राजनीतिक समीकरण के आधार पर कुछ लोग कुछ दिन मंत्री रहते हैं उसके बाद बदल दिए जाते हैं। बाकी सब जस का तस रहता है। जनता को कोई फायदा नहीं होता।मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में फेरबदल हो गया है। कुछ नए मंत्री आए हैं और कुछ पुराने मंत्री चले गए हैं। मोदी सरकार भारत की इतिहास की एक मायने में सबसे अजीब सरकार इसलिए भी है क्योंकि आम जनता से अगर मोदी सरकार के मंत्रियों का नाम पूछा जाए तो वह मुश्किल से तीन चार मंत्रियों के नाम बता पाती है। आप खुद से पूछिए कि इससे पहले वाले मंत्रिमंडल में क्या भारत के आदिवासी मामलों के मंत्री का नाम जानते थे? क्या दिनभर संस्कृति के नाम पर राजनीति करने वाले इस सरकार के संस्कृति मंत्री का नाम जानते थे? क्या आप भारत के शिक्षा मंत्री का नाम जानते थे? क्या भारत के वाणिज्य मंत्री का नाम जानते थे?
हो सकता है कि आप में से कुछ लोग इन मंत्रियों के नाम जानते हो। लेकिन हकीकत यह है कि मोदी सरकार में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और मुश्किल से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा बहुतेरे लोग दूसरे मंत्रियों का नाम नहीं जानते हैं। अभी अभी जो नए मंत्री चुने गए हैं उनके साथ भी कुछ दिनों के बाद यही होने वाला है। आप नरेंद्र मोदी नाम के आगे किसी को नहीं जानने वाले हैं। यह सारी बातें केवल अनुमान पर नहीं कहीं जा रही हैं। बल्कि एक बार तो ऐसा हुआ कि भाजपा के जाने-माने प्रवक्ता नेशनल टेलीविजन पर भारत सरकार के श्रम मंत्री का नाम पूछने पर नहीं बता पाए।
इस घटना पर गौर करते हुए न्यूज़क्लिक की सहयोगी वरिष्ठ पत्रकार प्रज्ञा सिंह ने करीब 12 पत्रकारों, एक वकील, एक शोधार्थी, मुंबई में रहने वाले एक एक्टर, नोएडा के एक आईटी कर्मचारी और एक हाउसवाइफ को फोन किया। उनसे प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रियों की पहचान से जुड़े सवाल पूछे। हैरान करने वाली बात यह रही केवल तीन लोग ही श्रम मंत्री का नाम बता पाए, वहीं संस्कृति और पर्यटन मंत्री का नाम सिर्फ एक ही शख्स को मालूम था। कौशल विकास एवम् उद्यमिता मंत्री का नाम कोई नहीं बता पाया, वहीं कृषि और किसान कल्याण मंत्री को सिर्फ दो लोग ही पहचान पाए। लेकिन मोदी की पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा को सभी जानते थे।
ऐसा क्यों है कि लोग भारत सरकार के नाम पर नरेंद्र मोदी के अलावा किसी को नहीं जानते? इस सवाल का जवाब बहुत कठिन नहीं है। भारत सरकार की हर योजना, हर नीति, हर प्रचार यहां तक कि कोरोना के वैक्सीन के जरिए यही संदेश पहुंचाने की कोशिश की जाती है कि जो कुछ भी है वह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देन है। यह सोची समझी हुई रणनीति होती है। मीडिया में एक व्यक्ति के जरिए पूरे सरकार के कामकाज को लोगों के बीच पहुंचाना जितना आसान है उतना ही उस व्यक्ति के लिए फायदेमंद होता है बशर्ते कि व्यक्ति की छवि खराब ना हो।
इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के तबाही के काल में खुद को टीवी पर नहीं आने दिया। जैसे ही कोरोना का मामला ठंडा पड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर से भारत सरकार के नाम के तौर पर छा गए। समाजशास्त्री भी यही कहते हैं कि फासीवादी सरकारों का एक गुण यह भी होता है कि एक व्यक्ति को रहनुमा के तौर पर पेश करके लोगों के बीच शासन करने का काम करती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जरिए इस भूमिका का बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है।
लेकिन मामला अगर उलट दिया जाए और कामकाज का आकलन कर इस्तीफा देने की पेशकश की जाए तो सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का नाम आना चाहिए। कवि और पत्रकार मुकुल सरल बड़ी मार्के की बात कहते हैं कि अगर इस सरकार में किसी को इस्तीफ़ा देना चाहिए तो वो ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह हैं। किसी और के इस्तीफ़ा देने या ना देने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि मोदी-शाह के अलावा तो सारे मंत्री नाम के हैं, जिन्हें बस थैंक्यू मोदी जी ही कहना था/कहना है!
