इन्दौर। कॉमरेड गोविंद पानसरे तर्कशील, वैज्ञानिक सोच वाले विवेकवान लेखक और वामपंथी आंदोलनकारी थे। उनका सच बोलने का साहस और शोषितों-दमितों को संगठित करने की क्षमता दक्षिणपंथी ताकतों को परेशान करती थी। इसीलिए इस वयोवृद्ध श्रमिक नेता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी ,लेकिन कॉमरेड पानसरे अपने सक्रिय जीवन की यादों, अपने साहित्य और विचारधारा के माध्यम से आज भी लोग के जहन में जीवित हैं।
ये विचार व्यक्त किए प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव मंडल सदस्य विनीत तिवारी ने। वे कॉमरेड गोविंद पानसरे की स्मृति में प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई द्वारा आयोजित बैठक में बोल रहे थे। विनीत ने कहा कि यह विडंबना ही है कि कॉमरेड पानसरे को देश में उनकी मृत्यु के बाद ही पहचाना जा सका जबकि महाराष्ट्र में तो उनके जनसंघर्षों और लेखन की वजह से उन्हें सभी जानते हैं। पानसरे ग़रीबी के चलते बचपन में ही गाँव से एक परिचित शिक्षक के साथ कोल्हापुर आ गए थे जहाँ उन्होंने शिक्षा प्राप्ति के साथ ही अखबार भी बेचे, जिस स्कूल में वे पढ़ते थे वहां चपरासी का काम भी किया, फिर उसी स्कूल में शिक्षक बने और बाद में उसी स्कूल के बोर्ड के सदस्य भी रहे। वे गोवा मुक्ति आंदोलन में भी शामिल हुए। कानून की पढ़ाई के बाद वकालत के साथ ही उन्होंने श्रमिक संगठनों के साथ काम करना आरंभ किया। कोल्हापुर की गोकुल डेयरी और असंगठित श्रमिकों, रेहड़ी-पटरी वाले जिसमें हजारों मेहनतकशों की उन्होंने मजबूत यूनियनें बनाईं। नौजवानों की सामाजिक-राजनीतिक चेतना विस्तार के लिए वे प्रतिवर्ष आवासीय शिविर का आयोजन करते और सारे समय वे स्वयं भी उसमें उपस्थित रहते थे। अस्सी वर्ष की आयु होने पर कोल्हापुर निवासियों ने सम्मानित करते हुए कॉमरेड पानसरे को कुछ धनराशि भेंट की थी जिसे उन्होंने लौटाते हुए कहा कि इस धनराशि का उपयोग उन कॉमरेड्स के बारे में पुस्तकें प्रकाशित करके किया जाए जिनके संघर्षों को अब तक उचित पहचान नहीं मिल सकी है। वे कल्पनाशील नेता थे। उन्होंने जनसहयोग से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर की इमारत बनवाई जिसमें जनसंगठनों एवं एटक की विभिन्न यूनियनों के कार्यालय के साथ ही सभा भवन एवं वाचनालय भी हैं साथ ही मजदूरों के हित में और मजदूरों की राजनैतिक चेतना विस्तार के लिए प्रशिक्षण हेतु श्रमिक प्रतिष्ठान नामक ट्रस्ट की स्थापना की।
विनीत तिवारी ने कहा कि उनकी हत्या के पीछे तीन कारणों का संदेह किया जाता है। पहला है पूर्व पुलिस महानिरीक्षक द्वारा लिखी गई किताब “हू किल्ड करकरे” (करकरे को किसने मारा) में मुंबई पर हुए आतंकी हमले में मारे गए पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की हत्या का इशारा महाराष्ट्र के राजनीतिक साम्प्रदायिक दल और सनातन संस्था पर किया गया था। साम्प्रदायिक शक्तियाँ नहीं चाहती थीं कि इस पुस्तक पर कहीं भी चर्चा हो और इसलिए इस किताब पर केंद्रित आयोजन को ये साम्प्रदायिक ताकतें आयोजित नहीं होने दे रही थीं। तब कॉ. पानसरे आगे आये और उन्होंने कहा कि वे महाराष्ट्र में इस पुस्तक पर केंद्रित सौ कार्यक्रम आयोजित करेंगे और उन्होंने 150 कार्यक्रम आयोजित किये भी। इस कारण वे साम्प्रदायिक संगठनों की आँख की किरकिरी बने हुए थे।
