पैग़ंबर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा की टिप्पणी: क्या क़तर ने भारत को मुश्किल में डाल दिया है?

नूपुर शर्मा मामले में बीजेपी भीतर जो कुछ हुआ है, उससे भारत सरकार के लिए एक असहज स्थिति पैदा होती दिख रही है.

भारत सरकार जहां एक ओर अरब देशों को ये समझाने की कोशिश कर रही है कि उसने पैग़ंबर के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में कड़ी कार्रवाई की है. भारत सरकार जहां एक ओर अरब देशों को ये समझाने की कोशिश कर रही है कि उसने पैग़ंबर के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में कड़ी कार्रवाई की है. वहीं, भारत में सोशल मीडिया पर लोग अरब देशों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. और जिन देशों के विरोध में ट्वीट किए जा रहे हैं, उनमें क़तर का नाम सबसे आगे है. ट्विटर पर ‘बॉयकॉट क़तर एयरवेज़’ हैशटैग ट्रेंड कर रहा है जिस पर 1.22 लाख से ज़्यादा ट्वीट किए जा चुके हैं. इस हैशटैग के साथ क़तर के विरोध में लिखने वालों में सिर्फ़ बीजेपी समर्थक ही नहीं, कुछ बीजेपी नेता भी शामिल हैं.

बीजेपी नेता नूपुर शर्मा ने बीती 26 मई को एक डिबेट शो के दौरान पैग़ंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.इसके बाद दर्जन भर से ज़्यादा अरब देशों ने इस मामले में आधिकारिक रूप से विरोध दर्ज कराया था. वहीं, भारत में सोशल मीडिया पर लोग अरब देशों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. और जिन देशों के विरोध में ट्वीट किए जा रहे हैं, उनमें क़तर का नाम सबसे आगे है. ट्विटर पर ‘बॉयकॉट क़तर एयरवेज़’ हैशटैग ट्रेंड कर रहा है जिस पर 1.22 लाख से ज़्यादा ट्वीट किए जा चुके हैं. इस हैशटैग के साथ क़तर के विरोध में लिखने वालों में सिर्फ़ बीजेपी समर्थक ही नहीं, कुछ बीजेपी नेता भी शामिल हैं. बीजेपी नेता नूपुर शर्मा ने बीती 26 मई को एक डिबेट शो के दौरान पैग़ंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. इसके बाद दर्जन भर से ज़्यादा अरब देशों ने इस मामले में आधिकारिक रूप से विरोध दर्ज कराया था.

अरब दुनिया के ताक़तवर देश क़तर ने इस मामले में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल को तलब करके अपनी आधिकारिक आपत्ति का नोट सौंपा था.

मित्तल ने इसके बाद दोहा में मीडिया से बात करते हुए कहा था कि ‘ये ट्वीट किसी भी तरह से भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाते हैं, ये शरारती तत्वों के विचार हैं.’

उन्होंने ये भी कहा कि “हमारी सांस्कृतिक विरासत और अनेकता में एकता की मजबूत परंपराओं के अनुरूप भारत सरकार सभी धर्मों को अपना सर्वोच्च सम्मान देती है. अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के ख़िलाफ़ पहले ही कड़ी कार्रवाई की जा चुकी है.”

लेकिन क़तर ने इस मामले में भारत सरकार से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने को कहा.

क़तर ने इस तरह की मांग उस वक़्त की जब भारत के उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू अपनी तीन दिवसीय यात्रा पर दोहा पहुंचे हुए थे.

कुछ ख़बरों के मुताबिक़, नूपुर शर्मा विवाद खड़ा होने के बाद नायडू के सम्मान में आयोजित डिनर को भी रद्द कर दिया गया.

लेकिन इसके बाद भी भारत सरकार इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में है.

ऐसे में सवाल उठता है कि भारत सरकार के लिए क़तर की आपत्ति इतनी अहम क्यों है.

भारत और क़तर के रिश्ते

भारत और क़तर के रिश्तों पर नज़र डालें तो दोनों देशों के बीच मज़बूत व्यापारिक और राजनयिक रिश्ते हैं. साल 2021-22 में दोनों देशों के बीच 15 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का व्यापार हुआ है.

भारत की तेल एवं गैस से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने में क़तर एक अहम भूमिका निभाता है.

उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने दोहा में एक कार्यक्रम के दौरान बताया है कि ‘क़तर में 15 हज़ार से ज़्यादा भारतीय कंपनियां पंजीकृत हैं. और फिलहाल दोनों देशों के बीच व्यापार में तेल क्षेत्र की मुख्य भूमिका है लेकिन इसमें विविधता लाने की ज़रूरत है.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साल 2016 में अपने दोहा दौरे के दौरान क़तर को अपना दूसरा घर बता चुके हैं.

दोनों देशों के बीच रिश्ते कितने गहरे हैं, इसकी बानगी साल 2017 के सऊदी अरब-क़तर संकट के दौरान देखने को मिली थी.

साल 2017 में सऊदी अरब, मिस्र, बहरीन, यमन, लीबिया और संयुक्त अरब अमीरात ने क़तर के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए थे.

इस मौके पर भारत के लिए असहज स्थिति पैदा हो गयी थी क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए क़तर पर निर्भर है.

लेकिन इसके बाद साल 2021 में क़तर ने अंतरराष्ट्रीय पटल पर जोरदार भूमिका निभाई. अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता क़तर की राजधानी दोहा में ही आयोजित हुईं.

कुछ ख़बरों के मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के दौरान भारत और तालिबान अधिकारियों के बीच मुलाक़ात भी दोहा में ही हुई थी.

कितना ताक़तवार है क़तर

अरब दुनिया में क़तर को एक स्मार्ट पॉवर के रूप में जाना जाता है. क्षेत्रफल के लिहाज़ से क़तर इसराइल से भी छोटा है.

11,437 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस देश में 25 लाख से कुछ ज़्यादा लोग रहते हैं जिनमें से लगभग 90 फीसद लोग प्रवासी हैं.

लेकिन अरब दुनिया में क़तर की हैसियत क्या है, इसकी बानगी 2017 के सऊदी अरब-क़तर संकट के दौरान देखने को मिली थी जब आधा दर्जन से अधिक देशों के दबाव के बावजूद क़तर ने घुटने नहीं टेके थे.

इन मुल्कों ने लगभग 18 महीनों तक क़तर की आर्थिक और राजनयिक नाकेबंदी की थी. लेकिन इसके बाद भी क़तर ने हार नहीं मानी.

यही नहीं, क़तर इस संकट से उबरकर एक मज़बूत देश के रूप में सामने आया.

क़तर इतना मजबूत कैसे हुआ?

क़ायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ पॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर सैयद क़ंदील अब्बास ने क़तर के सफल होने की कहानी बताई है.

डॉक्टर क़ंदील मानते हैं कि क़तर की कूटनीति को एक सफलता की कहानी के रूप में देखा जाना चाहिए.

वे कहते हैं कि दुनिया की बड़ी और छोटी शक्तियों को इससे सीख लेनी चाहिए कि अगर एक छोटा सा देश भी चाहे तो, वह अपनी अखंडता के आधार पर एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय खिलाड़ी बन सकता है.

क़तर के पूर्व ख़लीफ़ा हमद-बिन-ख़लीफ़ा-अल-सानी ने अपने पिता का तख़्ता पलटने और सत्ता संभालने के बाद, जो भी निवेश किया, वह फ़ायदेमंद साबित हुआ है और चाहे वह निवेश राजनयिक या वित्तीय सतह पर किया गया हो, दोनों में क़तर का फ़ायदा हुआ है.

इसका उदाहरण देते हुए डॉक्टर क़ंदील कहते हैं कि ‘सबसे पहले उन्होंने यूरोप में भारी निवेश किया, फ़ुटबॉल क्लबों और होटलों में पैसा लगाया और इसके आधार पर अपनी एक सॉफ़्ट इमेज बनाई और ब्रिटेन और अमेरिका जैसी शक्तियों के साथ अच्छे संबंध बनाये. क़तर में अल-अदीद एयरबेस को अमेरिका और ब्रितानी सेना को दिया हुआ है. वे इससे पैसा भी कमा रहे हैं और उसको राजनीतिक महत्व भी मिल रहा है.’

क़तर तेल और गैस से मिलने वाले बेशुमार पैसे का निवेश दुनिया भर के देशों में करता है. इनमें ब्रिटेन और अमेरिका जैसे स्थिर अर्थव्यवस्था वाले देश प्रमुख हैं.

