सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें । हम पाठकों के लिए उनके व्यंग्य उपन्यास ‘हे विदूषक तुम मेरे प्रिय’को धारावाहिक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं । विदित हो कि‘भिलाई इप्टा’द्वारा इस व्यंग्य उपन्यास का नाट्य रूपांतर का काफी मंचन किया गया है । आज प्रस्तुत है पांचवी कड़ी– भ्रष्टाचार खत्म करने विदूषक का फार्मूला
5 भ्रष्टाचार खत्म करने विदूषक का फार्मूला
महाराज परेशान हैं। अपने कक्ष में इधर- उधर टहल रहे हैं। राजवैद्य को बुलाया गया है। महारानी चौके में साबूदाने का खीर पका रही हैं।
राजवैद्य ने कहा- महाराज आपको कोई शारीरिक व्याधि नहीं है। आप स्वस्थ हैं।
महाराज बोले- लेकिन मन चलायमान है।
राजवैद्य ने सुझाया- महाराज आपसे मैं कह चुका हूँ कि आप राजकाज, राजनीति आदि पर सोचना छोत्रड दें, आपको मन की शांति मिलेगी और मास्तिंष्क ास्थिंर रहेगा। सोचने का काम दूसरों को दें।
महाराज बोले- हमने सोचने के लिए ही तो राज- विदूषक नियुक्त किया है। राजकाज और राजनीति पर हमारा विदूषक सोचता है।
राजवैद्य बोले- हाँ, महाराज, जिस राज्य को विदूषक चलाते हैं वह राज्य सुखी होता है। वहाँ अट्टहास ही गूँजता है।
महाराज बोले- ठीक कहते हो राजवैद्य।
राजवैद्य बोले- आपने तो विदूषक को दरबार में विशेष दर्जा देकर विशेष अधिकार दिया है।
महाराज बोले- अपने विदूषक को हमने ज्ञानमंडल के संचालक का दर्जा भी दिया है।
राजवैद्य बोले- महाराज, राज विदूषक को फौरन बुलाइए जिससे वह आपका मनोरंजन करे और आपके मन की चंचलता ास्थिंर हो।
महाराज बोले- राजवैद्य, हमारा विदूषक हमारा ही नहीं राज्य की जनता का भी मनोरंजन करता है। विदेशों तक में विदूषकाई कर वहाँ भी राज्य का नाम रौशन कर रहा है। महाराज ने ताली बजाकर सेवक को बुलाया और मंत्री, दीवान, सेनापति, सचिव, खजांची लेखापाल को बुला लाने का आदेश दिया। सारे उच्च अधिकारी हाजिर हुए।
मंत्री ने पूछा- महाराज आप स्वस्थ तो हैं।
महाराज ने कहा- विदूषक कहाँ है?
दीवान बोले- पंद्रह दिन का वैतनिक अवकाश लेकर लंदन गए हैं। वहाँ उनका काव्य पाठ है और साहित्य पर व्याख्यान है।
महाराज- हमारा विदूषक कभी अमरीका, कभी खात्रडी देश, कभी अफ्रीका जाता है, अब लंदन गया है। क्या वह इतना प्रसिध्द है।
मंत्री ने कहा- महाराज! कुछ देशों में भारतीय बस गए हैं वे आर्यावर्ते, जम्बू द्वीपे, भरतखंडे की कविता, काव्य, साहित्य से परिचित होने यहाँ के विदूषकों को अच्छे पैसे देकर बुला लेते हैं।
दीवान ने कहा- हाँ महाराज, विदेश के लोग जान रहे हैं कि यहाँ तरक्की हो रही है, विदूषकों की पैदावार बत्रढी है।
महाराज ने कहा- खुशी की बात है कि विदूषक विदेश में भी नाम कमा रहे हैं। हमारे विदूषक को आज ही बुलाओ।
राज्य का जो उडने वाला रथ है वह भेजो। आज रात्रि में विशेष सभा होगी।
रात्रि भोज के साथ दरबार में विशेष सभा शुरू हुई।
महाराज ने कहा- राज्य में भ्रष्टाचार बत्रढ गया है, जनता त्राहिमाम कर रही है।
मंत्री ने कहा- यह सच है महाराज।
महाराज ने कहा- मंत्रीजी आप पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं। हमारे राज्य के भ्रष्टाचार उन्मूलन दस्ते के प्रमुख धीरेन्द्र ने आपके विरुध्द दस्तवेजी प्रमाण प्रस्तुत किया है।
दीवान ने कहा- महाराज राज्य के कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
महाराज ने कहा- आप न बोलें दीवान जी, आप तो अधिकारी हैं, आप पर विशेष भर्ती अभियान में घूस खाने का आरोप है।
सेनापति ने कहा- महाराज, इसे कैसे दूर करें।
