यह सिर्फ राहुल गांधी, ममता बनर्जी, प्रशांत किशोर या पत्रकारों को फोन के माध्यम से ट्रैक किए जाने का मसला नहीं है। बल्कि चिंता इस बात की है कि दुनिया भर में कोई भी स्पाइवेयर की जासूसी/निगरानी से सुरक्षित नहीं है।यह बात संभव है कि भारत में जनता उन लोगों के नामों के खुलासे को केवल एक गपशप मान ले जिनके फोन की पेगासस के जरिए जासूसी की जा रही थी या की जा रही है, जिस स्पाइवेयर को एनएसओ ग्रुप ने विकसित किया है और जो एक प्रमुख इजरायली साइबर-निगरानी कंपनी है। वे यही सोचेंगे कि वे राहुल गांधी थोड़े ही हैं जिनकी जासूसी की जाएगी। वे ऐसे पत्रकार भी नहीं हैं जो सत्ता के शक्तिशाली हितों के विरुद्ध कहानियों की ख़ोज करने की कोशिश करते हैं। न ही वे राज्य-सत्ता और उसकी नीतियों का विरोध करने वालों में से हैं।
वास्तव में, उल्टे वे ये पूछ सकते हैं: कोई भी उनके फोन में मैलवेयर घुसा कर उनके व्यक्तिगत डेटा को क्यों हासिल करना चाहेगा?
ऐसे लोगों को एक बार फिर से सोचने की जरूरत है।
या उन्हें इसका पता लगाने की कोशिश करने के लिए इंटरनेट पर जाना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि कैसे इजरायलियों ने आम फिलीस्तीनियों की जासूसी करने के लिए स्पाइवेयर लगाए हुए हैं जो न तो आतंकवादी समूहों के सदस्य हैं और न ही राजनीति में उनकी कोई भूमिका है।
फिर भी इजरायल की खुफिया एजेंसियों ने आम फिलिस्तीनियों की यौन प्राथमिकताओं, उनकी बेवफाई, उनकी वित्तीय समस्याओं पर डेटा एकत्र किया है – वास्तव में, उन्होने ऐसे डेटा इकट्ठे किए हैं जिन्हे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में एकत्र की गई जानकारी का इस्तेमाल उन्हें इजरायली रक्षा बलों (आईडीएफ) के साथ सहयोग करने पर मजबूर करने के लिए किया जाता था/है – और फिलिस्तीनियों को विरोधी समूहों में विभाजित करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
वैकल्पिक रूप से, वे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जरिए व्यक्तियों और उनके परिवारों के चिकित्सा के इतिहास की जानकारी लेते हैं और उसका इस्तेमाल कर उन्हें चिकित्सा देखभाल की पेशकश करते हैं और बदले में उनसे आईडीएफ के लिए गुप्त रूप से काम करने को कहा जाता है। या फिर ऐसा न करने पर उन्हे इलाज कराने से रोकने की धमकी दी जाती है।
आप यह सब पढ़ कर शायद यही कहेंगे कि ‘हम फिलिस्तीनी नहीं हैं, जो एक कब्जे वाले क्षेत्र में रह रहे हैं। हम एक आज़ाद मुल्क के लोग हैं।’ लेकिन नागरिकों और राज-सत्ता के बीच संबंध हमेशा समझौते और सहयोग से चिह्नित नहीं होते हैं।
यह रिश्ता विरोधात्मक हो सकता है और होता भी है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रदर्शनकारी किसानों को ही लीजिए। या वे सभी जो नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में सड़कों पर उतरे थे। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से जासूसी कर हासिल की गई व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल नागरिक समाज समूहों के खिलाफ काम करने के लिए किया जा सकता है, जिसके वे सदस्य हैं।
यह समझने के लिए कि आपको पेगासासगेट के खुलासे पर चिंता क्यों करनी चाहिए, इसके लिए आपको इज़राइल में स्पाइवेयर के विकास के इतिहास में जाना होगा, जिसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा हिस्सा है। प्राइवेसी इंटरनेशनल, एक वकालत समूह ने कहा है कि 2016 में इज़राइल के पास दुनिया में निगरानी कंपनियों का प्रति व्यक्ति अनुपात सबसे अधिक था। उसी वर्ष, स्पाइवेयर उद्योग में इज़राइली स्टार्ट-अप में निवेश दुनिया के कुल निवेश का लगभग 20 प्रतिशत था।
