कोलकाता के एक पांच सितारा होटल में 11 फरवरी की शाम राहुल कंवल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का इंटरव्यू करने बैठे थे। उस इंटरव्यू का इंतजार सबसे ज्यादा बीजेपी को था, लेकिन जब इंटरव्यू खत्म हुआ तो आजतक इंडिया टुडे ग्रुप के मालिक अरुण पुरी का चेहरा उतरा हुआ था। राहुल कंवल झल्लाए हुए थे और ग्रुप के दूसरे मुलाजिम माथा पीट रहे थे।
ममता बनर्जी, राहुल कंवल और आजतक इंडिया टुडे वालों को पत्रकारिता का ट्यूशन पढ़ाकर चली गई थीं। 26 जनवरी को किसान की मौत पर एक ट्वीट के बाद से ही इंडिया टुडे ग्रुप के एक सेलिब्रिटी पत्रकार टीवी से पर्दे से गायब हैं। ममता बनर्जी ने उसी सिरे को पकड़ लिया था। उन्होंने पत्रकारों के सत्य के धरातल से गायब हो जाने का बुनियादी सवाल राहुल कंवल के सामने रख दिया, “राजदीप के केस में क्या हुआ बताओ। उसको तो हम 15 दिन से टीवी में नहीं देख रहे हैं। बताइए। उसको तो एडिटर्स गिल्ड भी क्रिटिसाइज़ किया है।”
ममता बनर्जी ने राहुल कंवल के सामने मीडिया के पूरे पेशेवर बर्ताव को बहुत सधे हुए अंदाज में निर्वस्त्र कर दिया। आपने देखा होगा, राजदीप सरदेसाई को खामोश कर देने के सवाल पर राहुल कंवल के चेहरे का रंग उड़ जाता है। ममता बनर्जी के एक वाजिब सवाल पर राहुल कंवल ने एक कॉरपोरेट शेयरहोल्डर की तरह बचकाना ढाल तैयार करने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा कि राजदीप अब भी इंडिया टुडे ग्रुप के साथ हैं, लेकिन डेढ़ सेकंड के भीतर ममता बनर्जी ने फिर से उनकी चालाकियों का नकाब नोच दिया, “हिस्सा है लेकिन आपलोग उन्हें बोलने नहीं देते। आवाज गुम कर दी। आवाज है लेकिन खामोश कर दिया। ये सबसे बड़ी सजा होती है। जो आप बोलते हैं अगर कल आपको बोलने नहीं दिया जाए तो आपका क्या होगा। बेचैनी होगी ना। आपके दिमाग पर क्या गुजरेगी। इस पर भी सोचिए।”
देश में पिछले कुछ वर्षों से अगर सबसे बड़ी चर्चा है तो वो है मीडिया की आजादी। राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल समेत विपक्ष के तमाम नेता, नागरिक संगठन, अल्पसंख्यक, अध्यापक और चिंतक इसे लेकर चिंता जताते रहे हैं। सरकार कहती है कि मीडिया में रामराज है क्योंकि बीजेपी के नेताओं के लिए, देश के सूचना प्रसारण मंत्री के लिए, गृह मंत्री के लिए, कपड़ा मंत्री के लिए, पार्टी के अध्यक्ष के लिए अर्णब गोस्वामी की स्वतंत्रता ही मीडिया की स्वतंत्रता का पर्याय है। न्यू नॉर्मल गढ़ने की कोशिश में मीडिया ने अपनी विश्वसनीयता को पान की पीक बना डाला है, लेकिन जो भयावह है वो यह कि इसकी छींटों के पीड़ित उम्मीद भी उसी से बांधकर बैठे हैं।
ममता बनर्जी नाराज नहीं होती हैं। वो बहुत बेचारगी के साथ कहती हैं कि “अगर मीडिया देश में नहीं रहेगा पावरफुल तो आम जनता की बात कौन करेगा? मीडिया अगर पावरफुल नहीं रहेगा तो अन्याय के खिलाफ न्याय कौन देगा? हमारे लोकतांत्रिक ढांचे में मीडिया और न्यायपालिका का मजबूत होना बहुत महत्त्वपूर्ण है।” लेकिन अगले ही पल वो अपनी जानी-पहचानी मुद्रा में आ जाती हैं। राहुल कंवल को पत्रकारिता पढ़ाने लगती हैं। अरुण पुरी हैरान। ममता ने कोलकाता से दिल्ली का सवाल उठा दिया था, “आज हमको बताइए दिल्ली दंगे में कितने लोगों की मौत हुई। आजतक किसी को पता है। हमको भी पता नहीं है। कोई सूचना ही नहीं है। सब गायब है। एजेंसी की दी सूचनाओं के अलावा।”
आजतक इंडिया टुडे पर इसका सीधा प्रसारण हो रहा था इसलिए ममता बनर्जी के साथ सवाल जवाब दुनिया के सामने आ गया वर्ना पता नहीं क्या होता। सोचिए तो यह कितने शर्म की बात है कि एक नेता को आजतक इंडिया टुडे जैसे देश के विशाल मीडिया घराने के मालिकों और मुलाजिमों को पत्रकारिता का ट्यूशन देना पड़ रहा है। जब ममता बनर्जी राहुल कंवल की बखिया उधेड़े हुए थीं तो आजतक इंडिया टुडे ग्रुप के बुजुर्ग मालिक अरुण पुरी कसमसा रहे थे। लेकिन वो करते भी क्या?
