ऑनलाइन शिक्षा: ‘जो खाने के लिए मिड डे मील पर आश्रित हैं वो ऑनलाइन कहां से पढ़ेंगे’

तरुण कृष्णा

उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली के कई स्कूलों के शिक्षकों का यही कहना है कि जिन छात्रों के पास खाना नहीं है उनके पास स्मार्टफोन और इंटरनेट डाटा कहां से आएगा.

कोरोना महामारी के दौरान स्कूल खुलने से जुड़ी बहस के बीच केंद्र और राज्य सरकारें ऑनलाइन शिक्षा को लेकर तरह-तरह के दावे कर रही हैं. हालांकि, ऐसे दावों के विपरीत सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का कहना है कि ऑनलाइन शिक्षा कम से कम प्राथमिक स्कूल के छात्रों तक नहीं पहुंच रही है.

उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली के कई स्कूलों के शिक्षकों से दिप्रिंट ने इस बारे में बात की. उनका कहना है कि जिन छात्रों के पास खाना नहीं है उनके पास स्मार्टफोन और डाटा कहां से आएगा.

जुलाई की शुरुआत में दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने भी ‘डिजिटल डिवाइड’ को ऑनलाइन शिक्षा के लिए बड़ीचुनौती बताया था.

इस दौरान उन्होंने कहा था, ‘कई बच्चे ऐसे हैं जिनके पास फोन या इंटरनेट मौजूद नहीं है. हमारी स्टडी के मुताबिक 10-20% बच्चों के परिवार के पास व्हाट्सएप नहीं है.’

हालांकि, गवर्मेंट स्कूल टीचर्स एसोसिएशन (दिल्ली) के जिला सचिव संतराम (51) ने कहा, ‘प्राथमिक में मुश्किल से 20-25% बच्चों तक ही ऑनलाइन शिक्षा पहुंच पा रही है.’

डिजिटल डिवाइड की तस्दीक नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) के एक देशव्यापी सर्वे ने भी की है. इसके मुताबिक ग्रामीण इलाकों में महज़ 4% घरों में कंप्यूटर, 14.9% के पास इंटरनेट है और इनमें से मात्र 9.9% को ही कंप्यूटर चलाना आता है.

‘हाउसहोल्ड सोशल कंजंप्शन ऑन एजुकेशन इन इंडिया’ नाम के इस सर्वे को पिछले हफ्ते ही जारी किया गया है.

दिल्ली, बिहार और यूपी- संसाधनों की कमी तीनों ही जगह 

संतराम दिल्ली के सुभाष नगर स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय में पढ़ाते हैं जहां केजी (किंडरगार्टेन) से 12वीं तक की पढ़ाई होती है. लगभग 1500 बच्चों वाले इस स्कूल में ऑनलाइन शिक्षा का हाल बयां करते हुए उन्होंने कहा, ‘पांचवीं क्लास में 60 में 18 बच्चे व्हाट्सएप पर ग्रुप में हैं और मुश्किल से 15 ही काम पूरा करके दे पाते हैं.’

उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के स्कूलों का हाल तो फिर भी ठीक है. दिल्ली नगरपालिका (एनडीएमसी) के स्कूलों की कमर टूटी हुई है. उन्होंने कहा, ‘दिल्ली सरकार ने अपने शिक्षकों को 15,000 रुपए का एक टैबलेट दे रखा है. समय से सैलरी भी देती है. एमसीडी टीचर्स को ना सुविधा मिलती है ना पैसे.’

दिल्ली के तिहाड़ विलेज नंबर वन के एनडीएमसी प्राइमरी स्कूल प्रिंसिंपल अनिता रानी (55) ने कहा, ‘आधे से ज़्यादा बच्चों के पास फोन नहीं है. 60% बच्चों को ग्रुप में एड किया लेकिन उनमें से ज़्यादातर एक्टिव नहीं हैं.’

अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष सीमा माथुर (33) सुल्तानपुरी स्थित एमसीपीएस स्कूल में प्राइमरी टीचर हैं. एनडीएमसी के इस स्कूल में 900 बच्चे हैं. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि लॉकडाउन के समय लोगों के पास खाने का पैसा नहीं है, रिचार्ज का पैसा कहां से लाएंगे?

दिल्ली के मंगोलपुरी के सी ब्लॉक स्थित निगम प्रतिभा विद्यालय में शिक्षक नवीन सांगवान ने कहा, ‘मेरे खुद के दो बच्चे हैं और एक फोन है. आप ही बताइए, अपने बच्चों को पढ़ाएं या स्कूल के बच्चों को.’

संसाधनों की ऐसी ही कमी का इज़हार बिहार और उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों ने भी किया.

दरअसल, 29 जून के एक सर्कुलर में बिहार सरकार ने स्कूलों से छात्रों को मेरा दूरदर्शन, उन्नयन एप, दीक्षा एप, ज़ूम क्लाउड मीटिंग, व्हाट्एप लाइव और विद्यावाहिनी एप  के जरिए ऑनलाइन शिक्षा देने को कहा है.