दूसरा कारण था शिवाजी की साम्प्रदायिक एवं रौद्र छवि का झूठ उजागर कर सच्चाई को लोगों के सामने रखना। पानसरे सदैव कहते थे कि उचक्कों ने शिवाजी को बंधक बना लिया है, मैंने शिवाजी पर पुस्तक लिखकर उन्हें इन उचक्कों से मुक्त किया है। पानसरे की शिवाजी पर लिखी पुस्तक “शिवाजी कोण होता” के पहले लोग शिवाजी को बाल ठाकरे और शिवसेना के नजरिए से ही देखने लगे थे। पानसरे ने अपनी पुस्तक “शिवाजी कोण होता” में बताया कि शिवाजी किसी राजा की संतान होने के कारण राजा नहीं बने थे। वे जनहितैषी और धर्मनिरपेक्ष शासक थे, न कि मुस्लिम विरोधी और जाति विशेष के प्रति उदार या असहिष्णु। “शिवाजी कोण होता” पुस्तक का पहला संस्करण 10 हजार की संख्या में प्रकाशित हुआ था, बाद में देश की लगभग 20 भाषाओं में अनुवादित होकर इस पुस्तक की 20 लाख प्रतियां बेची जा चुकी है। अभी 20 फरवरी 2022 को महाराष्ट्र के एक “छात्र भारती” नामक संगठन ने महाराष्ट्र के स्कूली छात्रों में इस पुस्तक की पांच लाख प्रतियां बाँटी हैं। सही अर्थों में कॉमरेड पानसरे जैविक बुद्धिजीवी थे जिनका ज़मीन से और विचार से बराबर संवाद था। विनीत ने कहा कि जिस तरह से आरएसएस ने राम के चरित्र को आडवाणी की रथयात्रा से सौम्य से आक्रामक, रौद्र और हिंसक बनाया वैसा ही काम शिवसेना ने भी शिवाजी को बाघ के रूप में चित्रित कर उनकी छवि का उपयोग मुसलमानों के खिलाफ करने का प्रयास किया है।
उनसे तीसरी दुश्मनी की वजह समझी जाती है कि उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के उस कदम का विरोध किया था जब प्रयोग के तौर पर शहर के ही विभिन्न हिस्सों में एक से दूसरे इलाके तक जाने के लिए टोल नाके लगाकर टोल वसूली की जाने लगी थी। उन्होंने अनेक जगहों पर टोल नाके उखाड़ फेंके और गुंडों का जनता के साथ मिलकर सामना किया था। इससे भी वो माफ़िया काफी नाराज था जो राजनीतिज्ञों को घूस खिलाकर जनता को लूटने का कानूनी हक़ चाहता था।
विनीत ने दिल्ली के अजय भवन में कॉमरेड पानसरे के साथ हुई अपनी मुलाकातों को याद किया। जब वे भारत में खेती के बारे में शोध कर रहे थे, उसी दौरान कॉमरेड पानसरे भी विदर्भ में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या के बारे में चिंतित थे। कॉमरेड पानसरे कोल्हापुर के शासक शाहूजी महाराज और उनकी जनपक्षधर शासन प्रणाली से बेहद प्रभावित थे। उन्हीं के द्वारा स्थापित बोर्डिंग व्यवस्था के कारण वे शिक्षित हो सके थे। कॉमरेड पानसरे शाहूजी महाराज को प्रगतिशील शासक मानते थे जिन्होंने अपने शासनकाल में वर्ष 1922 में श्रमिकों से रूसी क्रांति से प्रेरणा लेने के लिए कहा था। आज़ादी के पहले से उनके शासन में आरक्षण व्यवस्था थी, राजा ने स्त्री शिक्षा पर ध्यान दिया, पारिवारिक हिंसा के खिलाफ कानून बनाया था।
