कोरोना की वैक्सीन के इर्द-गिर्द लोगों में कई प्रकार की भ्रांतियाँ हैं। इन सभी भ्रांतियों से बचने के लिए कोरोना वैक्सीन से जुड़ी कुछ मूलभूत जानकारियों को जानना आवश्यक है। यह जानकारियां विश्व स्वास्थ्य संगठन के वेबसाइट से ली गई हैं।
कोरोना वैक्सीन को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। अब भी हमारे देश के ढेर सारे लोग इस वैक्सीन पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। तरह-तरह की अफवाहें उनके बीच मौजूद हैं जैसे कि कोरोना वैक्सीन लगाने पर लोग मर रहे हैं। इन सभी भ्रांतियों से बचने के लिए आइए कोरोना वैक्सीन से जुड़ी कुछ मूलभूत जानकारियों का हिस्सा बने। यह जानकारियां विश्व स्वास्थ्य संगठन के वेबसाइट से ली गई हैं। इन जानकारियों के बाद यह मुमकिन है कि वैक्सीन से जुड़ी ढेर सारी अफवाहें महज अफवाहें बनकर रह जाएं, हमें डराने का काम न करें।
– डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सुरक्षा और प्रभाविता के पैमाने के आधार पर covid -19 से जुड़े चार वैक्सीन उत्पादकों को लोगों के बीच इस्तेमाल करने की इजाजत दी है। इनमें शामिल हैं – एस्ट्रेजनेका/ऑक्सफोर्ड, जॉनसन एंड जॉनसन, मॉडर्ना, फाइजर/ बायोटेक। इसके अलावा कुछ राष्ट्रीय वैक्सीन रेगुलेटरों ने भी covid -19 से जुड़े कुछ वैक्सीन को अधिकृत तौर पर इस्तेमाल करने की इजाजत दी है।
भारत में इस्तेमाल हो रही Covishield को ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर डिवेलप किया है। कोवैक्सीन को भारतीय कंपनी भारत बायोटेक और आईसीएमआर ने विकसित किया है।
इस जानकारी को साझा करने का का मतलब यह है कि इनके अलावा अगर किसी भी तरह के वैक्सीन को बाजार में कोरोना की वैक्सीन बताकर बेचा जा रहा है तो उसे बिल्कुल न लिया जाए। उससे दूर रहा जाए। नागरिक की जिम्मेदारी निभाते हुए इसकी शिकायत की जाए।
– अगर Covid-19 हो चुका हो तब भी और ना हुआ हो तब भी जब बारी आए तब जल्द से जल्द जाकर वैक्सीन लगवा लेना बहुत जरूरी है। Covid – 19 से जुड़े वैक्सीन बिल्कुल सुरक्षित हैं। अगर डायबिटीज, हाइपरटेंशन, अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी नियंत्रित तौर पर शरीर के साथ बनी हुई है तब घबराने वाली कोई बात नहीं है उनके लिए भी वैक्सीन सुरक्षित है।
लेकिन अगर बीमारी का रूप गंभीर है और वह अनियंत्रित तरीके से शरीर से जुड़ी हुई है तो डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही वैक्सीन लेने की तरफ बढ़ना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को भी डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही वैक्सीन लेने या न लेने का फैसला करना चाहिए।
– कोविड-19 का टीका लेने के बाद 15 मिनट तक वहीं पर बैठे रहे। ताकि अगर कुछ अनियंत्रित प्रतिक्रियाएं शरीर पैदा करने लगे तो उसी समय इसका समाधान किया जा सके। पहली डोज लेने के बाद दूसरी डोज कब लगेगी इसकी जानकारी इकट्ठा कर लें।
-वैक्सीन लेने के बाद बहुत सारे लोगों को हल्का फुल्का बुखार, सर का भारीपन, थकान जैसा महसूस हो सकता है। इससे घबराने की जरूरत नहीं है। जब हमारे शरीर में वैक्सीन के जरिए एंटीबॉडी का निर्माण होता है तो हमारा शरीर उस तरह की प्रतिक्रियाएं देता है, इसी का परिणाम है कि शरीर हल्का फुल्का बुखार महसूस करवाने लगे। लेकिन अगर ऐसा कुछ नहीं भी होता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि शरीर एंटीबॉडी विकसित नहीं कर रहा, वैक्सीन काम नहीं कर रहा। सबके शरीर के अलग-अलग लक्षण होते हैं और सब उसी के मुताबिक प्रतिक्रिया देते हैं।
