बातचीत कैसे हो सफल जब ‘दबाव’ झटक चुका है चीन?

प्रेम कुमार

भारत-चीन के बीच 11वें दौर की बातचीत कोर कमांडर स्तर पर 10 अप्रैल को खत्म हुई। द्विपक्षीय बातचीत को कभी बेनतीजा कहना सही नहीं होता क्योंकि बातचीत का जारी रहना भी फलदायी होता है। मगर, फरवरी महीने में दोनों देशों की सेनाओं को पीछे हटाने की जो ‘उपलब्धि’ हासिल की गयी थी उससे आगे ऐसी कोई बात नहीं हुई है जिसे उपलब्धि कहा जा सके।

बदली हुई परिस्थिति में सामरिक और कूटनीतिक रणनीति की समझ रखने वाले यह मानकर चल रहे हैं कि चीन का रुख अब मुलायम होने वाला नहीं है और भारत के लिए कोई उपलब्धि हासिल करना टेढ़ी खीर है।

सेना ने मौके बनाए, वार्ता में हमने गंवाए

सवाल यह है कि गलवान घाटी में जिस ज़मीन की रक्षा के लिए भारतीय जांबाजों ने शहादत दी क्या वहाँ भारतीय सेना पैट्रोलिंग भी नहीं कर सकेगी? फरवरी में रक्षा मंत्रालय की ओर से यही बात तो कही गयी थी कि फिंगर 3 और फिंगर 8 के बीच दोनों सेनाओं की पैट्रोलिंग आनेवाली बातचीत के बाद बहाल हो सकेगी। मगर, उसके बाद से फरवरी में 10वें और अप्रैल में 11वें दौर की बातचीत हो चुकी है और इस दिशा में कोई नतीजा नहीं निकला है। 

मुद्दा भटकाने की कोशिश

चीन मुद्दा दर मुद्दा भटकाने की कोशिशों में जुटा है। वह न तो देप्सांग और आसपास के इलाकों से अपनी मजबूत पकड़ छोड़ने को तैयार है और न ही पैट्रोलिंग की वर्तमान स्थिति में किसी बदलाव को ही राजी है। तो क्या वार्ताओं में चीन हावी है?

भारतीय सेना ने हर महत्वपूर्ण मौकों पर चीन को मुँहतोड़ जवाब दिया है- चाहे वह 15-16 जून की रात गलवान घाटी का संघर्ष हो या फिर 29-30 अगस्त की रात अपने ही इलाके में मौजूद हिमालय रेंज की पहाड़ियों पर पकड़ मजबूत करना। पहली घटना चीन को सबक के तौर पर वर्षों याद रहेगी, तो दूसरी घटना ने चीन की रणनीतिक बढ़त पर ऐसी चोट मारी कि चीन बेचैन हो गया। मगर, इन दोनों घटनाओं से चीन के लिए पैदा की गयी बेचैनी क्या बरकरार रखी जा सकी? 

वार्ताओं के पहला निष्फल दौर 

पहले दौर में सारी बातचीत में चीन अड़ियल रुख अपनाए हुए था। वह अपनी घुसपैठ की कोशिशों को आगे बढ़ाने में जुटा हुआ था। चीन की सेना ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करना अप्रैल के महीने से ही शुरू कर दिया था। 5 मई को पैंगोंग त्सो के पास दोनों देशों की पैट्रोलिंग टीम में झड़प हुई थी। अगले ही दिन 6 मई विदेश सचिव स्तर की बातचीत हुई।मगर, 9 मई को सिक्किम के नाकु ला में एक और संघर्ष छिड़ गया। 26 मई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पीएलए के साथ वार्षिक मीटिंग की, तो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख की स्थिति का जायजा लिया।

तमाम कोशिशों के बावजूद भारत-चीन के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा था। 29 मई भारतीय विदेश मंत्रालय ने बातचीत से विवाद का कूटनीतिक हल निकाल लेने की आशा जताई। 30 मई रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर द्विपक्षीय बातचीत चल रही है। 2 जून को भारत-चीन के बीच मेजर जनरल स्तर की बातचीत भी निष्फल रही। 6 जून को चुशूल-मोल्डो में लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की पहली बातचीत हुई, जबकि 12 जून को मेजर जनरल स्तर की बातचीत हुई। 

