किसान आन्दोलन से निपटती या उसे निपटाती अमित शाह की पुलिस के पक्ष में इतना ही कहा जायेगा कि उसने अभी तक गोली न चलाने का संयम दिखाया है। यह केन्द्रीय गृह मंत्री की राजनीतिक विवशता हो तो भी और पुलिस की पेशेवर रणनीति हो तो भी, स्वागत योग्य है। लेकिन कुल मिलाकर दिल्ली पुलिस का मुख्य हथियार धैर्य कम और धमकी अधिक नजर आता है। उन्हें, शाह के नेतृत्व में, छद्म आरोपों और सबूतों की रवायत से कोई परहेज हो, ऐसा नहीं लगता। लेकिन क्या वे एक कठिन दायित्व को और कठिन नहीं बना रहे?
दिल्ली पुलिस ने लाल किला हिंसा के फरार प्रमुख आरोपी लखा सिधाना पर एक लाख का इनाम रखा है तो लखा ने उसे गिरफ्तार करने की चुनौती के साथ बठिंडा, पंजाब की किसान महा-पंचायत में गरमा-गरम तकरीर दे डाली। पुलिस ने दिल्ली सीमा पर कंक्रीट, कील और कंटीले तार के अवरोध बिछा दिए तो किसानों ने राजधानी के चारों ओर के इलाकों में महा-पंचायतों की श्रृंखला बाँध दी। किसान हिंसा के नाम पर हो रही पुलिस गिरफ्तारियों के जवाब में कई शीर्ष किसान नेताओं के बयान आये हैं कि गावों में किसानों के विरुद्ध नोटिस लेकर आने वाले दिल्ली पुलिसकर्मियों को बंधक बना लिया जाए।
प्रायः माना जाता है कि एक पुलिसवाला जिस समाज से आता है, उसकी अच्छाई-बुराई भी विभाग में साथ लाता है। लेकिन, ध्यान रहे, साथ ही यह भी उतना ही सच है कि समाज के आचार-व्यवहार में स्वयं पुलिस भी कम प्रतिबिंबित नहीं होगी। शायद फिल्मों की तरह, जो यदि समाज से प्रभावित दिखती हैं तो कमोबेश उसे प्रभावित भी करती हैं। दिशा रवि का मामला बताता है कि अमित शाह की पुलिस छद्म का रास्ता छोड़ने की नहीं सोच रही।
फ़िलहाल, दिशा रवि का किसान आन्दोलन के समर्थन में जारी टूल किट दिल्ली पुलिस के किसान आन्दोलन को कुचलने के टूल किट पर भारी पड़ा है। दिल्ली पुलिस द्वारा बंगलुरू से गिरफ्तार की गयी युवा सामाजिक एक्टिविस्ट को जमानत पर छोड़ने के आदेश में पटियाला हाउस कोर्ट के जज धर्मेन्द्र राणा ने बेशक इस जाने-माने संवैधानिक प्रावधान को ही लागू किया- सरकार से असहमति व्यक्त करने का मतलब राजद्रोह नहीं होता। हालाँकि दिशा रवि टूल किट में 26 जनवरी के दिल्ली में किसान प्रदर्शन को लेकर सुझायी गयी रूपरेखा को उस दिन लाल किले पर हुयी हिंसा से जोड़ने के पुलिस के दावे को भी अदालत ने सही नहीं माना। लेकिन दिल्ली पुलिस क़ानूनी पश्चाताप करेगी और दिशा के विरुद्ध मामले को वापस लेगी, ऐसा कोई आसार नहीं लगता।
इस बीच सिन्धु बॉर्डर धरना क्षेत्र से हरियाणा पुलिस द्वारा उठायी गयी नौदीप कौर को पुलिस हिरासत में शारीरिक यातना और यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप सामने आये हैं। चंडीगढ़ हाईकोर्ट द्वारा मामले का संज्ञान लेने से पहले इस युवा श्रमिक एक्टिविस्ट और एक अन्य पुरुष सहयोगी को क़ानूनी सहायता तो दूर, हफ़्तों परिवार तक से मिलने नहीं दिया गया। पुलिस उन्हें कठोर ‘सबक’ सिखा रही है क्योंकि वे स्थानीय श्रमिकों के बीच जाकर किसान आन्दोलन के पक्ष में प्रचार कर रहे थे।
पुलिस द्वारा की जा रही इन जैसी गैरकानूनी ज्यादतियों का सम्बन्ध सिर्फ उसकी पेशेवर प्रतिष्ठा के दागदार होने से ही नहीं बल्कि आन्दोलनकारियों के व्यवहार से भी जुड़ेगा। हरियाणा में दिल्ली की ओर बढ़ते किसान आन्दोलनकारियों को जगह-जगह सडकों पर अवरोध लगाकर और बल-प्रयोग से रोका गया था। किसानों ने इसके जवाब में मुख्यमंत्री खट्टर की करनाल में किसान सभा को बलपूर्वक भंग किया और राज्य भर में भाजपा नेताओं के आयोजनों में रोड़ा अटकाया। इस तरह वे भी पुलिस के दिखाए रास्ते पर चलते दिखे। उत्तर प्रदेश में महा-पंचायतों को रोकने के लिए प्रशासन द्वारा धारा 144 लगायी गयी लेकिन हर जगह सिर्फ इसकी निपट उल्लंघना देखने को मिली।
अब, किसान आन्दोलन को समय रहते अपने आंसुओं की संजीवनी देने वाले राकेश टिकैत की 40 लाख ट्रैक्टरों से संसद घेरने की धमकी सामने आयी है। टिकैत की वर्तमान छवि एक पोस्टर-ब्वाय वाली है और उनके इस दावे को अतिरंजित ही कहा जाएगा। लेकिन लम्बे खिंचे किसान आन्दोलन के भीतर से भी प्रतिस्पर्धात्मक स्वर सुने जा रहे हैं, जबकि मोदी सरकार के प्रतिनिधियों के बयान किसानों के प्रति बदस्तूर चुनौती या उपहास भरे हैं। यह भी कोई राजनीतिक रहस्य नहीं रह गया है कि मोदी सरकार के लिए एक हिंसक किसान आन्दोलन को कुचलना कहीं ज्यादा आसान सिद्ध होगा। लिहाजा, किसी भावी किसान मार्च पर लाल किला प्रकरण की छाया रहेगी ही।
विकास नारायण राय, अवकाश प्राप्त आईपीएस हैं. वो हरियाणा के डीजीपी और नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद के निदेशक रह चुके हैं। सौज- मीडियाविजिल