जो कुछ हो रहा है उससे आक्रामक हिन्दुत्ववादी समूह बहुत प्रसन्न है. उन्हें उनका एजेंडा आगे बढ़ाने का एक सुनहरा मौका मिल गया है.हिन्दू दक्षिणपंथियों को मुस्लिम साम्प्रदायिकता और अतिवाद से बढ़ावा मिलता है.हमें कुछ मुद्दों पर सावधान रहने की जरूरत है. क्या हिजाब मुद्दे पर छिड़े विवाद में मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों की भागीदारी है? इस सिलसिले में हमें पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की विद्यार्थी शाखा कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया की गतिविधियों को भी ध्यान में रखना होगा. यह संगठन केरल में प्रोफेसर जोसफ पर हमले के पीछे था.
हिजाब के मुद्दे पर शुरू हुए विवाद ने गंभीर और चिंताजनक स्वरूप अख्तियार कर लिया है. कर्नाटक के उडुपी जिले के एक कालेज ने लड़कियों को हिजाब पहनकर कक्षा में प्रवेश देने से इंकार कर दिया. उसके बाद कालेज ने हिजाबधारी महिला विद्यार्थियों का कालेज के मुख्य द्वार के अंदर आना भी प्रतिबंधित कर दिया. हम सब ने वह शर्मनाक नज़ारा भी देखा जब भगवा साफे और शाल पहने हिन्दू धर्म के स्वनियुक्त पहरेदारों ने हिजाब पहने एक अकेली लड़की मुस्कान का रास्ता रोका और आक्रामक ढंग से ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए. मुस्कान ने इसका जवाब ‘अल्लाहू अकबर’ से दिया और अपना एसाइनमेंट जमा करने के बाद ही वह कालेज से गई. मुस्लिम लड़कियों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने एक अंतरिम आदेश जारी कर कालेजों और स्कूलों में हिजाब और भगवा शाल पहनना प्रतिबंधित कर दिया.
इसके बाद कई महिला अधिकार संगठनों व अन्यों ने लड़कियों के हिजाब पहनने के अधिकार की जोरदार हिमायत की और दक्षिणपंथी तत्वों को लताड़ लगाई. इस घटनाक्रम से पूरे देश में साम्प्रदायिक तत्वों को बल मिला और विघटनकारी ताकतों को एक नया हथियार. सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने वाली लड़कियों और महिलाओं के संबंध में अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही हैं.
जो कुछ हो रहा है उससे आक्रामक हिन्दुत्ववादी समूह बहुत प्रसन्न है. उन्हें उनका एजेंडा आगे बढ़ाने का एक सुनहरा मौका मिल गया है. यह भी साफ़ है कि मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने के लिए वे किस हद तक जा सकते हैं. जिन लोगों ने सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई जैसे मोबाईल एप बनाए थे और जो धर्मसंसदों में कही गई बातों से इत्तेफाक रखते हैं, उनकी भी प्रसन्नता का पारावार नहीं है. वे जानते हैं कि हिजाब मुद्दे से देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ेगा. मोहन भागवत का यह कहना कि वे धर्मसंसद में कही गई बातों से सहमत नहीं हैं केवल जनता की आंखों में धूल झोंकना है. आरएसएस के इन्द्रेश कुमार, जो राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के पथप्रदर्शक हैं, ने यह कहकर मुस्कान की निंदा की है कि उसने शांति भंग करने का प्रयास किया.
हमने यह भी देखा है कि देश के कई इलाकों में सार्वजनिक स्थलों पर नमाज अदा करने का विरोध किया जा रहा है. हालात यहां तक बिगड़ गए हैं कि नरसंहार विशेषज्ञ गेगरी स्टेनटन ने चेतावनी दी है कि नरसंहार के मामले में 1 से 10 अंकों के स्केल पर भारत 8वें अंक पर है. इसके पहले देश पर नागरिकता संशोधन अधिनियम और एनआरसी लादे गए जिससे ऐसा वातावरण बना मानों मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है. दिल्ली दंगों में मुस्लिम युवकों को निशाना बनाया गया और यही सीएए के खिलाफ हुए आंदोलनों के मामले में भी हुआ. यह सब अत्यंत निंदनीय है.
हमें कुछ मुद्दों पर सावधान रहने की जरूरत है. हिन्दू दक्षिणपंथियों को मुस्लिम साम्प्रदायिकता और अतिवाद से बढ़ावा मिलता है. क्या हिजाब मुद्दे पर छिड़े विवाद में मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों की भागीदारी है? इस सिलसिले में हमें पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की विद्यार्थी शाखा कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया की गतिविधियों को भी ध्यान में रखना होगा. यह संगठन केरल में प्रोफेसर जोसफ पर हमले के पीछे था. यह समझना मुश्किल है कि एक लंबे समय से चली आ रही वह व्यवस्था, जिसके अंतर्गत मुस्लिम लड़कियां स्कूल पहुंचने तक हिजाब पहने रहती थीं और कक्षा में जाने पर उसे उतार देती थीं, को बदलने की भला क्या जरूरत पड़ गई? एक ओर से नारे लगाए जा रहे हैं कि “हिजाब पहनना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” तो दूसरी ओर से कहा जा रहा है कि “देश शरिया के आधार पर नहीं चल सकता”.
