
- जगदीश्वर चतुर्वेदी
हम पहले व्यक्ति थे।अब किसी न किसी दल के हैं।व्यक्ति की निजी पहचान के रुपों को दलीय पहचान -वैचारिक पहचान ने अपदस्थ कर दिया है।इसके कारण व्यक्ति की पहचान के साथ जुड़ा हुआ मूल अर्थ ही नष्ट हो गया या फिर अप्रासंगिक हो गया।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने ‘जाति जनगणना’ कराने की घोषणा करके सबसे बड़ा काम यह किया है कि उसने जाति गणना के उन्माद या जोश को ठंडा कर दिया है। ‘आशाओं पर ठंडा पानी डालो’। यह है मोदी का फंडा। उस फंडे के तहत वे विभिन्न फैसले लेते रहे हैं।आशाओं को जगाना और फिर ठंडा पानी डालना, उस पद्धति के तहत वे अब तक शासन करते रहे हैं।
मोदी ने ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’,नारे के तहत सारे देश के वोट हासिल किए।15 लाख रुपए बैंक एकाउंट में आएंगे,यह कहकर वोट पाए ।और अंत में कहा कि यह तो जुमला था।धीरे धीरे उन्होंने हिन्दू धर्म और राम मंदिर का मसला उठाया और विज्ञान के प्रति आकर्षण और विज्ञान की महत्ता को हाशिए पर डाल दिया।स्किल्ड लेबर और स्किल्ड शिक्षा के ज़रिए समूचे उच्च शिक्षा के ढांचे को ध्वस्त कर दिया।शिक्षा को निजीकरण के हवाले कर दिया।
जिन चीजों से जनता को प्रेरणा मिलती या फिर जो चीजें जनता को आकर्षित करती हैं,उनको मोदी उठाते हैं ,और फिर किसी अन्य कदम के ज़रिए उस पर ठंडा पानी डाल देते हैं।
विश्व गुरु का नारा देकर उन्होंने आत्मनिर्भर भारत की ही कमर तोड़ दी।उसी तरह टूरिज्म पर ज़ोर देकर धर्म की कमर तोड़ दी।अब भारत में टूरिज्म प्रमुख है धर्म गौण है। कल्ट गुरु -बाबा-संयासी गौण हैं और आरएसएस-मोदी प्रमुख हैं।
मोदी की रणनीति यह है कि आशाओं को ठंडा करो।आम लोग न्याय की उम्मीद कर रहे थे,शीघ्र न्याय पाने की उम्मीद कर रहे थे।मोदी ने उस उम्मीद को ठंडा कर दिया। पुलिस को ही बधिया कर दिया।
मोदी का लक्ष्य है कि जिस विषय या क्षेत्र का जो आधिकारिक संस्थान-विद्वान-व्यक्ति आदि है उसे ठंडा करो।आधिकारिक संस्थान-विद्वान आदि को ठंडा करो और अपनी शक्ति का विस्तार करो।
तर्क को तर्कहीनता से अपदस्थ करो।विवेक को अविवेक के ज़रिए ठंडा करो।सूचना को प्रौपेगैंडा के ज़रिए ठंडा करो।आत्म-सम्मान के भावबोध को मोदी बोध के ज़रिए ठंडा करो।मोदी है तो मुमकिन है ! ज्ञान-विज्ञान को व्यावहारिक लाभ के ज़रिए ठंडा करो। लाभ देखो, ज्ञान-विज्ञान मत देखो।लोकतंत्र का छद्म दंभ पैदा करके लोकतंत्र, लोकतांत्रिक संस्थाओं और अधिकारों को ठंडा करो।
लोकतंत्र के छद्मदंभ के ज़रिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अहर्निश हमले करो।यह कहो कि जिसमें लोकतंत्र का दंभ है वही लोकतंत्र का रक्षक है।वही लोकतंत्र का संरक्षक है और बाकी सब उसके ग़ुलाम हैं।मातहत हैं।अनुयायी हैं।
मोदी का फंडा है कि लोकतंत्र का सत्य वह है जो लोकतंत्र के दंभी लोग जानते हैं।लोकतंत्र के दंभी लोकतंत्र की जान हैं।वे क़ानून से परे हैं।उनके कुतर्क और पेट का ज्ञान सर्वोपरि है।लोकतंत्र के दंभी लोग ही हैं जो असल में लोकतंत्र के ओपनियन मेकर हैं।उनके बारे में किसी भी किस्म का पूर्वाग्रह स्वीकार्य नहीं है।हर चीज़ को तर्क, विवेक और नीति की बजाय कॅामनसेंस के आधार पर देखो।मीडिया में जो दिख रहा है उस पर आंखें बंद करके विश्वास करो।यथार्थ की कसौटी पर कोई वस्तु, विचार,नीति ,राजनीति आदि का परीक्षण मत करो। मीडिया ही परम सत्य है।उस पर आंखें बंद करके विश्वास करो।
