राजीव अब फिर से पीछे की खिड़की से उस काले सौंदर्य को उसी तरह निहारने में लग गया था । राजीव शहर के जिस इलाके में रहता है वह ने शहर में है। ने शहर के भी जिस हिस्से में उसका घर है वह घनी आबादी का हिस्सा है। उसका मकान रामनगर में है और उसके घर के ठीक पीछे गंगानगर है। उसका मकान दूसरी मंजिल पर होने से वह अपने घर की खिड़कियों से आगे रामनगर और पीछे गंगानगर के रहवासियों के घरों में तांक-झांक कर सकता है। ऊपर रहने का एक मजा यह भी है कि अक्सर नीचे वालों को यह लगता है कि उन्हें कोई देख नहीं रहा है पर ऊपर वाले के अलावा भी कोई देख रहा होता है।
इधर उसके सामने के मकान वाले बुजुर्ग को कचरा फेंकने में कुछ उलझन होने लगी थीं, हुआ दरअसल यूं था कि सामने नगर निगम वालों ने कचरे का एक नया आधुनिक डिब्बा रख दिया था । सो अब वे अपने घर का कचरा तो यथावत राजीव के ही ब्लाक में फेंक रहे हैं पर जो कचरा सामने से उड़कर आता था उसे वे राजीव के ब्लाक के सामने नहीं कर पा रहे थे लिहाजा अब जब भी वैसे ही जाते हैं तो पैरों से कचरे को ठेलकर बहुत दूर से लाते हैं और लगभग गोल करने की मुद्रा में उसे राजीव के घर के सामने डाल देते हैं । यह राजीव और मीता दोनों ही जानते थे पर वह ऐसा क्यों करते हैं यह समझ से परे था। खीझ को मिटाने का इलाज पीछे की खिड़की पर था यहां वह उन काली लड़कियों को देखकर ताजा दम हो लेता है।
यह सिलसिला चल रहा था इधर कुछ दिनों से वहां ज्यादा ही हलचल थी उस कुल जमा दो कमरे पीछे वाले मकान में बहुत से लोग दिखने लगे थे । कुछ रीति रिवाज रसमें इत्यादि होने लगी थीं। वह शादीशुदा बड़ी बहन और भी तमाम लोग जो वहां रहने वाली काली लड़कियों के रिश्तेदार थे दिखने लगे थे। वह लड़का जो आवारा सा है तम्बाकू घिसता रहता है कुछ ज्यादा ही सलीकेदार, जिम्मेदार नजर आ रहा है । राजीव के पेट में उबाले मचे हुए हैं, वह मीता को बुलाकर दिखाना चाह रहा है पर मीता है कि घर गृहस्थी में व्यस्त है।
” अरे यार देखो तो सही पीछे क्या हंगामा मचा है”
” होगा अपने से मतलब। यहां ढेरों काम फैला है और तुम्हें है कि नैन मटक्का के अलावा कुछ सूझता भी है?”
राजीव खिसया गया। पर पीछे की हलचल उसे उकसा रही थी।
” देखो तो भला वाकई कुछ ना कुछ है जलसा वगैरा। वहां काले लोगों की फैशन परेड लगी है।”
मीता ने वही रसोई की खिड़की से झांका तो उसे भी मजा आ गया और नजारा दिलचस्प लगा। वह भी पीछे आ कर देखने लगी। उन दो कमरों में बहुत सारे लोग तैयार हो रहे थे । भारी अफरातफरी मची हुई थी। पर वे काली लड़कियां उन दोनों कमरों में नहीं दिख रही थी । थोड़ी ही देर में जब उस घर से आदमी बाहर हो गए थे और बची औरतों ने ढोलक बजाकर बजाकर गाना शुरू कर दिया।
” शादी है यहां पर।’ मीता ने ज्ञान बघारा।
” किसकी ?”
” अरे उसी कल्ली की होगी और करता।”
“किस कल्ली की?”
“बड़ी वाली की और क्या?”