गतिरोध

गलवान घाटी की घटना से तीन दिन पहले देहरादून में पासिंग आउट परेड में आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने 13 जून को कहा था, “हमें विश्वास है कि हमारी जो बातचीत चल रही है उसमें हमारे (भारत और चीन) बीच सभी मौजूदा मतभेद दूर हो जाएंगे और गतिरोध खत्म हो जाएगा, चीजें नियंत्रण मैं हैं।”

15-16 जून की रात गलवान घाटी में जो हिंसक संघर्ष हुआ उसने तमाम वार्ताओं पर पानी फेर दिया। बगैर गोली चले भारत के 20 जवान शहीद हो गये, तो चीन के 43 सैनिक मारे गये। 17 जून को देशवासियों के नाम संबोधन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शहादत पर गौरव करते हुए ‘मारकर मरे हैं’ वाला अंदाज दिखाया। ऐसा लगा मानो आगे बड़ी जवाबी प्रतिक्रिया दी जाने वाली है।

हिमालय रेंज पर पकड़ मजबूत 

तनाव के बीच बातचीत रुकी नहीं। मगर, इस बातचीत का मकसद सीमा विवाद न होकर सीमा पर और अधिक हिंसा या तनाव न होने देना था। भारत की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा और उसके आसपास अप्रैल वाली स्थिति बनाए जाने की बात कही जाती रही, लेकिन उसका असर नहीं दिखा।

 22 और 30 जून को कमांडर स्तर की बातचीत का दूसरा और तीसरा दौर हुआ, 14 जुलाई को चौथे दौर की बातचीत कोर्प्स कमांडर स्तर पर, 2 अगस्त को पांचवें दौर की तीन स्टार वाले जनरल स्तर की द्विपक्षीय बातचीत और 8 अगस्त को मेजर जनरल स्तर की वार्ताएं हुईं।

29-30 अगस्त की रात परिस्थिति बदल गयी। चीन ने आदतन घुसपैठ की कोशिश की और हमारी सेना ने माकूल जवाब देते हुए कैलाश की पहाड़ों पर अपनी पोजिशन बना ली। इनमें हेलमेट, ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, मागर हिल, रेजांग ला और रेचिना लॉ शामिल थीं। 

इसका सामरिक महत्व समझिए कि कैलाश रेंज में पैंगोंग त्सो से रेचिन ला तक की चोटियाँ जिसके पास रहेंगी वह पूरब से पश्चिम के सभी मार्गों पर हावी रहेगा। भारत के इस कदम के बाद चीन के लिए विवशता आ गयी कि कम से कम 6-8 किमी दूर अपनी पोजिशन रखे।

दबाव में चीन, भारत ने खोई बढ़त

अब बातचीत की ज़रूरत चीन को भी हो गयी। इस बीच चीन भी देप्सांग घाटी पर अपनी स्थिति मजबूत कर चुका था। चीन का पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित हो गया कि भारत ने हिमालय रेंज की चोटियों पर जो अपनी पकड़ मजबूत की है उसे किस तरह खत्म किया जाए।

वहीं भारत के लिए यह सुनहरा अवसर था जब वह चीन को देप्सांग घाटी से पीछे हटने और वहाँ बॉटल नेक समेत फिंगर 10,11,12,13 तक अपनी सैन्य आवाजाही को पुनर्बहाल कराता। 

भारत और चीन अपने-अपने मक़सद से बातचीत का सिलसिला बढ़ाते रहे। 1 सितंबर को ब्रिगेड कमांडर स्तर और 5 सितंबर को ब्रिगेडियर स्तर की बातचीत हुई। 22 सितंबर को मिलिट्री कमांडर स्तर की छठे दौर की बातचीत में विदेश मंत्रालय भी मौजूद रहा ताकि बातचीत में प्रगति हो सके।

इसके आगे की चार वार्ताएं 13 अक्टूबर, 6 नवंबर, 24 नवंबर और 24 जनवरी मिलिट्री कमांडर स्तर पर हुई जिसने परस्पर सहमति का आधार तैयार किया। 

