प्रेम कुमार बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को 37.2 प्रतिशत वोट मिले हैं और सरकार बना रहे गठबंधन एनडीए को 37.3 प्रतिशत। वोट लगभग बराबर मिले हैं दोनों गठबंधनों को। वोटों के तौर पर यह फर्क महज 12 हज़ार 270 का है। एनडीए को 57 लाख 27 वोट मिले हैं जबकि महागठबंधन को 56 लाख…
दिल्ली के बाहर भी कुछ लोगों ने कहा कि वे तो पटाखे फोड़ेंगे ही, सर्वोच्च न्यायालय कुछ भी क्यों न कहे। जब उनसे कहा गया कि वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि कोरोना महामारी और बढ़ते प्रदूषण के बीच पटाखे और नुक़सानदेह साबित होंगे तो जवाब आया, “आप लोग बकरीद पर कुछ क्यों नहीं बोलते?”…
गांधीजी की हत्या के दोषी नाथूराम गोडसे की अस्थियां और उससे जुड़ी कई निशानियां आज भी पुणे के शिवाजी नगर इलाके में बने एक कमरे में रखी हुई हैं यह पूछने पर कि इस अस्थि कलश का विसर्जन क्यों नहीं किया गया,नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे के बेटे नाना गोडसे कहते है, ‘इन अस्थियों का…
अनुराग भारद्वाज आरएसएस के लोग हिंदू कोड बिल मुर्दाबाद, पंडित नेहरू मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे. प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री और डॉ. अंबेडकर के पुतले जलाए और शेख अब्दुल्ला की कार में तोड़फोड़ भी की. स्वामी करपात्री महाराज जो बिल के एक धुर विरोधी नेता थे, ने डॉ. अंबेडकर पर जातिगत टिप्पणियां कीं और कहा…
अनिल अंशुमन सनद हो कि पिछले कई दशकों से झारखंड के आदिवासी समुदाय व उनके संगठन अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर निरंतर आवाज़ उठाते रहें हैं। सत्ताधारी दलों ने भी हमेशा इसे अपने चुनवी मुद्दों में शामिल भी किया लेकिन इससे राजनीति ही अधिक की गयी। सचमुच 11 नवंबर 2020 का…
बीते डेढ़ महीने से पंजाब के किसान मोदी सरकार द्वारा जबरन पारित कृषि बिल के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान रेलवे ट्रैक पर चारपाई खाट बिछा कर वहीं बैठे हुए हैं। एक भी मालगाड़ी को पंजाब में घुसने नहीं दिया गया है। कृषि बिल पर चर्चा के लिए केंद्र के साथ किसान संगठनों …
अनुराग भारद्वाज हालात आज भी वैसे ही हैं जैसे बिरसा मुंडा के वक्त थे. आदिवासी खदेड़े जा रहे हैं, दिकू अब भी हैं. जंगलों के संसाधन तब भी असली दावेदारों के नहीं थे और न ही अब हैं 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के…
पवन उप्रेती सुप्रीम कोर्ट न्याय की सर्वोच्च संस्था है और उसकी गरिमा का देश का हर व्यक्ति सम्मान करता है। लेकिन उससे इतना तो पूछा जा सकता है कि ‘व्यक्तिगत आज़ादी‘ का जो अधिकार अर्णब गोस्वामी को हासिल है, वो वरवर राव, स्टेन स्वामी, उमर खालिद और अन्य लोगों को हासिल क्यों नहीं है। आर्किटेक्ट अन्वय…
अपने जीवनकाल में अपना पहला कविता संग्रह तक प्रकाशित न देख पाने वाले मुक्तिबोध आज प्रासंगिकता और सार्थकता के सबसे ऊंचे शिखर पर खड़े हैं आज याने 13 नवम्बर 2020 को गजानन माधव मुक्तिबोध अगर जीवित होते तो अपनी आयु के 105वें वर्ष में प्रवेश कर रहे होते. यह, सब कुछ के बावजूद, हिंदी की…
गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ (१३ नवंबर १९१७-११ सितंबर १९६४) प्रगतिशील आंदोलन के प्रमुख व अग्रणी साहित्यकार। ताउम्र वामपंथी विचारधारा से जुड़े रहे । कविता संग्रह : चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल तथा तारसप्तक में रचनाएं; कहानी संग्रह : काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी; उपन्यास: विपात्र; आलोचना : कामायनी :…
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