सम्पादकीय

शेख़ इब्राहिम ‘ज़ौक़’: बहादुर शाह ज़फर का वो उस्ताद जिसके चलते कई लोग उन्हें शायर ही नहीं मानते

August 22, 2020

अनुराग भारद्वाज ज़ौक न तो शायरी में किसी से कम थे और न मुफ़लिसी में. पर उन्होंने न तो कभी ग़ालिब की तरह अपनी ग़ुर्बत का ढोल पीटा और न वजीफ़े के लिए हाथ-पैर मारे । ज़ौक़, यानी शेख़ मुहम्मद इब्राहिम ‘ज़ौक़’. जी, हां. वही, बहादुर शाह ज़फर के उस्ताद. उनके बारे में शायरी के […]

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कहानी: ढांचा – असग़र वजाहत

August 21, 2020

वह घर लौट कर आया तो कुछ अजीब सा लग रहा था। न उसने बच्चों से कोई बात की और न जमीला से कुछ बोला जो स्टोव पर खाना बना रही थी। किसी चीज़ की छीना झपटी पर बड़कू और मुनिया में लड़ाई हो गई । बड़कू मुनिया को मारने लगा लेकिन वह कुछ नहीं […]

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कोई बता सकता है स्वदेश दीपक का पता?

August 17, 2020

कविता 15 अगस्त स्वदेश दीपक का जन्मदिवस होता है। लेखन के शीर्ष पर पहुंचकर अचानक गुमनाम हो जाने और फिर उस गुमनामी से उबरकर कई यादगार रचनाएं देने वाले स्वदेश दीपक बीते 14 साल से लापता हैं ।उनके अपहृत किए जाने या मार दिए जाने के कोई सुराग आजतक नहीं मिल पाए हैं. एक संभावना […]

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कहानीः जाल – अण्णाभाऊ साठे

August 16, 2020

यह वर्ष अण्णाभाऊ साठे का जन्म शताब्दी वर्ष है। अण्णाभाऊ साठे न केवल एक माक्र्सवादी कार्यकर्ता थे, बल्कि एक प्रभावशाली लोककलाकार, संगठक और साहित्यकार भी थे। उन्होंने अपने बचपन से ही जातिगत ऊँच-नीच और आर्थिक-सामाजिक विषमता को बहुत गहराई से देखा और भोगा था। वे एक ऐसे माक्र्सवादी साहित्यकार हैं, जिनकी रचनाओं में जाति-वर्ग, दोनों […]

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कॉंग्रेस की दुविधाः गांधी के राम या जय सियाराम- जीवेश चौबे

August 10, 2020

गौ़रतलब है कि तब गांधी उम्र के उसी पड़ाव में थे जिसमें आज राहुल गांधी हैं । तब यानि 100 वर्ष पूर्व तिलक के ब्राह्मणवादी और संभ्रांतवादी विचारधारा के विपरीत गांधी कॉंग्रेस की कट्टरवादी धर्म, जाति, संप्रदाय और लिंग भेद की सारी रूढ़ियों को तोड़ नई प्रगतिशील विचारधारा को आत्मसात करते हैं। आज 100 वर्ष […]

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भीष्म साहनी जयंती 8 अगस्त पर उनकी कहानी- चीफ की दावत

August 7, 2020

प्रेमचंद की तरह भीष्म साहनी ने भी समाज को उसी बारीकी से देखा-समझा था लेकिन, यह प्रेमचंद से आगे का समाज था इसलिए उनकी लेखनी ने विरोधाभासों को ज्यादा पकड़ा ।उनकी जयंती 8 अगस्त पर पढ़ें उनकी कहानी- चीफ की दावत आज मिस्टर शामनाथ के घर चीफ की दावत थी। शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को […]

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अल्काजी: एक बड़े पर्दे का गिरना – मंगलेश डबराल

August 7, 2020

अल्काजी 95 वर्ष की भरपूर उम्र में दुनिया को छोड़ कर गए हैं। लेकिन जाना हमेशा के लिए एक विशाल नाट्य-दृश्य के पर्दे का गिरना है जो अब कभी खुलेगा नहीं।  ‘ऐसे किले जब टूटते हैं तो अन्दर से भरभराकर टूटते हैं!’ सन 1972 में जब यह वाक्य दिल्ली के पुराने किले के ऐतिहासिक अवशेषों […]

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प्रेमचंद 140 : क्या क्रांतिकारी हिंसा जीवन के प्रति प्रेम को जन्म देती है?- अपूर्वानंद

August 4, 2020

भारत में मुक्ति या क्रांति के नाम पर हिंसा की वैधता को लेकर तीखी बहस रही है। हिंसक क्रांति या विद्रोह का विचार घातक रूप से आकर्षक बना हुआ है। भारत में एक हीन भावना अंग्रेज़ों से मिली आज़ादी को लेकर भी है। उसे अहिंसक मानते ही वह किंचित् हीन हो उठती है। इसी कारण […]

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प्रेमचंद 140 – प्रेमचंद : भोलेपन की बादशाहत –अपूर्वानंद

July 31, 2020

आत्मा को उल्लास देना और सत्यदर्शी आँखों के लिए शिक्षा की सामग्री जुटाना, यह साहित्य का दायित्व है। सत्य की परिभाषा भी आसान नहीं। प्रेमचंद उसे सत्य नहीं मानते जो प्रेम और सुंदरता के भाव से ख़ाली हो।…प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर  ‘अज्ञेय की ‘शरणार्थी’ संग्रह की कहानी ‘बदला’ याद है?’ ‘मंदिर और […]

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प्रेमचंद- 140 : प्रेमचंद की ईद – अपूर्वानंद

July 25, 2020

हास्य अलग रस है भारतीय साहित्य शास्त्र में। हास्य-साहित्य की भी पूरी परंपरा है। हँसी एक तरह से आलोचना भी है। वह ताक़त के दावे को ख़ारिज करने का तरीक़ा है। ‘ईदगाह’ की याद इस प्रसंग में सहज ही आती है। प्रेमचंद का प्यारा हामिद हास्यपूर्ण युक्तियों का सहारा लेता है अपने दोस्तों से बदला […]

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