आशुतोष कुमार सिंह राष्ट्र और इंसान की जीवन अवधि अमूमन अलग-अलग होती है। बावजूद इसके आज़ादी के 75 वर्ष के पास पहुँचे भारत राष्ट्र में अल्जाइमर रोग के लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं जो 75 वर्ष के इंसान में भी नहीं दिखता। उम्र से पहले बूढ़े होते भारतीय राष्ट्र में दिखते इस जनतांत्रिक रोग […]
Read Moreमुझे करण थापर की अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण के साथ एक चर्चा याद है। इस चर्चा में दोनों ही काफ़ी यक़ीन के साथ और उसमें अहंकार कम न था, कह रहे थे कि संसद सिर्फ़ 5 मिनट में उनके प्रस्ताव को क़ानून का दर्जा दे सकती है, बहस-मुबाहसे में वक़्त क्यों जाया करना! उनका […]
Read Moreअनिल जैन आज से क़रीब छह दशक पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के ही न्यायाधीश आनंद नारायण ने अपने एक फ़ैसले में लिखा था कि भारतीय पुलिस अपराधियों का एक संगठित गिरोह है। उत्तर प्रदेश में तमाम तरह के संगीन अपराधों में लगातार हो रही बढ़ोतरी के बावजूद सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर दावा करते […]
Read Moreधरना, जुलूस के ज़रिए आदिवासी उम्मीद कर सकते हैं कि शासन तक अपनी बात पहुँचा सकेंगे। लेकिन माओवादियों से ऐसी कोई आशा उन्हें नहीं है। वे वहाँ हुक्मउदूली की ग़लती नहीं कर सकते। माओवादियों का जनता से रिश्ता एक निरंकुश राज्य और जनता के रिश्ते जैसा है। फिर छत्तीसगढ़ से सीआरपीएफ़ के जवानों के मारे […]
Read Moreसरोजिनी बिष्ट उत्तर प्रदेश का ‘मिशन शक्ति’ हो या चार साल के कार्यकाल की किताब, महिला सुरक्षा को लेकर हक़ीक़त दावों से उलट ही है। केवल मार्च भर की ही बात करें तो अभी तक दर्जनों रेप, गैंगरेप की घटनाएं हमारे सामने आ चुकी हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 19 मार्च को अपने […]
Read Moreश्रेष्ठता हमेशा ही जल्दबाज होती है और स्वतंत्रता की बलि दे सकती है। एक क्या बीसियों प्रताप को कुर्बान किया जा सकता है जिससे अशोका को श्रेष्ठता के लिए सुरक्षित किया जा सके। प्रश्न यह है कि यह श्रेष्ठता है ही क्या चीज़? क्या यह एक ब्रांड है? अशोका यूनिवर्सिटी से प्रोफ़ेसर प्रताप भानु मेहता के […]
Read Moreबांग्लादेश के निर्माण के स्वर्ण जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कह कर सबको हैरान कर दिया कि ढाका की मुक्ति के सत्याग्रह में उन्होंने हिस्सा लिया था और इसके लिए वह जेल भी गए थे। हालाँकि प्रधानमंत्री के इस दावे पर भारत में लगातार सवाल खड़े होने शुरू […]
Read Moreसत्ता में आने के बाद संघीय सहकार जैसे चतुर शब्दों का जाप करने के बाद सरकार ने एक के बाद एक ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे संघीय भावना धीरे-धीरे क्षरित होती गई है। बीजेपी की “साम्राज्यवादी” और “विस्तारवादी” विचारधारा हर प्रदेश को अपने उपनिवेश में बदल देना चाहती है। दिल्ली को पूरी तरह अपने अँगूठे […]
Read Moreरविकान्त ‘मुझे फाँसी हो जाने के बाद मेरे क्रांतिकारी विचारों की सुगंध हमारे इस मनोहर देश के वातावरण में व्याप्त हो जाएगी। वह नौजवानों को मदहोश करेगी और वे आज़ादी और क्रांति के लिए पागल हो उठेंगे। नौजवानों का यह पागलपन ही ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को विनाश के कगार पर पहुँचा देगा। यह मेरा दृढ़ विश्वास […]
Read Moreअरविंद मोहन अनेक अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने जब आर्थिक कामकाज और प्रदर्शन पर भारत की रेटिंग गिरानी शुरू की तो इस बार संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में बाजाप्ता इस बात की शिकायत की गई है कि हमारी आर्थिक स्थिति जैसी है वह बाहर की रेटिंग में क्यों प्रदर्शित नहीं होती। कई लोग मानते हैं […]
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