न्यूयॉर्क की ऐम्पायर स्टेट बिल्डिंग, लंदन के सबसे ऊंचा टावर द शार्ड, ऊबर और लंदन के डिपार्टमेंट्ल स्टोर हैरेड्स में क़तर के सुल्तान की बड़ी हिस्सेदारी है. इसके अलावा दुनिया की कई बड़ी कंपनियों में भी क़तर की हिस्सेदारी है.

क़तर की समृद्धि का आकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में क़तर पिछले कई सालों से ऊंचे पायदान पर रहा है.

क़तर की सॉफ़्ट पॉवर

इसके साथ ही क़तर ने तमाम देशों के बीच जारी विवादों में मध्यस्थ की भूमिका निभाकर अपनी अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय साख को मजबूती दी है.

लेकिन क़तर को सबसे ज़्यादा फायदा अपने मीडिया नेटवर्क अल-जज़ीरा से मिला.

डॉक्टर क़ंदील बताते हैं, “वैसे तो और भी चीज़ें हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए उनके पास सबसे अच्छा साधन उनका अल जज़ीरा नेटवर्क था. अल जज़ीरा ने न केवल पत्रकारिता की संस्कृति को बदल दिया है, बल्कि पहली बार ऐसा हुआ कि कोई नेटवर्क नॉन स्टेट एक्टर को सामने लाया और इस तरह क़तर की क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सॉफ़्ट पावर बनकर उभरा है.”

डॉक्टर क़ंदील इस बदलाव का श्रेय मध्य पूर्व में हुई ‘अरब स्प्रिंग’ को भी देते हैं, जिसने मध्य पूर्व में स्वतंत्रता और विचार की एक नई लहर को जन्म दिया था.

वे कहते हैं, “अरब स्प्रिंग के समय क़तर के पास दो विकल्प थे, या तो वो बादशाहों और तानाशाहों का साथ दे और उनके नीचे चुपचाप अकेले चलता रहे, या फिर जो नॉन स्टेट एक्टर सामने आ रहे थे, उनके साथ चले. मुझे लगता है कि क़तर ने दूसरा विकल्प चुना. क़तर ने उन समूहों का समर्थन करना शुरू कर दिया जो विभिन्न देशों में लोकतंत्र के नाम पर संघर्ष कर रहे थे.

उन्होंने हमेशा इख़्वान-उल-मुस्लिमून का समर्थन किया, फिर हमास और फ़लस्तीन को सपोर्ट किया. और इसके साथ-साथ, इसने सीरिया में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ख़ासतौर से जब तुर्की ने उत्तरी सीरिया पर हमला किया,तो क़तर ने उसका पूरा समर्थन किया. यह सब चीज़ें वो थीं जो उस समय वॉशिंगटन और मध्य पूर्व में ‘स्टेटस को’ के ख़िलाफ़ थी. क़तर ने एक अलग पहचान बनाते हुए विपरीत दिशा में बढ़ना शुरू किया.

यह सच है कि उसे किसी न किसी स्तर पर विभिन्न राज्यों के विरोध का सामना करना पड़ा है, लेकिन सार्वजनिक तौर पर उसकी काफी सराहना हुई और एक अलग अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली.”

क़तर की ‘स्मार्ट पावर’

साल 2007 में, अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक जोसेफ़ नई ने अपनी थ्योरी में, सॉफ़्ट पावर (दूसरों की वरीयताओं को बदलने की क्षमता) और हार्ड पावर (बल और शक्ति के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता, यानी डंडे की नीति) को मिला कर, एक स्मार्ट पावर थ्योरी पेश की थी.

स्मार्ट पावर सॉफ़्ट और हार्ड पावर को मिलाकर आपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता का नाम है. यानी धक्का भी दो और खींचो भी, ताक़त की ज़रूरत पर भी निर्भर रहो और नए गठबंधनों और संस्थानों में भी निवेश करो.

डॉक्टर क़ंदील का मानना हैं कि अब शायद हार्ड पावर का दौर ख़त्म होता जा रहा है और सॉफ़्ट पावर का दौर है.

