मध्य प्रदेश के विधि व गृहमंत्री ने देश की संसद से पारित ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के बारे में कुछ भी नहीं जानते है।हमें अब मान लेना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का वो अभियान शुरू हो चुका है जो देश के संविधान की मृत्यु की घोषणा करेगा।
अतुलनीय भारत के हृदय, हिंदुस्तान के दिल पर अब एक हुकूमत 2023 तक के लिए क़ाबिज़ हो चुकी है और इस तरह से जम चुकी है कि वह प्रेम और पसंद की निजी आज़ादी को उखाड़ फेंकने की मुहिम की अगुवाई करने पर आमादा हो चुकी है।
ख़बर है कि अगले महीने मध्य प्रदेश के विधानसभा सत्र में देश की सबसे बड़ी काल्पनिक समस्या ‘लव जिहाद’ के समूल नाश के लिए एक ऐसा कानून लाने जा रही है जिससे युवाओं के मन में ऐसा खौफ़ बैठ जाए कि आने वाली पीढ़ियाँ प्रेम और पसंद के अपने मौलिक अधिकार और मनुष्य होने की बुनियादी शर्त ही भूल जाएँ। हालांकि जिहाद शब्द को लेकर कोई शास्त्रीय या शाब्दिक/भाषाई दलील नहीं दी जा सकती बल्कि इस शब्द को बहुसंख्यक आबादी के मानस में रूढ़ि बनाया जा चुका है और जिसका सीधा सा मतलब है कि मुसलमान युवाओं द्वारा हिन्दू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाना और उनकी ज़िंदगी बर्बाद करना है।
इस कानून की कुछ निर्ममताओं पर अपनी गर्वीली जुबान में प्रदेश के गृह मंत्री ने कुछ उवाच किए हैं। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश पहला राज्य होने जा रहा है जो इस तरह का कानून लाएगा। इस कानून के तहत लव जिहादी (मुस्लिम पुरुष?) को गैर जमानती धारा लगाते हुए पाँच वर्षों का सश्रम कारावास दिया जाएगा। उसकी मदद करने वाले परिवार जन, रिशेतदारों, दोस्तों को भी मुख्य अपराधी की तरह ही कड़ी सज़ा दी जाएगी। अगर लव जिहाद होना सिद्ध पाया जाता है तो ऐसे विवाह को नल एंड व्याईड करार दिया जाएगा। उसे खारिज कर दिया जाएगा। अगर ‘स्वेच्छा’ से कोई लड़की धर्म-परिवर्तन करते हुए किसी गैर मजहब में शादी करना चाहती है और उसके परिवार की सहमति उससे है तो संबंधित जिला दंडाधिकारी से एक माह पूर्व अनुमति के लिए आवेदन करना होगा। अभी बारीकी से इसके नियम कायदे नहीं बने हैं लेकिन इस वक़्त प्रदेश के विधि और गृह मंत्री एक ही हैं अत: इन प्रावधानों में कोई बड़ा उलट-फेर कम से कम नहीं होगा।
इस घोषणा से पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने 31 अक्टूबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट की भिन्न संदर्भ में की गयी महज़ एक टिप्पणी को आधार बनाते हुए लव जिहाद करने वालों को खुले मंच से चेतावनी दे डाली है कि अगर वो बाज़ नहीं आए तो उनकी ‘राम नाम सत्य है की यात्रा निकलने वाली है’।
हरियाणा और कर्नाटक की प्रदेश सरकारों ने भी इसी तरह की मंशाएं प्रकट की हैं। लेकिन जो आत्मविश्वास और दर्प मध्य प्रदेश के गृह व विधि मंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा की वाणी में दिखा उससे लगता है मध्य प्रदेश यहाँ पिछड़ा राज्य साबित नहीं होगा बल्कि वह सबसे पहले ऐसा कानून ले आयेगा। यह उतावलापन दो लक्ष्यों पर निशाना बेधने का है। एक लक्ष्य जो घोषित तौर पर बतलाया जा रहा है की इस कानून के माध्यम से ऐसे गैर-धर्मी लड़कों (शोहदों) को कारावास या ‘राम नाम सत्य’ की यात्रा करवाना जिनकी कैफियत सीधे सीधे आतंकवादी कह दिये जाने लायक नहीं है और दूसरा अपने धर्म की इक्कीसवीं सदी की उन लड़कियों को यह संदेश देना कि दुनिया भले ही कितने आगे निकाल जाए लेकिन तुम्हारी बुद्धि अभी इस लायक नहीं हो पायी है कि तुम्हारे चयन को मान्यता दी जा सकी। तुम्हें चयन का अधिकार नहीं है। निजी स्वतन्त्रता अभी भी पुरानी धार्मिक मान्यताओं, रूढ़ियों और समाज विधान के अधीन हैं जहां तुम्हें अपने पिता, भाई, समाज के कहे अनुसार ही चलना होगा।