महाराज ने कहा- सेनापति जी, आपने पुलिस भर्ती में जमकर भ्रष्टाचार किया है। कामचोर, कमजोर, बेईमानों की भीत्रड इकट्ठी कर ली है।
खजांची बोला- महाराज, खजाना खाली है।
महाराज बोले- क्यों खाली न रहे। यहाँ कर चोरी कराई जा रही है। नाका चोरी हो रही है। विक्रयकर, आयकर, सीमाकर, सत्रडक कर सब में चोरी की जा रही है।
सचिव ने कहा- महाराज सडकें बनती हैं और एक माह में टूट जाती हैं।
महाराज ने कहा- हाँ, नब्बे प्रतिशत सत्रडक आप के जेब में समा जाती है। महाराज ने सिंहासन पर बैठते हुए कहा- भवन घटिया दर्जे के बन रहे हैं। खरीदी में भ्रष्टाचार, बिक्री में भ्रष्टाचार, शिक्षा में भ्रष्टाचार। खेती- बाडी की योजनाओं में भ्रष्टाचार।
खजांची ने कहा- फिर भी अपना राज्य बत्रिढया चल रहा है।
महाराज ने कहा- हाँ, यह हमारे विदूषक की तरकीबों से हो रहा है। पूरे राज्य में हर ब्लाक में इन्हें विदूषक अपाइंट कर दिए हैं, वे जनता का मनोरंजन करते हैं। जनता सुरापान करती है और सारी रात विदूषकों को सुनती हुई खिलखिलाती रहती है। जनता गदगद है, राज्य भदभद है और आप सब लदलद हैं।
सचिव, दीवान, मंत्री, सबो झन भ्रष्टाचार में लदलद ले लदे हैं। विदूषक, तेंही बता का करे जाय।
विदूषक ने एक हास्यरस की कविता सुनाई। महाराज सहित दरबारी खिलखिलाकर हँसे। विदूषक ने कहा एक तो यही किया जाए कि राज्य में हँसी- प्रतियोगिता, हास्य व अट्टहास आयोजनों की संख्या व उनकी आवृत्ति बढा दी जाए।
महाराज ने सचिव से कहा- यह कार्यक्रम नोट करो।
विदूषक ने कहा- महाराज एक और कार्यक्रम है। ”क्या”- महाराज ने उत्सुकता दिखाई।
विदूषक बोला- राज्य के बजट में ”भ्रष्टाचार हैड” रखा जाए।
महाराज ने पूछा- यह क्या होता है।
विदूषक ने कहा- बजट में एक मद भ्रष्टाचार का हो।
महाराज ने कहा- ठीक है।
मंत्री ने कहा- बढ़िया सुझाव है।
महाराज ने पूछा- बजट का कितना प्रतिशत भ्रष्टाचार के मद में रखा जाए।
खजांची ने कहा- दस प्रतिशत बहुत है।
विदूषक ने कहा- महाराज, बजट का मुश्किंल से दस प्रतिशत ही कार्यक्रमों तक पहुँचाता है, बाकी भ्रष्टाचार लील लेता है। इसलिए भ्रष्टाचार के लिए नब्बे प्रतिशत रखें।
महाराज बोले- इससे भ्रष्टाचार कम होगा।
विदूषक बोले- जरूर कम होगा। जब बजट में ही भ्रष्टाचार के लिए नब्बे प्रतिशत राशि आबंटित रहेगी तब यह कानूनी हो जाएगी और इसे भ्रष्टाचार नहीं कहा जाएगा, यह राजकोष का जरूरी खर्च माना जाएगा। कार्यक्रमों का नब्बे प्रतिशत बँट जाएगा, दस प्रतिशत में काम होगा और जनता को जितना देना है उतना मिलेगा। यह भ्रष्टाचार का नियमितीकरण व स्थायीकरण हुआ।
महाराज ने कहा- हे विदूषक, नब्बे प्रतिशत भ्रष्टाचार को कानूनी बना देने के बाद, बचे दस प्रतिशत में भी भ्रष्टाचार होने लगा तो।
विदूषक ने कहा- होने दें महाराज। हम जनता से कहेंगे कि केवल दस प्रतिशत ही भ्रष्टाचार हो रहा है, नब्बे प्रतिशत कानूनी भ्रष्टाचार है। और इस पर राज्यस्तरीय हास्य सम्मेलन के द्वारा भ्रष्टाचार पखवाडा शुरू करेंगे।
महाराज ने कहा- वाह! विदूषक तुम्हारा दिमाग तेज है, इसीलिए तुम हमारे प्रिय हो। भ्रष्टाचार को बजट के मद में लेकर कानूनी जामा पहना दें। वाह विदूषक! वाह!
वहाँ उपास्थिंत मंत्री, दीवान, सेनापति, खजांची ने अपने हिस्से का हिसाब लगाया और ताली बजाने लगे कि वाह विदूषक, वाह! भ्रष्टाचार का बजटीकरण। यह दूसरे राज्यों के लिए अनुकरणीय होगा। विदूषक को महाराज ने गले का हार भेंट में दिया और गुलदस्ता देकर सबने सम्मानित किया।
अगले अंक में छठवीं कड़ी…. बिकी नदी किनारे नाच- गाना ̂