इज़राइल में इस किस्म की कई निगरानी कंपनियों की स्थापना उन लोगों ने की थी जिन्होंने यूनिट 8200 में काम किया था, जिसे इजरायली रक्षा बलों के सबसे प्रतिष्ठित खुफिया विंग के रूप में जाना जाता था या बताया जाता है। यह यूनिट फिलीस्तीनियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जासूसी करने में माहिर है। इसके सदस्य अपनी कंपनियां स्थापित करने के बाद सामान्य अनुप्रयोगों/एप्लीकेशन्स के लिए स्पाइवेयर विकसित करते हैं। यह स्पाइवेयर विदेशी ग्राहकों को दिया जाता है, हालांकि यह इस्राइली सरकार के सख्त नियंत्रण में है।
पेगासस के डेवलपर एनएसओ ग्रुप की स्थापना निव कारमी (जो अब इस व्यवसाय में नहीं है), शेली हुलियो और ओमरी ने की थी, उनके नाम की पहली वर्णमाला से कंपनी को एनएसओ नाम दिया गया था। कई मीडिया रिपोर्ट्स (यहां और वहाँ) इस बात का दावा करती हैं कि हुलियो और लवी यूनिट 8200 के सदस्य थे। हालांकि, इजरायली अखबार हारेत्ज़ ने बताया कि हुलियो ने यूनिट 8200 के बजाय होम फ्रंट कमांड में सेना की नौकरी पूरी की थी।
भले ही हुलियो और लवी ने यूनिट 8200 के साथ काम किया हो या नहीं, उनका काम मोबाइल फोन से डेटा इकट्ठा करना और उसकी इंटेलिजेंस की नकल करना रहा है। यूनिट 8200 की गुप्त प्रकृति 2014 में सामने आई थी जब 43 सेना के दिग्गजों और सेना के रिजर्व बलों (या जिनकी सेवा की जरूरत हो सकती थी) के सदस्यों ने इस बाबत एक सार्वजनिक पत्र लिखा और “कब्जे वाले फिलीस्तीनी क्षेत्रों से जुड़े निर्दोष नागरिकों की व्यापक निगरानी और जासूसी करने से इंकार कर दिया था।”
उन्होंने आरोप लगाया थाआ कि यूनिट 8200 ने “सर्वव्यापी” खुफिया जानकारी एकत्र की, जिसका इस्तेमाल तब कई फिलिस्तीनियों को राजनीतिक रूप से सताने के लिए किया गया था जो हिंसा में शामिल नहीं थे और ऐसा फिलिस्तीनी समाज में विभाजन पैदा करने के लिए भी किया गया था। इन 43 रिजर्व बालों के सैनिकों ने यूनिट 8200 के कामकाज के बारे में इजरायली अखबार येडिओथ अह्रोनोथ को बयान दिया था और जिसे गार्जियन अखबार के साथ भी साझा किया गया था।
उन्होंने कहा कि उन्हें फिलिस्तीनियों के जीवन के विवरण को संरक्षित करने का आदेश दिया गया था ताकि उनसे “जबरन वसूली/ब्लैकमेल” के जरिए आईडीएफ का सहयोगी बनने पर मजबूर किया जा सके। इन विवरणों में यौन पसंद, बेवफाई, वित्तीय समस्याओं या पारिवारिक बीमारियों की जानकारी शामिल थी। ऐसा लगता है कि फोन पर “सेक्स टॉक”, जासूसी पकड़ी गई थी, जिससे यूनिट 8200 के कर्मियों के बीच एक रोष पैदा हो गया था। उन्होंने दावा किया कि जिन गतिविधियों में उन्हें शामिल होने के लिए कहा गया था, वे “लोकतंत्र की तुलना में एक दमनकारी निज़ाम की खुफिया सेवाएं” थी।
ये साक्ष्य फिलिस्तीनियों पर नजर रखने के लिए स्पाइवेयर की व्यापक प्रभावकारिता को सामने लाते हैं। यूनिट 8200 के एक सैनिक ने कहा कि न केवल फिलीस्तीनियों द्वारा जासूसी करने वाले इजरायलियों पर हमला करने की संभावना थी, बल्कि उन सभी पर भी “जो पूरी तरह से निर्दोष थे, और जिनका एकमात्र अपराध यह था कि वे विभिन्न कारणों से इजरायल की सुरक्षा प्रणाली में रुचि रखते थे … सभी फिलिस्तीनी बिना किसी कानूनी सुरक्षा के जासूसी/निगरानी के घेरे में हैं।”
एक सैनिक ने इज़राइली राज-सत्ता के इरादे का एक उदाहरण दिया है: “यदि आप समलैंगिक हैं और आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो वांछित है- तो हम सब को यहाँ जान लेना चाहिए कि इस जानकारी के आधार पर इज़राइल आपका जीवन दूभर कर देगा।”
