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Month: February 2021

ग़ालिब अगर शायर न होते तो उनके ख़त ही उन्हें अपने दौर का सबसे ज़हीन इंसान बना देते

अनुराग भारद्वाज अपनी मौत से एक दिन पहले ग़ालिब ने नवाब लोहारू के खत का जवाब कुछ यूं लिखवाया- मुझसे क्या पूछते हो कि कैसा हूं? एक या दो दिन ठहरो फिर पड़ोसी से पूछ लेना सौं उससे पेश-ए-आब-ए से बेदरी है (मैं झूठ बोलूं तो प्यासा मर जाऊं), शायरी को मैंने नहीं इख़्तियाया (अपनाया)….

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बंगाल : मुसलिम वोटों की मारामारी, पार्टी की तैयारी में फुरफुरा शरीफ़ के पीरज़ादा

प्रमोद मल्लिक पश्चिम बंगाल की राजनीति कुछ साल पहले तक धर्मगुरुओं से संचालित नहीं होती थी। यहां के मुसलमान किसी इमाम के कहने पर वोट नहीं देते थे। दिल्ली की जामा मसजिद के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी का जब 1980 के दशक में देश के मुसलमानों पर दबदबा था या ऐसा वे दावा करते थे,…

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प्रोफेसर डी. एन. झाः तथ्यात्मक इतिहास लेखन से साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद की चुनौती का मुकाबला – राम पुनियानी

दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डी. एन. झा ऐसे ही एक इतिहासविद् थे. उन्हें कई बार जान से मारने की धमकियां दी गईं. गत 4 फरवरी को प्रोफेसर झा की मृत्यु न केवल हमारे देश और दुनिया के इतिहासविदों के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है वरन् उस आंदोलन के लिए भी…

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जन साहित्य उत्सव(PLF): नब्बे की उम्र में प्रेम कहानी नहीं लिखूंगी, तो कब लिखूंगी– उषा प्रियंवदा

हाल ही में उम्र का 90वां बसन्त मना रहीं प्रख्यात लेखिका उषा प्रियंवदा का अंदाज़ ज़िदादिली, खिलंदड़पन और दिलकशी से भरपूर है। पद्म भूषण सम्मान से अलंकृत ऊषा ने पीएलएफ में, “जिंदगी और गुलाब के फूल” सत्र में, अरविंद कुमार के सवालों का जवाब देते हुए अपनी जिंदगी के कई रंग सामने रखे।   खिलखिलाते हुए…

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किताबख़ानाः नियति को ठेंगा

आकांक्षा पारे काशिव “अगर कहानियों में नायिकाएं विद्रोह पर उतर आएं, तो समझ जाइए कि समाज में बदलाव धीरे-धीरे दस्तक देने लगा है”,कंचन सिंह चौहान के पहले कहानी संग्रह में यह दस्तक सुनाई देती है। उनकी नायिकाएं ‘जी’ कहने से पहले ‘क्यों’ पूछती हैं।  ‘बदजात’ ऐसी ही कहानी है, जिसमें एक मां का विद्रोह है।…

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बंगलुरु की जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की ग्रेटा थुनबर्ग ‘टूलकिट’ केस में गिरफ़्तारी

दिल्‍ली पुलिस ने शनिवार रात बंगलुरु से किसान आंदोलन की समर्थक एक जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को गिरफ्तार किया है। दिशा रवि फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर नाम के जलवायु परिवर्तन सम्‍बंधी अभियान की सह-संस्‍थापक हैं। उन्‍हें बंगलुरु से शनिवार शाम फ्लाइट से दिल्‍ली लाया गया। आज उन्‍हें अदालत में पेश किया गया। अदालत ने उन्‍हें पांच दिन की…

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गैस,पेट्रोल की बेतहाशा बढ़ती कीमतें, फिर भी खामोशी क्यों!

संजय राय देश की संसद और राजनीति आन्दोलनजीवी, परजीवी और क्रोनीजीवी जैसे शब्दों के तर्क-कुतर्क पर उलझी हुई है, जबकि आम आदमी महँगाई की मार से दोहरा होता जा रहा है। प्याज और सब्जी के आकाश छूते दाम, नए साल में 16 बार पेट्रोल – डीज़ल के भाव बढ़ गए, लेकिन इसकी चर्चा न संसद…

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भारत में ज्ञान की मौत पर आँसू कौन बहायेगा!- अपूर्वानंद

शिक्षा संस्थानों पर लगाम लगाने के नए सरकारी फरमान की हिंदी की अखबारी दुनिया में कोई चर्चा नहीं है। क्या इसपर हम ताज्जुब करें? आखिर हिंदी अखबारी रवैया हिंदी पाठकों को बेखबर करने का ही रहा है। ज्ञान के संसार में क्या हो रहा है, किस किस्म की उथल-पुथल है, इसपर कोई चर्चा हिंदी मीडिया…

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कहानीः खोज – ख़लील जिब्रान

ख़लील जिब्रान (6 जनवरी, 1883–10 जनवरी, 1931) अरबी और अंग्रेजी के लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। जीवन की कठिनाइयों की छाप उनकी कृतियों में…

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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़: जैसे बीमार को बेवजह क़रार आ जाए…

कृष्णकांत फ़ैज़ ऐसे शायर हैं जो सीमाओं का अतिक्रमण करके न सिर्फ़ भारत-पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया के काव्य-प्रेमियों को जोड़ते हैं. वे प्रेम, इंसानियत, संघर्ष, पीड़ा और क्रांति को एक सूत्र में पिरोने वाले अनूठे शायर हैं. कुछ बरस पहले हमारी एक मित्र अपनी परीक्षा के एक दिन पहले फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कुछ नज़्में…

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