कहानी- काले लिबास वाली महिला- गोपाल नायडू

किसी महिला ने फेसबुक में एक पोस्ट डाला कि पिछले कई दिनों से अटलांटा शहरके  पीच ट्री सिटी के हाइवे-74 से सटकर कार्ट पथ पर एक महिला  उसके गोल्फ कार्ट गाड़ी परघूमती  या  बैठीदिखती है। यह कार्ट पथ केवल पैदल चलने वाले और गोल्फ कार्ट गाड़ी के लिए है। इस तरह यह कार्ट पथ पूरे शहर को ठीक वहाँ की मुख्य सड़क की तरह शहर के प्रत्येक इलाके से जोड़ता है। इस महिला की उम्र  पचास साल की होगी। पिछली बार वह महिला पीच ट्री  क्रोगर माल शॉप के करीब नजर आयी थी। हो सकता है वह अधेड़ उम्र की महिला पीच ट्री सिटी में ही घूमती-फिरती होगी। फेसबुक से जुड़े लोगों ने इस पोस्ट को पढा और शेअर किया। इस तरह यह खबर प्रीच ट्री सिटी के अलावा अन्य स्थानों में हवा की तरह फैल गई। हम सभी फेसबुक की अजीब दुनिया में जी रहे हैं। फेसबुक की हर  पोस्ट सही या गलत है, इसका अनुमान लगा पाना इस अफवाह भरी दुनिया में और भी मुश्किल है। फिर भी लोग ……

           आधुनिक दुनिया में किसी को भी इस बात पर यकीन नहीं हुआ। बहुत समय बाद इस किस्से पर लोगों को यकीन होने लगा। इस इलाके के रहवासियों में से कोई न कोई उस महिला के बारे में आए दिन पोस्ट डालने लगा। आज आधी  रात के करीब कड़कड़ाती ठंड में वह महिला क्रोगर माल शॉप के पीछे वाले  कार्ट  पथ पर गोल्फ कार्ट पर दिखी। । मैंने सड़क के किनारे कार रोकी और उसके करीब गई। उसके अन्य सामान के बीच वह एक गठरी की तरह पड़ी हुई थी। मैंने उससे पूछा क्या तुम्हें कोई मदद चाहिए। उसने सिर हिलाकर नहीं कहा। बहुत कोशिश के बाद भी मैं उसके चेहरे को नहीं देख सकी। हाँ, वह सिर से पैर तक काले लिबास में थी। इस काले लिबास की बात की पुष्टि तमाम उन लोगों ने भी की जिन्होने उस महिला को वक्त-बेवक्त देखा था।

          पोस्ट पढ़कर काले लिबास वाली महिला के प्रति यहाँ के लोगों की रुचि कुछ अधिक ही बढ़ने लगी थी। लोग आशंकित भी थे। कहीं यह महिला कोई जासूस तो नहीं है। या फिर अतृप्त आत्मा तो नहीं है। लोग सतर्क होने लगे। कहीं उस महिला ने किसी अंजान जगह में कभी धर-दबोचा तो…… वैसे भी  अमेरिका की सरकार  अन्य मुल्कों पर युद्ध लादती या करती रहती है।  सरकार की युद्ध नीति का परिणाम अमेरिकी जनता ने देख और भुगत लिया था। नौ-ग्यारह को न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले का वीभत्स दृश्य उन लोगों के सामने समय-समय पर आँखों के सामने नाँचने लगता है। इस हमले में मरने वालों की संख्या अच्छी खासी थी। संशय के चलते एक उम्रदराज गुजराती आदमी को भी बड़े ही बेरहमी से पुलिस ने पीटा था. वह आदमी मौत के गाल में समा गया था।  जायज है इन लोगों का संशय में जीना।

           काले लिबास वाली महिला का अनुभव ठीक इसके विपरीत निकला। उस महिला से किसी को भय नहीं था। वह किसी से कुछ नहीं कहती। मांगती भी नहीं थी। और न किसी से कोई अपेक्षा रखती। ऐसा भी नहीं था कि उस इलाके के लोग बेरहम या अमानवीय थे. वैसे भी अटलांटा के लोग कैथोलिक धर्म को मानते हैं। अमेरिका जैसे आधुनिक दुनिया में भी इन लोगों की ईश्वर पर गहरी आस्था है। ये लोग धर्म भीरु हैं। जरूरतमंद लोगों की सहायता करना। दुख-दर्द के समय साथ खड़े होने वाले लोग हैं। वरना वे लोग पापी होने के बोध में जीते रहते हैं। यह उनके धर्म का अटूट अंग है।  उस महिला के जीवन की चिंता भी इसी धर्म का तकाजा है। उस महिला के लिए उन लोगों की चिंता दिन प्रति दिन और गहरी होती जा रही थी। चूंकि सभी ने उस महिला के बेहतरी के लिए पूरी कोशिश कर ली थी। और अंत में थक-हारकर पुलिस को भी सूचित कर दिया था। लेकिन लाख कोशिश के बावजूद पुलिस कुछ नहीं कर पायी। पुलिस किसी नतीजे पर भी नहीं पहुँच पायी थी। इस मामले पर  पुलिस ने भी उनकी विवशता जाहीर की थी। पुलिस ने भी उनकी विवशता के बारे में कुछ  नहीं बताया। सभी लोगों ने अपने-अपने स्तर पर उठा-पठक की लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा। हाँ पुलिस ने इतना ही कहा कि वह महिला गोरी है और उसका जन्म इसी जगह हुआ है।

          रविवार का दिन था। इस दिन पीचट्री के  चर्च में बड़ी संख्या में लोग प्रार्थना के लिए आते हैं।  इस काले लिबास वाली  महिला पर फेसबुक में सबसे पहले पोस्ट डालने वाली महिला ने चर्च के प्रांगण में इकट्ठा हुए लोगों के बीच इस अद्भुत वाकये पर चर्चा करनी चाही। वहाँ उपस्थित सभी लोग सकते में आ गए। चर्च के परिसर में सन्नाटा पसर गया। बड़ी तादाद में लोग हाजिर थे। फिर भी सन्नाटा ऐसा जैसे कोई बड़ी घटना घट गई हो। सभी की निगाहें फेसबुक पर सबसे पहले पोस्ट डालने वाली महिला पर ठहर गई।  सभी भयभीत थे। सभी के चेहरे पर भय का भाव नजर आने लगा। इस चिंता के भाव अगर रंगों में होते तो एक रंग-बिरंगी पेंटिंग बन जाती। सभी सोच में डूब गए थे।  कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं घट गई। कहीं उसने किसी पर हमला तो नहीं किया। कहीं वह काली लिबास वाली महिला भूख की वजह से… कहीं बेहद कड़कड़ाती ठंडी में बर्फ की तरह जम तो नहीं गयी। कहीं इस दुनिया को अलविदा तो नहीं कह दी। जितने लोग उतने ही प्रश्न खड़े हो रहे थे।

          उस पोस्ट को डालने वाली महिला ने सन्नाटा तोड़ा। कहना शुरू किया,‘हम सभी यहाँ एकत्रित है। यह एक अच्छा अवसर है।  इस मौके पर इस  अद्भुत वाकए पर चर्चा कर कुछ संतोषजनक हल निकाला जा सकता है। हम सभी जानते हैं इस इलाके में इसके पहले कभी जो हुआ न था, जो कभी होना मुमकिन न था, वह हो रहा है। सभी लोग कुछ इसी तरह का सोच रहे थे। हालांकि सभी खामोश थे। वह महिला फिर से कहने लगी,‘जैसा आप सभी सोच रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं हुआ। वह काले लिबास वाली महिला मुझे फिर से मुख्य सड़क के पास दिखी।  देखते ही वह काठ पथ से सटे घने जंगल की ओर गोल्फ कार्ट को मोड़कर घुस गयी। मुझे आश्चर्य हुआ कि घनी झड़ियों में वह सरपट कार्ट चला रही थी। एक क्षण के लिए लगा कि वह महिला कार्ट से उतरकर पैदल ही जाएगी। ऐसा नहीं हुआ। मैं सोचती रही और वह मेरी नजरों से ओजल हो गई। यह मेरे समझ के बाहर था। मुझे उसकी इस हरकत के पीछे किसी रहस्य का बोध होने लगा। मैं वहाँ एक क्षण के लिए भी नहीं रुकी और अपनी कार में आकर बैठते ही  घर की ओर निकल गयी।

          फिर क्या था, लोगों को उनकी शंकाओं को भी कहने का अवसर मिल गया। शंका तो शंका ही होती है। किसी नतीजे पर नहीं ले जाती है। हाजिर लोगों में से हर किसी को लग रहा था कि वे भी अपनी बात रखने के बहाने उपस्थिती दर्ज करा दे।

किसी ने कहा,‘इस जंगल के इर्द-गिर्द बसे लोगों से यह भी पता चला कि वह काली लिबास वाली महिला ने कभी भी जमीन पर पैर नहीं रखा। बस, वह अकेली, दिशाहीन, किसी गुनाहगार की  तरह जंगल में इधर-उधर भटकती रहती है।

-‘ये भी हो सकता है कि घने जंगल में पहुँचकर कुछ खाना खा लेती हो।

-‘हो सकता है उसे कोई खाना देता हो। छुपकर जंगल में वह …

-‘लेकिन वह तो कुछ भी स्वीकार नहीं करती है।

-‘कहीं ऐसा तो नहीं कि वह महिला ने ईश्वर से कुछ मनन्त मांगी हो। इस मन्नत की प्राप्ति तक वह महिला इसी तरह जीवन गुजर-बसर करना चाहती हो।

-‘या किसी बड़े अवसाद में जी रही हो या कहीं कोई ऐसी-वैसी बीमारी से पीड़ित    हो जिसकी वजह से वह घर के लोगों को परेशान नहीं करना चाहती हो।

इसी बीच वहाँ उपस्थित 97 वर्ष की सबसे वयोवृद्ध महिला ने कहना शुरू किया,‘मेरा तो जन्म जार्जिया राज्य के इस इलाके में हुआ है। लेकिन प्रीच ट्री कॉलोनी  डेल्टा एयर लाइंस के रिटायर्ड कर्मचारिओं के लिए बनाया गया है। इस इलाके में सिर्फ गोरे लोग ही रह सकते थे। काले लोगों के लिए यह इलाका प्रतिबंधित था। इसीलिए यहाँ किसी भी तरह की पब्लिक ट्रांसपोर्ट सेवा उपलब्ध नहीं थी। अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सर्विस की सुविधा होती तो काले लोग इसका उपयोग करते।  और इस वसाहत को बसाने का उद्देश्य खत्म हो जाता। उस वृद्धा की बात को वहाँ उपस्थित लोग बड़े ही ध्यान से सुन रहे थे। उनमें से कुछ लोगों के लिए यह जानकारी थी। उन्होने यह बात कभी सुना नहीं था। इसी बीच किसी महिला ने कहा,‘और इस पर रोशनी डालिए।

बुड़ी अम्मा कहने लगी,‘समय के साथ काले लोगों ने डॉ॰ मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व में आज़ादी, समानता, आदि, के स्वर तेजी से उठे। और आज स्थिति में काफी बदलाव हुआ। उनके हक में कानून पारित हुए। गोरे लोगों के दिल और दिमाग में काले लोगों के लिए हीन भावनाएं समय-समय पर उजगार होती  रहती है। वहीं बाजारवाद ने भी इस हीन भावना पर कुछ हद तक अंकुश लगाया। इस इलाके में और भी कॉलोनियाँ बनी। लोगों की जरूरत के लिए माल-शॉप भी बनाए गए। चूंकि बाज़ार तो मुनाफे के उद्देश्य को लेकर चलता है न की रंग पर। इसीलिए तो आज प्रीच ट्री में सभी तरह के लोग रहने लगे हैं। लेकिन यह काले लिबास वाली महिला तो गोरी है. लेकिन उसका लिबास और सभी वस्तुएं  काली  है। यहाँ तक कि उसने चेहरे पर भी काला रंग पोत रखा है। यह मुझे कुछ उलझन में डालता है। इतनी लंबी उम्र में मैंने कभी इस तरह का वाक्या नहीं देखी। लगता है कुछ अनर्थ घटने वाला है। वह थोड़ी देर तक खामोश रहने के बाद बोली,‘इसका हल खोजना पड़ेगा। और उठकर जाने लगी।

          लोगों की बातों को बड़े धीरज के साथ एक कोने में बैठी हुई महिला सुन रही थी। उसकी उम्र 25-30 साल की होगी। वह बेहद लज्जित महसूस कर रही थी। बहुत ही सावधानी से छोटे बच्ची को संभालते हुए वह महिला खड़ी हुई। बड़े ही संयम के साथ कहने लगी,‘एक अरसे से मैं भी काले लिबास वाली महिला के बारे में तरह-तरह की किस्से सुन रही हूँ। मेरे रिश्तेदार, पड़ौसी और मित्र सभी इस वाकए पर चर्चा कर रहे हैं।

           वह महिला कुछ समय के लिए खामोश हो गयी।  थोड़ी देर के बाद  उस महिला ने  एक लंबी सांस ली और छोड़ी। जैसे उसके गले में शब्द अटक गए हो। इन शब्दों को वह निकालने की कोशिश कर रही हो। कहने लगी,‘आप सभी लोग दरअसल सच्चाई नहीं जानते हो। हम सभी की तरह वह काले लिबास वाली भी एक महिला है। यह महिला हमारी ही तरह किसी की पत्नी, माँ,  बहन, आदि है। यह काली लिबास वाली महिला और कोई नहीं है।  यह महिला मेरी माँ है। मैं उसकी इकलौती संतान हूँ। मेरा नाम क्रिस्टीना है। माँ का नाम सूजन है।  मेरी दो बेटियाँ है। सुनिए, मुझे भी मेरी माँ के संदर्भ में कहना है।

           वहाँ हाजिर लोगों के मुँह से क्रिस्टीना की माँ … और सभी के चेहरे में विस्मय के भाव उभर आए थे। सभी एक-दूसरे की ओर देखने लगे जैसे किसी रहस्य से पर्दा उठा हो। पर्दा नहीं पूरा आसमान ही धड़धड़ाकर गिर पड़ा हो। लंबे समय तक सन्नाटे ने पूरे चर्च परिसर को कब्जे में ले लिया।  इसी सन्नाटे के बीच सबसे उम्र दराज बुड़ी अम्मा लकड़ी के सहारे क्रिस्टीना के करीब आ गई। बुड़ी अम्मा ने क्रिस्टीना के सिर पर आहिस्ते से हाथ फेरा। बुड़ी अम्मा को जीवन का तजुर्बा वहाँ इक्कठे हुए लोगों से अधिक था। अम्मा ने अपने अनुभव जगत का सहारा लिया और कहने लगी,‘बेटी मैं तुम्हारे साथ बैठी हूँ। आज इन सभी के मन में घुमड़ रहे प्रश्न और शंका का समाधान तुम ही कर सकती हो। कर दो  समाधान। इस रहस्यमय दुनिया से पर्दा उठ ही जाना चाहिए। चाहे जितना भी समय लगे। बुड़ी अम्मा ने पर्स से मोबाइल फोन निकाला और किसी को फोन किया। तब क्रिस्टीना को लगा कि कहीं पुलिस को तो नहीं बुला रही है। क्रिस्टीना से रहा नहीं गया और उसने बुड़ी अम्मा से पूछ ही लिया। लेकिन अम्मा ने कहा,नहीं, मैंने यहाँ उपस्थित लोगों के लिए नाश्ता, कॉफी  के लिए ऑर्डर किया है। क्रिस्टीना ने राहत की सांस ली क्योंकि पुलिस दुनिया भर के प्रश्न करने लगती है।

          सभी लोग बेताब थे क्रिस्टीना को सुनने के लिए। पल दर पल कुछ लोगों के दिल की धड़कन बढ़ रही थी तो कुछ की रुक गई थी।

          जैसे ही क्रिस्टीना बोलने के लिए खड़ी हुई, सबकी निगाहें उसके चेहरे पर जा टिकी। जैसे वह कहानी का पाठ करने जा रही हो। उसने पूरे संयम और आत्मविश्वास के साथ बोलना शुरू किया, ‘मैं पूरी ज़िम्मेदारी के साथ अपनी बात रखूंगी। उम्मीद करती हूँ इस तथ्य को आप लोग फेसबुक में पोस्ट करेंगे। मेरे लिए यह मेहरबानी होगी। वह इसीलिए कि जो लोग यहाँ मौजूद नहीं है उन्हे सच्चाई मालूम हो सके। ऐसा बोलते हुए उसे लग रहा था कि वह किसी कोर्ट या पुलिस थाने में बयान दर्ज करा रही हो। उसे उसकी इस हरकत पर गुस्सा आ रहा था। वह ग्लानि  महसूस कर रही थी। लेकिन वह इसे जरूरी  समझ रही थी। यह उसके लिए एक अच्छा मौका था। जो भी हो कह देने से उसके मन का भड़ास निकल जाएगा। भले ही कुछ समय के लिए ही हो।  वह यह भी महसूस कर रही कि चर्च के प्रांगण में ईसा-मसीह के सलीब के सामने सच्चाई को रखने का यह मौका ईसा ने ही दिया है।         

          क्रिस्टीना ने सबसे पहले सबका आभार माना और कहने लगी,‘मेरी माँ सूजन बहुत ही मासूम स्वभाव की है। उसकी रग-रग में इंसानियत के वे सभी गुण हैं जो एक अच्छे नागरिक में होते हैं। वह बड़ी जिम्मेदार, अनुशासित, शांत स्वभाव की है। ये मेरा कहना नहीं है। ये मेरे सभी रिश्तेदार, आस-पड़ोस के लोगों का मानना है। जहां तक मुझे याद है कि घर में माँ की ही चलती थी। पिताजी शांत थे। मुझे दोनों ही बेहद प्यार करते हैं।  पर एक दिन माँ अचानक कार्ट गाड़ी में सवार होकर जंगल की ओर चली गई। लंबा समय बीत गया वह वापस नहीं लौटी। सभी परेशान थे। तभी उसके आने की आहट हुई। घर के सभी लोग दरवाजे की ओर लपके। दरवाजा खुला और माँ मुस्कराते हुए मुझे गोद में उठा ली। और पिताजी को चूमते हुई कही कि कुछ नहीं ऐसे ही जंगल की सैर करने चली गई। एक अर्सा हो गया जंगल में जाकर।  चिंतित होने की जरूरत नहीं हैं।

     सभी उपस्थित लोग मासूम बच्चों की भांति सुन रहे थे। क्रिस्टीना ने आगे कहना शुरू किया,‘मैं उस दिन को भूल नहीं सकती। जंगल से लौटने के बाद माँ के चेहरे पर अलग ही तरह की खुशी झलक रही थी। ऐसी खुशी मैंने माँ के चेहरे पर इसके पहले कभी नहीं देखी थी। उसके चेहरे पर मासूम बच्चे की तरह मुस्कान थी। जैसे किसी बच्चे को उसका बहुत ही मनपसंद खिलौना मिल गया हो।  इसके बाद गोल्फ कार्ट पर  माँ लगातार जंगल  की सैर पर निकल पड़ती। घर में सभी को आश्चर्य और चिंता होने लगी कि माँ को क्या हो गया है। सभी ने माँ से अपने-अपने तरीके से पूछताछ की। लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।

          माँ को लेकर मैं बहुत परेशान रहने लगी । एक दिन पिताजी किसी काम से बाहर गाँव गए हुए थे। जाते वक्त माँ को कहा क्रिस्टीना और नानी का ख्याल रखना। मेरी नानी हमारे साथ ही रहती थी। मैं कल सुबह तक लौट आऊँगा। बस उन्होने अपनी छोटी सी अटेची उठाई और मुझे प्यार से चूमा, नानी और माँ को अलविदा कहकर चल दिए।

          दूसरे दिन सुबह पिताजी घर लौट आए. आते से ही उन्होने मुझे आईसक्रीम दी जो मुझे पसंद थी। नानी से पूछा,‘सूजन कहाँ है. नानी ने कहा,‘वह तो सुबह से ही कार्ट लेकर जंगल की ओर गई। अक्सर माँ पिताजी के लौटने का इंतजार करती थी.  इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था.  पिताजी चुपचाप उनके कमरे में चले गए और लौटकर बाहर आ गए.  बाहर आते ही उन्होने प्रश्न किया,‘पूरे कमरे को काले रंग से किसने रंग दिया.  कमरे की प्रत्येक वस्तु काले रंग से पुती हुई है. यह कहकर वह बरामदे की कुर्सी पर बैठ गए। उनके चेहरे पर चिंता के भाव आ जा रहे थे.  बावजूद इसके उन्होने गुस्से का इज़हार नहीं किया. सबसे ज्यादा नानी परेशान नजर आ रही थी. शायद नानी को माँ और काले रंग के रिश्ते के बारे में जानकारी थी। नानी ने सिर्फ इतना कहा कि सूजन लौट आएगी.  वह भी बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ गयी। दोनों ही माँ का इंतजार करने लगे.  उन दोनों की आंखो ही आंखो में रात गुजर गयी. 

क्रिस्टीना बताने लगी,‘मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या हुआ और क्या होने जा रहा है.  बस मैं खेलने में ही मग्न थी.  उलझी हुई थी गुड्डा-गुड्डी के खेल में.  नानी और पिताजी के सब्र का बांध टूट रहा था.  पिताजी ने कहा,‘किसी बात की सीमा होनी चाहिए। नानी ने सिर्फ हूँ कहा और उठकर मेरे पास आ गयी.  नानी जानती है कि मुझे नाश्ता चाहिए.  और हम सब सुबह के नाश्ते के लिए टेबल पर होते थे लेकिन  यह  दूर की कौड़ी लग रही थी.  अगर ऐसा ही माहौल रहा तो खाना केवल सपना बनकर रह जाएगा. 

          क्रिस्टीना कह रही थी,‘आने वाले  दिन इसी तरह गुजर रहे थे. पिताजी के चेहरे पर उदासी का रंग दिन प्रति  दिन गहरा होता जा रहा था.  एक शाम वह हमारे साथ खाना खाए और सोने चले गए.  दूसरे दिन जब मैं नींद से जागी और उनके कमरे में गयी.  वे सोए हुए थे.  मैं घबरा गयी.   नानी को बुलाने लगी.  नानी कमरे में आयी और पिताजी का हाथ पकड़कर देखा.  कहने लगी,‘पिताजी के अवसाद का रंग गहरे काले रंग में मिल गया. पहले तो मैं समझ नहीं पायी.  लेकिन नानी ने कहा, पिताजी नहीं रहे.  उन्हे ईसा-मसीह ने बुला लिया.  अब वे लौटकर नहीं …… और मुझे छाती से लगाकर फफक-फफक कर रोने लगी.

          समय इसी तरह गुजरने लगा। पिताजी नजर नहीं आते लेकिन उनकी यादें मेरे इर्द-गिर्द घूमती रहती और हर बार एक प्रश्न मैं नानी से कर देती पिताजी के होने का अहसास होता है लेकिन वो कहीं नजर नहीं आते। रही बात माँ की, वह कभी-कभार इधर-उधर कार्ट से गुजरती हुई दिख जाती और पुकारने पर इशारे से लौट जाने को कहती। अक्सर मैं मुड़ती और वहीं कहीं झड़ियों में छुप जाती। जैसे ही वह आगे की ओर कूच करती तो मैं खड़ी होकर पीछा करने लगती। माँ पलटकर देखती और इशारे से लौट जाने को कहती। लुकाछिपी का यह खेल मेरे और माँ के बीच लंबे समय तक चला। दरअसल माँ कहीं दूर नहीं गई थी। वह आसपास के जंगल में ही घूम रही है जैसे वह किसी को खोज रही हो। वह कभी लौटकर घर नहीं लौटी।

          चर्च के अहाते में उपस्थित लोगों का धीरज का बांध टूटने लगा। हर कोई जानना चाहता था कि आखिर मसला क्या है। सभी उत्सुक थे। आपस में बतिया भी रहे थे,‘कि इस कहानी का अंत क्या होगा, क्या बड़े रहस्य का खुलासा होगा या अंत दर्दनाक होगा…

          ऐसे प्रश्नों को दरकिरनार करते हुए क्रिस्टिना ने इस कहानी को बताना शुरू किया,‘सुनिए पिताजी के न होने का दर्द समय-समय पर सालता रहता लेकिन माँ का व्यवहार दिल और दिमाग में दिन प्रति दिन और गहरा होता जा रहा था। माँ के इस तरह जंगल में घूमने को लेकर हमें आदी हो जाना चाहिए था पर हम ऐसा नहीं कर पाये। तरह तरह के विचार आते और जाते रहे लेकिन मैं सोचती रही कि माँ कैसे इस तरह के जीवन को सह रही है। कितनी कमजोर हो गई होगी। कार्ट गाड़ी कैसे चला रही होगी। मैं बिल्कुल नहीं समझ पा रही थी कि कैसे वे लगातार इतने कष्ट झेल पा रही हैं? असुविधा के अभाव में  बरसात, कड़ाके की  ठंड को कैसे सहन कर पा रही है। माँ कैसे कई सालों से निरूद्देश्य, लक्ष्यहीन जीवन जी रही है। माँ के पास न टॉर्च है न माचिस। अंधेरे में कैसे देख पाती होगी। मैं यह भी न समझ पा रही थी कि माँ कैसे कार्ट गाड़ी का  हैंडल संभालती होगी। उसके शरीर में ताकत भी तो नहीं होगी। माँ कैसे जंगली जानवरों से खुद की रक्षा करती होगी। क्या कभी इस दौरान उसने किसी  से बातचीत की होगी। मैं और नानी सदा माँ के बारे सोचते रहते। हमारे जेहन से माँ को निकाल पाना नामुमकिन था।

          अक्सर माँ का ख्याल आते ही मैं और नानी नींद में भी अचानक चौंककर जाग उठते। जब भी हम दोनों कुछ करते या अच्छा खाते-पीते तो हमें माँ की याद हो आती। सर्द तूफानी रात में जब हम आरामदेह बिस्तर में होते तो माँ कैसे उतने कम साधन के बीच कडकड़ाती ठंड से खुद को सुरक्षित रख पाती होगी। जिस वातावरण में हम दोनों गुजर-बसर कर रहे थे। इससे माँ वंचित थी. समय के साथ नानी का शरीर भी ढीला पड़ रहा था। जगह-जगह से नानी के हड्डी से मांस छिटककर झूलने लगा था। और मेरे कदम जवानी की दहलीज पर पड़ने लगे। और इसी चर्च में  एक दिन मेरी शादी हुई। लाख कोशिश के बावजूद हम माँ को शादी में शामील नहीं करा  पाए। ऐसा लगता मानो माँ को हमारी बिल्कुल भी फिक्र नहीं थी। वही माँ की फिक्र में हम दोनों गले जा रहे थे। इसी लगाव और आदर के बीच  माँ से बिछुड़े हुए पंद्रह साल बीत गए।

          इसी दौरान मैंने लड़की को जन्म दिया। नानी के दुख को इस नन्ही-मुन्नी बिटिया ने हर लिया। नानी का समय इस बिटिया की देख-रेख में बहुत ही आराम और अच्छी तरह से बीत जाता। चूंकि दिन में मैं और मेरा पति, दोनों ही नौकरी पर चले जाते थे। नानी और नन्ही-मुन्नी एक-दूसरे से खेलते रहते।

          एक दिन अलसुबह मेरे पति ने कहा,‘हमारी सब कोशिश के बावजूद माँ घर वापस नहीं आयी। शायद हो सकता है कि नन्ही बिटिया को पहली बार देखने पर लौट आए। उनके ज़ोर देने पर हम लोग  माँ को नातिन दिखाने ले गए। इस खुशनुमा सुबह हम सभी जंगल के किनारे गए। मेरे पति ने बिटिया को ऊपर उठाया ताकि माँ की निगाह नातिन पर पड़ सके। हम ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे। माँ बाहर नहीं आयी और हम सब एक-दूसरे के गले लगकर रोने लगे थे।

 इस घटना के बाद हमारे लिए माँ एक अनबुझी पहेली लगने लगी। तभी मैंने भी तय कर लिया था कि इस पहेली के तह में जाऊँगी। मुझे पूरा विश्वास था कि नानी इस अजीबो-गरीब घटना पर रोशनी डाल सकती है। पहले तो मुझे नानी से इस बाबत पूछने पर संकोच हो रहा था। संकोच की वजह नानी की उम्र थी।  अगर यह पहेली बनकर रह गयी तो सारी उम्र मैं भी इस पहेली के मकड़-जाल में उलझती रहूँगी। न ठीक से जी पाऊँगी और न मर पाऊँगी। मैंने तय किया कि नानी ही इस पहेली से मुझे उभार सकेगी। इसीलिए मैंने नानी से इस संदर्भ में बताने को कहा। यह भी कहा नानी अगर तुम नहीं बताओगी तो  मैं भी माँ की तरह काले लिबास में लिपटी पहेली बनकर रह जाऊँगी.  काफी मिन्नत के बाद नानी ने इस पहेली से पर्दा उठाना शुरू किया. 

          क्रिस्टिना ने वहाँ हाजिर लोगों की उत्सुकता को भांपते हुए कहा,‘इस बारे में जितनी  उत्सुकता तुम लोगों को है उतनी मुझे भी  थी.  इस संदर्भ में आप लोगों के  धीरज की तारीफ करती हूँ.  मैं आभार मानती हूँ.  माँ के बारे में मैं जो कुछ तथ्य रखूंगी, वह बक़ौल मेरे नानी के है.

बक़ौल नानी –

          रात को मेरी बिटिया सो गयी तब नानी ने मुझे मेरी माँ सूजन के काले कमरे में ले गयी। कहा,‘तुम्हें यह काला रंग अजीब सा लग रहा होगा.   लगना भी चाहिए. यह स्वाभाविक है. तुम्हारी माँ को दो वजह से काला रंग के प्रति आकर्षण था. पहली वजह जंगल और पेड़ की परछाई और दूसरी एक काले रंग की पेंटिंग थी.   तुम्हारी माँ को बचपन से जंगल में घूमने का शौक था. सुबह उठते ही वह उसके कमरे से जंगल की ओर देखा करती.  अगर उससे पूछते कि तुम स्कूल जाना पसंद करोगी या जंगल तो जवाब होता, जंगल। वह जंगल के घने झाड़ों की  परछाई के साथ बहुत ही आनंद और दिल से खेला करती.  ये नहीं मालूम कि वह झाड़ों से क्या बात करती थी.  पूछने पर केवल हंस देती और कहती थी कि पेड़ और मेरे बीच चल रहे संवाद को समझने के लिए मेरा जैसा होना होगा.  खैर सूजन की  इस हरकत को हम बचपन की हरकत समझकर छोड़ देते थे.  वह जैसे जैसे बड़ी होती गयी, उसकी यह हरकत हमारे लिए चिंता का विषय बन गयी.  कई बार ऐसा हुआ कि वह सुबह घर से निकली तो दूसरे दिन ही लौटती.  हमें लगा कि उसकी शादी हो जाएगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. उसकी शादी हो गयी लेकिन उसके व्यवहार  में रति भर भी बदलाव नहीं आया.  उलट वह जंगल के घने साये में और भी उलझती जा रही थी.  हमारी यह उम्मीद भी टूट गयी. 

          सतत् मेरा और नानी के बीच माँ की इस हरकत पर संवाद जारी रहा। नानी बताती और मैं मासूम बच्चे की तरह पूरी तल्लीनता से सुनती रहती.  माँ सूजन से तरह-तरह के सवाल नानी पूछती लेकिन हर सवाल का जवाब माँ नहीं देती। वह वही बताती जो उसे पसंद था। 

अंतत: मेरी मां सूजन ने नानी को बताया  –

          इस बार मैं तफसील से जंगल और काले रंग से लगाव के बारे में बताऊँगी। हाँ एक शर्त है कि इसके बाद तुम इस संदर्भ में फिर कभी नहीं पूछोगी. मेरी नानी ने हामी भरी. 

तो सुनो  –

     ‘बचपन से ही मैं नींद से जागती तो धीरे-धीरे आंखे खोलती तो आँखों की पलकों पर एक-एककर रंग थिरकने लगते.  और आहिस्ता-आहिस्ता वे सभी रंग का अंत काले रंग में हो जाता.  मुझे लगता कि सभी रंगों के बीच से गुजरते हुए काले रंग के बड़ी सी कोठरी में आ गयी हूँ.  इस कोठरी में पहुँचते ही यह अहसास करती कि काला रंग रंगों की रानी है.  और अंधेरी कोठरी में मेरी और रानी के बीच जीवन के भिन्न-भिन्न विषयों पर चर्चा होती. जब कभी रानी की काली कोठरी में अचानक कुछ चमकता तो लगता कि अंधेरे में अभी भी जीवन  बचा है। मैं और रंगों की रानी उस चमकती रोशनी को तलाशने लगते.  तलाशी के दौरन जो रोमांच हम दोनों को मिलता वह एक अलग ही दुनिया में ले जाता है.  यह दुनिया बेहद ही खूबसूरत है.  हम दोनों काले रंग से  उन सभी रंगों को अलग करते। उस काले रंग से रंग-बिरंगी दुनिया की एक अनोखी तस्वीर उभरती.  इस दुनिया में हम खेलते-विचरते और पाते हैं कि हर रंग की अपनी जगह है. हर रंग की अपनी तासीर है.  प्रत्येक रंग के आपसी तालमेल से ही तस्वीर बनती है.  वर्ना  तस्वीर अधूरी है.  इसीलिए मुझे उस रंग-बिरंगी दुनिया की सैर करते हुए घुप्प काले रंग के घने कोहरे या बादल या गहरे जंगल के पेड़ों की छाँव का आपस में आँख-मिचौली करना बहुत ही अच्छा लगता है.  इस दुनिया में मुझे सुकून मिलता.  इस दौरान मुझे माँ या पिताजी आवाज देते तो लगता कि मैं उस खूबसूरत दुनिया से रोज़मर्रा की प्रपंच भरे संसार में प्रवेश कर रही  हूँ. जहाँ सब कुछ एक जैसा है.  सुबह उठो और ब्रश करो, स्नान करो, नाश्ता करो, स्कूल जाओ, खाना खाओ और रात हो गयी तो सो जाओ.  मुझे ऐसी दुनिया से नफरत होनी लगी इसीलिए मुझे लगने लगा कि ऐसी   दुनिया में जीवन जीना है जहाँ सिर्फ मैं और मैं ही हूँ. और संपूर्ण आजादी हो….. आजादी

बकौल  नानी और –

          जंगल में घूमती विचरती तुम्हारी माँ ने बताया कि कैसे वह घने अंधेरे में हवा के स्पर्श से दिशा को पहचान लेती है.  और जंगल के उस मुकाम पर चली जाती जहाँ उसे आराम से रात गुजारनी है.  सुबह होते ही रंग-बिरंगी पक्षियों का झुंड उसके गोल्फ कार्ट के इर्द-गिर्द मँडराती है। कुछ नीले रंग की, पीले रंग की, लाल रंग की, कुछ चितकबरे  रंग की चिड़िया चूँ…..,कू ….,टर्र….., पंखो की फड़-फड़ आवाज, हवा के झोके से पत्तों की सलसलाती आवाज, ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के टहनियों के आपस में टकराने से किसी वाद्य की मध्यम या ज़ोर से स्वर निकलने की ध्वनि पूरे परिसर को संगीत के धुन में समेट लेती। इसी संगीत के लय के साथ सूरज की रंग-बिरंगी रोशनी आसमान पर थिरकती। इस दृश्य का अहसास सूक्षम संवेदना और कोमल स्पर्श की तरह मेरे शरीर के भीतर प्रवेश करता है और मधुर और सुंदर रुप में सुबह मेरे  साथ सफर के लिए निकल पड़ता. यही वह क्षण है जब मैं उस उबाऊ दुनिया से खुद को एक अलग मधुर दुनिया में पाती हूँ.

आगे माँ कहती है,

सुनो यही वह दुनिया जिससे प्रेरित होकर दुनिया की निराली और बेनजीर नर्तकी इजाडोरा ने नृत्य के हाव-भाव सीखे होंगे.  हवा के झोको से हिलती-डुलती फांदियों की अदा, कैसे और कहीं से भी फांदियों  का झुक जाना, मुड़ जाने की करतब की छाप इजाडोरा की नृत्य की मुद्राओं में रची-बसी है.  वह तो किसी नृत्य की पाठशाला में तालिम हासिल नहीं की थी.  फिर भी वह दुनिया की सबसे निराली नर्तकी थी.  नृत्य की दुनिया की बेताज बादशाह थी.

          तुम्हारी माँ उसकी दुनिया में पूरी तल्लीन थी। वह सब कुछ मेरे सामने उंडेल देना चाहती थी। मैं भी उसकी बातों में पूरी तरह डूब गयी थी। वह पूरे रौ   में कहे जा रही थी। वह यह भी कह रही थी कि पॉल राबसन हो या माइकल जैकसन, इन सबकी संगीत की पाठशाला भी यही जंगल है। तो सोचो… सोचो मैं कैसे इस बेहतरीन और लाजवाब दुनिया से अलग रह सकती हूँ। यह कहकर वह उसके कमरे के काले दीवारों को सहलाने लगी।

कुछ समय बाद तुम्हारी माँ ने मुझसे कहा,

मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ.  लेकिन तुम्हारे भीतर जंगल की वो बात नहीं है जो होनी चाहिए थी. इसीलिए काले रंग के प्रति लगाव और गहरी आस्था के बारे में भी बता देना चाहती हूँ.  किन्तु और एक शर्त है.

कैसी शर्त मैं सकते में आ गयी थी।

          तुम्हारी माँ कहने लगी,‘इस बाबत इसके बाद मुझसे कोई भी किसी तरह का  सवाल नहीं करेगा। और न ही मेरे बारे में जानने की कोशिश करेगा।

          नानी के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था। वह  मजबूर थी। उसे लगा कि न कहूँ तो काला रंग हमेशा के लिए रहस्य बनकर रह जाएगा. और हम सभी इस रहस्यमय  दुनिया में चक्कर काटते रहेंगे.  बेटी सूजन का क्या, उसने उसके जीने के अंदाज की दुनिया रच ली है.  गड़ ली है.  सूजन ने मुझे, उसकी बेटी क्रिस्टीना और नातिन को इस दुविधा के भवंर  में छोड़ दिया है.  आखिरकार एक ही रास्ता बचा था. हाँ  कह दिया जाय.  और सूजन को  विश्वास दिलाया कि इसके बाद इस पर बातचीत नहीं होगी। शायद यह इशारा मेरे लिए भी था.

          चर्च परिसर में एकत्रित लोग जानने के लिए उत्सुक थे.

          नानी कहने लगी,

          हम लोग सह परिवार शिकागो घुमने गए थे. एक दिन हम लोग शिकागो के कला दालान गए. तुम्हारी माँ एक पेंटिंग के सामने खड़ी हो गई. उस पेंटिंग को एकटक देख रही थी. हम लोग आगे बढ़ने लगे. वह वहीं डटी रही. हमें लगा कि वह थोड़ी देर में आ जाएगी. हम दालान की पेंटिंग देखकर लौटने लगे तो सूजन उसी पेंटिंग को देख रही थी. हमने उसे आवाज दी लेकिन वह ठस से मस नहीं हुई. वहीं जमीं रही. अन्त में तुम्हारे पिताजी ने उसे पकड़कर दोनों हाथों से पकड़कर झकझोरा तब कहीं उसके मुँह सेऊंआवाज निकली. फिर  वह हमारे साथ हो ली.

          इस पेंटिंग को देखने के बाद वह चुपचाप रहने लगी. उसकी खमोशी घर के सभी लोगों को खलनी लगी.

          मौकादेखकर मैंने उसके मन को टटोला.  न नुकर के बाद तुम्हारी माँ बोली;

          मैं उस पेंटिंग से बहुत ही प्रभावित हुई. अभिभूत भी हुई. पेंटिंग में ईसा-मसीह को काले रंग से पेंट किया गया है. बस इस पेंटिंग को देखने के बाद से एक ही बात दीमाग में बैठ गई है. क्यों उस कलाकार ने ईसा को काले रंग से बनाया है. क्या काले लोगों को हेय की  निगाह से देखा जाता है. उन लोगों से दूरी बनाये रखते हैं. इसीलिये उस कलाकार ने ईसा को काला बनाया. मुझे भी लगने लगा है कि पूरी दुनिया के गिरजाघर में ईसा की मूर्ती काले रंग की होनी चाहिए. इससे दुनिया में एक अच्छा संदेश जाएगा. काले लोगों के प्रति गोरे लोगों कि दॄष्टि और सोच में बदलाव आएगा.

          नानी ने कहा, काले रंग के प्रति लगाव की दूसरी वजह भी समझ में आ गई.  यह भी समझ में आ गया कि क्यों तुमने चर्च जाना बंद कर दिया है.

          क्रिस्टिना ने एक लम्बी साँस ली और कहा, जो नानी ने बताया, बता दिया.और उसकी निगाह ईसा की मूर्ती पर टिक गई. और वह चीखने लगी ईसा ……ईसा …… काला रंग…… जो ईसा का नहीं था.

          और वहाँ उपस्थित सभी लोगों की निगाह भी ईसा की मूर्ति की  ओर गई. सभी ने एक स्वर में कहा,

          ओह गॉड, क्षमा कर ….क्षमा कर ……

गोपाल नायडू सुपरिचित लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता हैं । संपर्क  –  9-बी, कौशलाया अपार्टमेंट, चुना भट्टी,अजनी रोड, प्रशांत नगर, नागपुर – 440 015,  मो : 9422762421   e.mail – gopal naidu.art@gmail. 

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