इटली के उस अतीत से हमें भारत के वर्तमान और भविष्य को समझने में मदद मिल सकती है मुसोलिनी रोजगार और खुशहाली देने में नाकाम रहा. मोदी सरकार तो आर्थिक मोर्चे पर कहीं ज्यादा विफल रही है. बुरे तरीके से बनाई गई अव्यावहारिक नीतियों ने उस प्रगति का काफी हद तक नाश कर दिया है […]
Read Moreअरविंद मोहन जहां अमेरिका ने अपनी जीडीपी का 20 फीसदी राहत पैकेज घोषित किया वहीं, अपने यहां लगभग डेढ़ फीसदी की घोषणा भर हुई और उसमें से भी लघु और सूक्ष्म उद्यमों को कुछ सीधा लाभ हो सकता था पर सब के लिए यह बीस-इक्कीस लाख करोड़ का आर्थिक पैकेजझुनझुना बनकर ही रह गया है। […]
Read Moreअव्यक्त भूदान आंदोलन के सिलसिले में कश्मीर के गांव-कस्बों की यात्रा कर चुके विनोबा का कहना था कि राजनीतिक और सांप्रदायिक तौर-तरीके इस सूबे की समस्या का हल नहीं दे सकते. शेख अब्दुल्ला जेल से रिहा होकर 3 मई, 1964 को विनोबा से मिले. दोनों के बीच खुलकर कश्मीर से जुड़े हर पहलू पर बातचीत […]
Read Moreमुक्तिबोध ने कहा था कि ज़िंदगी मुश्किल है लेकिन इतनी मीठी कि जी चाहता है, एक घूंट में पी जाएं. उनका यह वाक्य ही उन्हें समझने के लिए दिए का काम कर सकता है. मुक्तिबोध का ज़िक्र आते ही ‘अंधेरे में’ की याद आती है. इस वजह से अंधेरापन मुक्तिबोध को परिभाषित करने वाले प्रत्यय […]
Read Moreजावेद अनीस करीब 34 साल बाद देश को नयी शिक्षा नीति मिली है जो कि आगामी कम से कम दो दशकों तक शिक्षा के रोडमैप की तरह होगी. यह नीति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे देश की पहली पूर्ण बहुमत वाली हिन्दुत्ववादी सरकार द्वारा लाया गया है जिसने इसे बनाने में एक लंबा समय […]
Read Moreचंदन शर्मा देश के न्यायिक इतिहास में दिलचस्पी रखने वाला शायद ही कोई हो जो केशवानंद भारती का नाम न जानता हो. 24 अप्रैल, 1973 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य’ के मामले में दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले के चलते कोर्ट-कचहरी की दुनिया में वे लगभग अमर हो गए.केशवानंद भारती मामले […]
Read Moreअमेरिका में बाइडेन को लेकर ऊहापोह का हवाला दबाशी के लेख में है। नोम चोम्स्की, अंजेला डेविस, कोर्नेल वेस्ट जैसे विचारक कह रहे हैं कि ट्रम्प अमरीका की आत्मा को ही खा डालेगा, इसलिए बाइडेन को चुन लिया जाना चाहिए। बाइडेन भी नस्लवादी हैं, वे फ़िलीस्तीन की आज़ादी के ख़िलाफ़ एक ज़ियानवादी नज़रियेवाले राजनेता हैं […]
Read More“बिजनेस के तौर-तरीकों ने जनता के बीच मीडिया की साख पर सवाल खड़े किए” ।सवाल है कि मीडिया की भूमिका क्या होगी। मुनाफा कमाना उसकी जरूरत है या फिर जनता से जुड़े मुद्दे उठाना। बिजनेस के तौर-तरीकों ने मीडिया की साख पर सवाल खड़े कर दिए। शुरुआत में साख का डगमगाना सत्ता की चकाचौंध में […]
Read Moreचौरी चौरा के बाद आन्दोलन वापस लेना और अपने लोगों की हिंसा की आलोचना करना गाँधी के ही बस की बात थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी हिंसा के विरोध में पिछले कुछ वर्षों में कुछ कहा हो, याद नहीं आता! फिर सर्वोच्च न्यायालय में गाँधी का नामजाप क्यों? गए हफ़्ते हमने क्षमा के […]
Read Moreरोशन पाण्डेय किसी भी मुल्क के सामाजिक-आर्थिक विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 2015 में एक प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में 17 सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals) की बात किया गया है जिसे 2030 तक पूरा करना है। इसमें चौथा लक्ष्य है सबको मुफ्त […]
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