दिल्ली। कविता का सच दरअसल अधूरा सच होता है। कोई भी कविता पूरी तब होती है अपने अर्थ में जब पढ़ने वाला रसिक, छात्र,अध्यापक या पाठक उसमें थोड़ा सा अपना सच और अपना अर्थ मिलाता है। सुप्रसिद्ध कवि, संपादक और विचारक अशोक वाजपेयी ने उक्त विचार हिंदी साहित्य सभा हिंदू कॉलेज के वार्षिक साहित्यिक आयोजन ‘अभिधा’ के उद्घाटन सत्र में व्यक्त किए।
“हमारे समय की कविता” विषय पर वाजपेयी ने वर्तमान समय का ज़िक्र करते हुए कहां कि जब आप अपने समय का जिक्र करते हैं उसी का अर्थ वर्तमान समय होता है। लेकिन कविता के वर्तमान समय की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि कविता का वर्तमान समय इतना सीमित नहीं होता है क्योंकि वर्तमान से पहले भी कई कविताएं पढ़ी जा चुकी होती हैं। वर्तमान में पहले के मुकाबले एक बुनियादी अंतर को बताते हुए उन्होंने कहा कि पहले समकालीनता और आधुनिकता का दबाव नहीं था पर समय के साथ हिंदी में यह दबाव बढ़ा था कि समकालीनता, यानी अपने समय काल को व्यक्त करना है।
समकाल के बारे में वाजपेयी ने कहा कि समकाल के दो – तीन अर्थ देखे जा सकते हैं। सर्वप्रथम आजकल जो भी पूर्व मैं पढ़ा जा चुका है वह भी समकाल का ही हिस्सा था। दूसरा अर्थ यह भी बताया कि जो इस समय लिखा जा रहा हो या रचा जा रहा हो वह भी समकाल का एक हिस्सा था। समकालीनता का तीसरा अर्थ समझाते हुए उन्होंने व्यापक राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक समकाल परिस्थितियों का दबाव भी साहित्य पर देखे जाने को बताया । उन्होंने आगे जोड़ा कि आज अपने समय के साथ-साथ आत्म तथा समाज, इनको भी लिखना और एक तरह से ऐसा लिखकर अपनी समकालीनता से मुक्त होने की भी कोशिश आज थी।
उन्होंने कविता के अलग-अलग लक्ष्यों पर विचार करते हुए बताया कि कविता का एक काम याद रखना,याद दिलाना और याद को बचा कर रखना है। दुर्भाग्य से ऐसे समय आ गया है जहां ऐसी राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक शक्तियां सशक्त होते जा रहीं हैं जो यही चाहती हैं कि हम वही याद रखें जो उनके संकीर्ण लक्ष्यों को साधे और उस व्यापक याद से वंचित हो जाए जो हमारे समाज और संस्कृति की बहुलता का प्रतीक है। इसलिए कविता का यह बेहद जरूरी काम हो जाता है।
वाजपेयी ने कहा कि दिए हुए यथार्थ के साथ एक वैकल्पिक यथार्थ की कल्पना करना भी कविता का दूसरा काम है। कविता का यथार्थ बिना कल्पना के पूरा नहीं होता और पूरी तरह से हो भी नहीं सकता। उन्होंने बताया कि कविता अपने समय की सच्चाई तो दिखाती है पर कविता सपना भी दिखाती है। उन्होंने कहा कि कविता का काम मनुष्य के कुछ बुनियादी सपनों जैसे स्वतंत्रता का सपना न्याय का सपना मुक्ति का सपना आदि को सक्रिय जिंदा व सजीव रखने का भी होता है।उन्होंने बताया कि समय से बाहर जाने की हमारी इच्छा और समय को लांघने की हमारी चाहत को कविता पूरी करती है। कविता का एक काम यह भी है कि वह हमें समय की घेराबंदी से मुक्त कर दूसरे समय में ले जाए। इसको समझाते हुए उन्होंने आदिकाल की बात उठाई और यह भी जोड़ा कि कबीर और तुलसीदास के समय को छूने की कोशिश हम कविताओं से ही कर सकते हैं। कविता के गुण को बताते हुए उन्होंने कहा कि कविता ने हमेशा से प्रश्न करने की क्षमता रखी है। प्रश्नांकन की शुरुआत कविता ने उस समय की जब प्रश्न करना एक तरह से देशद्रोह के बराबर था। उन्होंने कहा कि बदलते समय और बदलते हालात से हर कविता को जूझना होता है।
वाजपेयी ने कहा कि कविता इस संसार में घटित होते हिंसा, दुख को तो व्यक्त करती ही है पर इस संसार की सुंदरता का भी वर्णन करती है। कविता संसार का गुणगान भी करती है और कविता एक ऐसा माध्यम है जिसने स्त्रियों, दलित,आदिवासी आवाज़ों को शामिल किया और यह न सिर्फ कविता को अप्रत्याशित अनुभव, संसार, जीवन छवियों और मर्म प्रसंगों की ओर ले जाती है बल्कि उसमें ऐसा अनुभव व्यक्त करती है जो नवीन और बिल्कुल अलग था।
इससे पहले विभाग के प्रभारी डॉ पल्लव ने वाजपेयी का स्वागत करते हुए कहा कि निराशा भरे इस दौर में साहित्य के कर्तव्यों की बात करना साहित्य के विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है। उन्होंने हिंदी साहित्य सभा की गतिविधियों के सम्बन्ध में भी बताया। प्रश्नोत्तर सत्र में वाजपेयी ने कलावाद और अन्य प्रश्नों पर विस्तार से विद्यार्थियों के सवालों के जवाब दिए। आयोजन का सञ्चालन विभाग के अध्यापक डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया तथा वाजपेयी का परिचय द्वितीय वर्ष की छात्रा तुलसी झा ने दिया। आयोजन में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों के साथ साहित्यकार और साहित्यप्रेमी भी उपस्थित हुए। आयोजन को गूगल मीट के साथ फेसबुक पर भी प्रसारित किया गया। अंत में प्रथम वर्ष के ही छात्र कमल नारायण ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
शुक्रवार को अभिधा के दूसरे दिन उच्च अध्ययन संस्थान के अध्येता और प्रसिद्ध आलोचक प्रो माधव हाड़ा ‘भक्तिकाल की पुनर्व्याख्या की जरूरत’ विषय पर व्याख्यान देंगे।