हरनाम सिंह ने वर्ष 2016 में प्रलेसं के 11 सदस्यीय दल की यात्रा के संस्मरण सुनाए। कोल्हापुर में कॉमरेड पानसरे की याद में निर्भय मॉर्निंग वॉक, उनकी स्मृति में आयोजित विशाल आम सभा, पानसरे परिवार से मुलाकात की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मॉर्निंग वॉक रैली में नारे गूंज रहे थे “आंबी सारे पानसरे ” (हम भी सारे पानसरे हैं) और “गोल्यां लाठी घाल्यां विचार नहीं मरणार” (गोली लाठी से विचारों को नहीं मारा जा सकता) हरनाम सिंह ने श्रीमती उमा पानसरे, बेटी स्मिता और बहू मेघा पानसरे और उनके पौत्र कबीर और मल्हार से मुलाकात की जानकारी दी। प्रदेश के लेखकों ने कॉमरेड पानसरे द्वारा स्थापित श्रमिक प्रतिष्ठान में जाकर उनके सहयोगियों से मुलाकात की। पत्रकार वार्ता में भाग लिया जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक सुर्खियों में बनी रही। तत्पश्चात शाहू स्मारक भवन में कॉमरेड पानसरे की स्मृति में विशाल आम सभा में शिरकत की। इस आम सभा का प्रारंभ प्रलेस के सदस्यों द्वारा गाए गए जनगीत से हुआ था। उस सभा को प्रमुख रूप से प्रोफेसर गणेश देवी, पत्रकार निखिल वागले, हमीद दाभोलकर, विनीत तिवारी ने संबोधित किया था। इस सभा में प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार की कड़ी निंदा की गई जिसने आमसभा के वक्ताओं को डराने का प्रयास किया था।
मध्य प्रदेश बैंक ऑफिसर्स एसोशिएशन के वरिष्ठ साथी आलोक खरे ने बताया कि कॉमरेड पानसरे ने कोल्हापुर में अनेक श्रमिक यूनियनों का गठन किया था उन्हीं के प्रयासों में रत्नाकर बैंक में कर्मचारियों एवं अधिकारियों की यूनियन बनी जिसमें कॉमरेड पानसरे को मानद महासचिव बनाया गया। रत्नाकर बैंक के राष्ट्रीय सम्मेलन में कॉमरेड पानसरे ने बैंकों की ऋण नीति के किसानों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को बैंक साथियों के बीच रखा और इस पर चर्चा करने एवं सोचने पर विवश किया फलस्वरूप यह विषय उस पूरे सम्मेलन की चर्चा का केंद्र बिंदु रहा। श्री खरे ने बताया कि वे स्वयं उस सम्मेलन में मौजूद थे। कॉमरेड पानसरे न केवल उत्कृष्ट लेखक थे अपितु वंचित वर्ग के लिए ज़मीनी अध्येता भी थे।
मध्य प्रदेश प्रलेसं की सचिव मण्डल सदस्य सारिका श्रीवास्तव ने भी अपनी कोल्हापुर यात्रा को याद किया जिसमें वे और उनके साथी कॉमरेड पानसरे के परिवार से मिले थे। सारिका ने बताया कि कॉमरेड पानसरे अंतरधार्मिक, अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहित करते थे। इस हेतु उन्होंने एक संस्था का गठन भी किया था जो प्रतिवर्ष ऐसे विवाह करने वाले जोड़ों को सम्मानित करती थी। लोकशाहिर सचिन माली की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी शीतल साठे को लोकशाहिर के रूप में गाने के लिए प्रेरित ही नहीं किया बल्कि मदद भी की जबकि इसके पहले कोई भी महिला लोकशाहिर नहीं रही है।
बैठक के संचालक एवं प्रलेसं इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष केसरी सिंह चिड़ार ने कहा कि 26 नवंबर 1933 में जन्मे कॉमरेड पानसरे का बचपन गरीबी में बीता, उन्होंने 21 पुस्तकें लिखीं। 81 वर्षीय इस बुजुर्ग से दक्षिणपंथी भयभीत थे जिसके कारण उन्हें मार डाला गया। उन्होंने महाराष्ट्र में प्रगतिशील लेखक संघ के गठन में भी अहम भूमिका निभायी। आयोजन के अध्यक्ष चुन्नीलाल वाधवानी, अभय नेमा, विवेक मेहता, रामआसरेजी ने भी अपने विचार रखे।