नागरिकता को लेकर भारत के आम लोगों के बीच चार मशहूर बुद्धिजीवियों ने भारत में नागरिकता का गठन करने वाले उन प्रमुख पहलुओं का गहराई से अध्ययन किया है, जो हाल ही में सत्ता पर काबिज सरकार के विवादास्पद फ़ैसलों के चलते जनसामान्य के बीच तीग्र बहस का विषय रहा है। नागरिकता को लेकर भारत […]
Read Moreअपने बारे में जानकारियों को लेकर इतना संकोच क्यों? और क्या हम यह भी नहीं कहते रहे हैं कि हमें पारदर्शी होना चाहिए? वही अच्छा है जो बाहर और भीतर एक हो? हम ऐसा कुछ करें ही क्यों जिसे लेकर पर्दादारी करनी पड़े? निजता को लेकर दार्शनिक और क़ानूनी बहस होती रही है। मुझे मेरे व्यक्तित्व […]
Read Moreएजाज़ अशरफ़ यह सिर्फ राहुल गांधी, ममता बनर्जी, प्रशांत किशोर या पत्रकारों को फोन के माध्यम से ट्रैक किए जाने का मसला नहीं है। बल्कि चिंता इस बात की है कि दुनिया भर में कोई भी स्पाइवेयर की जासूसी/निगरानी से सुरक्षित नहीं है।यह बात संभव है कि भारत में जनता उन लोगों के नामों के […]
Read Moreगत 5 जुलाई 2021 को भारतीय मानवाधिकार आंदोलन ने अपना एक प्रतिबद्ध, सिद्धांतवादी और अथक योद्धा खो दिया. फॉदर स्टेनीलॉस लोरडूस्वामी, जो स्टेन स्वामी के नाम से लोकप्रिय थे, ने मुंबई के होली स्पिरिट अस्पताल में अंतिम सांस ली. जिस समय वे अपनी मृत्युशैया पर थे उस समय उनकी जमानत की याचिका पर अदालत में […]
Read Moreअनिल जैन योगी सरकार ने अपने अभी तक के कार्यकाल में आम तौर पर अपना हर कदम ध्रुवीकरण को ध्यान में रख कर ही उठाया है। जनसंख्या नियंत्रण कानून के जरिए भी वह यही करने जा रही है। इस काम में ढिंढोरची मीडिया भी उसका मददगार बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में पिछले साढ़े चार साल […]
Read Moreप्रेम कुमार क्या फ़ादर स्टैन स्वामी की मौत स्वाभाविक है? अगर फ़ादर स्टैन की गिरफ़्तारी नहीं हुई होती, वे अपने घर में होते तो क्या उनकी मौत होती? आखिर किस गुनाह के लिए वे अपने जीवन के अंतिम 217 दिन जेलों में रहे? न चार्जशीट दायर हुई, न ट्रायल हुआ। न समय पर इलाज मिला और […]
Read Moreप्रभात पटनायक ऐसा नहीं है कि पूंजीपतियों के दिलों में अचानक जनता के लिए बड़ा प्यार उमड़ आया है। बात सिर्फ इतनी है कि वे इतने जमीन पर रहने वाले तथा यथार्थवादी हैं कि वे इस सच्चाई को देख सकते हैं कि अर्थव्यवस्था में नयी जान डालने के लिए, जनता के हक में नकदी हस्तांतरण […]
Read Moreआज के भारत की तुलना एक दशक पहले के भारत से करने पर हैरानी होती है. लोकसभा (2014) में भाजपा के बहुमत हासिल करने से राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिदृश्य में प्रतिकूल परिवर्तन हुए हैं. देश के नागरिकों के एक बड़े हिस्से में व्यापक असंतोष के बाद भी पार्टी न केवल केन्द्र में सत्ता पर […]
Read Moreप्रबीर पुरकायस्थ वर्तमान आंकड़ों के अनुसार, अफ्रीका में 1 फीसद से भी कम लोगों का पूरी तरह से टीकाकरण हो पाया है और एशिया में 2.5 फीसद लोगों का, जबकि अमरीका तथा यूके के करीब 42 फीसद का। इस रफ्तार से अमीर देश तो अगले तीन से छ: महीने में अपनी पूरी आबादी का टीकाकरण […]
Read Moreप्रभात पटनायक टीके की कमी के चलते– एक बनावटी कमी जो निजी संपत्ति अधिकारों को बचाने के कारण से पैदा हुई है– एक वर्ग के लोगों की जिंदगी को दूसरे वर्ग के लोगों की ज़िंदगी के खिलाफ खड़ी कर दी गयी हैं। मौत के इस बढ़ते काफिले को एक ही तरीके से रोका जा सकता […]
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