राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा “हमारी दृढ़ राय है कि पुलिस द्वारा इन लोगों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज किए जाने के कारण वे निश्चित ही मानसिक रूप से परेशान और प्रताड़ित हुए हैं और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है. छत्तीसगढ़ सरकार को इसका मुआवजा देना चाहिए. अतः मुख्य सचिव के जरिये छत्तीसगढ़ सरकार को हम सिफारिश करते हैं और निर्देश देते हैं कि प्रो. नंदिनी सुंदर, सुश्री अर्चना प्रसाद, श्री विनीत तिवारी, श्री संजय पराते, सुश्री मंजू और श्री मंगला राम कर्मा को, जिनके मानवाधिकारों का छत्तीसगढ़ पुलिस ने बुरी तरह उल्लंघन किया है, को एक-एक लाख रूपये का मुआवजा दिया जाए.”
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर समेत अन्य सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर झूठे मुक़दमे दर्ज करने के लिए एक-एक लाख रूपये मुआवजा देने का निर्देश छत्तीसगढ़ सरकार को दिया है. मानवाधिकार आयोग ने डीयू की प्रो. नंदिनी सुंदर, जेएनयू की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, साहित्यकार विनीत तिवारी, छत्तीसगढ़ सीपीएम के सचिव संजय पराते, सीपीआई नेता मंजू कोवासी और मंगला राम कर्मा को एक-एक लाख रूपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा कि पुलिस द्वारा इन लोगों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज किए जाने से वे निश्चित ही मानसिक रूप से परेशान और प्रताड़ित हुए हैं और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है. इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार को इसका मुआवजा देना चाहिए. आयोग ने ऐसा ही मुआवजा देने का निर्देश तेलंगाना के अधिवक्ताओं के जांच दल के लिए भी दिया है, जिन्हें करीब सात महीने सुकमा जेल में बिताने के बाद सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था.
मानवाधिकार आयोग के फैसले के बाद प्रो. नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते, मंजू और मंगला राम का संयुक्त बयान-
5 नवम्बर 2016 को छत्तीसगढ़ पुलिस ने हम लोगों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं, आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत सुकमा जिले के नामा गांव के शामनाथ बघेल नामक किसी व्यक्ति की हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज किया था. बताया जाता है कि यह मामला शामनाथ की विधवा विमला बघेल की लिखित शिकायत पर दर्ज किया गया था. बहरहाल, इसके प्रमाण हैं कि अपनी शिकायत में उसने हम में से किसी का भी नाम नहीं लिया था.
15 नवम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ़्तारी से हमें संरक्षण दिया था. चूंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले की जांच करने या इसके खात्मे के लिए कोई कदम नहीं उठाया, हमने वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मामले की जांच की और हत्या के मामले में हमारा कोई हाथ न पाए जाने पर फरवरी 2019 में अपना आरोप वापस लेते हुए एफआईआर से हमारा नाम हटा लिया था. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले को अपने संज्ञान में लिया था और पुलिस द्वारा हमारे पुतले जलाए जाने और “अबकी बार बस्तर में घुसने पर पत्थरों से मारे जाने” की आईजी कल्लूरी की धमकी को नोट किया था.”
छत्तीसगढ़ पुलिस के द्वारा हमारे खिलाफ कोई मामला न होने की स्वीकृति को देखते हुए फरवरी 2020 में आयोग ने नोट किया था कि :
“हमारी दृढ़ राय है कि पुलिस द्वारा इन लोगों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज किए जाने के कारण वे निश्चित ही मानसिक रूप से परेशान और प्रताड़ित हुए हैं और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है. छत्तीसगढ़ सरकार को इसका मुआवजा देना चाहिए. अतः मुख्य सचिव के जरिये छत्तीसगढ़ सरकार को हम सिफारिश करते हैं और निर्देश देते हैं कि प्रो. नंदिनी सुंदर, सुश्री अर्चना प्रसाद, श्री विनीत तिवारी, श्री संजय पराते, सुश्री मंजू और श्री मंगला राम कर्मा को, जिनके मानवाधिकारों का छत्तीसगढ़ पुलिस ने बुरी तरह उल्लंघन किया है, को एक-एक लाख रूपये का मुआवजा दिया जाए.”
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ऐसा ही मुआवजा देने का निर्देश तेलंगाना के अधिवक्ताओं की एक तथ्यान्वेषी दल के लिए भी दिया है, जिन्हें लगभग सात माह सुकमा जेल में बिताने के बाद सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था.
हम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेश का स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि हमें जो मानसिक प्रताड़ना पहुंची है और हमारी प्रतिष्ठा को जो ठेस पहुंची है, उसकी भरपाई के लिए छत्तीसगढ़ सरकार तुरंत कार्यवाही करेगी.
हम यह भी आशा करते हैं कि हम लोगों पर झूठे आरोप पत्र दाखिल करने वाले जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों, ख़ास तौर से तत्कालीन बस्तर आईजी कल्लूरी के खिलाफ जांच की जायेगी और उन पर मुकदमा चलाया जाएगा. श्रीमान कल्लूरी के नेतृत्व में चलाये गए सलवा जुडूम अभियान और उनके मातहत काम कर रहे एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारियों) को वर्ष 2011 में ताड़मेटला, तिमापुरम और मोरपल्ली गांवों में आगजनी करने और स्वामी अग्निवेश पर जानलेवा हमले का सीबीआइ द्वारा दोषी पाए जाने के तुरंत बाद ही हम लोगों के खिलाफ ये झूठे आरोप मढ़े गए थे.
यह दुखद है कि वर्ष 2008 की मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों और सुप्रीम कोर्ट के लगातार निर्देशों के बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार ने उन हजारों ग्रामीणों को कोई मुआवजा नहीं दिया है, जिनके घरों को सलवा जुडूम अभियान में जलाया गया है और न ही बलात्कार और हत्याओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर आज तक कोई मुकदमा ही चलाया गया है.
छत्तीसगढ़ के सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामलों को उठाने और आयोग के इस आदेश से हमें अवगत कराने के लिये हम पीयूसीएल के प्रति आभार प्रकट करते हैं. यह बहुत ही निराशाजनक है कि पीयूसीएल की सचिव और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, जिन्होंने छत्तीसगढ़ के ऐसे सभी मामलों को खुद उठाया है, आज झूठे आरोपों में गिरफ्तार हैं. हमें विश्वास है कि सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को, जिन्हें गलत तरीके से आरोपित किया गया है, न्याय मिलेगा.
(नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते, मंजू कोवासी और मंगला राम कर्मा द्वारा संयुक्त रूप से जारी )