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Month: May 2020

आज भारत को टुकड़ों में किसने बाँट दिया?- अपूर्वानंद

रेल मंत्री चुन कर उन राज्यों पर आक्रमण करें जहाँ उनके दल की सरकार नहीं है, वह भी इस विपदा की घड़ी में, इससे ज़ाहिर होता है कि भारतीयता जैसी कोई उदात्त भावना नहीं जो राजनीति से ऊपर उठाने की ताक़त रखती हो। “चारों दिशाओं से चारों दिशाओं में  उजड़े घर छोड़कर  दूसरे उजाड़ों में…

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21 लाख करोड़ कोरोना पैकेज़ में राहत के सिर्फ़ 2 लाख करोड़?

मुकेश कुमार सिंह – दरअसल, प्रधानमंत्री जानते थे कि देश की माली हालत ऐसी नहीं है कि वो दिल खोलकर मदद बाँट सकें। लिहाज़ा, उन्होंने ‘भाषणं किम् दरिद्रतां’ यानी ‘भाषण देने में भी कंजूरी क्यों करें’ वाली रणनीति बनायी। इसीलिए राहत का ऐलान हुआ 2 लाख करोड़ रुपयेका, लेकिन भाषणबाज़ी हुई 21 लाख करोड़ रुपये…

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राहुल गांधी ने फुटपाथ पर उतर कर जाना मजदूरों का हाल

राहुल गांधी देश के पहले व एकमात्र राजनेता हैं जो  दिल्ली में मजदूरों से मिले , फुटपाथ पर बैठकर उनसे बातचीत की और उनकी समस्याएं जानी. देश में कोरोना संकट और लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है.इसी के मद्देनज़र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने संक्रमण के तमाम खतरों के…

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ग्राम स्वराज: लोकल से ग्लोबल

प्रो सतीश कुमार– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकल से ग्लोबल की बात कही है. यह सोच तो उल्टी गिनती जैसी लग रही है. पिछले 70 वर्षों में भारत ग्लोबल से लोकल की लकीर पर रेंगता रहा. हमारे देश में बनी चीजें ग्लोबल मार्केट की प्रतिस्पर्धा में दम तोड़ती गयीं और हम समय की धारा में…

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कला, युद्ध और फासीवाद– वाल्टर बेंजामिन

वाल्टर बेंजामिन (जन्म : 15 जुलाई 1892 – निधन : 26 सितंबर 1940 ) वाल्टर बेंजामिन जर्मन के एक दार्शनिक, सांस्कृतिक आलोचक और निबंधकार थे. बेंजामिन ने सौंदर्य सिद्धांत एवं साहित्यिक आलोचना   के लिए प्रभावशाली योगदान दिया. आधुनिक समाज में सर्वहारा वर्ग का बढ़ना और जनता का बढ़ना, दोनों एक ही प्रक्रिया के दो पहलू हैं। फासीवाद की…

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विभिन्न श्रम संगठनों के वेबिनार में श्रम कानूनों में बदलाव का हुआ तीखा विरोध

कोरोना की आड़ में मज़दूरों के हक़ों पर सरकार का हमला सरकार कोरोना वायरस से निपटने की आड़ में देश के मज़दूरों को मारने पर आमादा है। अचानक लॉकडाउन घोषित करने के बाद मज़दूरों को लग रहा था कि अब सरकार उनकी सुध लेगी। क़रीब दो महीनों से अपने घरों से दूर ये मज़दूर काम-धंधे से बेकार, खाने-पीने के लिए…

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कानून के चाबुक से जिहाद पर बदले सुरः असली अर्थ को समझने की ज़रुरत-राम पुनियानी

जिहाद और जिहादी – इन दोनों शब्दों का पिछले दो दशकों से नकारात्मक अर्थों और सन्दर्भों में जम कर प्रयोग हो रहा है. इन दोनों शब्दों को आतंकवाद और हिंसा से जोड़ दिया गया है. 9/11 के बाद से इन शब्दों का मीडिया में इस्तेमाल आम हो गया है. 9/11/2001 को न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड…

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कौन थीं संत कोरोना

कोरोना वायरस से फैली महामारी के दौर में जर्मनी की संत कोरोना चर्चा में आ गई हैं. जर्मनी के आखेन कैथीड्रल उनका अस्थि अवशेष रखा है. कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण अब तक दुनिया भर में लाखों लोगों की जान जा चुकी है. इस कठिन दौर में लोगों का ध्यान ईसाई संत कोरोना…

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हे विदूषक तुम मेरे प्रियः 7वीं कड़ी- महँगाई पर विदूषक की रायः प्रभाकर चौबे

सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें…

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शानी के मानी -जाहिद खान

16 मई, कहानीकार शानी की जयंती शानी के मानी यूं तो दुश्मन होता है और गोयाकि ये तखल्लुस का रिवाज ज्यादातर शायरों में होता है। लेकिन शानी न तो किसी के दुश्मन हो सकते थे और न ही वे शायर थे। हां, अलबत्ता उनके लेखन में शायरों सी भावुकता और काव्यत्मकता जरुर देखने को मिलती…

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