(सुरेन्द्र कुमार)
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के जुड़वां टावरों पर 11 सितंबर, 2001 को हुए भयानक आतंकवादी हमले के बाद से 2018 तक इराक और अफगानिस्तान में चलाए गए अभियानों में अमेरिका ने अपने 7, 000 जवान खोए। विश्व बैंक के पूर्व प्रमुख अर्थशास्त्री और नोबेलजयी जोसेफ स्टिग्लिट्ज और लिंडा बेम्स ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि इराक के खिलाफ युद्ध में अमेरिका को तीस खरब डॉलर खर्च करने पड़े थे।
अमेरिका पिछले साल इस्लामिक स्टेट के संस्थापक अबू बकर बगदादी को मार गिराने में भी सफल रहा। भले यह तथ्य हो कि ईरान के भारी प्रभाव तले इराक दब गया, इसके बावजूद इराक में अमेरिका का विशाल सैन्य अभियान अमेरिकी नीति की विफलता का ही दुखद प्रमाण है।
वर्ष 2002 में एक साल तक तोरा-बोरा पर्वत समेत अल कायदा की सभी संभावित पनाहगाहों पर भयंकर हमला करने के बाद, जिनमें से कई में उसने नॉर्दन एलायंस के साथ तालमेल भी किया था, अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को उखाड़ फेंका था। उसके कई लड़ाकों को उसने ग्वांतानामो जेल में डाल दिया और हामिद करजई एवं अशरफ गनी जैसे अफगान राष्ट्रपतियों की मदद एवं रक्षा की। अपने चरम दौर में अनिवार्य अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल के तहत अफगानिस्तान में एक लाख अमेरिकी सैनिक थे। जबकि नाटो सदस्यों ने वहां करीब तीस हजार सैनिक भेजे थे। यह अमेरिकी सैन्य अभियान की सीमा और उसकी कूटनीतिक विफलता ही है कि तालिबान को उखाड़ फेंकने के 17 साल बाद वह पाकिस्तान की मध्यस्थता में तालिबान के साथ समझौता करने की कोशिश कर रहा है। ओबामा और ट्रंप, दोनों ने बार-बार अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस लाने का भरोसा दिलाया, जो अब भी अधूरा है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वियतनाम एकमात्र देश है, जिसने बीस साल तक युद्ध में अमेरिका का मुकाबला करते हुए 58,000 अमेरिकी सैनिकों की लाश ताबूत में भेजी थी और अमेरिकी राजदूत ग्राहम मार्टिन को 30 अप्रैल, 1975 को साइगॉन स्थित अपने दूतावास की छत से हेलिकॉप्टर से भागने को मजबूर कर दिया था।
मगर कोविड-19 ने करीब 60 दिनों में ही 80,000 से अधिक अमेरिकियों की जान ले ली। यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। लॉकडाउन ने तीन करोड़ अमेरिकियों को बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन करने को बाध्य किया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था लगभग ठप पड़ गई है और वह महामंदी के बाद की बदतरीन मंदी से जूझ रही है।
दुनिया का एकमात्र महाशक्ति देश अस्पतालों, बिस्तरों, पीपीई और वेंटिलेटर्स की कमी का सामना कर रहा है, जबकि अभी तक किसी वैक्सीन की भी कोई संभावना नहीं दिख रही। एक स्पष्ट, आत्मविश्वास से भरपूर, पेशेवर सलाह के साथ जनता का मार्गदर्शन करने वाला प्रेरक नेतृत्व बड़े पैमाने पर लावारिश शवों के सामूहिक दफन का सहारा ले रहा है।
लाखों अमेरिकी मुफ्त भोजन पाने की कतार में लगे हैं। इतने कम समय में एक पराक्रमी राष्ट्र का ऐसा पतन कैसे हो गया! कोविड-19 के खिलाफ वैश्विक संघर्ष में अमेरिकी नेतृत्व अपनी अनुपस्थिति के कारण ध्यान खींचता है। वह अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए जूझ रहा है।
अपने पुनर्निर्वाचन की संभावनाओं को लेकर चिंतित और असुरक्षित ट्रंप ने चीन पर इस तथ्य को छिपाने का आरोप लगाया कि वायरस वुहान की एक प्रयोगशाला में विकसित किया गया था। वह चीन से दस खरब डॉलर के मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
चीन का समर्थन करने का आरोप लगाकर ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की आर्थिक सहायता रोक दी है। इसके अलावा, वह मानव शरीर में कीटाणुनाशक सुई लगाने जैसी विचित्र बात भी कर रहे हैं। संभवतः वह शीघ्र लॉकडाउन खत्म करना चाहते हैं। बीस खरब डॉलर का प्रोत्साहन पैकेज अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। अमेरिका का पतन कई विश्लेषकों को दिखाई दे रहा था, कोविड-19 ने उसे मजबूती से नीच की तरफ धकेला है।
फरीद जकारिया जिस उत्तर अमेरिकी विश्व की बात कर रहे थे, वह अचानक से सच प्रतीत होता है। पुलित्जर सम्मान पाने वाले अमेरिकी पत्रकार फ्रीडमैन कहते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप संभवतः अमेरिका के सबसे खराब राष्ट्रपति होंगे, जो आग लगाते हैं और आग बुझाते भी हैं। यह दुखद है कि धरती का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र कोविड-19 जैसे दुश्मन के सामने असहाय है।
चीन ने, जहां से माना जाता है कि कोविड-19 वायरस पैदा हुआ, मौत पर नियंत्रण कर लिया है। अब वह वायरस से लड़ने के लिए 60 से अधिक देशों में चिकित्सा उपकरण भेजकर वैश्विक नेतृत्व की भूमिका अदा कर रहा है। भारत और चीन की विकास दर क्रमश: 1.9 फीसदी और 1.2 फीसदी बढ़ने का अनुमान है, जबकि शेष दुनिया नकारात्मक विकास की ओर बढ़ रही है। चीनी कारखानों ने 60 फीसदी क्षमता के साथ काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन क्या उसे विदेशों में बाजार मिलेगा, जबकि कई देश गंभीर मंदी का सामना कर रहे हैं?
पीपीई, वेंटिलेटर्स, मास्क, सैनिटाइजर और क्वारंटीन सेंटर की कमी के बावजूद भारत देशव्यापी लॉकडाउन के कारण नुकसान कम करने में कामयाब रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा के साथ ‘जान है तो जहान है’ का नारा दिया, सोशल डिस्टेंसिंग, हर तरह के मास्क का उपयोग करने और जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाया। लेकिन लाखों प्रवासी मजदूरों और दिहाड़ी श्रमिक इससे बुरी तरह प्रभावित हुए। अर्थव्यवस्था ठहर गई है।
हालांकि अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों को चरणबद्ध तरीके से खोलने की इजाजत दी गई। लेकिन हालात सामान्य होने में लंबा वक्त लगेगा। प्रधानमंत्री द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सभी मुख्यमंत्रियों व राजनेताओं से परामर्श के दौरान जिस तरह की राष्ट्रीय एकता, अनुशासन, दोषारोपण का अभाव और सहकारी संघवाद दिखा, वह स्वागतयोग्य है। इस सकारात्मक रवैये और समाज द्वारा दिखाए परस्पर सहकार की भावना को कोरोना के बाद भी जारी रखा जा सकता है!
(-लेखक अमेरिका में भारत के राजदूत रहे हैं।)सौ अमरउजाला