“उस आवारा की भी तो हो सकती है।”
” वह तुम्हें आवारारा लग रहा है? जिस जिम्मेदारी से वह काम कर रहा है वह तो लड़की का भाई ही कर सकता है। अब तुम्हें तो समझ में आएगा नहीं तुम्हारी तो कोई बहन है नहीं।”
और ऑफिस वाफिस जाना है कि यही करना है ।” राजीव ने घड़ी देखी “अरे बाप रे!”
और खिड़की बंद हो गई।
शाम को जब वह आफिस से लौटा तो जानबूझकर पीछे वाली सड़क से लौटा जिस पर उन काली लड़कियों का घर था, काफी चहल-पहल से भरी थी। बीच सड़क पर तंबू तना था, गाने बज रहे थे। राजीव को घूम कर आना पड़ा था । घर पहुंचकर जब घंटी बजाई तो दरवाजा थोड़ी देर में खुला वह कुछ बोले इससे पहले ही मीता बोल पड़ी
“उसी कल्ली की शादी है । से संवर कर आई है। क्या गजब ढा रही है । वाकई बहुत सुंदर लग रही है।”
राजीव बिना समय गवांए पीछे की खिड़की की ओर रुख किया और चिपक गया । नजारा उत्सव वाला ही था। हंसी खिलखिलाहट ढोलक, गाने की खुशियां थी जो पूरे माहौल को खुशनुमा बना रही थीं। राजीव की नजरें कुछ ढूंढ रही थीं। उसकी नजरों ने छत तक का सफर किया और पाया कि उस सांझी छत की सजावट देखते ही बन रही थी। हालांकि अभी मंडप वगैरह नहीं सजा था। तभी उसकी नजरों ने उस काली सुंदर लड़की को देख लिया । वह अपने कमरे में पलंग पर बैठकर चाय पी रही थी। राजीव देखता ही रह गया । तभी काली लड़की ने भी उसे देखा , नजरें मिली। काली लड़की मुस्कुराई। उस मुस्कुराहट को राजीव ने भी सहेजा और मीता ने भी सहेजा। इस सहेजने में मीता कोई आपत्ति नहीं थी। कोई और लड़की होती तो मीता जान लें डालती पर यहां बात ही अलग थी।
तभी उस कमरे में कई खिलखिलाहटों ने प्रवेश किया। पूरा माहौल खुशी से सराबोर था। राजीव और मीता भी उसी खुशी में थे।
राजीव वापस आया, कपड़े वगैरह बदले। इस बीच मीता पूरे नजारे पर नजर रखी हुई थी। उसे शादी देखनी थी और देखना था कि वह कौन है जो उस काली सुंदर सी लड़की से ब्याह कर रहा है। उसने भी सांझी छत को देखा तो वह गदगद थी। अब छत पर सजावट हो चुकी थी। छत पर जो मंडप सजाया था वह आम केले और कई तरह के पत्तों से और केले के खंभों पर बना था। छोटा था पर इतना भव्य था कि उस जैसा सुंदर मंडप उसने उन् नवधनाढ्यों की शादी में भी नहीं देखा था जो बड़े-बड़े महल नुमा घरों में रहते हैं और फाइव स्टार होटलों में शादियां करते हैं । वहां सब कुछ होता था पर यह जो ठेठपन है यह जो उल्लास है अपनापन है उसका कोई सानी ही नहीं है। उसने राजीव को बुलाया। वह तो जैसे तैयार ही था।
” देखो तो जरा छत पर” राजीव ने छत पर देखा। वहां जो कुछ था वह अपने आप में संपूर्ण था। कोई कोना ऐसा ना था जहां खुशी ना हो सुंदरता न हो अपनापन ना हो। मंडप देखकर तो वह पगला ही गया।
” यार इस मंडप के नीचे शादी करने का फिर से मन हो रहा है।” “जा रहे हो क्या?”
“चलती हो क्या !”
