यह वह मगध नहीं तुमने जिसे पढ़ा है – नथमल शर्मा

कोरोना विषाणुओं ने पूरी दुनिया को संकट में डाल दिया है । अपने शहर को भी इसी संकट में देख रहा हूँ । प्रकृति के साथ, अपने शहर के साथ खिलवाड़ करने की सज़ा भी है यह । अपनी अरपा को लगभग गंवा चुके हम लोग तो जैसे कुछ भी समझने को तैयार ही नहीं । बरसों से समझा रहे हैं, लेकिन हम हैं कि तरक्की के नशे में गाफ़िल है और आज अपना शहर घरों में कैद है (जो जरूरी है इस संकट में ) इसी शहर के एक बेटे ने कहा था कि ‘यह वह मगध नहीं है ‘

              एक बहुत ही किनारे पर खड़े हैं श्रीकांत वर्मा । मुख्य डाक घर के बिलकुल सामने । वहीं से चार कदम की दूरी पर है बी आर यादव का घर । अब तो यादव जी रहे नहीं । उनके एक समीपी रिश्तेदार शहर के महापौर हैं । कभी पत्रकार रहे यादव जी को बी आर यादव बनाने में श्रीकांत वर्मा की भी खासी भूमिका रही । विकास की दौड़ में भाग रहे शहर में अब शायद ही किसी को फुरसत हो कि श्रीकांत वर्मा की प्रतिमा के पास दो पल के लिए रूक जाएं । इस शहर में एक अफसर कवि पिछले दिनों कमिश्नर रहे और एक साहित्यकार इन दिनों कलेक्टर हैं । छत्तीसगढ़ भवन के बाहर खड़े हैं श्रीकांत वर्मा । वीवीआईपी के आने पर भवन की चारदीवारी को पर्दे लगाकर ऊंचा करवा देते हैं पुलिस अफसर । तब पीछे से दिखते नहीं मगध के रचयिता । यूं तो सामने से गुजर जाने वालों को भी नहीं दिख पाते श्रीकांत । 

           अपने सूनसान शहर में जहां अभी कुछ दिनों पहले तक बेहद शोर था । सामने डाक घर में किसी लिफ़ाफ़े पर टिकट चिपकाते , किसी अपने को चिट्ठी भेजते लोग भी तो अब नहीं रहे । अब तो परदेस तक भी वीडियो काल कर लेते हैं सब । इसी डाक घर में कभी बहुत चिट्ठियां आया करती थी । श्रीकांत वर्मा के लिए भी , बी आर यादव और पूरे शहर के ही लिए । अब तो कोई कुछ नहीं भेजता । श्रीकांत वर्मा होते तो इस नहीं भेजने के दु:ख पर भी कुछ लिखते । वे तो अपनी अरपा को और अपने शहर को याद करते रहे । जहां भी रहे । मगध लिख कर तो कभी दोस्तों की बातें लिख कर । कोरोना विषाणुओं  से सूने हुए शहर का दिल तो न जाने कब से ही श्रीकांत वर्मा के लिए सूना सूना सा ही है । एक बेहतर कवि , साहसी पत्रकार होने के साथ ही क्या राजनीति में रम जाना हमें रास नहीं आया ? छत्तीसगढ़ बने बीस बरस हो गए । श्रीकांत वर्मा पर एक ढंग का आयोजन नहीं हो सका । कैसे उम्मीद करें कि नई पीढ़ी अपने इस साहित्यकार पुरखे को जान पाएगी । दिनमान के संवाददाता रहते हुए श्रीकांत वर्मा ने देश दुनिया पर न जाने कितनी रिपोर्ट्स की । कविताएँ रची । हिंदी साहित्य की दुनिया में बड़ा नाम है । अरपा पर या बिलासपुर पर भले ही वे रपट न किए , लेकिन बिलासपुर को रचते रहे । उस समय अरपा तो कलकल बह रही थी । 

     अब तो तो कोरोना विषाणुओं से डरे और सूने शहर में सब कुछ शांत है । कुछ दिनों बाद आएंगे लोग फिर बाहर । प्रकृति के इस इशारे को शायद ही समझ पाएंगे । इन दिनों तो सब घरों में है और रामायण,महाभारत, व्योमकेश बख़्शी, चाणक्य के साथ रमे हुए हैं । या फिर रोटियां बांट रहे हैं । हर शहर की तरह यहां भी लोगों को मास्क , सेनिटाइजर नहीं मिलते । डाक्टरों,नर्सों, सफ़ाई कर्मियों को पीपीई नहीं मिल रहे पर्याप्त । दूरियों के बीच रहते हुए अपनेपन से दूर न हो जाएं कहीं । इसे भी याद रखने का समय है । थोड़ा खुद के भीतर झांक लेने , चिंतन भी तो कर लेने का समय है ये अरपा के लिए कुछ बेहतर सोच लेने का समय भी । श्रीकांत वर्मा को भी और अपने शहर के सपूतों को भी याद करने का समय है ये । याद करते एक सड़क कर दी उनके नाम पर । इतने बड़े साहित्यकार के नाम पर किसी ऑडिटोरियम का नाम कैसे रखते भला ? वह तो पितृपुरूष के लिए ही ठीक होता है । हालांकि इन्हें कभी भूलना ही नहीं चाहिए लेकिन हम तो तरक्की की दौड़ में अंधे हुए दौड़ते रहे न सूखती अरपा की तरफ देखे और न ही जाम होते जवाली नाले को देख सके । प्रकृति के इशारे भी न समझ सके । आखिर कोरोना विषाणुओं ने जब सब कुछ बंद कर दिया है, सबको घरों में कैद कर दिया है तब तो समझें । शायद नहीं समझेंगे क्योंकि नहीं समझना हमारी फ़ितरत में आ गया है । दूर बहुत दूर सात समंदर पार अमरीका गए थे श्रीकांत वर्मा,अपना इलाज कराने । न्यूयार्क में ही आखिरी सांसे ली । वह न्यूयॉर्क भी कोरोना की चपेट में है । जाने से पहले लिख गए थे श्रीकांत वर्मा:- 

    तुम भी तो 

    मगध को ढूंढ रहे हो

    बंधुओं 

    यह वह मगध नहीं 

    तुमने जिसे पढ़ा है 

   किताबों में 

   यह वह मगध है

   जिसे तुम

   मेरी तरह गंवा चुके हो ।

              मगध लिखते हुए वे अपने बिलासपुर को याद कर रहे थे क्या ? अपने घरों में बैठे-बैठे कभी हम अपने बिलासपुर की बात कहते हैं क्या बच्चों से ? कोरोना के चले जाने के बाद कहेंगे  ? सूने शहर में घूमती दूध वालों की बाइकें और सायकिल, सब्ज़ी वालों की आवाज़ भी गूंज रही है । इस भयावह सन्नाटे में शोर के लिए तरस रहे हैं जैसे सब । 

(लेखक छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव एवं बिलासपुर से प्रकाशित दैनिक इवनिंग टाइम्स के प्रधान संपादक हैं ।)

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