हालांकि, अप्रैल में आए बिहार सरकार के उन्नयन एप को प्ले स्टोर में महज़ 1 लाख के करीब डाउनलोड मिले हैं.

बिहार राज्य प्रथामिक शिक्षा संघ के कार्यालय सचिव मनोज कुमार (45) ने कहा, ‘एक परिवार में चार बच्चे हैं लेकिन मुश्किल से एक स्माटफोन है. 4जी काम नहीं करता. ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा कैसे दें?’

कुमार पटना के नुरुद्दीन गंज मध्य विद्यालय में प्रभारी प्रधानाध्यापक हैं. पहली से आठवीं तक के इस स्कूल में 700 बच्चे हैं.

उन्होंने कहा, ‘सरकारी स्कूलों में कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. बच्चों की ना तो ऑनलाइन पढ़ाई हुई और ना ही ऑफलाइन.’ हालांकि, इन शिक्षकों को स्कूल जाना पड़ रहा है.

इस विषय में दिप्रिंट ने बिहार और यूपी के शिक्षा से जुड़े अधिकारियों का पक्ष जानने के लिए उन्हें ई-मेल और फोन के जरिए संपर्क किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. जवाब आने पर स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.

चुनाव से लेकर मिड डे मिल तक की जिम्मेदारी शिक्षकों पर

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने 6 जून को एक सर्कुलर जारी कर निर्देश दिया कि कोविड महामारी की वजह से शिक्षकों को स्कूल न बुलाया जाए. इसके बावजूद यूपी और बिहार जैसे राज्यों में शिक्षकों को स्कूल बुलाया जा रहा है.

इस पर मनोज ने कहा, ‘हमलोग स्कूल में हाजिरी बनाते हैं और बैठे रहते हैं.’

सूबे के शिक्षकों की मानें तो बिहार सरकार इलेक्शन मोड में है और इसके लिए नामांकन अभियान चला दिया गया है. शिक्षकों का कहना है कि एक तरफ मामले बढ़ रहे हैं, दूसरी तरफ डोर टू डोर जाकर नामांकन चलाना पड़ रहा है.

राज्य के अपर मुख्य सचिव आर के महाजन ने एक पत्र जारी किया है जिसमें कहा गया है कि छात्रों को मई से अभी तक के मिड डे मील (एमडीएम) के लिए अनाज/पैसा दिया जाएगा. इसे लागू करवाने का काम भी शिक्षकों को ही करना है.

स्मार्टफोन की भारी कमी

स्मार्टफोन की समस्या दिल्ली के कमज़ोर वर्ग के छात्रों के भी साथ है.

दिल्ली के ऐसे ही बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने वाले सारथी फांउडेशन के अंकित अरोड़ा ने कहा, ‘जिन 3000 परिवारों से हम जुड़े हैं उनमें 80% के पास एक स्मार्टफोन है. महज़ 24% परिवार ही है जिनके पास हमेशा घर पर एक फोन रहता है.’

जिन भी शिक्षकों से दिप्रिंट ने बात की उन्होंने कहा कि आम तौर पर ये फोन पिता के पास होते हैं. लॉकडाउन खुलने के बाद वो अपने रोज़मर्रा के काम से बाहर जाने लगे हैं ऐसे में बच्चों के पास फोन नहीं होता. यूपी के शिक्षकों और छात्रों की भी कमोबेश यही समस्याएं हैं.

नरेश कौशिक (44) उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ से गौतम बुद्ध नगर के जिला मंत्री है और जेवर ब्लॉक में चकबीरमपुर स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाते हैं. पहली से आठवीं तक के इस स्कूल में 72 बच्चे हैं. कौशिक ने कहा, ’10-12 बच्चे ही ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं.’

यूपी के ही गौतम बुद्ध नगर के कुलेसरा के प्राथमिक विद्यालय सुतियाना के शिक्षक नीरज चौबे (50) ने कहा, ‘परिवार वालों को बुलाकर उनके फोन में दीक्षा और प्रेरण एप इंस्टाल करना था. लेकिन नेटवर्क, रिचार्ज, स्टोरेज जैसी दिक्कतों की वजह से ये नहीं हो पाता.’ उत्तर प्रदेश सरकार के प्रेरणा एप को भी गूगल प्ले पर 1 लाख के करीब लोगों ने डाउनलोड किया है.

अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉक्टर अनुज त्यागी (43) ने कहा, ‘पिछले साल योगी सरकार ने शिक्षकों को जो टैबलेट देने की घोषणा की थी वो आज तक नहीं मिला.’

प्रयागराज के हनुमान गंज स्थित यूपीएस सुधनीपुर कलां की शिक्षिका गीता पांडे (49) ने कहा कि जहां उनका स्कूल है वहां के पूरे गांव में चार स्मार्टफोन हैं. परिवार वाले ‘छोटा’ रिचार्ज करवाते हैं और जो थोड़ा बहुत देखना होता है वो देख लेते हैं.गीता ने कहा, ‘सरकार मिड डे मील तो दे ही रही है. स्मार्टफोन और रिचार्ज भी दे देती. जिनके पास खाना नहीं है वो ऑनलाइन कैसे पढ़ेंगे?’

सौज- दप्रिंट

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