पहला लक्ष्य इतना मुखर और लाउड है कि दूसरे की तरफ खुद ‘सरकार के धर्म की लड़कियों’ का ध्यान जल्दी नहीं जाने वाला। परिवारों का तो खैर क्यों ही जाएगा, जब तक जाएगा तब तक इतना देर हो चुकी होगी कि लड़कियां खुद को आधुनिक दक्षताओं से लैस लेकिन दुर्दांत पुरातन पितृसत्ता की बेहद तंग और घुटन भरी काल कोठरियों में कैद पाएंगीं।
हमें अब मान लेना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का वो अभियान शुरू हो चुका है जो देश के संविधान की मृत्यु की घोषणा करेगा। संविधान और कानून के सामने हर नागरिक की बराबरी, निजी स्वतन्त्रता की सर्वोच्चता और जीवन साथी के चयन के मौलिक अधिकार पर ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक होगी जिसके लिए बादलों के घिरने की प्रतीक्षा की ज़रूरत नहीं होगी क्योंकि यहाँ शत्रुओं पर खुलकर बमबारी की जा सकती है। शत्रु आपके देश की सरहद के भीतर हैं। वो आपके हमारे पड़ोस में हैं। उनकी एक-एक गतिविधि पर हमारी नज़र है और उनके हौसले इस कदर पस्त हैं कि वो धमकाना या बलपूर्वक धर्मांतरण कराने की छोड़िए, बहलाने फुसलाने के लायक ही नहीं छोड़े गए है। यहाँ हालांकि एक संदेह भी पैदा होता है कि तमाम प्रयासों के बावजूद क्या आज भी किसी अन्य मज़हब के पुरुष में यह साहस बचा है कि वो किसी हिन्दू लड़की को बहला-फुसला कर अपने धर्म में शामिल करा ले? अगर ऐसा है तो हमें मान लेना होगा कि शत्रु बहुत हुनरमंद है। इस बची-खुची हुनरमंदी का तोड़ भी इस कानून में मौजूद होगा।
मध्य प्रदेश के विधि व गृहमंत्री ने देश की संसद से पारित ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के बारे में कुछ भी नहीं जाना है। अगर जाना होता तो वो यह अहमकता नहीं करते। अपनी बात कहते समय वो हरियाणा में हाल में हुई एक हिन्दू लड़की निकिता की हत्या का ज़िक्र करते हैं जिसका अभियुक्त एक मुसलमान लड़का है और जो प्रथम दृष्टया एकतरफा छेड़खानी का मसला है। अब ऐसे तथ्य सार्वजनिक हैं जो बतलाते हैं कि अपने साथ हो रही छेड़खानी की शिकायत उत्पीड़ित लड़की ने थाने में दर्ज़ कराई थी, जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। अंतत: जिसका अंजाम एक लड़की को अपनी मौत से भुगतना पड़ा था। यानी कानून- व्यवस्था की घनघोर असफलता को आप ऐसी जगह इस्तेमाल कर रहे हैं जहां आपको तमाम बेशर्मी किनारे रखकर गर्दन झुकाकर प्रदेश और देश की बेटियों से माफी मांग लेना था। क्योंकि आप बेटियों की सुरक्षा करने में असमर्थ रहे।
महिलाओं के बारे में तमाम धर्मों,मज़हबों और संप्रदायों में बहुत बढ़िया-बढ़िया बातें कहीं गईं हैं। विशेष रूप से महिलाओं के सम्मान से जुड़े लगभग हर पहलू पर खूब बातें हुईं हैं जिनका लब्बोलुआब यही है कि महिलाएं मर्दों की ‘पैर की जूतियाँ’ हैं और उनके इससे ज़्यादा सोचने की कार्यवाही को आपराधिक माना जाएगा। अगर शास्त्रों से नहीं तो शस्त्रों से, मनुहार से नहीं तो दंड से, धन ऐश्वर्य से नहीं तो वंचना से, छल से, बल से और हर तरीके से उनकी तय जगह को बदलने की आकांक्षाओं को भस्मीभूत किया जाएगा। मध्य प्रदेश सरकार ने इसका एलान कर दिया है। अन्य भाजपा शासित राज्य इस धर्मानुमोदित बर्बरता में होड़ ले रहे हैं। देखते हैं कौन बाज़ी मारता है।