समलैंगिकों के खिलाफ अपनाई गई रणनीति के विपरीत, यूनिट 8200 के एक प्रशिक्षक ने एक उदाहरण दिया कि कैसे एक व्यक्ति जिसके परिवार के सदस्य को चिकित्सा देखभाल की जरूरत थी, को कैसे गिरफ्त में लिया जाता है।
प्रशिक्षक की गवाही इस प्रकार है: “मुझे एक बार किसी एक फोन चर्चा को सुनने को कहा गया जिसमें एक इजरायली सुरक्षा अधिकारी किसी फिलिस्तीनी को भर्ती करने की कोशिश कर रहा था … बातचीत के दौरान एक समय आया जब वह फिलिस्तीनी से कहता है, ‘आपकी पत्नी के भाई को कैंसर है।’ फिलिस्तीनी जवाब देता है, ‘तो?’ फिर वह कहता है, ‘ठीक है, तुम्हें पता है…’ और फिर वे कुछ और बात करने लगते हैं, और चर्चा के दौरान इज़राइली लगातार कैंसर के मुद्दे को कुरेदता रहता हैं। फिर सैनिक अधिकारी कहता है कि ‘हमारे अस्पताल अच्छे हैं’ और वह स्पष्ट रूप से फिलिस्तीनी को [सहायता] की पेशकश कर रहा था, या शायद उसे धमकी दे रहा था।
यूनिट 8200 के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि, “मेरी उम्मीदों के विपरीत, हमारे डेटाबेस में न केवल सुरक्षा से संबंधित खुफिया जानकारी, बल्कि व्यक्तिगत और राजनीतिक जानकारी भी शामिल थी। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्तिगत स्तर पर, फ़िलिस्तीनी निजता का कोई सम्मान नहीं है। एक राजनीतिक दृष्टिकोण से, जानकारी एकत्र की जाती है जिसका इस्तेमाल कर इजरायल, फिलिस्तीनी और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में हेरफेर करने का काम कर सकता है।”
ये साक्ष्य साफ तौर दर्शाते हैं कि कैसे पेगासस जैसे स्पाइवेयर को उन लोगों की इच्छा को झुकाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जो राजनीतिक रूप से उदासीन या सरकार के कट्टर समर्थक हैं। आप किसी सरकारी कार्यालय में क्लर्क या कनिष्ठ अधिकारी हो सकते हैं, या किसी कंपनी में कार्यकारी, या मीडिया आउटलेट में जूनियर रिपोर्टर, या नागरिक समाज समूह के कार्यकर्ता, या रक्षा बलों में एक अधिकारी हो सकते हैं, आपके व्यक्तिगत विवरण का विशेष रूप से जब खुलासा किया जाता है तो आपके शर्मिंदा होने की संभावना पैदा हो जाती है, स्पाइवेयर द्वारा आपको ऐसे कार्यों को करने के लिए मजबूर किया जा सकता है जो आपको लगता है कि नैतिक रूप से गलत हैं।
लेकिन, सबसे बढ़कर, यूनिट 8200 की गवाही से पता चलता है कि पेगासस जैसे स्पाइवेयर को बड़े पैमाने पर निगरानी/जासूसी के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जैसा कि किया भी जा रहा है। पत्रकार जोनाथन कुक ने एक लेख लिखा था, “इजरायल स्पाइवेयर टेक्नोलॉजी, टेसटेड ऑन पेलस्तीनीयन्स, नोव ओपेरेटिंग इन सिटी नैयर यू”, और विश्लेषक जेफ हैल्पर की पुस्तक, वॉर अगेंस्ट द पीपल का हवाला देते हुए बताया कि इज़राइल ने एक “नए” वैश्विक नेता के रूप में उभरने और मातृभूमि सुरक्षा के साथ डिजिटल प्रौद्योगिकियां को मिला दिया है। हैल्पर ने कहा कि खतरा इस बात का है कि धीरे-धीरे हम सभी फिलिस्तीनी बन जाएंगे।
जब तक सरकार अपने इनकार मोड से बाहर नहीं आती है या ऐसा करने के लिए पेगाससगेट की सार्वजनिक जांच करने पर मजबूर नहीं होती है, तो भारतीयों का भी फिलिस्तीनी बनने का जोखिम बढ़ जाता है, वह बिना निजता के अधिकार के, उनकी इच्छा के अधीन रहना होगा और सभी अधिकारों को नष्ट कर दिया जाएगा, और हम सब सत्ता के खेल में शतरंज की बिसात मात्र बन कर रह जाएंगे।
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं। Translated by महेश कुमार सौज- न्यूजक्लिक इस लेख को अंग्रेजी में इस लिंक के जरिय पढ़ा जा सकता है
PegasusGate: We Could all be Deprived of Free Will, Like Palestinians