प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक और संपादक प्रभाकर चौबे की छठवी बरसी पर आयोजित *प्रभाकर चौबे स्मृति संवाद श्रृंखला* के 7 वे आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील त्रिवेदी ने अपने उद्बबोधन् में कहा कि लोक हित और देश हित के लिए प्रारम्भ पत्रकारिता आज जन सरोकार से दूर होती जा रही है
प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक और संपादक प्रभाकर चौबे की छठवी बरसी पर आयोजित *प्रभाकर चौबे स्मृति संवाद श्रृंखला* के 7 वे आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील त्रिवेदी ने अपने उद्बबोधन् में कहा कि लोक हित और देश हित के लिए प्रारम्भ पत्रकारिता आज जन सरोकार से दूर होती जा रही है
विदित हो कि प्रभाकर चौबे लगभग छह दशक तक पत्रकारिता और साहित्य से जुड़े रहे। उनका व्यंग्य स्तम्भ ” हँसते हैँ रोते हैँ” लगभग तीस वर्षो तक नियमित रूप से प्रकाशित होता रहा। फाउंडेशन के अध्यक्ष जीवेश प्रभाकर ने बताया कि प्रभाकर चौबे की स्मृति में प्रति वर्ष फाउंडेशन के तत्वावधान में व्याख्यान ,संवाद कार्यक्रम आयोजित् किया जाता है।
*प्रभाकर चौबे फाऊंडेशन* के तत्वावधान में संवाद श्रंखला का यह 7 वां आयोजन था। प्रारम्भ में प्रभाकर चौबे की पुण्यतिथि पर उन्हे पुष्पांजलि अर्पित की गई एवं मुख्य वक्ता श्री सुशील त्रिवेदी का आलोक चौबे एवं अध्यक्ष डॉ आलोक वर्मा का नंद कुमार कंसारी द्वारा पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया।
इस वर्ष यह आयोजन पत्रकारिता पर केंद्रित किया गया था। व्याख्यान का विषय “वर्तमान दौर में मीडिया की विश्वासनीयता और चुनौतिया” था। वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील त्रिवेदी ने अपने वक्तव्य में आगे कहा कि इनफार्मेशन टेकनोलॉजी और ए आई के आधुनिक दौर में पत्रकारिता भी गंभीर रूप से प्रभावित है जिसकी चुनौतियों का सामना कल्पना शक्ति से ही किया जा सकता है। उन्हीने पहले हिंदी समाचार पत्र उद्दंड मार्तण्ड के घोषणा पत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि 200 वर्ष पूर्व लोक हित और देश हित के सरोकार को लेकर प्रारम्भ पत्रकारिता आज जन सरोकार से दूर होती जा रही है। उन्होंने पत्रकारिता को लेकर महात्मा गांधी की चिंताओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि लगभग 100 वर्ष पूर्व ही महात्मा गांधी पत्रकारिता में गैरजिम्मेदार, अनर्गल , झूठे और भ्रामक समाचारों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे जो आज व्यापक रूप से हमारे सामने है । मुख्य वक्ता के रूप में श्री सुशील त्रिवेदी ने अपने संक्षिप्त मगर सारगर्भित उदबोधन् में पत्रकारिता की विश्वसनीयता और चुनौतियों के सन्दर्भ में पेड़, फेक और नो न्यूज़ पर विस्तार से बात की।
कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि डॉ आलोक वर्मा ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन् में पत्रकारिता की जमीनी सच्चाई पर अपने बात रखी। उन्होंने हालिया संपन्न लोकसभा चुनाव में मीडिया कवरेज , विभिन्न सर्वे और परिणाम को लेकर , विशेष रूप से अयोध्या और बनारस, के उदाहरण देते हुए जमीनी रिपोर्टिंग की विश्वासनीयता पर अपनी बात कही। उन्होंने पत्रकारिता में जन भागीदारी की चर्चा करते हुए कहा कि आम जन को सच्ची और जनपरक पत्रकारिता करने वाले साहसी पत्रकारों के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए।
*प्रभाकर चौबे फाऊंडेशन के तत्वावधान में संवाद श्रंखला के इस 7 वे आयोजन में बड़ी संख्या में नगर के सुधीजन उपस्थित थे।