लेकिन हम सब जानते हैं कि यह नहीं होगा। जो हुआ है वह क्या है? नए मंत्रिमंडल का गठन करने से पहले कई मंत्रियों ने अपना इस्तीफा दे दिया। यह मंत्री किस आधार पर चुने गए और किस आधार पर इनका इस्तीफा लिया गया। इसके बारे में कोई जानकारी ना सरकार की तरफ से मिलती है और ना ही मीडिया में इनके कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया जाता है। सब कुछ महज अटकल बनकर रह जाता है। मान लीजिए अगर कोरोना के काल में स्वास्थ्य मंत्री असफल रहे हैं तो यह केवल अटकल ही क्यों हो? साफ-साफ बताया क्यों नहीं जाता कि उनकी गलतियां क्या थी? अगर यह बताया जाता तो इससे दो फायदे होते। पहला कि अगर इसी तरह की किसी दूसरे मंत्री ने गलती की होती तो उसके होने और न होने पर भी प्रश्नचिह्न लगता। दूसरा अगली दफा स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर श्रीमान हर्षवर्धन को चुनने से पहले इस सारे कामकाज के प्रति उनके रवैए का आकलन किया जाता।
लेकिन केवल सत्ता संभालने की चाह में लगी सरकारें ऐसा काम नहीं करती है। अगर वह ऐसा करेगी तो साफ-साफ दिखेगा कि नरेंद्र मोदी को भी इस्तीफा देना चाहिए। अगर वे ऐसा करेंगे तो साफ-साफ दिखेगा कि श्रीमान हर्षवर्धन और प्रकाश जावड़ेकर के इस्तीफे के पीछे कामकाज नहीं बल्कि राजनीतिक गोटियां काम कर रही हैं। जिसे सही समय आने पर कभी फेंका जाता है और कभी छुपा लिया जाता है।
नियम के मुताबिक मोदी मंत्रिमंडल में कुल 81 मंत्री शामिल हो सकते हैं। नये मंत्रियों की काबिलियत क्या है? किस आधार पर इन्हें मंत्री बनाया जा रहा है? इनका पहले का कामकाज क्या रहा है? इस पर कोई बातचीत नहीं है। मीडिया वाले भी इसे अपना चर्चा का विषय नहीं बनाते हैं।
सरकार आने वाले चुनाव को ध्यान में रखकर, जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर, क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखकर, सत्ता के प्रबंधन को ध्यान में रखकर मंत्रियों का चुनाव करती है। मंत्रियों के चुनाव का केवल यही पैमाना होता है।
इसलिए उत्तर प्रदेश के लगभग हर क्षेत्र से एक सांसद को मंत्री बनाया गया है। सहयोगी अपना दल की प्रमुख अनुप्रिया पटेल को भी साधा गया है। बिहार में जनता दल यूनाइटेड कहीं छिटक न जाए इसलिए जेडीयू के अध्यक्ष और नीतीश कुमार के खासम खास आरसीपी सिंह को जगह मिली है। चिराग पासवान से अलग हुए गुट के नेता पशुपति पारस को जगह मिली है ताकि समीकरण बिगड़ न जाए। कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया का मंत्री बनना चुनावी राजनीति में लेनदेन का सीधा सीधा प्रमाण है।
यही सारे दांव-पेच रचकर मोदी सरकार में मंत्रियों का चुनाव हुआ है। क्या हमारा संविधान मंत्रियों को चुनने के लिए इसी प्रक्रिया की इजाजत देता है? क्या हमारी गाढ़ी कमाई से चुकाई गए टैक्स के पैसे से इसी तरह के मंत्री चुनने चाहिए जो जनता के हित साधने के बजाय राजनीतिक दलों के हित साधने का काम करते हैं? अगर यही सब करना सरकार का काम है तो सरकार से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह जनता की मददगार साबित होगी।
और जनता भी ऐसी है कि वह सवाल नहीं पूछती है। जनता केवल ताली बजाती है। उसे अपने इलाके का नेता मंत्री बनता हुआ दिखता है तो उसे अच्छा लगता है। लेकिन वह पलट कर नहीं पूछती कि उसके नेता ने क्या काम किया? यह नेता मोदी जी के साथ रह कर क्या करेंगे? सारी वाहवाही मोदी जी के नाम होगी और यह सारे नेता मोदी जी के हां में हां मिलाएंगे? मोदी जी एक बोलेंगे तो यह नेता ट्वीट करके सौ बोलेंगे? पिछले 7 साल से मोदी सरकार के मंत्रियों के सोशल मीडिया को खंगाल कर देखिए तो सब के सब नरेंद्र मोदी के प्रचार प्रसारक नजर आएंगे? इसके अलावा इनकी कोई बड़ी भूमिका नजर नहीं आएगी।
भारत सरकार के पास तकरीबन 75 विभाग हैं। इन 75 विभाग को संभालने के लिए मंत्रियों की नियुक्ति होती है। एक अनुमान के मुताबिक अगर तत्काल वैकेंसी निकाली जाए तो तकरीबन 10 लाख से अधिक लोगों को इन विभागों से रोजगार मिलने की संभावना है। लेकिन इन्हें रोजगार नहीं दिया गया है। न ही रोजगार दिया जाएगा। क्योंकि रोजगार की संभावना तो तब पनपती है जब यह मंत्री कामकाज करें। न ही कामकाज होगा और न रोजगार पैदा होगा।
मंत्रियों को सुविधाएं मिलती रहती हैं। मंत्रियों के अधीनस्थ काम करने वाले सेक्रेट्री लेवल के अधिकारियों की सुविधाएं बढ़ती रहती हैं। लेकिन मंत्रियों के कामकाज का कोई लेखा-जोखा नहीं होता। राजनीतिक समीकरण के आधार पर यह लोग कुछ दिन मंत्री रहते हैं उसके बाद बदल दिए जाते हैं। बाकी सब जस का तस रहता है। जनता को कोई फायदा नहीं होता। आप माने या ना माने लेकिन मंत्रिमंडल में फेरबदल करने की प्रक्रिया का निचोड़ यही है कि इससे केवल राजनीतिक हित साधने हैं। इसका जुड़ाव कहीं से भी जनता की भलाई से नहीं है। नहीं तो इतने जटिल भारत में रातो रात मंत्री के पद से किसी को हटा और बिठा नहीं दिया जाता।
सौज- न्यूजक्लिक