कविता बनारस ज्ञान, भोग और भक्ति का संगम है तो यहां जन्मे जयशंकर प्रसाद ज्ञान, अध्यात्म और देशभक्ति का संगम थे कुछ एक शहरों के लिए कहा जा सकता है कि वे एक जगह थमे हैं तो उतने प्रवाहमान भी हैं. बनारस इन्हीं में से एक है. अपनी सांस्कृतिक पहचान, जिसमें उसका भदेसपन शामिल है, […]
Read Moreपिछली बार मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा का प्रचार किया गया और फिर उनपर भीड़ की हिंसा को स्वतःस्फूर्त क्षोभ की अभिव्यक्ति कहा गया। इस बार सिखों के ख़िलाफ़ घृणा का प्रचार किया जा रहा है। भारत गृह युद्ध की तरफ ढकेला जा रहा है। यह शासकों की तरफ से किया जा रहा है। या शायद […]
Read Moreनई दिल्ली/उदयपुर। कला और साहित्य दो भिन्न क्षेत्र नहीं हैं, बल्कि एक – दूसरे से गहरे स्तर तक जुड़े हुए हैं। ऐसी कोई भी महीन या बारीक रेखा नहीं है,जो इन्हें अलगाती हो। कला और साहित्य की अंतःसूत्रता को समझने के लिए, दोनों का सूक्ष्म निरीक्षण बेहद जरूरी है। गहरी अंतर्दृष्टि के संभव होने पर […]
Read Moreइंदौर, 31 जनवरी 2021. गत वर्ष दिसम्बर के महीने में इंदौर, उज्जैन, मंदसौर और अलीराजपुर जिलों में हुई साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं के कारणों की जाँच करने के लिए एक नौ सदस्यीय स्वतंत्र तथ्यान्वेषी दल ने इन इलाकों का दौरा किया। हालाँकि हिंसा की घटनाएँ ज्यादा फैली नहीं लेकिन दल के सदस्यों ने ये महसूस […]
Read Moreनेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती (23 जनवरी) के अवसर पर देश भर में अनेक आयोजन हुए. राष्ट्रपति भवन में उनके तैल चित्र का अनावरण किया गया. केंद्र सरकार ने घोषणा की कि नेताजी का जन्मदिन हर वर्ष ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया जायेगा. रेलमंत्री ने कहा कि हावड़ा-कालका मेल को अब नेताजी एक्सप्रेस […]
Read Moreफरीद खान हर दिल अजीज रंगकर्मी सफदर हाशमी के जिक्र से कई सियासी सूत्र खुलते हैं” जब लोकतांत्रिक अधिकारों पर कई तरह के पहरे मढ़े जा रहे हों तो हर दिल अजीज रंगकर्मी सफदर हाशमी के जिक्र से कई सियासी सूत्र खुलते हैं। रंगकर्मी, सफदर के अभिन्न मित्र और उनकी हत्या के चश्मदीद गवाह सुधन्वा […]
Read Moreअरुण कुमार त्रिपाठी किसानों के धरना स्थल पर गांधी की चाक्षुष उपस्थिति न के बराबर है या बहुत कम है। क्योंकि उन्हें ज़रूरत नहीं गांधी के नाम पर दिखावा करने की। फिर भी शांतिपूर्वक धरने पर बैठे किसानों ने 30 जनवरी यानी महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर एक दिन का उपवास रखा।किसानों ने गांधी […]
Read Moreअव्यक्त 31 जनवरी, 1948 को दिए इस वक्तव्य में विनोबा भावे बताते हैं कि क्यों जब गांधीजी जैसा पुरुष देह छोड़कर जाता है तो वह रोने का प्रसंग नहीं होता अभी इस समय दिल्ली में जमुना नदी के किनारे पर एक महान पुरुष की देह अग्नि में जल रही है. हम यहां जिस तरह प्रार्थना […]
Read Moreमुकेश कुमार क्या गुंडों की ये टोलियाँ फासीवादी अभियान के शुरुआती दस्ते हैं? अभी इस तरह की भविष्यवाणी को अनुचित और जल्दबाज़ी कहा जाएगा। बहुत से लोगों को यक़ीन है कि भारत के लोगों का सामूहिक विवेक अभी उस हद तक नहीं गिरा है जहाँ हम मान लें कि लोकतांत्रिक व्यवस्था ढह जाएगी और फासीवाद […]
Read Moreमुकुंद झा, सोनाली मोटे तौर पर सभी ने इस आंदोलन का समर्थन किया और किसी भी तरह की परेशानी से इंकार किया। हालांकि कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें कुछ असुविधा हुई लेकिन वो किसान से अधिक पुलिस के रास्ते रोके जाने से हुई है। “हमें किसान आंदोलन से कोई समस्या नहीं है, जो लोग […]
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