लॉकडाउन के चलते क्या खत्म हो जाएंगे परंपरागत सिनेमा हॉल?

कोरोना महामारी के चलते फिल्म उद्योग को काफी नुकसान पहुंचायाहो रहा है. लॉकडाउन के कारण सिनेमा हॉल बंद हैं जिससे परंपरागत सिनेमा थिएटरों के पूरी तरह बंद हो जाने का खतरा पैदा हो गया है 

कोरोना वायरस ने बॉलीवुड और सिनेमाघरों को आमने-सामने ला दिया है. लगभग दो महीने से चल रहे कोरोना लॉकडाउन ने बाकी सभी इंडस्ट्री की तरह फिल्म इंडस्ट्री को भी मुसीबत में डाल दिया है.लगातार विकास के दौर से गुजर रहे सिनेमा बिजनेस में थिएटरों को शायद ही कभी ऐसी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा होगा जैसी आज है.

सभी फिल्मों की शूटिंग रुकी हुई है और लॉकडाउन के कारण कई फिल्मों की रिलीज टलती जा रही है. कई बड़ी फिल्में रिलीज के इतजार में हैं. कई प्रोड्यूसर्स और फिल्मों में काम करने वाले लोगों का पैसा भी रुका हुआ है जिसके कारण दो एक कलाकारों द्वारा आत्महत्या जैसे दुखद कदम भी उठाए जा चुके हैं. एक तरफ लॉकडाउन में सरकार कई सेक्टरों को खोलकर राहत दे रही है, वहीं कोविड-19 के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में जब सोशल डिस्टेंसिंग खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रखने का एकमात्र तरीका हो तो बाहर जाकर सिनेमा देखने का खतरा कौन उठाएगा ये भी कारोबारियों के लिए चिंता का विषय है. ऐसे दौर में निकट भविष्य में भी सिनेमाघरों के खुलने या सामान्य रूप से बिजनेस कर पाने के आसार कम हैं.

ऑनलाइन फिल्म प्लेटफॉर्म का बढ़ता महत्व

लॉकडाउन के कारण अब बदले हालात में कई बड़े फिल्ममेकर्स भी थिएटर्स से उम्मीद लगाए नहीं बैठना चाहते.  लॉकडाउन में लोगों के घर में फंसे रहने से ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स की व्यूवरशिप काफी बढ़ी है और अब वो गेम चेंजर का काम कर रहे हैं. इसके मद्देनज़र कुछ फिल्मकारों ने फैसला लिया है कि वो अपनी फिल्म को सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ही रिलीज करेंगे. बॉलीवुड अभी तक थियेटर और डिजिटल रिलीज के बीच 8 हफ्तों का अंतर रखता था, जिससे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म को भी ऑडियंस का रिस्पॉन्स देखकर फिल्म चुनने का मौका मिल जाता था. ऑनलाइन रिलीज होने वाली कुछ बड़ी फिल्मों में अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ शामिल है जो अमेजन प्राइम पर रिलीज होगी, तो वहीं अक्षय कुमार की हॉरर-कॉमेडी ‘लक्ष्मी बॉम्ब’ डिजनी व हॉटस्टार पर रिलीज होने के लिए तैयार है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई और फिल्में भी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो सकती हैं. साथ ही दक्षिण की कई फिल्में भी सीधे ओटीटी पर रिलीज़ के लिए तैयार हैं.हालात को देखते हुए ओटीटी पर रिलीज करने का फैसला ज्यादा चौंकाने वाला नहीं होना चाहिए. फिल्ममेकर्स के इस फैसले पर आईनॉक्स, पीवीआर और कार्निवल जैसी बड़ी मल्टिप्लेक्स कंपनियो ने धमकी भरे अंदाज में फिल्ममेकर्स को आगे का सोचने को कहा. आईनॉक्स ने एक बयान में इस फैसले पर निराशा जाहिर करते हुए प्रोड्यूसर्स को ‘फेयर-वेदर फ्रेन्ड्स’ बता डाला जिन्हें इस मुश्किल के वक्त में उनके साथ खड़ा होना चाहिए था

ओटीटीपर रिलीज से क्या बदला?

सच ये है कि लॉकडाउन ने जिस बदलाव की रफ्तार तेज कर दी वो बदलाव आने की तैयारी पिछले कुछ सालों से हो रही थी. ऑनलाइन रिलीज की पहल कमल हासन ने 2013 में अपनी फिल्म ‘विश्वरूपम’ को थिएटर के साथ डीटीएच पर भी रिलीज करने को लेकर की थी. हालांकि तब थिएटर मालिकों ने फिल्म को पर्दे से उतारने की धमकी दी और हासन को कानूनी रास्ते अपनाने के बाद भी उनकी बात माननी पड़ी.

