दूसरे देश में- अर्नेस्ट हेमिंग्वे


शरत् ऋतु में भी वहाँ युद्ध चल रहा था, पर हम वहाँ फिर नहीं गए। शरत् ऋतु में मिलान बेहद ठंडा था और अँधेरा बहुत जल्दी घिर आया था। फिर बिजली के बल्ब जल गए और सड़कों के किनारे की खिड़कियों में देखना सुखद था। बहुत सारा शिकार खिड़कियों के बाहर लटका था और लोमड़ियों की खाल बर्फ के चूरे से भर गई थी और हवा उनकी पूँछों को हिला रही थी। अकड़े हुए, भारी और खाली हिरण लटके हुए थे और छोटी चिड़ियाँ हवा में उड़ रही थीं और हवा उनके पंखों को उलट रही थी। वह बेहद ठंडी शरत् ऋतु थी और हवा पहाड़ों से उतर कर नीचे आ रही थी।

हम सभी हर दोपहर अस्पताल में होते थे और गोधूलि के समय शहर के बीच से अस्पताल तक पैदल जाने के कई रास्ते थे। उनमें से दो रास्ते नहर के बगल से हो कर जाते थे, पर वे लंबे थे। हालाँकि अस्पताल में घुसने के लिए आप हमेशा नहर के ऊपर बने एक पुल को पार करते थे। तीन पुलों में से एक को चुनना होता था। उनमें से एक पर एक औरत भुने हुए चेस्टनट बेचती थी। उसके कोयले की आग के सामने खड़ा होना गरमी देता था और बाद में आपकी जेब में चेस्टनट गरम रहते थे।

अस्पताल बहुत पुराना और बहुत ही सुंदर था और आप एक फाटक से घुसते और और चल कर एक आँगन पार करते और दूसरे फाटक से दूसरी ओर बाहर निकल जाते। प्रायः आँगन से शव-यात्राएँ शुरू हो रही होती थीं। पुराने अस्पताल के पार ईंट के बने नए मंडप थे और वहाँ हम हर दोपहर मिलते थे। हम सभी बेहद शिष्ट थे और जो भी मामला होता उसमें दिलचस्पी लेते थे और उन मशीनों में भी बैठते थे जिन्होंने इतना ज्यादा अंतर ला देना था।

डॉक्टर उस मशीन के पास आया जहाँ मैं बैठा था और बोला – “युद्ध से पहले आप क्या करना सबसे अधिक पसंद करते थे? क्या आप कोई खेल खेलते थे?”

मैंने कहा – “हाँ, फुटबॉल।”

“बहुत अच्छा,” वह बोला। “आप दोबारा फुटबॉल खेलने के लायक हो जाएँगे, पहले से भी बेहतर।”

मेरा घुटना नहीं मुड़ता था, और पैर घुटने से टखने तक बिना पिंडली के सीधा गिरता था, और मशीन घुटने को मोड़ने और ऐसे चलाने के लिए थी जैसे तिपहिया साइकिल चलानी हो। पर घुटना अब तक नहीं मुड़ता था और इसके बजाय मशीन जब मोड़ने वाले भाग की ओर आती थी तो झटका खाती थी। डॉक्टर ने कहा – “वह सब ठीक हो जाएगा। आप एक भाग्यशाली युवक हैं। आप दोबारा विजेता की तरह फुटबॉल खेलेंगे।”

दूसरी मशीन में एक मेजर था जिसका हाथ एक बच्चे की तरह छोटा था। उसका हाथ चमड़े के दो पट्टों के बीच था जो ऊपर-नीचे उछलते थे और उसकी सख्त उँगलियों को थपथपाते थे। जब डॉक्टर ने उसका हाथ जाँचा तो उसने मुझे आँख मारी और कहा – “और क्या मैं भी फुटबॉल खेलूँगा, कप्तान-डॉक्टर?” वह एक महान पटेबाज रहा था, और युद्ध से पहले वह इटली का सबसे महान पटेबाज था।

डॉक्टर पीछे के कमरे में स्थित अपने कार्यालय में गया और वहाँ से एक तस्वीर ले आया। उसमें एक हाथ दिखाया गया था जो मशीनी इलाज लेने से पहले लगभग मेजर के हाथ जितना मुरझाया और छोटा था और बाद में थोड़ा बड़ा था। मेजर ने तस्वीर अपने अच्छे हाथ से उठाई और उसे बड़े ध्यान से देखा। “कोई जख्म?” उसने पूछा।

“एक औद्योगिक दुर्घटना,” डॉक्टर ने कहा।

“काफी दिलचस्प है, काफी दिलचस्प है,” मेजर बोला और उसे डॉक्टर को वापस दे दिया।

“आपको विश्वास है?”