यह सहमति जिस रूप में सामने आयी वह चीन की सेना के लिए पेंगोंग त्सो से पीछे हटना था, तो भारतीय सेना को न सिर्फ फिंगर स्थित ध्यान सिंह पोस्ट पर लौटना था बल्कि हिमालयी रेंज से भी अपनी मौजूदगी हटानी थी।

इस बातचीत में चीन को देप्सांग घाटी से दूर करने की रणनीति में भारत सफल नहीं हो सका, जबकि यह शानदार मौका था।

चीन पर दबाव खत्म

हिमालय रेंज की चोटियों से हट जाने के बाद की वार्ताओं के लिए चीन पर दबाव हट चुका है। भारत हिमालय रेंज पर हासिल की गयी बढ़ खो चुका है। फिर से गलवान घाटी में संघर्ष से पहले वाली स्थिति हो गयी है। वार्ताएं तो होंगी, लेकिन नतीजा नहीं निकलेगा। तनाव बढ़ने पर किसी और संघर्ष की आशंका जरूर बनी रहेगी।

21 फरवरी की बातचीत तो मुख्य रूप से दोनों सेनाओँ के पीछे हटने पर बनी सहमति पर अमल को लेकर रही थी, लेकिन 10 अप्रैल को 11वें राउंड की बातचीत से जो लोग नतीजा निकलने की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें निराशा हुई है। आने वाले समय में भी ऐसी बातचीत से कोई हल निकलने की उम्मीद नहीं रह गयी है।

पैट्रोलिंग रोकी

भारत-चीन के जो बीते एक साल में जो संघर्ष और वार्ताएं हुई हैं उसके अंतिम परिणाम को देखें तो स्थिति उससे भी बदतर है जब पहले दौर की वार्ताएं चल रही थी। पहले दौर की वार्ताओँ में हम दबाव में थे कि चीन की सेना हमारे इलाके में घुसपैठ कर रही है, हमारी सेना को पेट्रोलिंग से रोक दिया गया है और चीन लगातार अपनी सेना और हथियारों का जमावड़ा बढ़ा रहा है। ये सभी स्थितियां आज भी बरकरार हैं।

चीन की कोशिश वास्तविक नियंत्रण रेखा को नये सिरे से परिभाषित करने की थी और हमारी कोशिश ऐसा नहीं होने देने की थी। इस कोशिश में चीन को सफलता मिल चुकी है क्योंकि भारत की सेना गलवान घाटी में वहां भी मौजूद नहीं रह सकती जहां जवानों ने शहादत दी।

बफर ज़ोन

यहां तक कि अपने इलाके हिमालय रेंज पर भी वह तैनात नहीं हो सकती। ऐसे में जिसे हम बफर ज़ोन कहते हैं और जो फिंगर तीन से फिंगर 8 तक का इलाका है वहाँ चीनी गतिविधियों पर निगरानी कैसे रखी जा सकेगी? 

भले ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में कहा हो, “न तो वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है और न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है।“ लेकिन 15 सितंबर को राजनाथ सिंह ने संसद में माना कि अप्रैल से अब तक चीन ने कई बार घुसपैठ की कोशिश की है। 

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हर बार भारत ने उचित कार्रवाई की। इससे पहले 2 जून को भी राजनाथ सिंह ने घुसपैठ की बात कबूल कर चुके थे- “फिलहाल की जो घटना है, ये बात सच है कि सीमा पर इस समय चीन के लोग भी हैं…उनका दावा है कि ‘हमारी सीमा यहां तक है’। भारत का ये दावा है कि हमारी सीमा यहाँ तक है।”  

चीन के ख़िलाफ़ भारत में काफी गुस्सा था और है। देशवासियों के गुस्से से खुद को जोड़ते हुए भारत सरकार जून के अंत तक 59 चीनी एप पर बैन लगाने की घोषणा कर चुकी थी। सितंबर में 118 एप और नवंबर में 43 एप भी प्रतिबंधित किए गये। इन उपायों को चीन के आगे नहीं झुकने और चीन को दबाव में रखने की रणनीति के तौर पर मोदी सरकार ने पेश किया। मगर, सवाल ये है कि क्या इन कदमों से भारत-चीन वार्ता में बढ़त बनायी जा सकेगी

प्रेम कुमार समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।  ये उनके निजी विचार हैं। सौज- सत्यहिन्दी

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