रघुनंदन त्रिवेदी- (17 जनवरी 1955 -10 जुलाई 2004)
रघुनंदन त्रिवेदी अपने समय से आगे के कथाकार माने जाते रहे । हालांकि कम उम्र में ही उनका निधन हो गया मग़र इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण कहानियां लिखीं । तीन कहानी संग्रह 1988 में ॅयह ट्रेजेडी क्यों हुई,ॅ 1994 में ॅवह लड़की अभी जिन्दा हैॅ तथा 2001 में ॅहमारे शहर की भावी लोक-कथाॅ। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उनकी अनेक कहानियाँ प्रकाशित ॅयह ट्रेजेडी क्यों हुईॅ कहानी संग्रह पर उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर द्वारा रांगेय राघव पुरस्कार से तथा ॅवह लड़की अभी ज़िन्दा है ॅ को अंतरीप सम्मान द्वारा सम्मानित किया गया था। आज पढ़ते हैं बहुत ही संवेदनशील कथाकार रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी –
अंतिम बातचीत -रघुनंदन त्रिवेदी
‘ख, मैंने तुम्हारी एक तसवीर बनाई है। इसे देखकर तुम चकित हो जाओगे। इस तसवीर में तुम इतने प्यारे लगते हो कि बस्स! तुम्हारे चेहरे में जो खामियाँ हैं, उन सबको हटा दिया है मैंने इस तसवीर में।’
‘क, मैंने भी तुम्हारी एक तसवीर बनाई है और मैं दावे से कहता हूँ, इस तसवीर में तुम जितने खूबसूरत दिखाई देते हो, उतने खूबसूरत, वास्तव में तुम कभी नजर नहीं आए।’
‘क्या सचमुच? वाकई तुमने भी मेरी तसवीर बनाई है! लेकिन तुम तो तसवीर बनाना जानते ही नहीं। यह काम तो मेरा है।’ – क’ ने कहा।
‘नहीं, मैंने जो तसवीर बनाई है तुम्हारी, वह कागज पर नहीं, मेरे मन में है।’
‘खैर, दिखाओ।’
‘नहीं, पहले तुम।’
‘ठीक है। यह देखो। लगते हो न हम सबकी तरह।’
‘लेकिन मेरी दाढ़ी?’
‘दोस्त, यही तो वह चीज है, जिसके कारण तुम अजीब और किसी हद तक क्रूर दिखाई देते हो, इसलिए मैंने इसे हटा दिया।’
‘पर मैंने तो तुम्हारे जिस चेहरे की कल्पना की है, उसमें तुम भी दाढ़ी वाले ही हो।’ – ‘ख’ ने खिन्न होकर कहा।
इस बातचीत के बाद ‘क’ और ‘ख’ कभी दोस्तों की तरह नहीं मिल सके।