ब्रिक्स को चीन और रूस के दबदबे वाला समूह माना जाता है. चीन, रूस और ईरान खुलकर पश्चिम विरोधी बातें करते हैं. दूसरी तरफ़ सऊदी अरब, यूएई और मिस्र पश्चिम और चीन के बीच संतुलन बनाकर रखते हैं. मिसाल के तौर पर भारत और ब्राज़ील को छोड़कर सभी ब्रिक्स सदस्य चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई में शामिल हैं.
1948 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ”यूरोप की समस्याओं के समाधान में मैं भी समान रूप से दिलचस्पी रखता हूँ. लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि दुनिया यूरोप के आगे भी है. आप इस सोच के साथ अपनी समस्या नहीं सुलझा सकते हैं कि यूरोप की समस्या ही मुख्य रूप से दुनिया की समस्या है.”
नेहरू ने कहा था , ”समस्याओं पर बात संपूर्णता में होनी चाहिए. अगर आप दुनिया की किसी एक भी समस्या की उपेक्षा करते हैं तो आप समस्या को ठीक से नहीं समझते हैं. मैं एशिया के एक प्रतिनिधि के तौर पर बोल रहा हूँ और एशिया भी इसी दुनिया का हिस्सा है.”
भारत के मौजूदा विदेश मंत्री एस जयशंकर यूक्रेन पर रूस के हमले के मामले में भारत का पक्ष बहुत ही आक्रामक तरीक़े से रखते रहे हैं.
2022 के जून महीने में एस जयशंकर ने स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा में एक कॉन्फ़्रेंस में कहा था, ”यूरोप इस मानसिकता के साथ बड़ा हुआ है कि उसकी समस्या पूरी दुनिया की समस्या है, लेकिन दुनिया की समस्या यूरोप की समस्या नहीं है.”
भारत की विदेशी नीति और भारत का एक साथ ब्रिक्स और क्वॉड दोनों में होना इन दोनों बयानों में निहित है.
ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चाइना और साउथ अफ़्रीका के गुट को ब्रिक्स कहा जाता था, लेकिन इस साल जनवरी में इस समूह का विस्तार हुआ और इसमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब के साथ यूएई भी शामिल हुए.
ब्रिक्स को चीन और रूस के दबदबे वाला समूह माना जाता है. चीन, रूस और ईरान खुलकर पश्चिम विरोधी बातें करते हैं.
दूसरी तरफ़ सऊदी अरब, यूएई और मिस्र पश्चिम और चीन के बीच संतुलन बनाकर रखते हैं. मिसाल के तौर पर भारत और ब्राज़ील को छोड़कर सभी ब्रिक्स सदस्य चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई में शामिल हैं.
ब्राज़ील भले चीन की बीआरआई परियोजना में शामिल नहीं है, लेकिन 2022 में लूला डा सिल्वा के राष्ट्रपति बनने के बाद से संबंध गहरे हुए हैं. ब्राज़ील के कुल निर्यात का एक तिहाई चीन को होता है.
लेकिन सभी ब्रिक्स सदस्य देशों में भारत एकमात्र देश है, जो पश्चिम से रणनीतिक साझेदारी मज़बूत कर रहा है और चीन से तनावपूर्ण संबंध को लेकर भी संतुलन बनाए हुए है.
भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका है और दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन है.
भारत एक तरफ़ इंडो-पैसिफिक में चीन से मुक़ाबले के लिए क्वॉड में है तो दूसरी तरफ़ ब्रिक्स में भी है. ब्रिक्स और क्वॉड के लक्ष्य बिल्कुल अलग हैं. ब्रिक्स पश्चिम के प्रभुत्व को चुनौती देने की बात करता है और क्वॉड को चीन अपने लिए चुनौती के तौर देखता है.
जर्मन प्रसारक डीडब्ल्यू से जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के डीन श्रीराम चौलिया ने कहा, ”जब ब्रिक्स का विस्तार नहीं हुआ था तब तक यह बातचीत का चौपाल था.”
”ऐसे में भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक तौर पर हासिल करने के लिए बहुत कुछ नहीं था. लेकिन अब ब्रिक्स का विस्तार हो चुका है और यहाँ एक किस्म की प्रतिस्पर्धा है. ऐसे में हम नहीं चाहते हैं कि ब्रिक्स का पूरा स्पेस चीन को सौंप दिया जाए.”
विस्तार के बाद ब्रिक्स के पास वैश्विक जीडीपी का 37 फ़ीसदी हिस्सा है जो कि यूरोपियन यूनियन की जीडीपी से दोगुना है.
चौलिया ने डीडब्ल्यू से कहा, ”चीन चाहता है कि ब्रिक्स प्लस पश्चिम के ख़िलाफ़ डटकर खड़ा रहे लेकिन जिस तरह से विस्तार हुआ है, उसमें चीन का मक़सद हासिल होता दिख नहीं रहा है. क्या ब्रिक्स को वैसे देशों से मज़बूती मिलेगी जो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ की मदद से चल रहे हैं?”
”यह गुट क़र्ज़ मांगने वाले देशों का समूह बन जाएगा न कि एक दूसरे को मदद करने वालों का. मुझे लगता है कि ब्रिक्स के भीतर भी प्रतिस्पर्धा होगी न कि चीन का पूरी तरह से दबदबा होगा. यहाँ तोलमोल की पर्याप्त गुंजाइश होगी.”
हाल ही में चीन ने पाकिस्तान को ब्रिक्स में शामिल करने का समर्थन किया है. रूस ने भी तत्काल पाकिस्तान की सदस्यता का समर्थन कर दिया. लेकिन भारत भी ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है और बिना भारत के समर्थन के पाकिस्तान का गुट में आना आसान नहीं है.
सौ.बीबीसी