अगर वैक्सीन लगवाने के बाद लंबे समय तक बुखार या कोई दूसरी बीमारी शरीर के साथ बनी रहती है तब डॉक्टर से मिलना चाहिए। अगर कोविड-19 की पहली वैक्सीन की डोज लेने के बाद ही शरीर कुछ अनियंत्रित प्रतिक्रियाएं दे रहा है तो दूसरी डोज लेने से परहेज करना है। ऐसा बहुत ही कम लोगों में देखा गया है।
– यह बात बिल्कुल सही है की वैक्सीन लेने के बाद गंभीर बीमारी और मौत की संभावना बिल्कुल कम हो जाती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वैक्सीन लेने के बाद कोरोना के संक्रमण से बचने के दूसरे सभी उपाय नकार दिए जाएं। विज्ञान का यह मानना है कि भले वैक्सीन लेने के बाद गंभीर बीमारी और मौत की संभावना कम हो जाती हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शरीर को संक्रमण से छुटकारा मिल जाता है। शरीर कोरोना से संक्रमित हो सकता है। चूंकि संक्रमित होगा तो दूसरे को फैला भी सकता है। इसलिए सबसे जरूरी बात यह है कि कोरोना का वैक्सीन लगवा लेने के बाद खुले सांड की तरह नहीं घूमना है। सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर रखना है। मास्क लगाना है। हाथ धोना है और दूसरे उपाय भी अपनाते रहना है।
– गांव देहात के इलाके में चले जाइए तो एक अफवाह जोर से सुनाई देगा कि लोग वैक्सीन लगाने के बाद मर जा रहे हैं। यह महज अफवाह के सिवाय और कुछ भी नहीं है। बेसिक बात यह है कि वैक्सीन लोगों के बीच इस्तेमाल होने से पहले कई चरणों में कई तरह के परीक्षाओं और स्वतंत्र परीक्षकों की निगरानी से होकर गुजरती है। लाखों लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है। तब जाकर इसे वैक्सीन के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाजत मिलती है। यह सब इसलिए किया जाता है ताकि लोगों के बीच ऐसी वैक्सीन ना चली जाए जिसके फायदे कम और नुकसान ज्यादा हो। वैक्सीन बनने की पूरी प्रक्रिया पर न्यूज़क्लिक में तौर पर कई आर्टिकल छपे चुके हैं।
– वैक्सीन को लेकर यह भी अफवाह फैला है कि जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं वह वैक्सीन ना ले। जबकि हकीकत यह है की लाखों लोगों पर वैक्सीन परीक्षण एक ही ढंग के लोगों पर नहीं किया जाता बल्कि उसमें सभी प्रकृति के लोग शामिल होते हैं। कई तरह के गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोग शामिल होते हैं। कई इलाकों में बसे लोग शामिल होते हैं। मर्द – औरत सहित सभी उम्र के लोग शामिल होते हैं। इस तरह से जितनी भी श्रेणियां बन सकती हैं, उन सभी श्रेणियों के तहत लोगों को परीक्षण में शामिल किया जाता है। तब जाकर वैक्सीन बनने की पूरी प्रक्रिया पूरी होती है। इसलिए यह कहना महज भ्रम फैलाने के सिवाय और कुछ भी नहीं है कि जो ब्लड प्रेशर, डायबिटीज,अस्थमा जैसी बीमारियों से ग्रसित है, उन्हें वैक्सीन नहीं लेना चाहिए। हालांकि अगर बीमारी और शरीर के बीच सही ढंग का तालमेल न हो और बीमारी अनियंत्रित हो चुकी, हो तब डॉक्टर की सलाह लेकर ही कदम उठाना चाहिए।
