मुसलमानों पर मोहन भागवत के बयान और दशहरे पर देवबंद दौरे की संभावना में छुपे सूत्र

तौसीफ़ क़ुरैशी

दशहरे के क़रीब या उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत देश दुनिया में अपनी पहचान इस्लामिक नगरी के रूप रखने वाले दारूल उलूम देवबन्द का दौरा कर सकते हैं जहां उनकी मुलाक़ात इस्लामिक विद्वानों से होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। हिन्दुस्तान में ही नही दुनियां में दारूल उलूम देवबन्द इस्लामिक जगत का सबसे बड़ा मरकज़ माना जाता है। आज़ादी की लड़ाई में भी दारूल उलूम देवबन्द का अहम योगदान है। मोहन भागवत का दारूल उलूम देवबन्द के दौरें पर जाना अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है। समझा जाता है कि इस दौरें पर आने के बाद वह देवबन्द जगत की महान हस्तियों से मुलाक़ात कर देश के विभिन्न विषयों पर इस्लामिक विद्वानों से विचार-विमर्श करेंगे। अभी तक इस प्रोग्राम की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गईं है और ना ही करने या होने की कोई संभावना लग रही है, लेकिन हमारे भरोसे के सूत्रों का कहना है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत का दशहरे के पहले या बाद में आना लगभग फ़ाइनल है।

जैसे दारूल उलूम देवबन्द के सदर मुदर्रिस एवं जमीअत उलमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी अचानक संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय पर पहुँच गए थे इसी तरह देवबन्द भी एक रोज़ सुर्ख़ियों में आए कि अचानक संघ प्रमुख मोहन भागवत पहुँचे देवबन्द और की मुलाक़ात देवबन्द दारूल उलूम देवबन्द के मोहतमिम सहित अन्य इस्लामिक विद्वानों से। आज के हिसाब से संघ प्रमुख मोहन भागवत का देवबन्द जाना बहुत बड़ी बात होगी।

मुसलमानों के सबसे पुराने और बड़े संगठन जमीअत उलमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं अभी हाल ही में दारूल उलूम देवबन्द के सदर मुदर्रिस नियुक्त किए गए हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी ने सुलहें हुदैबिया का हवाला देकर संघ प्रमुख मोहन भागवत से संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय पर मुलाक़ात की थी। दोनों के बीच काफ़ी लंबी वार्ता हुईं थी जबकि इस्लामिक हलकों में इस मुलाक़ात पर काफ़ी तीखी प्रतिक्रिया हुईं थी। इस्लामिक विद्वानों का तर्क था कि संघ और मुस्लिम विद्वानों के बीच बातचीत तो होनी चाहिए लेकिन वह गुप्त नहीं सार्वजनिक रूप से होनी चाहिए। दोनों तरफ़ से इस मुलाक़ात को गोपनीय रखा गया था, बस कुछ तस्वीरें मौलाना की संघ कार्यालय से बाहर निकलते हुए वायरल हुईं थीं जिसके बाद मीडिया ने हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी से सवाल किए। तब उन्होंने कहा था- हां, मुलाक़ात हुई है लेकिन क्या इस पर वह कुछ ज़्यादा नहीं बता पाए थे। दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, किन मुद्दों पर हुई, यह सार्वजनिक नहीं की गईं थी।

संघ के इस रूख पर सेकुलरिज्म के विद्वान यक़ीन करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि मुसलमान भारत में सर्वाधिक सुखी एवं सुरक्षित हैं। यह बात उन्होंने एक वर्ष पूर्व कही थी। अब हाल ही में वह एक कदम आगे बढ़ते हुए कहते है कि यदि मुसलमान कहीं संतुष्ट हैं तो वह केवल भारत में है। संघ प्रमुख मोहन भागवत यहीं नहीं रूके। उन्होंने कहा कि यदि दुनिया में ऐसा कोई देश है जिसमें विदेशी धर्म को मानने वालों ने वहां शासन किया हो और उसका धर्म अब वहां फल फूल रहा हो तो वह भारत है। संघ प्रमुख मोहन भागवत आगे कहते हैं कि भारत का संविधान यह नहीं कहता कि यहां सिर्फ़ हिन्दू रह सकता है या यहां सिर्फ़ हिन्दुओं की भावनाओं का या बातों का ही ध्यान रखा जाएगा और यदि आपको भारत में रहना है तो हिन्दुओं को बड़ा स्वीकार करना होगा, हमने उन्हें रहने के लिए जगह दी है। हिन्दुस्तान की यह संस्कृति नहीं है। इसी संस्कृति का नाम हिन्दू है।

उन्होंने उस इतिहास का हवाला भी दिया जिसे वह मानते ही नहीं, उसी का हवाला देते हुए कहा कि अकबर के विरुद्ध लड़े गए युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में मुसलमान भी शामिल थे। इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता है। जब भी हिन्दुस्तान की संस्कृति पर किसी ने हमला किया तब सभी धर्मों के मानने वालों ने एक होकर मुक़ाबला किया है। जब यह सच है, तो फिर संघ और संघियों के द्वारा बरसों से देश की संस्कृति को क्यों ज़हरीला बनाया जा रहा है। मुसलमानों की स्थिति में लगातार गिरावट लाने के लिए संघ का दुष्प्रचार ज़िम्मेदार है- राम मंदिर आंदोलन के दौरान निकाली गई यात्रा, गौमांस के नाम पर लिंचिंग, लव जेहाद के नाम पर दी गई या दी जा रही धमकियाँ और घर वापसी जैसी संघ व संघियों की मनगढ़ंत कहानियां इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। एंटी सीएए, एनपीआर और संभावित एनआरसी का विरोध करने वालों को हिन्दुस्तान विरोधी क़रार दे देना और सरकार द्वारा भी ऐसी भाषा बोलना, लगे हाथ अफसर भी इसी तरह का रवैया अख़्तियार करने लगे उनके साथ सौतेला व्यवहार करने के साथ यह तक कहने लगे कि सुधर जाओ नहीं तो पाकिस्तान भेज दिए जाओगे- मुसलमानों को आतंकित करने की भरपूर कोशिशें की गईं।

इन सब हालात पर नज़र दौड़ाने वाले विद्वान संघ की इस तरह की कोशिशों को ड्रामा क़रार देते हैं क्‍योंकि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ देश में बहुसंख्यक के दिलोदिमाग़ में मुसलमानों के प्रति लगभग सौ साल से नफ़रतों के बीज बोता आ रहा है। अब ज़हरीली खेती की फसल पूरे उफ़ान पर है लेकिन वही संघ अब उसके परिणामों से भयभीत लगता है या ड्रामा कर रहा है। सांप्रदायिकता की इस आग में हिन्दू-मुस्लिमों में चली आ रही प्यार मोहब्बत की चिता बनकर स्वाहा हो गईं है। उसी आग से निकल रही चिंगारियाँ दूरदृष्टि रखने वाले विद्वानों को नज़र आ रही हैं। ऐसा न हो, इसको लेकर सभी विद्वान गौर फ़िक्र करते रहते हैं, लेकिन जब इस माहौल को बनाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी उस रास्ते की ओर देखने लगे या चलने की बात करने लगे जैसा सेकुलरिज्म विचारधारा के विद्वान मानते हैं तो सोचना पड़ता है।

ग़ौरतलब हो कि दारूल उलूम देवबन्द के प्रबंधन में किए गए परिवर्तन के पीछे कहीं मोहन भागवत का देवबन्द दौरा तो नहीं क्योंकि दोनों जमीअत के अध्यक्षों को दारूल उलूम में प्रमुख पदों पर बैठाना और कोई शोरगुल ना होना जबकि दोनों के बीच काफ़ी उठापटक चलती रहती थी, यह भी विचारणीय है। कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इस्लामिक विद्वानों के बीच टेबल टॉक होना ड्रामा ही सही, लेकिन बहुत बड़ी ख़बर है।

लेखक लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजि िवचार हैं। सौज- जनपथः लिंक नीचे दी गई है-

https://junputh.com/open-space/sangh-supremo-mohan-bhagwat-deoband-visit-may-be-a-gamechanger/

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