वे कहते हैं, “मुझे लगता है कि अब क़तर भी स्मार्ट पावर पेश करने की कोशिश कर रहा है. जब सभी अरब देशों ने पश्चिम समर्थक या अमेरिकी समर्थक नीति अपनाने की कोशिश की, तो क़तर ने एक स्वतंत्र और निष्पक्ष नीति अपनाना पसंद किया, यानी एक तरफ वह अपनी स्वतंत्रता व्यक्त करे और दूसरी तरफ अपनी तटस्थ नीति अपनाए. उनके अनुसार इसका मुख्य लक्ष्य क्षेत्रीय शांति और राजनीतिक स्थिरता की ओर बढ़ना था.

अब ये चीज़ें ‘स्टेटस को’ के ख़िलाफ़ जा रही थीं और इसलिए, जब उन्होंने अल जज़ीरा का इस्तेमाल किया, तो दो चीज़ें सामने आईं. एक तो यह है कि क़तर ने अल जज़ीरा नेटवर्क के माध्यम से और ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन और क्लिंटन फाउंडेशन को बहुत बड़ा चंदा देकर अपनी सॉफ़्ट इमेज बनाई, और पश्चिमी देशों में भारी निवेश भी किया. जिससे क्षेत्रीय शक्तियां उसे अपने लिए ख़तरा मानने लगीं.”

दूसरी ओर, ईरान जैसी क्षेत्रीय ताकत की ओर से यह नज़रिया भी सामने आया कि जिस तरह से अल जज़ीरा ने नॉन स्टेट एक्टर्स को पेश किया है और पहली बार चरमपंथियों को लोगों का सिर काटते हुए दिखाया है. यह बिल्कुल वैसा ही है, जैसा पश्चिम साबित करना चाहता था, कि मुसलमान यह सब करते हैं. उन्होंने यह काम ख़ुद करने के बजाय अल जज़ीरा के माध्यम से कराया. ईरान का मानना है कि इसी नज़रिये को ध्यान में रखते हुए पश्चिम ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक युद्ध की घोषणा की थी.”

तालिबान और क़तर

अफ़ग़ानिस्तान क़तर की स्मार्ट पावर नीति का ताज़ा उदाहरण है. यह क़तर की ही बहादुर और अथक मध्यस्थता है जिसके कारण अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता हुआ और इसके बाद तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया.

अमेरिका भी साफ़ निकल गया और तालिबान की भी काबुल में वापसी हो गई.

डॉक्टर क़ंदील ने पिछले साल काबुल संकट के दौरान कहा था कि, “कुछ लोग सोचते हैं कि क़तर अपने साइज़ और वज़न से अधिक वज़न उठाने की कोशिश कर रहा है, और ऐसा करने से कभी-कभी छोटे राज्य तबाह भी हो जाते हैं. लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह अंतरराष्ट्रीय समझ के बिना हो सकता है, और अमेरिका की तरफ से जो ग्रीन सिग्नल उन्हें दिया गया था, उसी के आधार पर, उन्होंने अल-क़ायदा, आईएसआईएस, हमास, हिज़बुल्लाह और इख़्वान-उल-मुस्लिमून और तालिबान के साथ अच्छे संबंध रखे हैं. ताकि अंतरराष्ट्रीय शक्तियों और इन नॉन स्टेट एक्टर्स के बीच कोई कम्यूनिकेशन गैप न रहे.

क़तर ने एक पुल की भूमिका निभाई है, जिसमें एक तरफ़ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां, दूसरी तरफ़ नॉन स्टेट एक्टर्स और बीच में क़तर है. अब तालिबान के आने के बाद, क़तर ही संचार का एकमात्र साधन बना हुआ है. यानी जो कोई भी तालिबान से बात करना चाहता है, क़तर ही उनसे बात करा रहा है, और मुझे लगता है कि तालिबान के रवैये को बदलने में भी उसकी बड़ी भूमिका है. जैसा कि हमने देखा कि क़तर में बैठकर उन्होंने पूरी रणनीति ही बदल दी और अपनी एक सॉफ़्ट इमेज बनाने की कोशिश की, और अफ़ग़ानिस्तान में उन्हें जो सफलता मिली है, वह भी उन्हीं की बदौलत है.”

(कॉपी – अनंत प्रकाश) सौज- बीबीसी हिन्दी

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