.57 लाख करोड़ रुपये था और व्यक्तिगत आयकर संग्रह 4.69 लाख करोड़ था जो कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह के सामान ही था।
स्पष्ट रूप से, कॉर्पोरेट आयकर की 15 प्रतिशत की न्यूनतम दर भारत में कॉरपोरेट्स जगत से घटते राजस्व को नहीं रोक पाएगी। इस समझौते पर जी-20 देशों की क्या प्रतिक्रिया होती है और इन योजनाओं को कैसे लागू किया जाता है, यह देखना अभी बाकी है।
सौज- न्यूजक्लिकः लेखक, न्यूज़क्लिक के लिए लिखती हैं और रिसर्च एसोसिएट भी हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। उनसे उनके ट्विटर हैंडल @ShinzaniJain पर संपर्क किया जा सकता है।अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें