अरपा से मीठी नदी तक पसरा दुख- नथमल शर्मा

          अपने इस सूनसान हुए शहर में बरसों पहले टुंगरूस की आवाज़ गूंजती थी । कुएं स्वच्छ रखने की कला और कड़े श्रम में माहिर टुंगरूस को सत्यदेव दुबे मुंबई ले गए थे । ले गए यानी टुंगरूस के पात्र को । नसीरुद्दीन शाह ने उस पात्र को अभिनीत किया था । अपना शहर और माया नगरी मुंबई आज बहुत सूनी हो गई । कोविड 19 ने सबको घरों में बंद कर दिया है पर अपने बिलासपुर से लेकर मुंबई तक सबको और ज़्यादा सूना कर दिया है । कल इरफ़ान खान और आज ऋषि कपूर ने दुनिया को अलविदा कह दिया । दोनों ही अभिनेता शानदार । एक के पास अभिनय क्षमता के साथ ही परिवार की रियासत तो दूसरे के पास दोस्तों की दौलत और बहुत भीतर तक देखने और बोलने वाली आंखें । हालांकि दोनो की कोई तुलना नहीं पर ये दोनों ही बेजोड़ कलाकार महज़ 24 घंटे में सबको यहीं बिलखता छोड़ गए।  

              अरपा किनारे से बरसों पहले मुंबई गए थे महान् रंगकर्मी सत्यदेव दुबे । कला के प्रति समर्पण उन्हे माया नगरी खींच ले गया । लेकिन ये अरपा के पानी की खासियत है वह अपने आपको खुद से अलग नहीं होने देती । सत्यदेव दुबे भी अपने बिलासपुर को साथ लिए ही रचते रहे मुंबई में भी खुद को । इसीलिए तो उन्हें टुंगरूस याद ही रहा । पुराने लोग जानते हैं अपने शहर के उस मज़दूर को । कड़ी मेहनत करने वाला टुंगरूस कुएं की सफाई में माहिर था । पहले तो कुएं ही पानी देते थे जिनसे जिंदगी चलती थी । फिल्म मंडी में नसीरुद्दीन शाह ने एक अलमस्त लेकिन कठिन परिश्रमी की भूमिका निभाई थी । उसे देखकर ही अपने शहर के लोगों को टुंगरूस की याद आ गई थी । और फिर पता चला कि यह कमाल सत्यदेव दुबे का ही था । टुंगरूस को गए बरसों हो गए । अपने शहर को इस तरह मुंबई माया नगरी से जोड़ने वाले सत्यदेव दुबे भी नहीं रहे लेकिन मुंबई की तरह ही बिलासपुर भी उतना ही दुःखी है । आज सबेरे ऋषि कपूर नहीं रहे । कल ही रिलायंस अस्पताल में दाखिल हुए थे वे । पिछले कुछ समय से जिंदगी की जंग लड़ रहे थे । कैंसर के इलाज़ के लिए अमरीका में महीनों रहे । इरफ़ान खान भी अपने इलाज के लिए लंबे समय तक लंदन में रहे । कुछ ठीक होकर दोनों ही लौट आए । उन्हे नहीं पता था कि कितनी सांसें लेकर लौटे हैं (थे) वे । सांसों का हिसाब तो कोई और ही रखता है । हिसाब पूरा हुआ नहीं कि खेल ख़त्म । अस्पताल में दाख़िल ऋषि कपूर आखिरी दिन भी डाक्टर और नर्सों को किस्से सुनाते रहे । उस आलीशान अस्पताल के वातानुकूलित कमरे में एक क्षण के लिए शायद वो जंगल का कमरा भी याद आया हो – हम तुम एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए… उस समय तो जंगल से निकल आए बाॅबी डिंपल कपाड़िया के साथ और फ़िर अभिनय के सफ़र पर निकल पड़े । जालीदार बनियान पहने, पान खाते हुए तैयब अली प्यार का दुश्मन …गाते रहे ।एक पूरी पीढ़ी को प्रेम की भाषा समझाते रहे। पहली पारी में खूब लोकप्रियता बटोरी और नीतू सिंह के साथ जिंदगी के सफ़र पर चलते रहे । राज कपूर का ये बेटा और शम्मी कपूर ,शशि कपूर का भतीजा तो रहा ही पर अभिनय अपने दम पर ही करते रहा । माया नगरी वैसे भी बहुत क्रूर है वह रिश्ते नहीं टैलेंट देखती है । नही तो उन्हीं के भाई रणधीर  कपूर को यूं न नकार देती । ऋषि कपूर में कुछ बात थी तभी तो दूसरी पारी में भी आए और छा गए । “दो दूनी चार” का ईमानदार शिक्षक हो या “मुल्क़” का सच्चा हिंदुस्तानी। ऋषि कपूर ने सफ़ल पारी खेली । उनके पिता और महान् अभिनेता राज कपूर “मेरा नाम जोकर ” में कहते हैं “द शो मस्ट गो ऑन”। कैंसर से लड़ते हुए ऋषि कपूर ने भी कभी ये ज़ाहिर नहीं होने दिया कि वे डर गए हैं, वे लड़ते रहे । रचते रहे । 

             लड़ते रहे इरफान खान भी । उनके नाम के साथ न ‘कपूर’ था न ‘खान’ ही था । आमिर, शाहरुख और सलमान ही खान रहे । इन तीनों खानों के दौर और चमक के बीच आए इरफ़ान खान । जयपुर में पिता की टायर रिट्रेडिंग की दूकान । पिता का हाथ भी बंटाते पर अभिनय और क्रिकेट में ही प्राण बसते । रणजी ट्रॉफी के लिए चुन भी लिए गए पर पैसे नहीं थे इसलिए जा नहीं सके । फिर कलाकार दोस्तो के साथ मंचों पर अभिनय । फिर पूना फिल्म अकादमी और वहां से मुंबई । संघर्ष ही संघर्ष । बोलती आंखों वाले और दमदार आवाज़ वाले इरफ़ान के साथ भी मुंबई ने बेरूखी ही तो की । उसकी पूरी ज़वानी को समुद्र की लहरें लीलती रहीं । पर डटे  रहे इरफान । फिर पान सिंह तोमर तो मकबूल, हैदर और फिर तो लंच बाॅक्स तक की बातें बिलकुल सामने ही है । अपने अभिनय के दम पर अपनी अलग ही छवि और जगह बनाने वाले इरफान छा गए । सफ़र चल रहा था कि विषाणु आ गए उनके शरीर में । आए भी ऐसे कि जम ही गए । एकाध लाख़ में एक को होने वाली कैंसर की उस जानलेवा बीमारी ने दबोच ही लिया । पहले हिंदी मीडियम तो फिर अंग्रेजी मीडियम रचते रहे । बीमारी से पहली बार मिलने के बाद उन्होंने अपनों के लिए एक खत लिखा । जिसमें एक पंक्ति बहुत मार्मिक है – सफ़र चल ही रहा था कि किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रखा और कहा आपकी मंज़िल आ गई । उतरना पड़ेगा । अभी इसे लिखे दो साल भी नही हुए थे कि उतरना पड़ गया इरफान को । अपनी साफगोई के लिए भी मशहूर रहे इरफ़ान जब पान सिंह तोमर में कहते हैं कि – डाकू नहीं, बीहड़ में तो बागी होते हैं, डकैत तो पाल्लयामेंट में होते हैं । इस सच को कहने का साहस रखने वाले पान सिंह वाले इरफान को नेशनल अवार्ड मिलता है क्योंकि जनता इस सच को समझती है । 

            कोविड 19 के कारण सब बंद है । कल से दुःखी अभिताभ बच्चन ने आज सबेरे ये बेहद दुखद खबर सुनी और ट्विट कर लिखा कि मैं टूट गया हूं । जिनका बचपन आपके सामने गुज़रा हो और वो इस तरह गुज़र जाए तो हर संवेदनशील व्यक्ति ऐसे ही तो दुःखी होगा । आज टीवी के पर्दे पर एक तस्वीर भी दिखी जिसमें लता मंगेशकर अपनी गोद में लिए हुए है ऋषि कपूर को । पहली बार मिली लता जी भी उस दिन को याद कर अपनी नम आंखें पोंछ रहीं होंगी । आज उन्होंने ये तस्वीर ट्वीट भी की है । 

          ये गर्मी की छुट्टियों के दिन है । ननिहाल जाने के दिन । बच्चे अपने मामा गांव कब से ही पहुंच चुके होते अगर ये कोविड 19 के विषाणु रोकते नहीं । इरफ़ानका ननिहाल जोधपुर है और हो सकता है कल आख़िरी सांस लेते समय उसे नानी की सुनाई कोई कहानी याद आई हो । उनकी माँ भी आती रही होगी अपने मायके , पर वे भी पिछले शनिवार को चल बसी । इरफान नहीं जा पाए थे माँ के आखिरी सफ़र में और खुद ही चले गए वहां,जहां से कोई कभी नहीं लौटता । अपने शहर का टुंगरूस भी नहीं लौटा और न ही मुंबई गए सत्यदेव दुबे ही लौटे । मेरे शहर की अरपा से लेकर मुंबई की मीठी नदी तक सब दुःखी हैं । सूनी पड़ी  मुंबई आज और कुछ खाली हो गई । हज़ारो की भीड़ जिनके पीछे चलती थी वे दोनों ही ख़ामोशी से रुख़सत हो गए । इन पंक्तियों के लिखे जाते तक चंदनबाड़ी के श्मशान गृह में बिज़ली के सुपुर्द कर दिए गए ॠषि के शरीर को कुछ क्षण ही लगे जल जाने में । कहीं प्रेम रोग का वो गीत गूंज रहा था- मेरी किस्मत में तू नहीं शायद …

(लेखक प्रगतिशील लेखक संघ छत्तीसगढ़ के महासचिव एवं बिलासपुर से प्रकाशित दैनिक इवनिंग टाइम्स के प्रधान संपादक हैं)

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