हिजाब पूरी दुनिया में बहस का विषय रहा है. जब फ्रांस में सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने को प्रतिबंधित किया गया तब इसका जबरदस्त विरोध हुआ परंतु सरकोजी अपने निर्णय पर दृढ़ रहे. कई मुस्लिम-बहुल देशों में भी सार्वजनिक स्थलों पर हिजाब प्रतिबंधित है. इनमें शामिल हैं कोसोवो (सन् 2008 से), अजरबैजान (2010), टयूनिशिया (1981, यद्यपि 2001 में इसे आंशिक रूप से उठा लिया गया) व तुर्की. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहमम्द बिन सलमान ने घोषणा की है कि मुस्लिम महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढंकने वाला अबाया पहनना अनिवार्य नहीं है. इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्रुनेई, मालदीव और सोमालिया में भी यह अनिवार्य नहीं है. अलबत्ता ईरान, अफगानिस्तान एवं इंडोनेशिया के आचेह प्रांत में महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों पर अबाया पहनना कानूनन आवश्यक है.
भारत में स्थिति कहीं जटिल है. देश में बुर्के और हिजाब का प्रचलन काफी पहले से था परंतु बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद इसके प्रयोग में तेजी से वृद्धि हुई. वैश्विक स्तर पर खाड़ी क्षेत्र के तेल संसाधनों पर कब्जा ज़माने के अमरीका के अभियान और उससे जनित ‘इस्लामिक आतंकवाद’ की संकल्पना ने मुसलमानों में असुरक्षा के भाव को बढ़ाया.
बुर्के और हिजाब के प्रचलन में बढ़ोत्तरी का एक कारण भारतीयों का खाड़ी के देशों में रोजगार के लिए जाना भी है. जिस समय भारतीय काफी बड़ी संख्या में खाड़ी के देशों में जाया करते थे उस समय वहां बुर्का और हिजाब अनिवार्य था. जब ये लोग भारत लौटे तो अपने साथ हिजाब और बुर्के की अनिवार्यता का विचार भी ले आए. इन दिनों कई मुस्लिम अभिभावक लड़कियों को बचपन से ही हिजाब/बुर्का पहनाते हैं. इससे उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है. उन्हें यह भी लगता है कि ऐसा करके वे अपने परिवार और समुदाय की भावनाओें का सम्मान कर रही हैं.
अगर कोई महिला अपनी मर्जी से हिजाब पहनना चाहती है तो उसकी इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिए. परंतु समस्या यह है यदि पांच वर्ष की आयु से किसी लड़की को हिजाब पहनाया जायेगा तो वह उसकी ‘इच्छा’ बन जायेगा. इस्लाम के कुछ अध्येताओं का मत है कि कुरान के अनुसार, लड़कियों के लिए किशोरावस्था में कदम रखने के बाद से हिजाब पहनना ज़रूरी है. असग़र अली इंजीनियर और जीनत शौकत अली जैसे इस्लाम के जानकारों के अनुसार कुरान में नकाब और बुर्के का कहीं ज़िक्र ही नहीं है. हाँ, उसमें हिजाब (सात स्थानों पर) का ज़िक्र अवश्य है परन्तु उसका इस्तेमाल आड़ के तौर पर किया जाना है, गर्दन और चेहरे को ढंकने के लिए नहीं. हिजाब की तरह के वस्त्र कई समुदायों में इस्तेमाल होते हैं. ईसाई ननें, यहूदी और अन्य कई समुदायों की स्त्रियाँ हिजाब से मिलते-जुलते वस्त्र का प्रयोग करतीं हैं. भारत में भी एक समय घूंघट का व्यापक प्रचलन था यद्यपि समय के साथ इसमें तेजी से कमी आई है.
दरअसल, घूंघट, हिजाब इत्यादि के मूल में महिलाओं के शरीर पर नियंत्रण करने की पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति है. रूपकुंवर के सती हो जाने के बाद, भाजपा की तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विजयाराजे सिंधिया के नेतृत्व में संसद के सामने प्रदर्शन हुआ. प्रदर्शनकारियों का नारा था कि सती होना हिन्दू महिलाओं का अधिकार है!
इस दौर में हिजाब जैसे मुद्दों पर विवाद खड़ा करना मुस्लिम लड़कियों के शिक्षा प्राप्त करने के प्रयासों को कमज़ोर करना है. इससे शिक्षा के ज़रिये उनके सशक्तिकरण में बाधा आएगी. मुस्लिम समुदाय इस मुद्दे पर जिस तरह की प्रतिक्रिया दे रहा है वह उसमें व्याप्त असुरक्षा के भाव का नतीजा है. अगर अदालत हिजाब के पक्ष में फैसला सुनाती है तो इससे मुस्लिम महिलाओं के शिक्षा हासिल करने की प्रक्रिया कमज़ोर होगी. हिन्दू दक्षिणपंथी अत्यंत शक्तिशाली हैं. मुस्लिम दक्षिणपंथी, लोगों को भड़का कर हिन्दू दक्षिणपंथियों को मज़बूत कर रहे हैं. इससे असल नुकसान मुस्लिम लड़कियों और मुस्लिम समुदाय का होगा. क्या हम इसे रोक सकते हैं?
लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)