“नहीं,” मेजर ने कहा।

मेरी ही उम्र के तीन और लड़के थे जो रोज वहाँ आते थे। वे तीनों ही मिलान से थे और उनमें से एक को वकील बनना था, एक को चित्रकार बनना था और एक ने सैनिक बनने का इरादा किया था। जब हम मशीनों से छुट्टी पा लेते तो कभी-कभार हम कोवा कॉफी-हाउस तक साथ-साथ लौटते जो कि स्केला के बगल में था। हम साम्यवादी बस्ती के बीच से हो कर यह छोटी दूरी तय करते थे। हम चारों इकट्ठे रहते थे। वहाँ के लोग हमसे नफरत करते थे क्योंकि हम अफसर थे और जब हम गुजर रहे होते तो किसी शराबखाने से कोई हमें गाली दे देता। एक और लड़का जो कभी-कभी हमारे साथ पैदल आता और हमारी संख्या पाँच कर देता, अपने चेहरे पर रेशम का काला रूमाल बाँधता था क्योंकि उसकी कोई नाक नहीं थी और उसके चेहरे का पुनर्निर्माण किया जाना था। वह सैनिक अकादमी से सीधा मोर्चे पर गया था और पहली बार मोर्चे पर जाने के एक घंटे के भीतर ही घायल हो गया था।

उन्होंने उसके चेहरे को पुनर्निर्मित कर दिया, लेकिन वह एक बेहद प्राचीन परिवार से आता था और वे उसकी नाक को कभी ठीक-ठीक नहीं सुधार सके। वह दक्षिणी अमेरिका चला गया और एक बैंक में काम करने लगा। पर यह बहुत समय पहले की बात थी और तब हममें से कोई नहीं जानता था कि बाद में क्या होने वाला था। तब हम केवल यही जानते थे कि युद्ध हमेशा रहने वाला था पर हम अब वहाँ दोबारा नहीं जाने वाले थे।

हम सभी के पास एक जैसे तमगे थे, उस लड़के को छोड़ कर जो अपने चेहरे पर काला रेशमी रूमाल बाँधता था और वह मोर्चे पर तमगे ले सकने जितनी देर नहीं रहा था। निस्तेज चेहरे वाला लंबा लड़का, जिसे वकील बनना था, आर्दिती का लेफ्टिनेंट रह चुका था और उसके पास वैसे तीन तमगे थे जैसा हम में से प्रत्येक के पास केवल एक था। वह मृत्यु के साथ एक बेहद लंबे अरसे तक रहा था और थोड़ा निर्लिप्त था। हम सभी थोड़े निर्लिप्त थे और ऐसा कुछ नहीं था जो हमें एक साथ रखे हुए था, सिवाय इसके कि हम प्रत्येक दोपहर अस्पताल में मिलते थे। हालाँकि, जब हम शहर के निष्ठुर इलाके के बीच से अँधेरे में कोवा की ओर चल रहे होते, और शराबखानों से गाने-बजाने की आवाजें आ रही होतीं और कभी-कभी सड़क पर तब चलना पड़ता जब पुरुषों और महिलाओं की भीड़ फुटपाथ पर ठसाठस भर जाती तो हमें आगे निकलने के लिए उन्हें धकेलना पड़ता। तब हम खुद को किसी ऐसी चीज के कारण आपस में जुड़ा महसूस करते जो उस दिन घटी होती और जिसे वे लोग नहीं समझते थे जो हमसे नफरत करते थे।

हम सब खुद कोवा के बारे में जानते थे जहाँ पर माहौल शानदार और गरम था और ज्यादा चमकीली रोशनी नहीं थी और मेजों पर हमेशा लड़कियाँ होती थीं और दीवार पर बने रैक में सचित्र अखबार होते थे। कोवा की लड़कियाँ बेहद देशभक्त थीं और मैंने पाया कि इटली में कॉफी-हाउस में काम करने वाली लड़कियाँ सबसे ज्यादा देशभक्त थीं — और मैं मानता हूँ कि वे अब भी देशभक्त हैं।

