अनुराग भारद्वाज हालात आज भी वैसे ही हैं जैसे बिरसा मुंडा के वक्त थे. आदिवासी खदेड़े जा रहे हैं, दिकू अब भी हैं. जंगलों के संसाधन तब भी असली दावेदारों के नहीं थे और न ही अब हैं 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के […]
Read Moreपवन उप्रेती सुप्रीम कोर्ट न्याय की सर्वोच्च संस्था है और उसकी गरिमा का देश का हर व्यक्ति सम्मान करता है। लेकिन उससे इतना तो पूछा जा सकता है कि ‘व्यक्तिगत आज़ादी‘ का जो अधिकार अर्णब गोस्वामी को हासिल है, वो वरवर राव, स्टेन स्वामी, उमर खालिद और अन्य लोगों को हासिल क्यों नहीं है। आर्किटेक्ट अन्वय […]
Read Moreअपने जीवनकाल में अपना पहला कविता संग्रह तक प्रकाशित न देख पाने वाले मुक्तिबोध आज प्रासंगिकता और सार्थकता के सबसे ऊंचे शिखर पर खड़े हैं आज याने 13 नवम्बर 2020 को गजानन माधव मुक्तिबोध अगर जीवित होते तो अपनी आयु के 105वें वर्ष में प्रवेश कर रहे होते. यह, सब कुछ के बावजूद, हिंदी की […]
Read Moreदीपाली श्रीवास्तव जिसका सभी को इंतजार था, आख़िर वह सीरीज़ आ गई। ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म अमेज़न प्राइम वीडियो पर सीरीज़ ‘मिर्जापुर 2’ रिलीज़ हो चुकी है। इसका पहला सीज़न साल 2018 में आया था और इसके दूसरे सीज़न का लोगों को बेसब्री से इंतजार था। पहले सीज़न में भी गोली, गाली और ख़ून-ख़राबा था और […]
Read Moreकविता करीब दो दशक पुराने इस साक्षात्कार में निर्मल वर्मा ने भारतीय समाज की चुनौतियों से जुड़ी जो बातें कही थीं वे आज भी ठीक उन्हीं अर्थों में महत्वपूर्ण बनी हुई हैं निर्मल वर्मा को उनकी रचनाओं के माध्यम से देखने वाले उन्हें आत्मनिष्ठ, संशयों से घिरे, दुख से लिपटे रहने और उनका उत्सव मनाने […]
Read Moreगेब्रियल गार्सिया मार्केज़ (6 मार्च 1927 – 17 अप्रैल 2014) विश्वविख्यात साहित्यकार. वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव रहा। इसके चलते उन पर अमेरिका और कोलम्बिया सरकारों द्वारा देश में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगया गया। प्रथम कहानी-संग्रह लीफ स्टार्म एंड अदर स्टोरीज 1955 में प्रकाशित: नो वन नाइट्, टु द कर्नल एंड अदर स्टोरीज और आइज़ ऑफ ए डॉग श्रेष्ठ कहानी संग्रह […]
Read Moreऑस्कर वाइल्ड (15 अक्टूबर 1854-30 नवम्बर 1900-पेरिस) – अद्भुत कल्पनाशीलता और प्रखर विचारों के धनी ऑस्कर वाइल्ड ने कई उल्लेखनीय कविता, कहानी,उपन्यास और नाटक लिखे। अँग्रेजी साहित्य में उनका नाम प्राथमिकता से लिया जाता है। विश्व की कई भाषाओं में उनकी कृतियाँ अनुवादित हो चुकी हैं। ‘द बैलेड ऑफ रीडिंग गोल’ और ‘डी प्रोफनडिस’, ‘द […]
Read Moreमुक्तिबोध ने कहा था कि ज़िंदगी मुश्किल है लेकिन इतनी मीठी कि जी चाहता है, एक घूंट में पी जाएं. उनका यह वाक्य ही उन्हें समझने के लिए दिए का काम कर सकता है. मुक्तिबोध का ज़िक्र आते ही ‘अंधेरे में’ की याद आती है. इस वजह से अंधेरापन मुक्तिबोध को परिभाषित करने वाले प्रत्यय […]
Read Moreछद्म राष्ट्रवाद के नाम पर जहर उगलने वाले कुछ चैनल इस्लामोफोबिक और नफ़रती ख़बरें परोसने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। सांप्रदायिकता फैलाने के लिए कई बार फेक न्यूज़ का सहारा लेने के आरोपी सुदर्शन टीवी ने सिविल सेवा में मुस्लिम समुदाय के लोगों की भर्ती को टारगेट करते हुए एक प्रमोशनल वीडियो शेयर किया […]
Read Moreसोनाली कोल्हटकर अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट (AEI) के माइकल स्ट्रेन ने हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स में एक ऑप-एड (किसी समाचार पत्र में संपादकीय पृष्ठ के उल्टे पृष्ठ पर टिप्पणी, फ़ीचर लेख आदि) लिखा है, जिसमें बताया गया है कि ” अमेरिकी ख़्वाब ज़िंदा है और ठीक-ठाक हाल में है” और उनकी राय में इस देश […]
Read More