अरविंद पोरवाल
26 जुलाई, 2021 को अपनी महान क्रांति की 68वीं वर्षगांठ मना रहा क्यूबा 1959 के बाद से अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। गत 11 जुलाई को बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी क्यूबा की सड़कों पर उतर आए जो मुख्य रूप से भोजन, बिजली और दवाओं की कमी तथा महामारी के कारण निर्मित स्थिति पर रोष प्रकट कर रहे थे । क्यूबा के राष्ट्रपति मिगुएल डियाज़-कैनेल के अनुसार इन समस्याओं का मूल कारण अमेरिका द्वारा पिछले 60 वर्षों से प्रचलित अमानवीय और अन्यायपूर्ण आर्थिक नाकेबंदी है।
क्यूबा पूंजीवादी अमेरिका की आंखों में हमेशा चुभता रहा है। उसने क्यूबा पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं तथा वो वहां की कम्युनिस्ट सरकार को हटाने की कोशिश करता रहता है। इन ताज़ा प्रदर्शनों की आड़ में अमेरिका क्यूबा में राजनीतिक परिवर्तन के सपने देख रहा है। बिडेन प्रशासन इन प्रदर्शनों का खुले आम समर्थन कर रहा है और क्यूबा सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने और वहां अस्थिरता फ़ैलाने के लिए जाना-पहचाना साम्राज्यवादी तरीका अपना रहा है। फर्जी खबरों को फैलाने के लिए इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहा है। लैटिन अमेरिका के टीवी चैनल टेलीसुर की एक रिपोर्ट के मुताबिक क्यूबा सरकार के खिलाफ अभियान में रोबोट्स, एल्गोरिद्म और हाल ही में बनाए गए सोशल मीडिया अकाउंट्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है।
अमेरिका ने 1960 के बाद से वहां बनाए गए कई कानूनों के तहत क्यूबा पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा रखे हैं। अधिकांश अमेरिकी कंपनियों को क्यूबा से व्यापार करने की मनाही है और विभिन्न अमेरिकी कानून क्यूबा में व्यापार करने वाली विदेशी कंपनियों को दंडित करते हैं। इस मामले में महामारी के दौरान भी उसने कोई उदारता नहीं दिखाई । यह नाकेबंदी महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट से प्रभावित क्यूबा के खिलाफ एक आर्थिक युद्ध जैसी है। इसने पर्यटन व्यवसाय को ठप्प कर दिया, खाद्य की कमी को बदतर कर दिया और बेरोजगरी बढ़ी । वर्ष के दौरान, देश ने अपनी अर्थव्यवस्था में 11 प्रतिशत की गिरावट देखी। प्रतिबंधों ने क्यूबा के लिए कोविड-19 टीके विकसित करने के लिए आवश्यक चिकित्सा उपकरणों के साथ-साथ खाद्य उत्पादन के लिए उपकरण हासिल करना कठिन बना दिया है। विदेशी कंपनियों और मानवीय संगठनों से चिकित्सा सहायता और धन हस्तांतरण को रोक दिया, देश की वेंटिलेटर और सिरिंज की खरीद को रोक दिया। वैक्सीन बना लेने के बावजूद क्यूबा अपने लोगों का टीकाकरण नहीं कर पा रहा है। यह नाकाबंदी क्यूबा के लोगों के मानवाधिकारों का व्यापक और अस्वीकार्य उल्लंघन है ।
क्यूबा और क्यूबा के लोग कठिन समय का सामना बहादुरी से करते आए हैं। सभी वैश्विक परिवर्तनों एवं दबावों के साथ, क्यूबा क्रांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ रहा है। गुटनिरपेक्षता के प्रबल समर्थक होने के नाते, क्यूबा ने न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था के लिए अपनी उत्कृष्ट प्रतिबद्धता के लिए विश्व स्तर पर पहचान हासिल की है। कोविड-19 महामारी के समय क्यूबा के डॉक्टरों ने दुनिया के 37 देशों में वायरस से पीड़ितों का उपचार किया और 59 देशों को चिकित्सकीय मदद भेजी। इसकी हेनरी रीव्स मेडिकल ब्रिगेड को इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। दशकों के कठोर आर्थिक व कूटनीतिक प्रतिबंधों के बावजूद क्यूबा अपने रास्ते पर कायम रहा। नाकाबंदी के बावजूद क्यूबा ने कोविड 19 से लड़ने के लिए पांच टीके बनाए हैं। इसके दो टीके अब्दला और सोबोरेना दो को डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित किया गया है।
गत बुधवार को ही भारत सहित 184 देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव का 29वीं बार समर्थन किया है‚ जिसमें क्यूबा पर लगी अमेरिकी आर्थिक पाबंदियों को समाप्त करने की मांग की गई है। भारत ने इस बात पर जोर दिया कि लगातार प्रतिबंध लगे रहने से बहुपक्षवाद तथा स्वयं संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता कमजोर होती है । एक संप्रभु देश के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप हर तरह से अस्वीकार्य है। भारत में, क्यूबा के साथ एकजुटता की हमारी समृद्ध परंपरा रही है। हमें भी 26 जुलाई को महान क्रांति की स्मृति में मनाए जा रहे ‘मॉन्काडा दिवस’ पर क्यूबा के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए क्यूबा को अस्थिर करने के सभी प्रयासों की निंदा करनी चाहिए।
-अरविंद पोरवाल , अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन के सचिव हैं।