शुरू-शुरू में लड़के मेरे तमगों के बारे में बेहद शिष्ट थे और मुझसे पूछते थे कि मैंने उन्हें पाने के लिए क्या किया था। मैंने उन्हें अपने कागज दिखाए, जो बड़ी खूबसूरत भाषा में लिखे गए थे, पर जो विशेषणों को हटा देने के बाद वास्तव में यह कहते थे कि मुझे तमगे इसलिए दिए गए थे क्योंकि मैं एक अमेरिकी था। उसके बाद उनका व्यवहार थोड़ा बदल गया, हालाँकि बाहरी व्यक्तियों के विरुद्ध मैं उनका मित्र था। जब उन्होंने प्रशंसात्मक उल्लेखों को पढ़ा उस के बाद मैं एक मित्र तो रहा पर मैं दरअसल उनमें से एक कदापि नहीं था, क्योंकि उनके साथ दूसरी बात हुई थी और उन्होंने अपने तमगे पाने के लिए काफी अलग तरह के काम किए थे। मैं घायल हुआ था, यह सच था; लेकिन हम सभी जानते थे कि घायल होना आखिरकार एक दुर्घटना थी। हालाँकि मैं फीतों के लिए कभी शर्मिंदा नहीं था और कभी-कभार कॉकटेल पार्टी के बाद मैं कल्पना करता कि मैंने भी वे सभी काम किए थे जो उन्होंने अपने तमगे लेने के लिए किए थे; पर रात में सर्द हवाओं के साथ खाली सड़कों पर चल कर जब मैं घर आ रहा होता और सभी दुकानें बंद होतीं और मैं सड़क पर लगी बत्तियों के करीब रहने की कोशिश कर रहा होता, तब मैं जानता था कि मैं ऐसे काम कभी नहीं कर पाता। मैं मरने से बेहद डरता था और अक्सर रात में बिस्तर पर अकेला पड़ा रहता था, मरने से डरते हुए और ताज्जुब करते हुए कि जब मैं मोर्चे पर दोबारा गया तो कैसा हूँगा।

तमगे वाले वे तीनों शिकारी बाज-से थे और मैं बाज नहीं था, हालाँकि मैं उन्हें बाज लग सकता था जिन्होंने कभी शिकार नहीं किया था। वे तीनों बेहतर जानते थे इसलिए हम अलग हो गए। पर मैं उस लड़के का अच्छा मित्र बना रहा जो अपने पहले दिन ही मोर्चे पर घायल हो गया था क्योंकि अब वह कभी नहीं जान सकता था कि वह कैसा बन जाता। मैं उसे चाहता था क्योंकि मेरा मानना था कि शायद वह बाज नहीं बनता।

मेजर, जो महान पटेबाज रहा था, वीरता में विश्वास नहीं रखता था और जब हम मशीनों में बैठे होते तो वह अपना काफी समय मेरा व्याकरण ठीक करने में गुजारता था। मैं जैसी इतालवी बोलता था उसके लिए उसने मेरी प्रशंसा की थी और हम आपस में काफी आसानी से बातें करते थे। एक दिन मैंने कहा था कि मुझे इतालवी इतनी सरल भाषा लगती थी कि मैं उस में ज्यादा रुचि नहीं ले पाता था। सब कुछ कहने में बेहद आसान था। “ओ, वाकई,” मेजर ने कहा। “तो फिर तुम व्याकरण के इस्तेमाल में हाथ क्यों नहीं लगाते?” अतः हमने व्याकरण के इस्तेमाल में हाथ डाला और जल्दी ही इतालवी इतनी कठिन भाषा हो गई कि मैं तब तक उससे बात करने से डरता था जब तक कि मेरे दिमाग में व्याकरण की तसवीर साफ नहीं आ जाती।

मेजर काफी नियमित रूप से अस्पताल आता था। मुझे नहीं लगता कि वह एक दिन भी चूका होगा, हालाँकि मुझे पक्का यकीन है कि वह मशीनों में विश्वास नहीं रखता था। एक समय था जब हम में से किसी को भी मशीनों पर भरोसा नहीं था और एक दिन मेजर ने कहा था कि यह सब मूर्खतापूर्ण था। तब मशीनें नई थीं और हमने ही उनकी उपयोगिता को सिद्ध करना था। यह एक मूर्खतापूर्ण विचार था, मेजर ने कहा था, “एक परिकल्पना, किसी दूसरी की तरह।” मैंने अपना व्याकरण नहीं सीखा था और उसने कहा कि कि मैं एक न सुधरने वाला मूर्ख और कलंक था और वह स्वयं भी एक मूर्ख था कि उसने मेरे लिए परेशानी उठाई। वह एक छोटे कद का व्यक्ति था और वह अपना दायाँ हाथ मशीन में घुसा कर अपनी कुर्सी पर सीधा बैठ जाता और सीधा आगे दीवार को देखता जबकि पट्टे बीच में पड़ी उसकी उँगलियों पर ऊपर-नीचे प्रहार करते।

“यदि युद्ध समाप्त हो गया तो तुम क्या करोगे?”

“मैं अमेरिका चला जाऊँगा।”

“क्या तुम शादी-शुदा हो?”

“नहीं, पर मुझे ऐसा होने की उम्मीद है।”

“तुम बहुत बड़े मूर्ख हो,” उसने कहा। वह बहुत नाराज लगा। “आदमी को कभी शादी नहीं करनी चाहिए।”

“क्यों श्री मैगियोर?”

