इतवार चहलपहल भरा फिर भी सुस्त दिन। इसलिए मंजीत बहुत खुश हो जाता था।
आज घर के पास कोई स्कूल वैन, बच्चों के मां-बाप का शोरगुल नही था। इसलिये कब सात बज गये, पता न चला। बडे आराम से चाय कि चुस्कियां लेता हुआ वह चहलकदमी कर रहा था।
मां तकिया के सहारे लेटी थी। उनके पास जाकर उसने धीरे से माथे पर हाथ रखा, मां ने अपनी सूखी आंखों से देखा होंठ कांपे। फिर वह मंद मुस्काया।
वह महक के पास गया। वह नाश्ते कि थाली में पराठों के साथ मख्खन, चटनी सजा रही थी।
“सुनों, मंजीत मैं सुबह बाज़ार जाऊंगी। घर में रहना, अम्मा के साथ। टिनू भी घर में रहेंगा।“
मंजीत वैसे भी आलस में डूबा था। “ठीक है, मुझे शाम स्पोर्ट्स क्लब मिटींग है।“
मां को हल्के से जगाकर महक ने सुबह का नाश्ता लेने को कहा।
फिर घर रोजाना कि अलग अलग आवाजों में डूब गया।
महक खुशी खुशी बाज़ार के लिए निकल गयीं।
आकाश में बादल घिरे थे, लेकिन यूंही रिमझिम बारिश के आसार लग रहे थे। फिर भी होशियार लोग निकलते समय छाता, रेनकोट को अपने साथ दबाये घूम रहे थे।
मंजीत बचपन से खेलकूद में अव्वल था। नौकरी के बावजूद भी आगे उसने टेनिस खेलना नहीं छोड़ा था। आज क्लब मिटींग में टूर्नामेंट से जुड़े मुद्दे उठाकर बहुत कुछ तय होनेवाला था।
अपने तय समय पर दोपहर मंजीत पैदल निकला। यूं तो सडकों पर पैदल चलने की अब हिंमत नहीं होती। हर तरफ उठता शोर, रिक्शे, कार, सवारियों ने सडकों को मेला बना दिया है। आज इतवार का दिन है, इस शोर से तनिक आजादी होती थी। वह पैदल चलते हुए नुक्कड़ के बस स्टैंड के पास रूक गया। तनिक देर से बस आ गयी, बस का सफर उसको बहुत पसंद था, और जब आसानी से खिडकी वाली सीट मिल जाये तो क्या बात!,वह अगले चौराहे पर उतर गया।
क्लब के आसपास घने पेड़ धूल से सने थे। पेडों पर इश्तिहार चिपके थे। कितनी बार क्लब मेंबर्स ने यह साफ किये थे। लेकिन बदलाव नहीं हो सकता था। पेडों को विद्रूप करनेवाले इश्तिहारों को रोकना असंभव हो गया था। इसलिए समय देना होगा, कानूनी सलाहकार से मशवरा वगैरह। आज सडक पर इतवार के बदौलत सन्नाटा था, एक चाय का ठेला ग्राहकों के इंतजार में डूबा हुआ नजर आ रहा था। एक ऐसा जमाना मंजीत देख चुका था, जब पेडों कि छांव में सुस्ताते प्राणी भी होते थे। बच्चे बडी टहनियों पे लटकते थे। यकायक बदलते शहर में सब कुछ हवा हो गया। पक्की सिमेंट कि सडक आ गयी, पेड़ों की जड़ें जकड़ गयी। हुम्म! हमें कुछ करना चाहिए, वह अकेले में बहुत कुछ सोचता था।
क्लब का माहौल सब साथी आ जाने के बाद हंसी मजाक में डूब गया। बच्चों के टूर्नामेंट का सिलसिला शुरू करना तय कर दिया था। मंजीत बहुत खुश हो गया। बच्चों के साथ वह बहुत खुश रहता था।
मिटींग खत्म हो गई, वह फिर से चौराहे पर आ गया, जब कि किशन अपनी कार में उसको लिफ्ट देने के लिये तैयार था। वह बस का इंतजार छोड़ पैदल चलने लगा। हवा ठंड हो गयीं थी। मिट्टी की खुशबू और बादलों का घिर के आना, वाह! क्या समां है, मंजीत झूम उठा। फूटपाथ पर बैठा भिखारी भी झूम उठा था, उसका बेढंगा झूमना देख राहगीरों को हंसी आ रही थी। मंजीत तेजी से चलने लगा अगले चौराहे पर पहुंचते ही उसके घर कि गली आनेवाली थी।
लेकिन बारिश भी अपनी मर्जी रखती है, मंजीत को जैसे भिगोना ही था। थाड थाड करती बरसती बारिश ने उसको ऐसे जकड़ा कि कदम भारी हो गये।
शाम होते ही गली के कोने में छोटी छोटी सब्जी की दुकानें लगती है। वहां उसने देखा विशू की लगायी छोटी दुकान मे धनिया, पुदीना कि हालात खराब हो रही थी। उसकी अम्मा दूरी पर लगे अपने ठेले पर सब्जी ढंकने के लिए प्लास्टिक ढूंढ रही थी। मंजीत विशू के पास गया, “मुझे धनिया देना”
विशू परेशान हो गया था, “बाबूजी सब ले जाईये”
मंजीत ने जेब से गीली रूमाल निकाली, “डालो इसमें, कितने पैसे”
“बाबूजी, जो चाहे दे दो।”
मंजीत विशू की हालत देख बुझ गया, पचास रुपये की सामग्री है, बारिश से कुचल कर धरी की धरी रह गयी थी। उसने जेब से भीगा बटुआ निकाला। बीस कि नोट हाथ आ गयी थी। , “ ले रख”
विशू मुस्काया, “ बाबूजी कल बारिश नहीं रही तो ताजा धनिया दूंगा।“
मंजीत दबी-कुचली धनिया रुमाल में बांधकर घर पहुंचा।
महक ने मुस्कुराते हुए कहा, “लो, आ गये बारिश के साथ, ये रुमाल में क्या है?”
“आप जो सब्जी बना रही हो, ताजा धनिया ले आया”
“ओह! सचमुच।“
उसने रुमाल जैसे ही खोला,पानी से भीगी चिपकी धनिया कि खुशबू तैर उठी।
वह देख समझ गयी और हंसते हुए बोली,
“ ओह! बारिश में झूमते हुये, यह ले आये मस्त कलंदर!”
– लतिका जाधव- मराठी / हिंदी की सुपरिचित लेखिका । मराठी पत्र पत्रिकाओं में लगातार लेखन। सामाजिक कार्यों में संलग्नता। आकाशवाणी जलगांव से महिला, युवा और बच्चों के लिए लेखन और प्रसारण । प्रकाशित साहित्य: मराठी से हिंदी में अनुदित दलित कहानी संग्रह *’सफेद चूहा’,* ,मराठी में प्रकाशित किताबें,- *1श्रीमती काशीबाई कानिटकर काळ आणि कर्तृत्व* *2 सामाजिक परिवर्तन चिकित्सा आणि भवितव्य* में *सहसंपादक* यु.जी.सी.दिल्ली के द्वारा प्राप्त दो लघु शोध प्रकल्प । पूर्व में *’बायजा’ मराठी* महिला द्वैमासिक के लिए संपादक मंडल सदस्य थी। नेस वाडिया कालेज आफ कामर्स,पुणे से सेवानिवृत्त , पुणे में निवास।
संपर्क-9595983100
Latika ji
Very emotional and heart touching fragrance in composition
Devi
Heart warming . Thanks for such a beautiful story . Please keep writing. : )