एश्वर्या राज
मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी का यह जन्म शताब्दी वर्ष है ।सितारा देवी के पिता संस्कृत और नाट्यशास्त्र के विद्वान सुखदेव महाराज थे और उनकी मां मत्स्या कुमार का नाता नेपाल के राजघराने से था। उनकी पैदाइश कलकत्ता की है। उनका असली नाम धनलक्ष्मी था। सुखदेव महाराज ने उनकी प्रतिभा के अनुसार एक नया नाम रखने का सोचा। दस साल की उम्र में उनका नाम बदल कर ‘सितारा देवी’ किया गया।
भारत में नृत्य कला की वैसे तो बहुत विधाएं हैं लेकिन शास्त्रीय नृत्य का अपना एक महवपूर्ण स्थान है। ‘कथक’ शास्त्रीय नृत्य की एक अभिन्न शैली है। बीसवीं शताब्दी में इस शैली को भारत और विश्वभर में ख्याति दिलाने में नृत्यांगना सितारा देवी की भूमिका अहम रही। वह बनारस और लखनऊ घरानों की नृत्य कला के मिश्रण को अपनी प्रस्तुति में समेटने के लिए जानी जाती थी। आठ नवंबर, 1920 को जन्मी सितारा देवी के पिता संस्कृत और नाट्यशास्त्र के विद्वान सुखदेव महाराज थे और उनकी मां मत्स्या कुमार का नाता नेपाल के राजघराने से था। उनकी पैदाइश कलकत्ता की है। उनका असली नाम धनलक्ष्मी था। एक नाटक जो पौराणिक कथा के पात्र सावित्री और सत्यभान के जीवन पर बुना था उसमें घनलक्ष्मी ने काम किया था। उस नृत्य आधारित ड्रामा में “धन्नो” का काम और दर्शकों की तरफ़ से आई वाहवाही देखकर सुखदेव महाराज ने उनकी प्रतिभा के अनुसार एक नया नाम रखने का सोचा। दस साल की उम्र में उनका नाम बदल कर ‘सितारा देवी’ किया गया। सुखदेव महाराज की नाट्यशास्त्र में गहरी रुचि के कारण उन्होंने इस कला से अपनी तीनों बेटियों और दोनों बेटों का परिचय करवाया।
सितारा देवी के पिता बनारस घराने के गुरु थे, उन्होंने पिता से तांडव और लास्य का ज्ञान लिया। वे हमेशा इस कला के प्रति सितारा को प्रेरित करते थे। ‘द हिन्दू’ को दिए एक साक्षात्कार में सितारा ने कहा था, “लोग हमारे घर से आती घुंघरू की आवाज़ सुनकर आशंकित रहते थे क्योंकि घुंघरू केवल तवायफें पहनती थीं। मेरे पिता का फैसला था कि उनकी बेटियां घर के काम और बर्तन धोने तक सीमित नहीं रहेंगी।” जब वे आठ साल की हुई तब बाल-विवाह की प्रथा के कारण उनकी शादी तय कर दी गई। तब उन्होंने इस सामाजिक प्रथा को चुनौती दी और शादी करने की जगह अपनी पढ़ाई जारी रखने की इच्छा ज़ाहिर की।
सितारा देवी ने अपनी पहली एकल प्रस्तुति दस साल की उम्र में की थी। उन्होंने लखनऊ के तीनों घरानों के गुरुओं से नृत्य सीखा, अच्छन महाराज, लछु महाराज, संभु महाराज से। नृत्य के लिए अपने जुनून और लगाव के कारण उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और अपना पूरा समय इस कला को समर्पित कर दिया। बंबई (अब मुंबई) की अतिया बेगम के महल में सितारा की नृत्य कला देखकर रबिन्द्र नाथ ठाकुर ने उन्हें टाटा ग्रुप के टाटा महल में प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया था। वहां उन्होंने ने सितारा देवी को ‘नृत्य समरागिनी’ की उपाधि दी थी। ठाकुर जी द्वारा दिए जा रहे पचास रुपये के ईनाम और दूसरे उपहारों को मना करते हुए सितारा ने केवल उनका आशीर्वाद मांगा था। उस कार्यक्रम में सरोजिनी नायडू भी मौजूद थी। तब सितारा की उम्र महज़ सोलह की रही होगी। वह पंडित बिरजू महाराज की भी शिष्या रह चुकी हैं।
सितारा देवी के बारे में बिरजू महाराज कहते हैं, “बुख़ार से तपती हुई वह मेरे सामने खड़ी थी, लेकिन उसे तो बस नृत्य सीखना था। वह वैसी ही थी। नाट्यशास्त्र सीखने में उसकी रुचि इतनी गहरी थी कि वह अपनी तबियत की फ़िक्र को पीछे रखती।”
साल 1930 में सितारा देवी बंबई आ गई थी। उनके नृत्य सीखने और सिखाने की प्रक्रिया जारी थी। एक बार कोरियोग्राफर, डायरेक्टर, निरंजन शर्मा किसी परफॉर्मेंस में उनकी कला से मुख़ातिब हुए और उन्हें अपनी फिल्म ‘उषा हरण’ में सितारा देवी को कास्ट कर लिया। साल 1940 से 1950 के बीच सितारा देवी कई फिल्मों का हिस्सा रहीं। महबूब खान की ‘रोटी’, ‘वंचन’, ‘नज़मा’, ‘नगीना’ में उन्हें देखा जा सकता है। हालांकि बाल कलाकार के रूप में वह पहले ‘औरत का दिल’ फ़िल्म में काम कर चुकी थीं। उन्होंने मधुबाला, काजोल, रेखा इत्यादि को फिल्मों के लिए कोरियोग्राफ भी किया। आख़िरी बार स्क्रीन पर उन्हें साल 1957 में ‘मदर इंडिया’ फ़िल्म में देखा गया। सितारा देवी ने कई बेहतरीन मंचों पर अपने प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीता है। साल 1967 में लंदन के प्रतिष्ठित रॉयल एल्बर्ट हॉल और न्यूयॉर्क के कैनेंगी हॉल के अलावा कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया है। उनकी भतीजी जयंती माला कहती हैं, “सितारा देवी न केवल कथक बल्कि भरतनाट्यम, लोक-नृत्य, रूसी बैले में भी माहिर नृत्यांगना थी। वे अपने विद्यार्थियों को अलग-अलग नृत्य विधाओं को अपनाने और सभी से कुछ न कुछ सीखकर अपनी पेशकश में उतराने को कहती थी।”
साल 1969 में सितारा देवी को संगीत नाट्य अकादमी अवॉर्ड से और साल 1973 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्हें ‘कालिदास सम्मान’ और ‘नृत्य निपुण सम्मान’ मिल जा चुका है। साल 2002 में जब उन्हें ‘पद्मभूषण’ दिए करने की घोषणा की गई तब सितारा देवी ने इसे ठुकरा दिया था। उनका मानना था कि उनका योगदान शास्त्रीय नृत्य जगह में बहुत बड़ा है इसलिए उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था, “मेरे परिवार की चार पीढ़ियां कथक को समाज में बचाए रखने के लिए काम करती आई हैं। क्या सरकार को भारत में कथक को एक महत्वपूर्ण स्थान पर बनाए रखने में मेरे योगदान का नहीं पता हैं।” 94 की उम्र की सितारा देवी ने मुंबई के जसलोक अस्पताल में 25 नवंबर, 2014 में आख़री सांस ली। उनके सन्तानवें जन्मदिवस पर गूगल ने अपने अपने पेज़ पर उनके सम्मान में डूडल भी बनाया था।
सौज- एफआईआई