‘आशाओं पर ठंडा पानी डालो’ के तहत पूरे देश में शिक्षित जनता में विज्ञान चेतना को ठंडा किया गया। अब साइंस की बजाय धर्म और अंधविश्वासों पर विश्वास करने पर ज़ोर दिया जा रहा है।यह धारणा जमकर प्रचारित की जा रही है कि साइंस पर आस्था होने के कारण व्यक्ति हर चीज़ पर संदेह करता है, सवाल करता है।लेकिन अब सवाल करने ,संदेह करने की बजाय ओपिनियन पोल या भीड़ चेतना के आधार पर राय बनाओ।सवाल मत करो।संदेह मत करो। विश्वास करो।जो कहा जाय उसे मानो।इस पद्धति ने विज्ञान चेतना को ठंडा कर दिया है।विज्ञान में लोगों का विश्वास घटा है।साइंस के प्रति घटते हुए विश्वास का आदर्श नमूना है पर्यावरण क्षय और लोकतंत्र का क्षय।लोकतंत्र और पर्यावरण में निरंतर जो गिरावट आई है उसके पीछे विज्ञानचेतना के क्षय और सवाल न करने की मनोदशा की बड़ी भूमिका है।लोकतंत्र और पर्यावरण के सरोकार आम जनता को एक क्षण के लिए भी उद्वेलित नहीं करते।
मोदी की ताक़त वोट नहीं है बल्कि आपका पड़ोसी है।फासिज्म जहां पर भी आया है उसने व्यक्ति के करीबी व्यक्ति या पड़ोसी पर कब्जा किया है।पड़ोसी यदि मोदी भक्त है तो आप भी मोदी भक्त होने को मजबूर हैं।पड़ोसी कैसे मोदी भक्त बना यह कोई नहीं जानता,पर, मोदी जानते हैं।आरएसएस वाले जानते हैं।
इन दिनों पड़ोसी जिस गति और संख्या में मोदी भक्त बने हैं उसमें मीडिया,ह्वाटस एप और सोशल मीडिया की केन्द्रीय भूमिका है।इसकी पद्धति समझें। मसलन् , ‘मोदीभक्त’ या ‘मोदी विरोधी’ कहकर नामकरण किया गया।यह नये किस्म का ‘नामकरण’ है।पहले इस तरह का नामकरण नहीं होता था। इस नए किस्म की ‘नामकरण संस्कृति’ ने नागरिक की पहचान ,उसकी पहले वाली पहचान को नए ‘नामकरण’ में बांधा है.रुपान्तरित किया है।इससे नए तरीके से जनता को फासिस्ट बनाया गया है। इसे ‘ फासिस्ट नामकरण संस्कृति’ कहना समीचीन होगा।
अब व्यक्ति को लेबिल या नाम दिए गए हैं।जैसे मोदी विरोधी, देशद्रोही , एंटी नेशनल ,धर्मनिरपेक्ष, अर्बन नक्सल आदि नामों से पुकारा जाता है। यह हमारी चेतना में कैसे घुस गयी हम में से कोई नहीं जानता।इससे समाज में असहिष्णुता और सामाजिक टकराव बढ़े हैं।हम पहले व्यक्ति थे।अब किसी न किसी दल के हैं।व्यक्ति की निजी पहचान के रुपों को दलीय पहचान -वैचारिक पहचान ने अपदस्थ कर दिया है।इसके कारण व्यक्ति की पहचान के साथ जुड़ा हुआ मूल अर्थ ही नष्ट हो गया या फिर अप्रासंगिक हो गया।
‘ फासिस्ट नामकरण संस्कृति’ का वैचारिक आधार है आरएसएस।इसका हिन्दू धर्म से कोई संबंध नहीं है बल्कि संघ ही नई ‘नामकरण संस्कृति’ का औज़ार है।इसका नारा है ‘नाम बदलो,धर्म बदलो।’ यह है नया फंडा।
