Breaking News

Year: 2020

नई पीढ़ियां जिस राम को जानेंगी वह तुलसी का राम होगा, कबीर का, या फिर ठेठ राजनीतिक राम?

अव्यक्त  ‘राम’ भारतीय परंपरा में एक प्यारा नाम है. वह ब्रह्मवादियों का ब्रह्म है. निर्गुणवादी संतों का आत्मराम है. ईश्वरवादियों का ईश्वर है. अवतारवादियों का अवतार है. वह वैदिक साहित्य में एक रूप में आया है, तो बौद्ध जातक कथाओं में किसी दूसरे रूप में. एक ही ऋषि वाल्मीकि के ‘रामायण’ नाम के ग्रंथ में…

Read more

शकुंतला देवी: जितनी अद्भुत शख्सियत, उतना दिलचस्प सिनेमा!

अंजलि मिश्रा एक मैथ्स जीनियस पर बनी होने के बावजूद ‘शकुंतला देवी’ संवेदनाओं और भावनाओं को खुद में शामिल करते हुए कोई कंजूसी नहीं बरतती है डिजिटल प्लेटफॉर्म – एमेजॉन प्राइम ,निर्देशक – अनु मेनन ,लेखक – अनु मेनन, नयनिका महतानी,कलाकार – विद्या बालन, सान्या मल्होत्रा, अमित साध, जीशु सेनगुप्ता, शीबा चड्ढा,रेटिंग – 3.5/5, ‘मुझे…

Read more

प्रेमचंद 140 : क्या क्रांतिकारी हिंसा जीवन के प्रति प्रेम को जन्म देती है?- अपूर्वानंद

भारत में मुक्ति या क्रांति के नाम पर हिंसा की वैधता को लेकर तीखी बहस रही है। हिंसक क्रांति या विद्रोह का विचार घातक रूप से आकर्षक बना हुआ है। भारत में एक हीन भावना अंग्रेज़ों से मिली आज़ादी को लेकर भी है। उसे अहिंसक मानते ही वह किंचित् हीन हो उठती है। इसी कारण…

Read more

हागिया सोफिया का संग्रहालय से मस्जिद बनना: बदल रहा है समय- राम पुनियानी

कुछ दशक पहले तक साम्राज्यवादी ताकतें ‘मुक्त दुनिया बनाम एकाधिकारवादी शासन व्यवस्था (समाजवाद)’ की बात करतीं थीं. 9/11 के बाद से ‘इस्लामिक आतंकवाद’ उनके निशाने पर है. इस समय पूरी दुनिया में अलग-अलग किस्म के कट्टरपंथियों का बोलबाला है. वे प्रजातंत्र और मानव अधिकारों को कमज़ोर कर रहे हैं. पिछले तीन दशकों में वैश्विक राजनैतिक…

Read more

बाल गंगाधर तिलक की महानता के दीवाने क्यों नहीं थे डॉ. आंबेडकर

डॉ मुख्तयार सिंह बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई 1856 – 1 अगस्त 1920 ) को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस के गरम दल का प्रमुख नेता माना जाता है . उनको लोकमान्य की उपाधि से नवाजा गया था. स्वराज और स्वाधीनता में अंतर होने के बावजूद, उनका नारा – ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’…

Read more

नयी शिक्षा नीति: किसकी आँख में धूल झोंक रहे हो मोदी जी?

 प्रेम कुमार मणि “यह शिक्षा नीति मेरी समझ से उलझावकारी है. नई सदी की सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करने का इसके पास कोई विजन नहीं है. हमारा देश संस्कृति-बहुल और भाषा-बहुल है. इस बहुरंगेपन को एक इंद्रधनुषी राष्ट्रीयता में विकसित करना, अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करते हुए एक वैश्विक चेतना सम्पन्न नागरिक…

Read more

प्रेमचंद 140 – प्रेमचंद : भोलेपन की बादशाहत –अपूर्वानंद

आत्मा को उल्लास देना और सत्यदर्शी आँखों के लिए शिक्षा की सामग्री जुटाना, यह साहित्य का दायित्व है। सत्य की परिभाषा भी आसान नहीं। प्रेमचंद उसे सत्य नहीं मानते जो प्रेम और सुंदरता के भाव से ख़ाली हो।…प्रेमचंद के 140 साल पूरे होने पर  ‘अज्ञेय की ‘शरणार्थी’ संग्रह की कहानी ‘बदला’ याद है?’ ‘मंदिर और…

Read more

गैर-द्विज बौद्धिक पूँजी’ से सहमी व्यवस्था के आईने में हैनी बाबू की गिरफ़्तारी

प्रमोद रंजन “2018 में जब केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आरक्षण रोस्टर में बदलाव कर दिया गया, जिससे दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग की हजारों सीटें कम हो गईं तो उसके विरोध को व्यवस्थित करने में हैनी बाबू का बहुत बड़ा योगदान था। इन संघर्षों ने उन्हें आरक्षण संबंधी जटिल नियमों का…

Read more

Dragon in the room:The media’s China ‘solution’

Sevanti Ninan   At a time when much of the world’s media is battling a financial crisis, one inscrutable benefactor looms large. The irony, of course, is that this is the country that created the current crisis by being the originating point for Covid-19. But since China is neither short of money nor ambition, it is…

Read more

सरकार 23 सार्वजनिक कंपनियाँ बेचेगी, आप स्वागत नहीं करेंगे तो क्या करेंगे- रवीश कुमार

“मोदी सरकार की यही ख़ूबी है। उनकी समर्थक जनता हर फ़ैसला का समर्थन करती है। वरना 23 सरकारी कंपनियों के विनिवेश का फ़ैसला हंगामा मचा सकता था। अब ऐसी आशंका बीते दिनों की बात हो गई है। सरकार की दूसरी खूबी है कि अपने फ़ैसले वापस नहीं लेती है। सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों में भी मोदी…

Read more