लॉक डॉउन की वजह से जब गावों , शहरों में स्वतः शराब दुकाने बंद हो गई तो पूरे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं ने राहत की सांस ली है । आज लगभग सवा महीने से शराब दुकाने बंद होने से तमाम सामाजिक उचक्काई, घरेलू हिंसा और अपराध काफी हद तक नियंत्रित हैं । अब जबकि नई गाइड लाइन के अनुसार लॉक डॉउन खुलने के आसार हैं तब रोज़गार, आर्थिक स्थिति, उद्योग व्यापार को राहत के उपायों को छोड़कर सबसे बड़ी बहस शराब दुकानों को लेकर हो रही है । लेकिन न तो मेरे लिखने से न उन करोड़ों करोड़ महिलाओं और शराब विरोधी संगठनों के कहने से छत्तीसगढ़ में शराब दुकान खुलने से रुक सकती है । क्योंकि जिस प्रदेश के आबकारी मंत्री खुद शराब दुकाने खोलने के लिए बेचैन और आतुर हो उस प्रदेश में यह संभव नहीं है । हालांकि सवा साल से ज्यादा हो गए सरकार को मगर अपने जन घोषणापत्र में पूर्ण शराबबंदी का वादा करने वाली सरकार इस दिशा में कोई ठोस योजना तो दूर , ज़रा सा आश्वासन तक ज़ाहिर नहीं कर सकी ।
एक परिचर्चा में आबकारी मंत्री चिल्ला चिल्ला के कह रहे थे कि शराब दुकान खोलने जनता की डिमांड आ रही है , लोग परेशान हैं । अब कोई ये बताए कि कौन सी जनता , जरा सबको पता भी तो चले कि लॉक डॉउन में कौन जाकर उन्हें ज्ञापन दे आया । दूसरी ओर उस डिमांड का क्या जो बरसों से शराब बंदी के लिए मांग कर रही है। कहा जाता है कि आदिवासी क्षेत्रों में शराब उनकी संस्कृति में शामिल है , हो सकता है । मगर पूरे प्रदेश के बाकी इलाकों में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं शराबखोरी और इससे होने वाली घरेलू और सामाजिक हिंसा से त्रस्त है । हद तो तब हो गई जब पिछली सरकार ने खुद ही शराब बेचने का फैसला किया। इस निर्णय का खामियाजा उसे पिछले विधान सभा चुनाव में भुगतना पड़ा क्योंकि चुनाव के दौरान कॉंग्रेस ने अपने जन घोषणापत्र में पूर्ण शराबबंदी को शामिल किया जिसका आधी आबादी यानि महिलाओं पर खासा असर पड़ा और कॉंग्रेस को बम्फर लाभ मिला । विगत सवा साल से भी ज्यादा हो गए मगर हर बार कॉंग्रेस सरकार नए नए बहाने देकर शराब बंदी के अपने वादे से मुकरती रही है ।
सामाजिक पहलू के अलावा शराब के साथ राजस्व व माफिया का भी पहलू जुड़ा हुआ है । कहा जाता है कि शराब से मिलने वाले राजस्व की भरपाई कैसे हो इसका अब तक कोई विकल्प नहीं मिल पा रहा है इसलिए हर बार शराबबंदी चाल दी जाती है । निश्चित रूप से राजस्व की हानि तो कोई भी सरकार बर्दाश्त नही कर सकती , विशेषकर ऐसे समय में जब केन्द्र से कोई मदद की उम्मीद नजर न आ रही हो । विगत वर्ष शराब पीने के मामले में छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर रहा ।
छत्तीसगढ़ शराब की बिक्री के मामले में आबादी में अपने से चार गुना बड़े महाराष्ट्र से भी अधिक कमाई कर रहा है । आंकड़ों को देखें तो महाराष्ट्र की आबादी लगभग 11 करोड़ है, जबकि शराब से कमाई करीब 10546 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है. वहीं छत्तीसगढ़ की आबादी 2.55 करोड़ है । यहां शराब से कमाई साल 2018-19 में लगभग 4700 करोड़ रुपए हुई है। इस कमाई को आबादी से भाग दें तो छत्तीसगढ़ में शराब की खपत प्रति व्यक्ति 1843 रुपए प्रतिदिन की है. महाराष्ट्र में यह आंकड़ा 919 रुपए प्रति व्यक्ति यानि छत्तीसगढ़ में दोगुनी है । लेकिन आबकारी मंत्री कवासी लखमा शराब की 1 अप्रैल से 50 दुकाने बंद करके अपनी पीठ थपथपा रहे हैं , क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार अपने वादे का ज़रा मरा दिखावा करते हुए शराब बंदी के नाम पर नए वित्तीय वर्ष में एक अप्रैल से 50 शराब और 49 बियर बार बंद करने का फैसला जरूर किया है जो लॉक डॉउन खत्म होने के पश्चात आगे देखना मिल सकता है।
आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्तीय वर्ष में आबकारी से प्राप्त राजस्व में करीब 11 फीसद की वृद्धि हुई है। कॉंग्रेस सरकार ने पांच हजार करोड़ राजस्व का लक्ष्य तय किया था जिसमें लॉक डॉउन के पहले जनवरी तक ही तकरीबन 4100 करोड़ का राजस्व प्राप्त हो चुका है । अब तो राज्य कैबिनेट ने नई आबकारी नीति के तहत शराब दुकानों के साथ ही शराब दुकानों के पास चखना सेंटर की भी अनुमति दे दी है। इसे रोज़गार से जोड़ा जा रहा है । कांग्रेस ने अपने जनघोषणा पत्र में पूर्ण शराबबंदी का जनता से वादा किया था, लेकिन उस वादे को भूल गई है । सरकार शराब बंद तो नहीं कर रही है, बल्कि राजस्व का हवाला देते हुए लगातार शराब की बिक्री बढ़ाने के नए नए उपक्रम ला रही है
अब जब मंत्री जी जनता की डिमांड का हवाला दे रहे हैं और लोकतंत्र में जनता सर्वोपरी है, अतः उस आधी आबादी की डिमांड हाशिए पर रखकर शराब दुकानें तो खुल कर रहेंगी । ऐसी स्थिति में इसके दूसरे पहलू को भी देखना चाहिए । एक तो शराब दुकानो में सरकारी विक्रय प्रक्रिया के चलते बेतहाशा भीड़ जमा हो जाती है । ऐसी स्थिति में शारिरिक दूरी का पालन कैसे सुनिश्चित करवाया जाएगा इस पर विचार करना होगा, क्योंकि साधारण लॉक डॉउन में जरा सी ढील मिलते ही जो जनता अराजक और बेकाबू हो जाती है वो शराब दुकानों में कैसे अनुशासित रह पाएगी । दूसरे, शराब बिक्री में मोनोपली के चलते शराबियों को मनपसंद ब्रांड नहीं मिल पा रहा है । ये निश्चित रूप से शराबियों के साथ अन्याय है। जब बेचना ही है तो उस पर राशनिंग क्यों ?
पेश आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 35 फीसदी से अधिक लोग शराब पीते हैं और शराब दुकाने बहुत सीमित संख्या में हैं । छत्तीसगढ़ की आबादी 2.55 करोड़ है ऐसे में इतनी बड़ी तादात में शराबियों की डिमांड पूरी करने के लिए देसी विदेशी मिलाकर महज़ 700 दुकाने हैं । यदि आप गुणा भाग करें तो लगभग 8-10 हज़ार शराबियों के लिए एक दुकान , ये तो बहुत नाइंसाफी है । ऐसी स्थिति में दुकानों पर भीड़ उमड़ना स्वाभाविक है । इसका एक उपाय तो यह हो सकता है कि कोरोना संकट के दौर में यदि लॉक डॉउन की नई गाइड लाइन के मुताबिक शराब दुकाने खोली जाती हैं, जो तय है, तो दुकानों की संख्या बढ़ा दी जाए ताकि शारिरिक दूरी का पालन हो । सबसे बेहतर तो ये होगा कि जब शराब दुकाने खोलने जनता की इतनी जबरदस्त डिमांड है तो क्यों न शराब बिक्री ओपन कर दी जाए । हर चाय. पान यहां तक कि किराना दुकानों में भी शराब बिक्री की अनुमति दे दी जाए। इससे अवैध शराब बिक्री सहित मोनोपली. शराब माफिया जैसी बहुत सी परेशानियों से निजात मिल सकेगी और राजस्व में भी वृद्धि होगी । एक बार विचार कर देखिए ।
मै शराब बंदी का पूर्ण समर्थन करता हू, पिछले डेढ़ माह से शराब बंदी जैसा माहौल है | यह शराब बंदी के लिए एक उचित अवसर भी है किन्तु सरकार “जनता की मांग” की आड़ मे 4 मई से शराब दुकाने खोलने पर आमादा है ऐसा प्रतीत होता है जिसकी एक मात्र वजह राजस्व की हानि ही है | ऐसी परिस्थितियों मे यदि शराब दुकाने खुलती है तो अफरा तफरी मचना स्वाभाविक है | इस अफरा तफरी से बचाने के लिए सुझाव है की (1) शराब दुकानों पर सिर्फ बोतल ही बेचीं जावे | (2) जोमाटो, स्विगी आदि मे माध्यम से काम से काम दो बोतल की होम डिलीवरी की अनुमति दी जावे | (3) शराब दुकानों का प्रबंधन मेडिकल स्टोर आदि के लिए दिए जाने वाले अनुज्ञप्ति से सामान सुशिक्षित बे रोजगार और इच्छुक व्यक्तियों को शराब दुकान की अनुज्ञप्ति दे (जैसा की महाराष्ट्र सरकार ने किया है )कर बे रोजगारी की समस्या भी दूर कर सकती है | (4) शराब दुकानों मे शारीरिक दुरी बनाये रखने के लिए उचित पुलिस बल तैनात करें | (5) सरकार शराब के ब्रांड का एकाधिकार समाप्त कर मनचाहा ब्रांड उपलब्ध कराये |