दूसरी ओर इसका लक्ष्य है संविधान की अवहेलना करो।संविधान को पंक्चर करो।एक पार्टी,एक नेता के शासन को समर्थन दो।चुनावों में धांधली करो।राजनीतिक विरोधियों को खरीदो और अपने दल में शामिल करो।राजनीतिक विरोधियों को धमकाओ-डराओ और पीड़ित करो,जेल भेजो।धार्मिक-राजनीतिक आस्था के आधार पर दंडित करो,मुकदमे चलाओ,कैद करो।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सेंसर करो।राजनीतिक भाषा और एक्शन के आधार पर लोगों को दण्डित को।राजनीतिक विरोधियों पर शारीरिक हमले करो।उनके ख़िलाफ़ हिंसा करो।मोदी-संघ से असहमत लोगों को कलंकित करो, अपमानित करो।उनकी आस्थाओं -विश्वासों पर हमले करो।सूचना तकनीकी कंपनियों ,सोशल मीडिया कंपनियों की सेंसरशिप में मदद लो।
इसके अलावा प्रत्यक्ष आम जनता में यह प्रचार करो कि जो मोदी द्वारा किसानों को हर साल 6000 रुपए भेज रहा है या फिर पाँच किलो मुफ्त राशन दे रहा है ,वह तो जन हितैषी है।। जनता का मददगार है । उसे फासिस्ट नहीं कह सकते।वह तो जन-कल्याण के काम कर रहा है।मोदी तो ‘हाई – वे’ बना रहा है।फ्री मेडीकल स्कीम -आयुष्मान- दे रहा है।उसे फासिस्ट कैसे कह सके हो !
इस मॅाडल की विशेषता है निर्दोष,अज्ञानी जनता को ठगना।जिससे निरीह जनता मोदी का समर्थन करती रहे।जबकि मोदी अंतहीन रुप में जनता को तबाह किए हुए हैं। जनता की आय घटी है,नौकरियां खत्म हुईं हैं,हजारों सरकारी स्कूल बंद हुए हैं, शिक्षा महंगी हुई है ,यात्रा महंगी हुई है।जीवन यापन मुश्किल हुआ है।आत्म हत्याएं बढ़ीं।गरीबी बढ़ी है।और पूंजीपतियों की पूंजी में इजाफा हुआ है।
जनता के पक्ष में काम करने वाले नेताओं -कार्यकर्ताओं पर हमले बढ़े हैं,गिफ्तारियां और यातनाएं बढ़ी हैं ।नए किस्म की ‘यातना संस्कृति’ने जन्म लिया है।
मोदी के आलोचकों पर हमले बढ़े हैं। मुँह खोला और दमन शुरु।दमन कैसे किया जाएगा,इसके तरीके राजनीतिक तौर पर ऊपर से निर्देश देकर बताए जाते हैं और निचले स्तर पर अधिकारियों को उसका पालन करना होता है। दमन संस्कृति का दायरा विश्वविद्यालय कैम्पस से लेकर सोशल मीडिया तक फैला है।
उल्लेखनीय है भारत में सम-सामयिक फासिज्म पर बातें करते समय समाजवादी व्यवस्था के मानवाधिकार विरोधी कारनामों की अवहेलना नहीं करनी चाहिए।देश में बंगाल में वाम मोर्चे ने जो गलतियां की हैं उनकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए।समाजवादी समाज के कष्टों को नहीं भूलना चाहिए। मानवाधिकार विरोधी नीतियों को नहीं भूलना चाहिए। फासिज्म या अधिनायकवाद किसी भी विचारधारा का हो वह ख़तरनाक होता है। उससे समझौता संभव नहीं है।
भारत के इस दौर के फासिज्म की विशेषता है अहर्निश सूचना का दमन, मिस-इन्फॅार्मेशन और डिस-इनफॅार्मेशन का प्रचार।यह प्रवृत्ति आम है। इसने लोकतंत्र और नागरिकों का बड़ा नुक़सान किया है।इसने अकादमिक जगत में आरएसएस की पक्षधरता और प्रतिबद्धता को एक बुनियादी नियम बनाया है।इससे अकादमिक व्यवस्था ,विज्ञान संगठन ,शोध संस्थान आदि महत्वपूर्ण अकादमिक संस्थान और विश्वविद्यालय एक-सिरे से अधमरे कर दिए हैं। वहां पर औसत लोगों की बाढ़ आ गयी है। अकादमिक गुणवत्ता को हाशिए के बाहर खदेड़ दिया गया है। सभी संस्थानों की स्वायत्तता खत्म कर दी गयी है।वे अब नाम मात्र की संस्थाएं रह गयी हैं।उनके सभी फैसले असंवैधानिक सत्ता केन्द्र लेते हैं।
