पटेल को थी नेहरू के अकेले पड़ जाने की चिंता

प्रीति सिंह

स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल की तिकड़ी क़रीब 30 साल तक बनी रही। महात्मा गाँधी स्वतंत्र भारत की सत्ता के भागीदार नहीं बने, लेकिन नेहरू और पटेल ने सरकार में पहले और दूसरे स्थान पर बैठकर दो वर्ष तक साथ-साथ सत्ता चलाई थी। दोनों के बीच वैचारिक टकराव की तरह-तरह की चर्चाएँ होती हैं, नीतियों को लेकर दोनों में मतभेद भी थे। लेकिन उनका आपसी प्रेम अंतिम समय तक बना रहा।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने जब सत्ता संभाली तो सरकारी प्रमाणपत्र की जन्मतिथि 31 अक्टूबर 1875 के मुताबिक़ वह 72 साल की उम्र पार कर चुके थे। एक मत यह भी था कि ज़्यादा उम्र होने के कारण उन्होंने प्रधानमंत्री पद को लेकर अनिच्छा जताई। उन्होंने भारत के एकीकरण का काम अपने हाथों में लिया और महज 2 साल के भीतर क़रीब 500 रजवाड़ों वाले महाद्वीप को एक देश के रूप में खड़ा कर दिया।

1950 में दिसंबर में दिल्ली की सर्दियों ने उन्हें हिला दिया। 5 दिसंबर को सरदार को अहसास हो गया कि वह अब जीवित नहीं बचेंगे। उनकी बेटी मणिबेन ने उस रात पटेल को नजीर की पंक्तियाँ गाते हुए सुना, ‘ज़िंदगी का ये तमाशा चंद रोज़।’ वह बिस्तर पर थे। देश के बड़े-बड़े नेता उनसे मिलने आते, लेकिन उन्हें यह अहसास हो चला था कि अब उनकी साँसें ख़त्म होने वाली हैं। 6 दिसंबर को भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद 10 मिनट तक उनके पास बैठे रहे, लेकिन पटेल इतने बीमार थे कि कुछ बोल नहीं सके।

चिकित्सकों की पूरी टीम पटेल की सेवा में लगी रही। आख़िरी कवायद जाने माने फिजीशियन और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री विधानचंद रॉय ने की। वह 8 दिसंबर को पटेल को देखने आए। पटेल ने उनसे पूछा,

रहना है कि जाना है।

रॉय ने जवाब दिया,

जाना ही होता तो मैं क्यों आया होता?’

लेकिन पटेल प्रभावित नहीं हुए। वह गुनगुनाए,

मारी नाद, तुम्हारे हाथ।

अगले दिन 9 दिसंबर को मणिबेन ने पटेल को कबीर की पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए सुना,

 ‘मन लागो मेरो यार फकीरी में।

घनश्यामदास बि़ड़ला मिलने आए तो उन्होंने पटेल को यह गुनगुनाते हुए सुना,

 मंगल मंदिर खोलो दयामय 

यह सुनकर मणिबेन के आँसू निकल पड़े।

फिजीशियनों की टीम, नाथू भाई पटेल और बंबई के डॉ. गिल्डर, दिल्ली के डॉ. ढंडा के नेतृत्व में इलाज कर रही थी, जो लंबे समय से उनकी स्वास्थ्य देखभाल करते थे।

10 दिसंबर को पटेल ने नाथूभाई से कहा, ‘मुझे इंजेक्शन मत दो। उससे मेरा पेट ख़राब हो जाता है।’ बाद में नाथूभाई पटेल ने उन दिनों को याद करते हुए कहा कि वह उस समय भीष्म की भूमिका में थे।

दिल्ली में कड़ाके की सर्दी थी। उस साल कंपा देने वाली ठंड थी। नाथू भाई को लगा कि अगर पटेल को थोड़ा बेहतर तापमान में मुंबई ले जाया जाए तो स्वास्थ्य के हिसाब से थोड़ा बेहतर रहेगा। नाथू भाई ने पटेल को बंबई ले जाने का फ़ैसला किया।

उसी रात नेहरू ने पटेल से बात की और कहा,

देखिए, हम लोगों को खुलकर बात करनी होगी। लेकिन आपको चिंता करने की बात नहीं है। आप अपना ध्यान रखें और जल्द तंदुरुस्त हों।

इसके एक दिन पहले पटेल ने अपने मित्र एनवी गाडगिल से कहा था- 

मैं अब ज़िंदा नहीं रहूँगा, मुझसे एक वादा करो।’ 

जब गाडगिल ने कहा- 

हाँ’ 

तब सरदार ने अपने मित्र गाडगिल का हाथ अपने हाथों में ले लिया और कहा –

पंडित जी से आपके चाहे जो मतभेद हों, उन्हें छोड़ना मत।

पटेल को बंबई ले जाने के लिए ख़ास इंतज़ाम किया गया। 12 दिसंबर की सुबह विलिंगडन एयरफील्ड में आईएएफ़ डकोटा पार्क हुआ। पटेल को विमान पर बिठाया गया। उस समय राजेंद्र प्रसाद, नेहरू, सीआर, गाडगिल, घनश्यामदास और मेनन मौजूद थे। पटेल ने दरवाजे से उदास मुस्कुराहट के साथ सबका अभिवादन किया। उनके साथ मणिबेन, डॉ. गिल्डर और डॉ. नाथू भाई भी विमान में सवार हुए। वह साढ़े चार घंटे तक आसमान में रहे।

मुंबई के सांताक्रूज हवाईअड्डे पर उन्हें देखने के लिए बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई। उन्हें तनाव से बचाने के लिए विमान को जुहू एयरोड्रम पर उतारा गया, जहाँ राज्य के मुख्यमंत्री बीजी खेर और मोरारजी देसाई उनकी अगवानी करने को खड़े थे। उन्हें राज्यपाल की कार से बिड़ला हाउस ले जाया गया।

मुंबई से पटेल का संबंध बहुत पुराना था, जहाँ वह गाँधी से जुड़ने से पहले अपनी पोशाक धुलने के लिए अहमदाबाद से भेजा करते थे। अहमदाबाद में कपड़ों की धुलाई पटेल को पसंद नहीं थी। वह महज 3 दिन मुंबई के गर्म वातावरण में रह सके। 

पटेल को 15 दिसंबर 1950 को सुबह हृदयाघात हुआ और 9 बजकर 37 मिनट पर उनकी मृत्यु हो गई। उस समय उनके पास मणिबेन, डाह्याभाई, भानुमती, विपिन, शंकर और रामेश्वरदास बिड़ला और बिड़ला परिवार के अन्य सदस्य मौजूद थे।

पटेल की मृत्यु पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने एक सप्ताह के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की। पटेल के अंतिम संस्कार की योजना गिरगांव चौपाटी पर बनाई गई, लेकिन उसे बदलकर सोनापुर कर दिया गया। उनकी पुत्री ने पटेल की इच्छा बताते हुए कहा कि वह चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार आम आदमी की तरह से उसी जगह पर हो, जहाँ उनकी पत्नी व भाई का अंतिम संस्कार हुआ था।

उनकी देह चिता में थी और राजेंद्र प्रसाद ने कहा – 

धरती की कोई भी अग्नि उनकी प्रसिद्धि को अपने भीतर समाहित नहीं कर सकती।

चक्रवर्ती राजागोपालाचारी ने कहा, 

प्रेरणा, साहस, विश्वास और ताक़त का मिश्रण थे सरदार।

मौलाना आज़ाद ने कहा-  

वीरता.. पहाड़ जैसी ऊँची, दृढ़ निश्चय… इस्पात सा मज़बूत।

और जवाहरलाल ने कहा था…

इतिहास उन्हें तमाम पृष्ठों में दर्ज करेगा और उन्हें नए भारत के निर्माता और भारत के एकीकरण के शिल्पी के रूप में याद किया जाएगा।

सौज- सत्यहिन्दीः लिंक नीचे दी गई है-

https://www.satyahindi.com/opinion/vallabhbhai-patel-and-jawaharlal-nehru-115366.html

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *