
वरिष्ठ कथाकार एवं अकार के संपादक प्रियंवद ने कहा – साहित्य का उद्देश्य मनुष्यता के साथ खड़े होना है। प्रगतिशील लेखक संघ की 90वीं वर्षगांठ पर राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा जयपुर में आयोजित साहित्य दिवस में अपने उद्बोधन में उक्त उदगार व्यक्त किए।
प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के नब्बे वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आज राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति, जयपुर में “साहित्य दिवस” का भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर देशभर से आए साहित्यकारों, लेखकों, और साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति में विचारोत्तेजक संवाद हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, सुप्रसिद्ध कथाकार,विचारकऔर अकार पत्रिका के संपादक प्रियंवद ने कहा कि “हर लेखक के भीतर रचनात्मक संघर्ष की एक अनवरत प्रक्रिया चलती रहती है। यह संघर्ष लेखक के चेतन, अवचेतन और चेतन सभी स्तरों पर सक्रिय रहता है, लेकिन यही संघर्ष लेखक को परिपक्व करता है और अंततः उसे विजयी भी बनाता है।”
उन्होंने कहा कि लेखन कोई यश, धन, प्रतिष्ठा या सम्मान पाने का माध्यम नहीं बल्कि यह एक गहरी आंतरिक ज़रूरत है—अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचार और कल्पना का विराट क्षितिज तथा मनुष्य की पक्षधरता ही लेखन को सार्थक बनाती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि “कविता, कहानी और उपन्यास ऐसे माध्यम हैं जहाँ लिखने और बोलने की वास्तविक आज़ादी है। जब हम धर्म, राजनीति, सत्ता और समाज के विरुद्ध तथा कमजोरों और वंचितों के पक्ष में लिखते हैं, तभी हम मनुष्यता के साथ खड़े होते हैं। यही लेखन का असली उद्देश्य है।”
प्रियंवद ने रेखांकित किया कि साहित्य के माध्यम से हमें विचार की असीम संभावनाएँ मिलती हैं। लेखक का परिवेश, अनुभव और आत्मबोध उसकी लेखनी को दिशा देते हैं। एक लंबे लेखकीय जीवन के बाद रचनात्मकता धीरे-धीरे दर्शन की ओर अग्रसर होती है। उन्होंने कहा कि “जब लेखन की भाषा सहज और सरल हो जाए और रचना सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती चली जाए तो समझना चाहिए कि लेखक रचनात्मक विकास के सर्वोत्तम स्तर पर पहुँच चुका है।”
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. सुखदेव सिंह सिरसा ने लेखन की प्रकृति पर बोलते हुए कहा कि रचनात्मकता कोई यांत्रिक क्रिया नहीं है, जिसे सिखाया जा सके। उन्होंने कहा कि “लेखन एक अत्यंत सूक्ष्म कार्य है और यह अकेले व्यक्ति की यात्रा नहीं होती। हर लेखक की अपनी दृष्टि होती है। यह परिवेश और समय ही है जो लेखक से लिखवाता है।”उन्होंने कहा कि साहित्य विचार नहीं, बल्कि विचारशीलता है और लेखक कभी विचारों से मुक्त नहीं हो सकता। लेखक का एक सतत संघर्ष स्वयं सेऔर दूसरा समाज से होता है।
वरिष्ठ आलोचक डॉ राजाराम भादू ने राजस्थान में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना, उसके उद्देश्यों और अब तक की विकास यात्रा को रेखांकित किया। उन्होंने संगठन की ऐतिहासिक भूमिका को याद किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा कि लेखक मूलतः एक एक्टिविस्ट होता है। उन्होंने कहा कि “चाहे किसी आंदोलन में भाग लेना हो या फिर अपने लेखन में आंदोलन की बात करना—दोनों ही लेखक की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।”
डॉ. भारद्वाज ने ने कहा कि “तकनीक की अधिकता मनुष्यता को खा रही है, लेकिन लेखकों को इससे डरना नहीं चाहिए। साहित्य से इतर होते ही हमारी मनुष्यता की पक्षधरता खो जाती है।”उन्होंने साहित्य को जीवन और प्रकृति से जोड़ते हुए कहा कि “लेखकों को न केवल मनुष्य के बल्कि जीव-जंतुओं और प्रकृति के प्रति भी अपनी संवेदनाओं को जागृत रखना चाहिए।”
कार्यक्रम का संचालन प्रदेश महासचिव रजनी मोरवाल और प्रेमचंद गांधी ने किया तथा अतिथियों का आभार फ़ारूक़ आफ़रीदी ने व्यक्त किया।इस अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ के अनियतकालीन बुलेटिन ‘प्रगतिशील संवाद’ का विमोचन भी किया गया।
रिपोर्ट: फारूक आफरीदी, वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार