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Year: 2021

जन साहित्य उत्सव(PLF): नब्बे की उम्र में प्रेम कहानी नहीं लिखूंगी, तो कब लिखूंगी– उषा प्रियंवदा

हाल ही में उम्र का 90वां बसन्त मना रहीं प्रख्यात लेखिका उषा प्रियंवदा का अंदाज़ ज़िदादिली, खिलंदड़पन और दिलकशी से भरपूर है। पद्म भूषण सम्मान से अलंकृत ऊषा ने पीएलएफ में, “जिंदगी और गुलाब के फूल” सत्र में, अरविंद कुमार के सवालों का जवाब देते हुए अपनी जिंदगी के कई रंग सामने रखे।   खिलखिलाते हुए…

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किताबख़ानाः नियति को ठेंगा

आकांक्षा पारे काशिव “अगर कहानियों में नायिकाएं विद्रोह पर उतर आएं, तो समझ जाइए कि समाज में बदलाव धीरे-धीरे दस्तक देने लगा है”,कंचन सिंह चौहान के पहले कहानी संग्रह में यह दस्तक सुनाई देती है। उनकी नायिकाएं ‘जी’ कहने से पहले ‘क्यों’ पूछती हैं।  ‘बदजात’ ऐसी ही कहानी है, जिसमें एक मां का विद्रोह है।…

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बंगलुरु की जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की ग्रेटा थुनबर्ग ‘टूलकिट’ केस में गिरफ़्तारी

दिल्‍ली पुलिस ने शनिवार रात बंगलुरु से किसान आंदोलन की समर्थक एक जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को गिरफ्तार किया है। दिशा रवि फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर नाम के जलवायु परिवर्तन सम्‍बंधी अभियान की सह-संस्‍थापक हैं। उन्‍हें बंगलुरु से शनिवार शाम फ्लाइट से दिल्‍ली लाया गया। आज उन्‍हें अदालत में पेश किया गया। अदालत ने उन्‍हें पांच दिन की…

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गैस,पेट्रोल की बेतहाशा बढ़ती कीमतें, फिर भी खामोशी क्यों!

संजय राय देश की संसद और राजनीति आन्दोलनजीवी, परजीवी और क्रोनीजीवी जैसे शब्दों के तर्क-कुतर्क पर उलझी हुई है, जबकि आम आदमी महँगाई की मार से दोहरा होता जा रहा है। प्याज और सब्जी के आकाश छूते दाम, नए साल में 16 बार पेट्रोल – डीज़ल के भाव बढ़ गए, लेकिन इसकी चर्चा न संसद…

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भारत में ज्ञान की मौत पर आँसू कौन बहायेगा!- अपूर्वानंद

शिक्षा संस्थानों पर लगाम लगाने के नए सरकारी फरमान की हिंदी की अखबारी दुनिया में कोई चर्चा नहीं है। क्या इसपर हम ताज्जुब करें? आखिर हिंदी अखबारी रवैया हिंदी पाठकों को बेखबर करने का ही रहा है। ज्ञान के संसार में क्या हो रहा है, किस किस्म की उथल-पुथल है, इसपर कोई चर्चा हिंदी मीडिया…

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कहानीः खोज – ख़लील जिब्रान

ख़लील जिब्रान (6 जनवरी, 1883–10 जनवरी, 1931) अरबी और अंग्रेजी के लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। जीवन की कठिनाइयों की छाप उनकी कृतियों में…

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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़: जैसे बीमार को बेवजह क़रार आ जाए…

कृष्णकांत फ़ैज़ ऐसे शायर हैं जो सीमाओं का अतिक्रमण करके न सिर्फ़ भारत-पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया के काव्य-प्रेमियों को जोड़ते हैं. वे प्रेम, इंसानियत, संघर्ष, पीड़ा और क्रांति को एक सूत्र में पिरोने वाले अनूठे शायर हैं. कुछ बरस पहले हमारी एक मित्र अपनी परीक्षा के एक दिन पहले फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कुछ नज़्में…

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नेता ने ऐंकर को पत्रकारिता का पाठ पढ़ाया, क्या मालिक को कुछ समझ में भी आया?

नवीन कुमार कोलकाता के एक पांच सितारा होटल में 11 फरवरी की शाम राहुल कंवल पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी का इंटरव्यू करने बैठे थे। उस इंटरव्यू का इंतजार सबसे ज्यादा बीजेपी को था, लेकिन जब इंटरव्यू खत्म हुआ तो आजतक इंडिया टुडे ग्रुप के मालिक अरुण पुरी का चेहरा उतरा हुआ था। राहुल…

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क्यों आर्थिक सर्वे की यह बात नहीं पचती कि आर्थिक असमानता पर नहीं केवल आर्थिक विकास पर ध्यान देने की ज़रूरत है?

अजय कुमार साल 2020-21 के आर्थिक सर्वे के एक अध्याय में यह राय रखी गई है कि आर्थिक विकास से भले ही आर्थिक असमानता बढ़ेगी, लेकिन ग़रीबी भी कम होगी। तो आइए जानते हैं कि क्यों यह राय दुरुस्त नहीं है।  साल 2020 -21 के आर्थिक सर्वे में आर्थिक असमानता और आर्थिक विकास पर आधारित…

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इस आपदा में हमारे लिए छह मोर्चों पर सुधरने का अवसर छिपा है- रामचंद्र गुहा

कॉरपोरेट के प्रति मैत्री भाव रखने वाले लोग यह तर्क देंगे कि पर्यावरण संरक्षण अमीर देशों का शगल है लेकिन इस मामले में हमें उनसे ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है बीते रविवार को चमोली में आई आपदा की खबर मिलने के कुछ घंटे बाद मैंने एक ऐसे शख्स को फोन किया जिसका नाम हम…

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