फिल्म प्रोड्यूसर्स और सिनेमाघरों के बीच की खींच-तान भी कोई बिलकुल नई बात नहीं, बल्कि फिल्म व्यवसाय का एक बड़ा हिस्सा है. थिएटर कभी कम पैसे में फिल्म के राइट्स खरीदने या फिल्म चलाने के लिए कंटेंट में बदलाव या फिर एक्शन, डांस या सेक्स सीन बढ़ाने की भी डिमांड करते रहे हैं. बड़ी कमर्शियल फिल्मों के बराबर पैसे और अहमियत ना मिलने के कारण छोटे बजट की फिल्में और आर्ट सिनेमा थिएटर के अलावा दूसरे विकल्प तलाशता ही रहा है. और ओटीटी के जरिए उन्हें अपने लिए बेहतर प्लैटफॉर्म मिल जाता है. कुछ साल पहले तक फिल्में कई हफ्तों तक थिएटर में लगी रहती थी. आज बड़ी से बड़ी फिल्में भी 2-4 हफ्ते का वक्त ही ले पाती हैं. जिसमें भी बिजनेस का सबसे बड़ा हिस्सा पहले वीकेंड में ही मिल जाता है. लेकिन इस वक्त ठप पड़े बिजनेस और भविष्य को लेकर बढ़ती अनिश्चितता बड़ी फिल्मों को भी थिएटर से दूर खींच रही हैं.वैसे अभी भी कई फिल्में थिएटर खुलने का इंतजार कर रहीं हैं पर सोशल डिस्टेंसिंग की बढ़ती अहमियत के बीच अगर थिएटर ना खुलने या फुल कैपेसिटी पर फिल्में ना दिखा पाने के कारण फिल्मों को नुकसान दिखता है तो ये भी ओटीटी की तरफ ही बढ़ सकते है.

“वीकेंड पर फिल्म देखना कई बार फिल्म देखने से ज्यादा दोस्तों या परिवार के साथ वक्त बिताने का कारण होता है.” थिएटर में जाकर फिल्म देखना लोगों की वीकेंड आउटिंग का हिस्सा है और ओटीटी उसमें ज्यादा बदलाव ला पाएंगे ऐसा मुमकिन लगता तो नहीं. ओटीटी प्लैटफॉर्म्स के बढ़ते चलन से लोगों की फिल्म देखने की आदतों पर कितना फर्क पड़ेगा इसपर पिछले कुछ सालों से लगातार बात हो रही है. ये कहना गलत नहीं कि भारत में आज भी ज्यादातर फिल्में बड़े पर्दे को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती हैं. लेकिन घर के आराम में किसी भी वक्त फास्ट फॉर्वर्ड और रीवाइंड कर मूवी देखने का अनुभव धीरे-धीरे ओटीटी के लिए नया मार्केट बना रहा है जो शायद लोगों को थिएटर तक जाने से भी रोके. कोरोना वायरस ने लोगों को बाहर निकल कर करने वाली हर चीज से पहले दो बार सोचने पर मजबूर तो कर दिया है लेकिन सभी को स्थिति नॉर्मल होने की उम्मीद है.

तेजी से बदलता सिनेमा कारोबार और हजारों नौकरियों पर खतरा

भारत में 20 से अधिक भाषाओं में हर साल 1,000 से अधिक फिल्में बनती हैं और 3.3 अरब टिकटों की बिक्री के साथ भारत में थिएटरों की संख्या भी सबसे अधिक है. फिल्मों की शूटिंग रुकने से फिल्मों में हजारों की संख्या में काम करने वाले लोगों की नौकरियां तो रुकी ही हुई हैं, पर सिनेमाघरों में ताला लगने से इसमें देश भर के सिनेमाघरों में छोटी-बड़ी नौकरियां करने वाले लोगों की कमाई को भी खतरे में डाल दिया है. केयर की रेटिंग के हिसाब से थिएटर कंपनियां लॉकडाउन में 3,500 करोड़ का बिजनेस खो रही हैं. ये कंपनियां पहले ही सरकार से मदद की गुहार लगा चुकी हैं लेकिन सरकार के स्टिम्युलस पैकेज में भी इनके लिए कोई खास अच्छी खबर नहीं.सवाल ये है कि थिएटरों से जु़ड़े रोजगारों का क्या होगा? व्यापार पहले की तरह ना खुलने की स्थिति में संभव है ये कंपनियां ऊबर और जोमैटो की तरह कर्मचारियों को नौकरी से निकालने लगें.

फिल्मों का कारोबार एक नए युग में जा रहा है ये कहना गलत नहीं होगा. पर भारत में परिवार और दोस्तों का साथ जाकर फिल्म देखना सालों की आदत है. और ये मान लेना कि ओटीटी का बढ़ता चलन थिएटर के बिजनेस को कम ही करेगा शायद जल्दबाजी भी हो सकती है. मल्टीप्लेक्स आने के कई सालों बाद भी मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में अभी भी कुछ आईकॉनिक सिंगल स्क्रीन थिएटर हैं, जो चाहे पॉपुलर ना रहे हो लेकिन अपनी एक जगह बनाए हैं. भारत में फिल्मों का कारोबार इतना बड़ा है कि उसमें सबके लिए जगह है. और मल्टिप्लेक्स के सिंगल स्क्रीन की तरह आउटडेटेड होने में भी अभी कई साल का वक्त है. फिल्मों की ओटीटी पर रिलीज शायद जल्द ही कॉमन हो जाए और थिएटरों और ऑनलाइन के बीच बिजनेस बंट जाए पर कहा जा सकता है कि सालाना हजारों फिल्में बनाने वाली भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में हर प्लैटफॉर्म के लिए कंटेंट बनाने की क्षमता है, और ओटीटी प्लैटफॉर्मों की ग्रोथ से फिल्मों को बेहतर मौके मिल जाते हैं.

-एजेंसियों से इनपुट के आधार पर-

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