उस सांझी छत सांझेपन से दोनों मन प्रसन्न हो चला था। वे दोनों वहां से हटने को तैयार नहीं थे। रात गिरने लगी थी, पर पीछे छत पर रोशनी ही रोशनी थी। तय किया दोनों ने कि खाना वगैरा निपटा कर ताकेंगे पूरी शादी और देखेंगे पूरी रस्में। और वैसा ही किया भी। पीछे उत्सव का माहौल था । बारात अभी आने वाली थी। मोहल्ले के सारे लोग इकट्ठे थे। छत के एक कोने में मंडप था जिसमें शादी होगी देर रात। दूसरे कोने में बकायदा मंच था जिस पर दूल्हा दुल्हन बैठेंगे उससे पहले जय माल की रस्म अदा करेंगे।
सांझी छत से जुड़ी दूसरी छत पर खाने का इंतजाम था। बकायदा स्टाल्स थे हर तरह के खाने के। सब इतना व्यवस्थित था कि उसे इस आवारा लड़के के बारे में राय बदलने को मजबूर होना पड़ा। तभी हो हल्ला, बैंड बाजे, नगाड़े, पटाखों की आवाज आने लगी। यानी बारात आ गई थी। इधर उन दोनों के चेहरे भी चमक उठे थे । पीछे के सारे मकानों में अफरा-तफरी थी। थोड़ी देर में सब शांत हुआ यह सब इधर से दिखता नहीं था, पर दोनों ने बिना देखे ही दरवाजे पर लड़कों का नाच, एक लंबी पटाखे की लड़ का छुड़ाया जाना, द्वारचार की रस्में , लड़कियों की ठिठोली, लड़कों का नैन मटक्का सब कुछ देख लिया था। फिर सब लोग ऊपर आने लगे। दोनों ने देखा सुंदर था दूल्हा।
“दूल्हा सुंदर है।” मीता बोली। “दुल्हन से कम ”
राजीव की नजर मंच से ज्यादा उस मजमे में थी लड़कियों के जिस में उस दुल्हन को लाया जा रहा था, जो वाकई बहुत सुंदर थी। मंच पर जय माल हुई फिर दूसरी छत पर लोग खाना खाने लगे । लिफाफे उपहार में दिए जाने लगे, छोटी काली संभाल रही थी। वह आवारा लड़का लगभग बाप की भूमिका में था। मां तो फिरकनी बनी हुई थी।
“फेरे देखने हैं।” उसने पूछा।
“और नहीं तो क्या”
” तो चाय हो जाए”
चाय हुई। फिर दोनों फिर पीछे की खिड़की पर थे। उल्लास को, उत्साह को देखकर दंग थे। सब कुछ इतना प्राकृतिक था कि दुनिया पवित्रता से सराबोर थी। ढेर रसमें थी । सब रिश्तेदारों ने बैठकर कन्यादान किया। राजीव मीता ने भी अपनी खिड़की से किया और आशीषा दोनों को। फेरे रात में हुए । राजीव और मीता उस अद्भुत देवीय विवाह में शामिल हुए । जब फेरे हो रहे थे तो दोनों के हाथ उठ जाते थे फूल, चावल, बताशे डालने को। दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा देते थे। आशीर्वाद भी दिया और मन में काली लड़की का ख्याल लिए दोनों सो गए।
सुबह जल्दी उठकर दोनों फिर खिड़की से झांक रहे थे। वहां विदाई हो रही थी। हर कोई रो रहा था। वह काली लड़की जो बला की खूबसूरत है विदा हो रही थी। उस दो कमरे वाले घर का कोना कोना रो रहा था। बहन, भाई, मां , रिश्तेदार, मोहल्ले के सारे लोग रो रहे थे। पूरे इलाके से रौनक का पिटारा जो जा रहा था। घर की औरतें रो रहीं थीं। राजीव और मीता दोनों रो रहे थे, बिना एक दूसरे से छुपाते हुए।
अब वहां सब कुछ यथावत हो जाएगा क्या? वहां वे बुजुर्ग कचरे से फुटबॉल खेलते रहेंगे, राजीव कुढ़ता रहेगा। हो सकता है उनसे उलझ भी जाए । पर पीछे की खिड़की पर राजीव का आना-जाना कम हो जाएगा।
अमिताभ मिश्र- जन्म 2 अगस्त। कवि कथाकार । ताज तम्बूरा, कुछ कम कविता ( कविता संग्रह)। डुंगरी डुंगरी , सितौलिया (कहानी संग्रह ) और पत्ता टूटा डाल से उपन्यास। देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता कहानी प्रकाशित ।
संपर्क- 9425375311