“मुझे ‘श्री मैगियोर’ मत कहो।”

“आदमी को कभी शादी क्यों नहीं करनी चाहिए?”

“वह शादी नहीं कर सकता। वह शादी नहीं कर सकता,” उसने गुस्से से कहा। “यदि उसे सब कुछ खोना है तो उसे खुद को सब कुछ खो देने की स्थिति में नहीं लाना चाहिए। उसे खुद को खोने की स्थिति में कतई नहीं लाना चाहिए। उसे वे चीजें ढूँढ़नी चाहिए जो वह नहीं खो सकता।”

वह बहुत गुस्से में था, कड़वाहट से भर कर बोल रहा था और बोलते समय सीधा आगे देख रहा था।

“पर यह क्यों जरूरी है कि वह उन्हें खो ही दे?”

“वह उन्हें खो देगा,” मेजर ने कहा। वह दीवार को देख रहा था। फिर उसने नीचे मशीन की ओर देखा और झटके से अपना छोटा-सा हाथ पट्टों के बीच से निकाल लिया और उसे अपनी जाँघ पर जोर से दे मारा। “वह उन्हें खो देगा,” वह लगभग चिल्लाया। “मुझसे बहस मत करो!” फिर उसने परिचारक को आवाज दी जो मशीनों को चलाता था। “आओ और इस नारकीय चीज को बंद करो।”

वह हल्की चिकित्सा और मालिश के लिए वापस दूसरे कमरे में चला गया। फिर मैंने उसे डॉक्टर से पूछते सुना कि क्या वह उसका टेलीफोन इस्तेमाल कर सकता है और फिर उसने दरवाजा बंद कर दिया। जब वह वापस कमरे में आया तो मैं दूसरी मशीन में बैठा था। उसने अपना लबादा पहना हुआ था और टोपी लगा ली थी और वह सीधा मेरी मशीन की ओर आया और मेरे कंधे पर अपनी बाँह रख दी।

“मुझे बेहद खेद है,” उसने कहा, और अपने अच्छे हाथ से मुझे कंधे पर थपथपाया। “मेरा इरादा अभद्र होने का नहीं था। मेरी पत्नी की मृत्यु हाल ही में हुई है। तुम्हें मुझे माफ कर देना चाहिए।”

“ओ” मैंने उसके लिए व्यथित हो कर कहा। “मुझे भी बेहद खेद है।”

वह अपने निचले होठ काटता हुआ वहीं खड़ा रहा। “यह बहुत कठिन है,” उसने कहा। “मैं इसे नहीं सह सकता।”

वह सीधा मुझसे आगे और खिड़की से बाहर देखने लगा। फिर उसने रोना शुरू कर दिया। “मैं इसे सहने में बिलकुल असमर्थ हूँ,” उसने कहा और उसका गला रुँध गया। और तब रोते हुए, अपने उठे हुए सिर से शून्य में देखते हुए, खुद को सीधा और सैनिक-सा दृढ़ बनाते हुए, दोनो गालों पर आँसू लिए हुए और अपने होठों को काटते हुए वह मशीनों से आगे निकला और दरवाजे से बाहर चला गया।

डॉक्टर ने मुझे बताया कि मेजर की पत्नी, जो युवा थी और जिससे उसने तब तक शादी नहीं की थी जब तक वह निश्चित रूप से युद्ध के लिए असमर्थ नहीं ठहरा दिया गया था, निमोनिया से मरी थी। वह केवल कुछ दिनों तक ही बीमार रही थी।

किसी को उसकी मृत्यु की आशंका नहीं थी। मेजर तीन दिनों तक अस्पताल नहीं आया। जब वह वापस आया तो दीवार पर चारों ओर मशीनों द्वारा ठीक कर दिए जाने से पहले और बाद की हर तरह के जख्मों की फ्रेम की गई बड़ी-बड़ी तस्वीरें लटकी थीं। जो मशीन मेजर इस्तेमाल करता था उसके सामने उसके जैसे हाथों की तीन तस्वीरें थीं जिन्हें पूरी तरह से ठीक कर दिया गया था। मैं नहीं जानता, डॉक्टर उन्हें कहाँ से लाया। मैं हमेशा समझता था कि मशीनों का इस्तेमाल करने वाले हम ही पहले लोग थे। तस्वीरों से मेजर को कोई ज्यादा अंतर नहीं पड़ा क्योंकि वह केवल खिड़की से बाहर देखता रहता था।

(अर्नेस्ट हेमिंग्वे की कहानी “इन अनदर कंट्री” – अंग्रेजी से हिंदी अनुवादः सुशांत सुप्रिय)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *