इरफान खानः कुछ यादें – अशोक मिश्र

मशहूर फिल्म अदाकार और जिंदादिल इंसान इरफान खान अब हमारे बीच नहीं हैं । अपनी अदाकारी के दम पर लोगों के दिलों में राज करने वाले बहुत कम ही होते हैं । इरफान खान उन्हीं में से एक हैं । एक आम आदमी सा , हर एक को अपना सा ही लगने वाला, मोतीलाल, बलराज साहनी, संजीव कुमार या स्मिता पाटिल सा एक साधारण सा लगने वाला असाधारण अभिनेता ।

एनएसडी से कोर्स करने के बाद बंबई का रुख किया । पहली फिल्म साल 1988 में आई ‘सलाम बॉम्बे’ थी। इस फिल्म को मीरा नायर ने डायरेक्ट किया था । फिल्मों के साथ साथ टीवी सीरियल में काम तलाशा तो ‘भारत एक खोज’ में छोटा सा रोल मिला ।

अशोक मिश्र

 ‘भारत एक खोज’ के पटकथा लेखक एनएसडी में उनके सीनियर रहे वेलडन अब्वा , नसीम, वेलकम टु सज्जनपुर जैसी फिल्मों  के लेखक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त  वरिष्ठ पटकथा लेखक अशोक मिश्र  इरफान के साथ अपने संस्मरण साझा कर  रहे  हैं-

–  मुम्बई में मेरी लिखी फिल्म ‘नसीम’ रिलीज हुई तो इरफान उसे देखने आए । शो से पहले वो मेरे पास आये और कहा-अशोक भाई , मैं इरफान , एनएसडी में आपका जूनियर । तब तक मैं भारत ‘एक खोज धारावाहिक लिख चुका था।’ मैने कहा, मैं तुम्हे अच्छे से जानता हूं, तुमने ‘भारत एक खोज’ के अकबर वाले एपीसोड में बदायूं का रोल बखूबी निभाया है और एक डॉक्टर की मौत में तो कमाल ही कर दिया ।

इरफान के होंठों पर चिरपरिचित मुस्कानउभरी । उसने ‘नसीम’ की तारीफ में दो शब्द कहे और हम विदा हुए ।

एक बार मैं एनएसडी में स्क्रीन प्ले राइटिंग पर वर्कशॉप कर रहा था और इरफान एक्टिंग पर। तब तक  वो काफी मशहूर एक्टर हो चुके थे ।हम एनएसडी के रेस्ट हाउस में अगल बगल के कमरों में ठहरे हुए थे । चाय नाश्ते के समय कुछ थोड़ी बहुत गप्पबाज़ी होती । जिस बैच के साथ मैं वर्कशॉप कर रहा था उसी के साथ उसका भी वर्कशॉप था।  मगर मुश्किल ये थी कि विद्यार्थी उनके दीवाने थे और इस वजह से वो मेरी क्लास में देर से आते थे। मैने इरफान से शिकायत की । उन्होंने ‘सॉरी अशोक भाई’ कहा । स्टूडेंट अगले दिन से ही टाइम पर आने लगे । अगले दिन मैने उन्हें’ थैक्यू कहा, तो उन्होंने कहा थैंक्यू की क्या बात है। राइटिंग सीखना बेहद ज़रूरी है। सिनेमा नाटक सब राइटिंग से ही तो मुमकिन होता है ।’

एक बार मैं उन्हें एक फिल्म सुनाने उनके घर गया था । उन्होंने स्क्रिप्ट सुनी। अच्छी प्रतिक्रिया दी , लेकिन वो फायनेंसर न मिल पाने की वजह से बन नहीं पाई जिसका मुझे आज कुछ ज्यादा ही उफसोस हो रहा है ।

इरफान मध्यवर्ग से निकला एक सहज इंसान, एक सहजअभिनेता जिसने छोटे छोटे रोल किए और देखते ही देखते अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बड़ा अभिनेता बन गया । इतना बड़ा कि आज हर सिनेमा दर्शक की आंखेंनम हैं ।

इरफान के जाने से मैं भी औरों की तरह काफी दुखी हूं क्योंकि उनकी अनोखी शैली का अभिनेता हज़ारों में एक ही होता है ।

हालांकि इरफान ने टीवी में आने से पहले कुछ फिल्मों में काम किया लेकिन उन्हें पहचान नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने टेलीविजन का रुख किया। ‘भारत एक खोज’ के अलावा ‘चाणक्य’, ‘सारा जहां हमारा’, ‘बनेगी अपनी बात’, ‘चंद्रकांता’ जैसे सीरियल्स ने इरफान खान को लोगों की नजरों में ला दिया। इसके बाद  एक डॉक्टर की मौत जैसी ऑफ बीट फिल्मों से शुरुवात कर उन्होंने कई फिल्मों ‘कमाल की मौत’, ‘दृष्टि’,  ‘कसूर’, ‘हासिल’, ‘तुलसी’, ‘पीकू’, ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ ‘पान सिंह तोमर’, ‘द लंचबॉक्स’, ‘तलवार’, ‘लाइफ ऑफ पाई’, ‘मुंबई मेरी जान’, ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर रिटर्नस’, ‘हिंदी मीडियम’, ‘मकबूल’ जैसी फिल्मों में अपनी दमदार एक्टिंग का दम दिखाया। 

इरफान खान ने न सिर्फ बॉलीवुड बल्कि कई हॉलीवुड फिल्मों में काम करके अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। वर्ष 2008 में प्रदर्शित सुपर हिट हॉलीवुड फिल्म स्लमडॉग मिलिनेयर में इरफान खान ने दमदार अभिनय किया। इसके अलावा इरफान ने हॉलीवुड फिल्म द अमेजिंग स्पाइडर मैन, जुरासिक वर्ल्ड, इन्फर्नो, अ माइटी हार्ट, सैनिकुडु आदि फिल्मों में भी काम किया। वर्ष 2016 में प्रदर्शित हॉलीवुड फिल्म द जंगल बुक में इरफान ने आवाज भी दी। हॉलीवुड के जाने माने अभिनेता टॉम हैंक्स को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि इरफान खान की आंखे भी अभिनय करती थी।

वर्ष 2011 में भारत सरकार ने इरफान खान को पद्मश्री से सम्मानित किया। वर्ष 2012 में इरफ़ान खान को फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।  वे आखिरी बार अदाकार के रूप में फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ में नजर आए । आज तमाम रंगकर्मी  व फिल्म प्रेमी उनके आकस्मिक निधन पर सदमें में हैं ।

वरिष्ठ पटकथा लेखक अशोक मिश्र से प्राप्त एक्सक्लूसिव संस्मरण ( संपादक)

10 thoughts on “इरफान खानः कुछ यादें – अशोक मिश्र

  1. हर दिल अजीज इरफान खान हमारे दिलों से मिटने वाले नहीं हैं।
    धन्यवाद जीवेश।

  2. असाधारण अभिनेता के जाने का दुख हमेशा सालने वाला होगा
    उनके साथ काम किए लोगों के द्वारा अब बहुत सी अनकही बातों और अनुभवों को जानने की इच्छा हमेशा ज़िंदा रहेगी।
    शुक्रिया अशोक जी और जीवेश जी को!!

  3. मैं जानता हूँ
    मुझे जाना है,
    परअभी,
    मेरी माँ का
    साया
    है मुझ पर,
    और उसे मैं
    उस से पहले
    नहीं छोड़ सकता,
    सायद, ये साया आड़ है,
    मेरी और रुख़सती के बीच,
    हाँ,मेरी दुनिया में अब
    उसका साथ नहीं
    मेरे सिर पर अब
    उसका हाथ नहीं
    मेरी और रुख़सती में
    कोई आड़ नहीं
    रोके नहीं रुकता
    मुझसे मैं खुद
    मुझे आँचल में जाना
    बेबस, बेसुध।
    नमन।

  4. एक निहायत ही अच्छे व्यक्ति, एक अच्छे कलाकार के जाने से हम सभी आहत और सदमे में हैं। आप ने NSD के दिनों को साझा कर उनकी मूल पृष्ठभूमि तक हमें पहुँचाया।

  5. कुछ समझ नहीं आ रहा। एक निहायत ही अच्छे व्यक्ति, एक अच्छे कलाकार के जाने से हम सभी आहत और सदमे में हैं। आप ने NSD के दिनों को साझा कर उनकी मूल पृष्ठभूमि तक हमें पहुँचाया।

  6. हिंदी सिनेमा जगत में इरफ़ान हमेशा इस बात के लिए याद किए जाएँगे कि उन्होंने अभिनय नही किया वरन पात्रों को जीया अपने दिल से , बड़ी सहजता और सहलता से ।सबसे ज़्यादा जाने जाते रहे और रहेंगे अपनी बोलती हुयी आँखो के लिए । नमन !

    1. रंगमंडल भारत भवन repertory के साथ काम करते वक़्त मैं और सुभश्री नाटक पूरब का छैला के संगीत को तैयार करने और shows के लिए पृथ्वी आते थे उस समय सुष्मिता मुखर्जी के साथ इरफ़ान से पहली मुलाक़ात हुयी वो वनराई में एक रूम वाला फ़्लैट ख़रीद कर नया रूप दे रहे थे बाद में फ़िल्म प्रथा,और सीरियल में संगीत दिया जो आज भी यादों में रहेगा।star best seller की कहानियाँ जो Tishu ने बनायीं लाजवाब काम।
      आमोद भट्ट

  7. रंगमंडल भारत भवन repertory के साथ काम करते वक़्त मैं और सुभश्री नाटक पूरब का छैला के संगीत को तैयार करने और shows के लिए पृथ्वी आते थे उस समय सुष्मिता मुखर्जी के साथ इरफ़ान से पहली मुलाक़ात हुयी वो वनराई में एक रूम वाला फ़्लैट ख़रीद कर नया रूप दे रहे थे बाद में फ़िल्म प्रथा,और सीरियल में संगीत दिया जो आज भी यादों में रहेगा।star best seller की कहानियाँ जो Tishu ने बनायीं लाजवाब काम।
    आमोद भट्ट

  8. रंगमंडल भारत भवन repertory के साथ काम करते वक़्त मैं और सुभश्री नाटक पूरब का छैला के संगीत को तैयार करने और shows के लिए पृथ्वी आते थे उस समय सुष्मिता मुखर्जी के साथ इरफ़ान से पहली मुलाक़ात हुयी वो वनराई में एक रूम वाला फ़्लैट ख़रीद कर नया रूप दे रहे थे बाद में फ़िल्म प्रथा,और सीरियल में संगीत दिया जो आज भी यादों में रहेगा।star best seller की कहानियाँ जो Tishu ने बनायीं लाजवाब काम।
    आमोद भट्ट

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