माता कौशल्या हो या राम, जन्मभूमि का मसला प्रमाण से ज्यादा आस्था का होता है – जीवेश चौबे

भूपेश बघेल सरकार की दूसरी वर्षगांठ पर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर द्वारा माता कौशल्या की जन्मभूमि पर विवाद खड़ा करने की कोशिश छत्तीसगढ़ियों की आस्था पर प्रश्न चिन्ह है। ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर दिए गए फैसले में साफ कहा कि जन्मभूमि करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा मसला है अतः इसे भौतिक प्रमाणों के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए। यही बात छत्तीसगढ़ में माता कौशल्या की जन्मभूमि पर भी लागू होती है। जब बात आस्था की हो तो प्रमाण और तथ्य कोई मायने नहीं रखते।

छत्तीसगढ़ में जबरदस्त बहुमत से सत्ता में आई कॉग्रेस सरकार की दूसरी वर्षगांठ हाल ही में बड़े जोरशोर से मनाई गई । विदित हो कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दूसरी वर्षगांठ के लिए माता कौशल्या की जन्मभूमि माने जाने वाले ग्राम चंदखुरी को चुना और तदनुसार योजना बनाई । प्रदेश भर में कॉग्रेस सरकार की दूसरी वर्षगांठ मुख्य मंत्री भूपेश बघेल और कॉग्रेस पार्टी ने छत्तीसगढ़ में चिन्हित राम वन गमन पथ पर विभन्न स्थानों से बाइक रैलियों का आयोजन कर माता कौशल्या की जन्मभूमि माने जाने वाले चंदखुरी में  समापन कर एक भव्य आयोजन के रूप में मनाई गई ।

राम पर अपना कापी राइट समझने के अंधविश्वास में भाजपा किसी अन्य के दखल से असहज हो जाती है। विशेषरूप से छत्तीसगढ़ में माता कौशल्या को केन्द्र में रखकर भाजपा के खिलाफ एक नया आख्यान खड़ा कर दिया गया है। मान्यता के अनुसार छत्तीसगढ़ राम का ननिहाल है और ऋषियों की तपोभूमि भी।

पूर्व मंत्री का बयान एक तरह से आस्था पर ही सवाल खड़े करता है। हालांकि अभी तक भाजपा ने आधिकारिक रूप से अजय चंद्राकर के बयान से पार्टी की सहमति और संलिप्तता घोषित नहीं की है। यह बात भी गौरतलब है कि भाजपा के 15 वर्षों के शासन के दौरान ही राम वन गमन पथ पर काम किया गया और उसे मान्यता प्रदान की गई । भाजपा का प्रदेश नेतृत्व निश्चित रूप से जन आस्था के सामने प्रमाण को प्राथमिकता देन की भूल आसानी से नहीं कर सकता। बाजपा जो खुद विगत कई चुनावों में लगातार आस्था के नाम पर वोटों का ध्रवीकरण और राजनीति करती आई है उसके लिए अजय चंद्राकर के बयान के साथ जाना नुकसान का सौदा साबित हो सकता है।    

15 साल सत्ता में रहने के बाद महज 15 सीटों पर सिमट गई भारतीय जनता पार्टी की पीड़ा समझी जा सकती है। इस बात पर भी ग़ौर किया जाना चाहिए कि लोक सभा चुनाव को छोड पिछले दो वर्षों के दौरान हुए प्रदेश के तमाम पंचायत एवं निकाय चुनावों में भी कॉग्रेस का प्रदर्शन बहुत शानदार रहा और भाजपा लगातार बिखरती चली गई । इन दो वर्षों के दौरान भाजपा भूपेश सरकार की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों का   संगठित एवं सुनियोजित काउंटर कर पाने में भी नाकामयाब रही। हर बार राजनैतिक जुमलेबाजी और आधारहीन वक्तव्यों ही देती रही जिससे जन भावनाओं पर कोई खास असर नहीं हो सका।

भाजपा के केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद से सत्य, तथ्य और प्रमाणो की राजनीति हाशिए पर धकेल दी गई है और आस्था और प्रत्यारोपित आख्यानों के बल पर येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करना और सत्ता में बने रहना ही राजनीति की पहचान बना दी गई है। इस खेल में जो बाजी मार ले वही सिकंदर होता है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने भाजपा द्वारा राम के नाम पर की जाने वाली राजनीति को बहुत होशियारी से अपने नियंत्रण में ले लिया है । भूपेश बघेल द्वारा धर्म के नाम पर की जाने वाली कट्टर सांप्रदायिक राजनीति के बरक्स गांघी के राम को खड़ा करने का यह उपक्रम भाजपा को किसी भी तरह पच नहीं पा रहा है।   मुख्य बात यह है कि विगत दो वर्षों के दौरान भाजपा एक सशक्त विपक्ष की भूमिका में खरी नहीं उतर सकी है। इन दो वर्षों में भाजपा किसी भी मुद्दे पर भूपेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने में सफल नहीं हो सकी है जिसके चलते आधारहीन और अनर्गल वक्तव्यों के बल पर अपनी उपस्थिति और अस्तित्व का अहसास कराने की लगातार कोशिशें करती रहती है। अगले हफ्ते विधान सभा सत्र होना है आशा की जानी चाहिए कि आगामी सत्र में इस अनर्गल और असंगत बयान को विशेष तवज्जो नहीं दी जाएगी और सत्र इस बयान की छाया से परे जन समस्याओं और जन सरोकारों पर केन्द्रित होगा।

2 thoughts on “माता कौशल्या हो या राम, जन्मभूमि का मसला प्रमाण से ज्यादा आस्था का होता है – जीवेश चौबे

  1. बहुत सुंदर विश्लेषण किया है। धन्यवाद और बधाई। सत्ता तो सभी का उद्देश्य है, यह तो सिद्ध हो ही गया है।

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