-जो कोरोना से एक बार ग्रसित हो चुके हैं उनमें से कईयों के लगता है कि उनके शरीर में कोरोना से लड़ने के लिए जरूरी इम्यून सिस्टम बन गया है। इसलिए उन्हें वैक्सीन लेने की जरूरत नहीं है। यह बात बिल्कुल ठीक है कि कोरोना से एक बार ग्रसित होकर बच जाने के बाद शरीर इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा तंत्र विकसित कर लेता है। लेकिन वैज्ञानिक इस पर अध्ययन कर रहे हैं। कई मामले ऐसे देखे गए हैं जिन्हें पहली बार कोरोना होने के बाद फिर से कोरोना हो गया। इसलिए वैज्ञानिकों का सुझाव है कि जिन्हें कोरोना हो चुका है और कोरोना नहीं हुआ है, उन सब को वैक्सीन लेने की जरूरत है। कोरोना वैक्सीन लेने के बाद शरीर संक्रमण के दायरे से ज्यादा सुरक्षित रहता है।
– कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लेने के बाद दूसरी डोज लेना जरूरी है। पहली डोज शरीर में एंटीजन यानी उस प्रोटीन का निर्माण करती है जिसकी वजह से शरीर के अंदर एंटीबॉडी बनता है। दूसरी डोज शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम की मेमोरी को कोरोना के खिलाफ मजबूत कर शरीर को और अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अभी तक का सुझाव यह है कि वैक्सीन के लिए जिस कंपनी की पहली डोज इस्तेमाल की गई हो, उसी कंपनी की दूसरी डोज भी इस्तेमाल की जाए। इस बिंदु पर आगे भी सुझाव आते रहेंगे।
– कोरोना वायरस के म्यूटेशन को लेकर भी चिंता है। अगर सरल शब्दों में समझें तो म्यूटेशन का मतलब यह है कि वायरस की प्रकृति में बदलाव। जब वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति से होते हुए कई इलाकों की बहुत बड़ी आबादी में फैलता है तो इसकी प्रकृति भी बदलती रहती है। यह ठीक वैसा ही नहीं होता जैसा की ओरिजिनल वायरस था। इसे ही वायरस का वेरिएंट कहा जाता है। इसको लेकर चिंता है कि अगर वायरस की प्रकृति बदलेगी तो क्या उस पर वैक्सीन प्रभावी होगा या नहीं? विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह बात बिल्कुल सही है कि जैसे-जैसे वायरस बहुत बड़ी आबादी को अपनी जकड़ में लेते जाएगा उसकी प्रकृति बदलती जाएगी उसके नए वेरिएशन आते जाएंगे। वैक्सीन काफी हद तक वायरस के नए वेरिएंट पर भी प्रभावी है। इसलिए वैक्सीन लगवाना बहुत जरूरी है। लेकिन फिर भी कुछ ऐसे वैरीअंट सकते हैं जो बहुत अधिक चिंता का कारण बन सकते हैं। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि पूरी दुनिया कोरोना के संक्रमण से जुड़े सही डेटा इकट्ठा करे। जितना सही आंकड़ा होगा वायरस से लड़ने में उतने ही सही ढ़ंग से कदम उठाया जा सकेगा। तभी जाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन भी पूरी दुनिया को इसकी जानकारी देते रहेगा।
– दुनिया सहित भारत के नीति निर्माताओं ने यह स्वीकार कर लिया है कि कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीनेशन सबसे जरूरी हथियार है। इसके बिना बार-बार लॉकडाउन लगाने से कुछ ज्यादा फायदा नहीं होने वाला। जानकारों के अनुमान के मुताबिक जब तक भारत में तकरीबन 70 फ़ीसदी लोगों को वैक्सीन नहीं लग जाता तब तक कोरोना के प्रति भारतीय समाज में हर्ड इम्यूनिटी नहीं पैदा होने वाली। और जब तक हर्ड इम्यूनिटी नहीं पैदा होगी तब तक कोरोना के संक्रमण का खतरा बना रहेगा। जिस दर से टीका लग रहा है, उस दर के हिसाब से देखा जाए तो 70 फ़ीसदी आबादी तक वैक्सीन मिलने में अभी बहुत लंबा समय लगने वाला है।
– इन सभी बातों का एक ही मकसद है कि नागरिक के तौर पर अपना अधिकार मानते हुए वैक्सीन लगवाया जाए और दूसरों को भी वैक्सीन लगवाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए और अगर कहीं कुछ भ्रम फैल रहा हो तो उसे दूर किया जाए।
सौज- न्यूजक्लिक
जरूरी जानकारी।