फासिस्ट नीति है शिक्षा,साहित्य,कला,विज्ञान, पत्रकारिता, मनोरंडन,फिल्म आदि को राज्य के मातहत बनाओ। सत्ता के इशारों पर चलने के लिए बाध्य करो।लोकतांत्रिक स्पेस खत्म करो। इन सभी क्षेत्रों को राज्य का अनुगामी बना दिया गया है।हिटलर ने यही सब किया था।जबकि ये क्षेत्र राज्य के अनुगामी नहीं हैं बल्कि इनकी स्वायत्तता है और स्वतंत्र भूमिका है।राज्य जब भी इनको मातहत बनाने की कोशिश करता है तो इनकी स्वायत्तता-स्वतंत्रता छीन लेता है।
फासिज्म की रणनीति है कि वह जनता के साथ टकराव पैदा करता है , सच को जनता से छिपाता है, कभी -कभी जनता को लाभ भी देता है,उसे लाभार्थी बनाता है।लाभार्थी बनाकर वह जनता से फासिज्म को स्वीकृति दिलाता है।। मोदी की लाभार्थी स्कीम इसी रणनीति का अंग है।जनता जब एक बार फासिस्ट नीति में क़ैद हो जाती हो जाती है तो फिर उसके सामने बहुत कम विकल्प बचते हैं।इसके बाद उसके हकों और योजनाओं पर हमले तेज हो जाते हैं।
भारत में फासिज्म विभिन्न विभिन्न तरीकों से नागरिक समाज ,नागरिक अधिकारों और नागरिक चेतना को ध्वस्त करने की कोशिश कर रहा है। उसकी इकसार शैली नहीं है।इसका प्रधान कारण है भारत में जातीय-राजनीतिक चेतना में असमानताएं और सामाजिक वैषम्य। दो फिनोमिना नज़र आते हैं, एक है ,नीचे से भीड़ का फासिज्म । जिसके तहत संगठन विशेष के वर्चस्व और आदेश को मानने के लिए मजबूर किया जाता है। दूसरा है सत्ता के शिखर से फासिज्म का प्रच्छन्न कार्यान्वयन। भारत में इस समय ये दोनों ही रुप इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
भीड़ का फासिज्म और सत्ता का फासिज्म एक दूसरे के पूरक के तौर पर काम कर रहे हैं। आए दिन संवैधानिक स्वतंत्रताओं पर हमले हो रहे हैं। कोई राज्य नहीं है जहां पर हमले न हो रहे हैं। ये केन्द्रीकत ढंग से दिल्ली से संचालित हैं।कहीं -कहीं राज्यों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।भाजपा संचालित राज्यों में ये हमले सहज ही देखे जा सकते हैं।जहां भाजपा की राज्य सरकार नहीं है वहां केन्द्रीय एजेंसियों और पुलिस एफआईआर-ईडी-सीबीआई के ज़रिए उत्पीड़न का तंत्र विकसित किया गया है।इसने ख़ास किस्म नफरती संस्कृति को बढ़ावा दिया है।चुनावों में धांधली, झूठे मुकदमे और फेक मसलों में फंसाने की रणनीति लागू की जा रही है।इसके तहत संसद को अप्रासंगिक, सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट को अर्थहीन,अपराधियों को खुला संरक्षण.पुलिस के अत्याचारों को संरक्षण आदि दिया जा रहा है।
फासिज्म का एकमात्र लक्ष्य है सत्ता को अनंत काल तक येन-केन प्रकारेण अपने कब्जे में रखना।इसके लिए विपक्ष को हमेशा कलंकित करके रखो और उसका अहर्निश दमन करो।
फासिस्ट नेता यह मानते हैं कि वे समाज को स्वर्ग बना देंगे।ऐसा समाज बना देंगे जिसमें घी -दूध की नदिया बहेंगी।सब ख़ुशहाल होंगे।इसी यूटोपिया को वे अपने प्रचार के ज़रिए आम जनता के मन में उतार देते हैं।
उनकी हरेक योजना और नीति का प्रचार इसी तरह होता है कि नीति लागू हुई और खुशहाली आई।खुशहाली तो नहीं आती,पर इस क्रम में वे जनता को जाति और धर्म के समूहों में बांटने में सफल हो जाते हैं और अपना वर्चस्व बनाए रखते हैं।