वह घर लौट कर आया तो कुछ अजीब सा लग रहा था। न उसने बच्चों से कोई बात की और न जमीला से कुछ बोला जो स्टोव पर खाना बना रही थी।
किसी चीज़ की छीना झपटी पर बड़कू और मुनिया में लड़ाई हो गई । बड़कू मुनिया को मारने लगा लेकिन वह कुछ नहीं बोला। जबकि ऐसे मौकों पर वह बड़कू के कान पकड़कर मरोड़ देता था और मुनिया को अपने अपनी गोद में बिठा लेता था।
मुनिया रोती रही और वह खाली खाली आंखों से कमरे को निहारता रहा। फर्श पर बिछे हुए गद्दे, अलगनी से लटकते कपड़े, ताक़ में रखे काग़ज़ के फूल, दीवार पर लगी मक्का मदीने की फोटो, छत से लटकता एक बल्ब- सब कुछ उसे नया लग रहा था जबकि कुछ भी नया न था।
– रोटी खा लो।’ जमीला ने उसकी तरफ देखे बिना कहा।
उसने जब कोई जवाब नहीं दिया तो जमीला ने उसकी तरफ देखा। वह बे पढ़ी-लिखी लेकिन समझदार औरत थी । देखते ही समझ गई कि दाल में कुछ काला है। उसके आदमी का चेहरा सफेद पड़ गया है।
– क्या हुआ? क्या बात है? क्या सेठ ने पैसा नहीं दिया?
– पैसा दिया है।’ उसने अपनी जेब से नोट निकालकर जमीला की तरफ हाथ बढ़ाया।
– तब क्या बात है? गिरवर भाई से कुछ कहा- सुनी हो गई क्या?’
जमीला को अच्छी तरह मालूम था कि कभी-कभी उसके आदमी और गिरवर भाई में कहा- सुनी हो जाती है।
– नहीं।’ उसने कहा।
जमीला की आंखें उसकी उदासी की वजह समझने की कोशिश करती रहीं लेकिन कुछ समझ में न आया।
रात जब बच्चे सो गए और दोनों लेटे तो जमीला ने फिर पूछा- आज कुछ न कुछ हुआ जरूर है।
काफी देर तक तो वह छुपाता रहा फिर बोला – सब कह रहे हैं, मैं ढांचा हो गया हूं ।
जमीला की आंखें हैरत से फट गईं।
उसने कहा, अरे अच्छे खासे गोश्त – पोस्त के आदमी हो। ढांचा कहां हो?
वह बोला, सब यही कह रहे हैं कि मैं ढांचा हूँ… आदमी नहीं…
– वह सब झूठ बोल रहे हैं।
– पता नहीं झूठ बोल रहे हैं कि सच बोल रहे हैं… पर वे मुझे ढांचा मानते हैं..
– यह तो बड़ी अजीब बात है… काम पर से निकालने का बहाना तो नहीं?
– नहीं ऐसा नहीं है।
– फिर?
– काम तो कहते हैं जितना कर सकते हो करो, पैसा लेते रहो…. पर तुम ढांचा हो… आदमी नहीं हो।
– कहने दो… उनके कहने से क्या होता है।
– कहते हैं तुम ढांचा हो तो तुम्हारी औरत भी ढांचा है, तुम्हारे बच्चे भी ढांचा हैं।
– वाह यह अच्छी रही…. उनके कहने से हम सब ढांचा हो जाएंगे?
जमीला से बातचीत करने के बाद उसे कुछ इत्मीनान हुआ और वह अच्छी नींद सोया।
अगले दिन सुबह उठा तो काम पर जाने से पहले ही बड़कू स्कूल से लौट आया ।
– क्या बात हो गई, स्कूल से क्यों भाग आया।’ उसे देखते ही जमीला चिल्लाई।
– भाग नहीं आया, निकाल दिया सर ने।
– क्यों क्या स्कूल का काम पूरा नहीं किया था?
– काम तो पूरा किया था।
– फिर क्यों निकाल दिया? कोई बदमाशी की होगी।
– नहीं कोई बदमाशी भी नहीं की ।
– फिर क्यों निकाल दिया सर ने ?
– कहा, तुम ढांचा हो… ढांचा पढ़ नहीं सकता।
उसे और जमीला को बड़ी हैरानी हुई। अभी कल तक तो बढ़कू स्कूल जाया करता था। अचानक ढांचा कैसे बन गया।
वह बड़कू के साथ स्कूल गया। सर जी से बात की तो सर जी ने यही कहा कि बड़कू तो ढांचा है। ढांचा कैसे पढ़ सकता है? बड़कू का नाम स्कूल से कट गया है।
वह तो काम पर चला गया पर जमीला मोहल्ले के वकील साहब के पास पहुंच गई और उन्हें पूरी बात बताई। कहा कि स्कूल पर मुकदमा कर दीजिए। उन्होंने मेरे बेटे का नाम काट दिया है।
वकील ने कहा, देखो ढांचा तो अदालत में जा नहीं सकता। तुम और तुम्हारा आदमी ढांचा हैं। ढांचे को न्याय मिलने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि वह आदमी ही नहीं है।
जमीला इलाके के एमएलए के पास गई और उन्हें पूरी बात बतायी। यह भी कहा कि हम आप को ही वोट देते हैं। हमारे साथ यह अन्याय हो रहा है। हमें ढांचा बताते हैं।
एमएलए ने कहा, देखो वोट देने वाली बात तो भूल जाओ। अब तुम लोग वोट नहीं दे पाओगे।
– क्यों?
– ढांचे वोट नहीं देते… वैसे मुझे तुमसे हमदर्दी है…. पर यह तुम्हारी गलती है कि तुम ढांचा बन गए।’
जमीला ने कहा, हमें क्या पता था कि हम ढांचा बन जाएंगे। हमसे पूछ कर तो किसी ने हमें ढांचा नहीं बनाया।’
एमएलए ने कहा, देखो पूछ कर ढांचे नहीं बनाए जाते। बाहरहाल अब तुम जाओ और ढांचा बन जाने से समझौता कर लो।’
जमीला घर आ गई। दोपहर को खाना वाना खाने के बाद मोहल्ले की औरतें आने लगीं। पड़ोसन ने कहा, बहिनी हमें बहुत दुख है कि तुमरा परिवार ढांचा बन गवा…
रामदीन की अम्मा बोली, बड़कू की अम्मा, कौनो बात होय तो बताना.. संकोच न करना..
– हम तो पड़ोसी हैं दीदी …..पड़ोसी का धर्म निभाएंगे.’ बच्चू सिंह की लड़की बोली।
जमीला की आंखों में आंसू आ गए । उसने धोती के कोने से आंसू पोछे और बोली, आप ही लोगों का तो सहारा है….
वह शाम को घर आया तो बहुत डरा हुआ था। कुछ लोगों से उसकी लड़ाई हो गई थी। सिर में चोट लगी थी ।
– वे लोग तो मुझे घेर कर मार डालना चाहते थे। कह रहे थे, ढांचे की हत्या पर कोई सज़ा नहीं मिलती….. ढांचा कोई आदमी थोड़ी है।
जमीला ने उसका सिर धोया तो लाल खून निकलने लगा।
जमीला ने कहा, देखो तुम्हारे तो खून निकल रहा है। तुम ढांचा कहां हो? ढांचा होते तो लाल लाल खून न निकलता।
अ.व. (20.08.2020)
सौज- असग़र वजाहत की फेसबुक वाल से
साज़िश को कुरेदती, निष्प्राण करनेवाली व्यवस्था कि सच्चाई उजागर करनेवाली कहानी।