अमिताभ एक ऐसे समय में जब राजनीति का मक़सद किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना रह गया हो और समाज में सब तरफ़ पैसे की ताक़त का बोलबाला हो, सामान्य लोग भी निजी और सार्वजनिक जीवन में मन वचन और कर्म से बहुत हिंसक हो चुके हों, राजनीति में सेवाभाव की अहमियत पर ज़ोर […]
Read Moreप्रियदर्शन गांधी को मारने वाले गोडसे की चाहे जितनी मूर्तियां बना लें, वे गोडसे में प्राण नहीं फूंक सकते. गांधी को वे चाहे जितनी गोलियां मारें, गांधी अब भी सांस लेते हैं एनसीईआरटी के प्रमुख रहे सुख्यात शिक्षाशास्त्री कृष्ण कुमार ने अपनी किताब ‘शांति का समर’ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया है- राजघाट […]
Read Moreमीना कोटवाल एनसीआरबी 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बलात्कार के कुल 31,755 मामले दर्ज किए गए, यानी औसतन प्रतिदिन 87 मामले। ऐसे में एक महिला जज की तरफ़ से इस तरह का फैसला आना उन महिलाओं के बल और साहस को कमज़ोर करेगा जो हिम्मत कर के अपने खिलाफ़ हो रहे गलत को […]
Read Moreक्या राकेश टिकैत के रो पड़ने ने किसान आंदोलन में नये सिरे से जान फूँक दी है? रात यह लग रहा था कि पुलिस ज़बरन किसानों को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से हटा देगी लेकिन वैसा नहीं हुआ। उलटे, लौट चुके किसानों ने रातों रात दोबारा मोर्चा संभाल लिया। यूपी, हरियाणा और पंजाब में टिकैत के समर्थन में जगह-जगह […]
Read Moreअंजलि मिश्रा अक्खड़पन और स्वछंदता ओपी नैयर की पहचान थी और शायद इसी असर ने उनके संगीत को इतना लोकप्रिय बनाया यदि विद्रोह किसी के व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा है तो उसका जिद्दी होना भी कोई असामान्य बात नहीं है. नैयर जिद्दी भी खूब थे. तभी तो लता मंगेशकर जैसी गायिका से कभी न गवाने […]
Read Moreप्रदीपिका सारस्वत किसान आंदोलन में शामिल महिलाओं को लगता है कि इसमें उनकी हिस्सेदारी पूरे समाज को छुएगी और उसे थोड़ा ही सही लेकिन हमेशा के लिए बदल डालेगी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से लोकतांत्रिक और सामाजिक ढांचों में महिलाओं की हिस्सेदारी लगातार बढ़ी है लेकिन आज भी अक्सर उन्हें यह बताने की ज़रूरत पड़ […]
Read Moreकविता कहानी और उपन्यास के अलावा सम्पादन, पत्रकारिता, अनुवाद, फिल्म पटकथा और संवाद लेखन कमलेश्वर के व्यक्तित्व के बिलकुल अलग-अलग आयाम रहे मनोहर श्याम जोशी ने अपने विभिन्न विधाओं में समानांतर आवागमन पर किए गए सवालों पर बड़े स्पष्ट लहजे में कभी कहा था, ‘जो भी विधा मुझे अपने पास बुलाएगी, मैं वहां चला जाऊंगा…’ […]
Read Moreउर्मिलेश संवैधानिकता की संपूर्ण अवहेलना और तंत्र में जन-गण को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करने की शासकीय-ज़िद से उपजा है-आज का यह अभूतपूर्व किसान आंदोलन! भारतीय गणराज्य के इतिहास में इस गणतंत्र दिवस को कई कारणों से उल्लेखनीय और अपूर्व माना जा रहा है। इसका एक बड़ा कारण है कि हर बार जन-गण की तरफ से […]
Read Moreरविकान्त तीन अंक को अशुभ मानने वाले संघ ने आज़ादी के बाद दशकों तक तिरंगा नहीं फहराया। लेकिन छद्म राष्ट्रवाद के ज़रिए राष्ट्रीय राजनीति में दाखिल होने के लिए संघ ने पहले मजबूरी में तिरंगे को अपनाया और सत्ता में आते ही भगवा को आगे बढ़ा दिया। मोदी सरकार में खुलकर बीजेपी की रैलियों, उसके […]
Read Moreट्रैक्टर रैली के दौरान मंगलवार को जो हिंसा हुई उससे पहले सिंघु बॉर्डर पर किसानों के बीच क्या हुआ था? क्या कोई योजना बनी थी और यदि बनाई थी तो किसने? क्या इसमें केंद्र सरकार की एजेंसियों का हाथ था और क्या पंजाबी फ़िल्मों के अभिनेता दीप सिद्धू ने इसमें अहम भूमिका निभाई? ये सवाल […]
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