नरोत्तम मिश्रा का वक्तव्य सुनकर लगा कि देश अब शायद गाय के नाम से होने वाली मॉब लिंचिंग से मुक्ति की दिशा में बढ़ रहा है। अब हत्याएं तो होंगी और कानून के संरक्षण में होंगीं लेकिन उनका वायस बदल जाएगा। अब गाय की जगह गाय जैसी एक हिन्दू लड़की होगी। यूं ही नहीं ‘अच्छी लड़की’ की तुलना गाय से होती आयी है। बहरहाल।
इस देश में विशेष विवाह अधिनियम 1954, इसलिए ही वजूद में आया था ताकि ऐसे जोड़े जो बालिग हैं और अलग- अलग धर्मों से हैं और आपस में शादी करना चाहते हैं लेकिन धर्म की दीवार बीच में आती है और महज़ विवाह के लिए वो अपने धर्म नहीं बदलना चाहते। बल्कि अपनी-अपनी धार्मिक आस्थाओं के साथ भी विवाह नामक संस्था का गठन मिलकर करना चाहते हैं। यह कानून ऐसे लोगों को चयन के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है और उन्हें यह इजाजत देता है कि बिना धर्म बदले भी वो शादी कर सकते हैं और परिवार का निर्माण कर सकते हैं। हालांकि इस कानून को लेकर वाकई न्यूनतम जागरूकता समाज में है। इस कानून के क्रियान्वयन में भी कुछ ऐसी पेचीदगियाँ हैं जो जागरूक युवाओं को भी इसके तहत शादी करने को एक आसान विकल्प की तरह नहीं देख पाते।
अंतरधार्मिक व अंतरजातीय विवाहों और जोड़ों की ज़िंदगियों से जुड़कर कम रही एक संस्था ‘धनक’ के सामने ऐसी कई चुनौतियाँ आती हैं जब युवा शादी के लिए कोई भी ‘शॉर्ट-कट’ लेने तैयार होते हैं। इसके लिए अगर धर्म-परिवर्तन एक आसान मार्ग है या धार्मिक रीति से शादी करना एक तरीका है तो ज़ाहिर है वो ऐसे तरीके चुन लेते हैं। इसमें भी कहीं छल या, प्रलोभन या दबाव काम नहीं करते बल्कि अगर करते हैं तो परिवारों की तरफ से आते हैं। दो बालिग नागरिक वह मार्ग चुनते हैं जो उन्हें फौरी तौर पर ज़रूरी और आसान लगता है।
‘धनक’ के सह-संस्थापक आसिफ एक ऐसे विरोधाभास के बारे में बताते कि ‘एक तरफ 2008 में चंडीगढ़ हाईकोर्ट द्वारा अंतरधार्मिक जोड़ों की सुरक्षा के लिए पंजाब व हरियाणा सरकार से उनके लिए सेफ हाउस बनाने का निर्देश दिया गया और जिसके पालन में दोनों ही राज्यों की सरकारों ने ऐसे हाउस बनाए भी हैं। दूसरी तरफ मनोहर लाल खट्टर हरियाणा राजय के गठन से लेकर अब तक ऐसे जोड़ों की पड़ताल करने की बात करते हैं। ऐसे जोड़ों की शिनाख्त के बाद उनके साथ क्या किया जाएगा? इसका जवाब मध्य प्रदेश के विधि व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा दे रहे हैं कि ऐसी शादियों को खारिज माना जाएगा। यानी एक तरफ राज्य खुद ऐसे जोड़ों को सांवैधानिक सुरक्षा की गारंटी देता है और दूसरी तरफ उनके साथ प्रतिशोध की कार्यवाहियों की तैयारी भी करता है’। इस तथ्य को क्या इस तरह समझा जाये कि खट्टर सरकार अपने नागरिकों से उनके सांवैधानिक सुरक्षा की गारंटी से पाला झाड़ने जा रही है क्योंकि वह उनकी हिन्दू राष्ट्र की परियोजना में शामिल नहीं है?
यह माने जाने के कई तजुर्बे अब हमारे पास हैं कि देश की संसद पर, राज्यों की विधानसभाओं पर संख्याबल की धमक संविधान को किनारे लगाने के लिए ‘कटिबद्ध’ है। मामला चाहे धारा 370 का हो, संशोधित नागरिकता कानून का हो राष्ट्रीय नागरिकता पंजीयन का हो इनकी मंज़िल एक है और वो इतनी स्पष्ट है कि जिसमें विचलन की कोई गुंजाईश नहीं है।
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