पिछले कुछ बरसों में जिस तरह से उन्होंने आजतक और इंडिया टुडे को बीजेपी, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, संघ के विचार और प्रचार का डस्टबिन बना दिया है उसमें एक न एक दिन तो ये होना ही था।
सवाल अकेले राजदीप सरदेसाई का नहीं है। सवाल पत्रकारिता के प्लेटफॉर्म्स को तटस्थता, सचाई और बुनियादी मापदंडों का बूचड़खाना बना देने का है। क्या वाकई अरुण पुरी या आजतक इंडिया टुडे वाले राजदीप सरदेसाई के किसी ट्रेनी की तरह पर्दे से गायब हो जाने या कर दिए जाने पर ममता बनर्जी की चिंताओं से शर्मिंदा महसूस कर रहे होंगे। क्या वाकई अरुण पुरी, राहुल कंवल या इस धंधे के दूसरे धंधेबाज इस बात पर शर्मिंदा महसूस कर रहे होंगे कि एक राजनेता उसे ट्यूशन दे रहा है कि मीडिया ही सत्ता के सामने हथियार डाल देगा तो जनता की बात कौन करेगा? क्या आजतक इंडिया टुडे के लोग इस बात पर शर्मिंदा होंगे कि एक नेता को कहना पड़ा “अगर आपके खिलाफ जबरदस्ती कुछ हो रहा है तो ऐसा नहीं है कि हम आपके साथ खड़े नहीं होंगे। हमलोग पूरा खड़े होंगे। और आपलोगों की मदद करेंगे। आपलोग सचाई के साथ लड़ें। आप लोगों के साथ नहीं खड़े होने से ये लोग अपनी मनमानी करते हैं।”
ममता बनर्जी ने इंडिया टुडे आजतक ग्रुप ही नहीं, नोएडा के फिल्म सिटी के अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को नैतिकता का चूरन चटा दिया है कि आपने इल बात को क्यों रिपोर्ट नहीं किया कि दिल्ली हिंसा में कितने लोगों की जान गई। क्यों आप सरकारी एजेंसियों के पिट्ठू की तरह बर्ताव करते रहे। जैसे आपकी अपनी कोई आत्मा नहीं, अपनी कोई नजर नहीं, अपना कोई नजरिया नहीं। क्या राहुल कंवल, अरुण पुरी या आजतक वालों को इसपर शर्म आई होगी?
ममता बनर्जी ने यहां तक कह दिया कि आप कैसे सवाल कर रहे हैं, क्या पूछ रहे हैं, क्या बता रहे हैं उसकी पॉलिटिक्स को हम अच्छी तरह समझते हैं। हमने आपातकाल का भी मीडिया देखा है, लेकिन वो लोग इस तरह न डरे हुए थे, न बिके हुए, और न ही मौकापरस्त। क्या फिल्म सिटी के एक्टर्स इस आश्वासन का मतलब समझते हैं कि यकीन कीजिए, आपके साथ कुछ होगा तो पूरा देश आपका साथ होगा? क्या आजतक-इंडिया टुडे वाले इस आश्वासन और उम्मीद का मतलब समझते हैं कि डरिए मत, बहादुर बनिए, आप अकेले नहीं हैं। क्या आजतक इंडिया टुडे वाले इस कलंक का मतलब समझते हैं कि जो संस्थान अपने पत्रकार की कलम तोड़ दे और आवाज छीन ले उससे ज्यादा अन्यायी कोई नहीं? राहुल कंवल जैसे लोग क्या ममता बनर्जी के इस सवाल का जवाब कभी दे पाएंगे कि एक स्वतंत्र देश में पत्रकार छोड़िए, एक आम नागरिक की आवाज छीन लेने पर पर भी उसके दिमाग में क्या चलता है?
ममता बनर्जी की चिंताओं को एक नेता का बयान बताकर हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के मुताबिक लोकतंत्र सूचकांक में हम 2014 से ही लगातार गिरते जा रहे हैं। 2014 में हम 167 देशों के सूचकांक में 27वें नंबर पर थे। 2019 आते-आते हम 24 अंक नीचे गिर गए। 51वें नंबर पर आ गए और 2020 में जब 6 साल से मोदी जी का स्वर्णकाल जारी है तो 27वें नंबर से गिरकर 53वें नंबर पर पहुंचे हैं। कुछ लोग 27वें से 53वें पर पहुंचने को भी मोदी जी का चमत्कार बता सकते हैं। 180 देशों के वर्ल्ड प्रेस फीडम इंडेक्स में हमारा नंबर 142वां है। अफगानिस्तान से भी पीछे। क्या हिंदी टीवी चैनलों के एक्टर इसका मतलब समझते हैं?
इसका जवाब हम भी जानते हैं और आप भी। यहां सलीब पर टांगे जाने से पहले यीशु ने जो कहा था उसे याद कीजिए। हे प्रभु, इन्हें माफ करना। ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। लेकिन हद तो ये है कि इन्हें सब पता है कि ये क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं।
सौजः न्यूजक्लिक
ममता बनर्जी मैडम ने सही सही कहा है की पत्रकारिता क्या होती है ।
पत्रकारीता जनता की आवाज़ होती है ।
पत्रकारीता का सही पाठ पढ़ाया
ममता बनर्जी मैडम ने सही सही कहा है की पत्रकारिता क्या होती है ।
पत्रकारीता जनता की आवाज़ होती है ।